इंटरसेक्शनलजेंडर पितृसत्ता के बदले रंग के बीच महिलाओं के बुनियादी अधिकार

पितृसत्ता के बदले रंग के बीच महिलाओं के बुनियादी अधिकार

‘मेरे घर में कोई भेदभाव नहीं होता है। मुझे और मेरे भाई को एक बराबर अधिकार दिए जाते है। मेरे पास अपना मोबाइल फ़ोन है, मैं जींस पहनती हूँ और बाक़ी लड़कियों की तरह मेरे घर में पहनावे को लेकर कोई पाबंदी नहीं है।‘ बीस वर्षीय नंदनी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ किशोरी-मीटिंग में अपनी ये बात लैंगिक भेदभाव के मुद्दे पर चर्चा के दौरान रखी। नंदनी की इस बात के बाद मानो बाक़ी लड़कियाँ एकदम चुप हो गयी। ख़ासकर वो जिनके पास अपना मोबाइल फ़ोन नहीं था या जिनके घर में जींस पहनने की आज़ादी नहीं थी। सभी लड़कियाँ ख़ुद को नंदनी से कम मानकर संकोची जैसा व्यवहार करने लगी।

अक्सर ग्रामीण स्तर पर किशोरियों के साथ बैठक के दौरान कई ऐसे अनुभव भी सामने आते है, ऐसा ही हुआ करमसीपुर गाँव में मीटिंग के दौरान भी। फिर हमलोगों ने जब अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए – अपनी मर्ज़ी से पढ़ाई करने, नौकरी करने और शादी करने की बात उठायी तो सभी के पास एक ज़वाब थे – ‘ये तो घरवाले बताएँगें।‘ इसपर जब हमलोगों ने नंदनी के भाई की शिक्षा और विकास अवसर पर बात की तो भेदभाव की परत साफ़ दिख गयी। नंदनी गाँव के एक कॉलेज से बीए करके पढ़ाई छोड़ चुकी या ये कहूँ कि परिवारवालों ने छुड़वा दी। लेकिन भाई को पढ़ने लखनऊ भेजा गया। नंदनी कम्प्यूटर सीखना चाहती थी, जिसकी उसी छूट नहीं मिली, लेकिन उसका भाई लखनऊ में महँगी कोचिंग कर रहा है। उसके बाद हमलोगों की लैंगिक भेदभाव पर चर्चा शुरू हुई।

ऐसा नहीं है कि ये स्थिति सिर्फ़ गाँव में ही देखने को मिलती है। कई बार ये स्थिति हम शहरों में भी देख सकते है, जहां महिलाओं को आधुनिकता और समानता के नामपर कुछ ऐसे झुनझुने पकड़ाए जाते है कि वो उसमें अपने बुनियादी अधिकारों को भूल जाए। ऐसा ही एक उदाहरण – मोबाइल- स्कूटी या फिर जींस पहनने का अधिकार भी, जहां शिक्षा, विकास और अवसर की बजाय इन चंद मानको को लड़कियों के हाथ में थमा दिया जाता है। अपनी बातों को आगे बढ़ाने से पहले आपको स्पष्ट कर दूँ कि ऐसा बिल्कुल नहीं है, कि मैं लड़कियों के मोबाइल रखने, स्कूटी चलाने या जींस पहनने के ख़िलाफ़ हूँ, बल्कि यहाँ मैं उन बुनियादी अधिकारों की बात कर रही हूँ, जो किसी भी इंसान का मौलिक अधिकार है।

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पितृसत्ता के समय के साथ अपने रंग को बदला है और इस बदले रंग ने महिलाओं पर अपनी सत्ता क़ायम रखने के नए पैंतरे भी अपना लिए है। ये वो पैंतरे है जो देखने में तो आज़ादी और समानता के प्रतीक जैसे लगते है, लेकिन वास्तव में ये पितृसत्ता के मूल्यों को मज़बूत करने और महिलाओं पर अपना शिकंजा कसने में अहम भूमिका निभा रहे है। गाँव में आठवीं-दसवी के बाद लड़कियों की पढ़ाई रोकना और फिर उन्हें मोबाइल फ़ोन या जींस पहनने की छूट देना, ये दिखावे के लिए भले ही समानता का चिन्ह लगे लेकिन वास्तव में ये एक झुनझुने जैसा ही है।

समाज ने हमेशा जेंडर के आधार पर महिलाओं को इन बुनियादी अधिकारों से दूर रखा है, जो पितृसत्ता का मूल है।

अब जब हमलोग इस मोबाइल फ़ोन देने की सोच का विश्लेषण करें तो यही पाते है कि, बेशक लड़कियों को फ़ोन तो दे दिया जाता है, लेकिन वो किससे बात करेगी और किससे नहीं ये सारा निर्णय परिवार वाले करते है। फ़ोन के बहाने ही, लड़कियों को अच्छी लड़की बनने और बुरी लड़की बनने से दूर रहने की सेंके दी जाती है, जिसमें अच्छी लड़की वो होती है जो किसी से ज़्यादा बात नहीं करती। और बुरी लड़की वो होती है जिसकी दोस्ती होती है। कहीं न कहीं शिक्षा और विकास के अवसर से दूर कर मोबाइल फ़ोन देना एक सर्विलांस जैसा ही लगता है, जिसके माध्यम से लड़कियों पर पूरी नज़र रखी जाती है। ठीक इसी तरह गाँव में लड़कियों को जींस पहनने की आज़ादी तो दी जाती है, लेकिन उसके लिए भी बक़ायदा उम्र, समय और अवसर निर्धारित है। कोई भी बीस-बाइस साल की लड़की जींस नहीं पहनेगी। जींस पहनकर अकेले कहीं जा सकती है, किसी कार्यक्रम में जींस नहीं पहनना है, वग़ैरह-वग़ैरह।

लड़कियों को पढ़ाई करने, आगे बढ़ने या ज़िंदगी में शादी जैसे बड़े फ़ैसले ही किसी भी इंसान के भविष्य की दिशा को तय करते है। महिला हो या पुरुष सभी के लिए शिक्षा और रोज़गार बेहद ज़रूरी है और हमारे संविधान ने भी शिक्षा, रोज़गार और अपनी मनचाही शादी का अधिकार देश के नागरिक को दिया है। लेकिन समाज ने हमेशा जेंडर के आधार पर महिलाओं को इन बुनियादी अधिकारों से दूर रखा है, जो पितृसत्ता का मूल है। बदलते समय के साथ पितृसत्ता के बदले रंग ने एक़बार फिर महिलाओं को इन बुनियादी अधिकारों से दूर करने के लिए समानता और अधिकार के कुछ ऐसे मानकों को तैयार किया है, जो महिलाओं को उनके वास्तविक अधिकारों से दूर करती है। ऐसे में हमें बारीकी से पितृसत्ता के इन जाल को समझना होगा। क्योंकि ये जाल न केवल महिलाओं को उनके अधिकारों से दूर करती है, बल्कि महिला-एकता को भी प्रभावित करता है। ये झुनझुने सीधेतौर पर महिलाओं को अलग-अलग वर्गों में बाँटने का काम करती है। इसलिए अपनी बुनियादी को समझिए।

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तस्वीर साभार : indiatimes.com

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