इतिहास सुल्तान जहां बेगम : एक ऐतिहासिक नारीवादी महिला। #IndianWomenInHistory

सुल्तान जहां बेगम : एक ऐतिहासिक नारीवादी महिला। #IndianWomenInHistory

सुल्तान बेगम को शिक्षा के साथ-साथ घुडसवाली व तलवारबाजी की शिक्षा भी दी गई। सुल्तान जहां बेगम ने अपनी मां शाहजहां बेगम की मृत्यु के बाद 16 जून 1901 को राजगद्दी की बागडोर संभाली।

जब भी हम इतिहास की बात करते हैं, तब हमारी जबान पर हमेशा कुछ ऐसे महान और दिग्गज हस्तियों का जिक्र होता हैं जिन्होंने इतिहास में हमारे देश के विकास व उसे और बेहतर बनाने में बहुत योगदान दिया है। इतिहास द्वारा हमें यह भी पता चलता है कि इन योगदानों में कुछ महिला हस्तियों का भी बड़ा योगदान रहा है। इन्हीं दिग्गज नामों में से एक हैं सुल्तान जहां बेगम। सुल्तान जहां बेगम ने रूढ़िवादी धारा को समाप्त करने व उसका विरोध करने में बहुत अधिक योगदान दिया है। उन्होंने नारी शिक्षा पर अधिक जोर दिया और हमेशा नारी शिक्षा के खिलाफ होने वालों के विरूद्ध विरोध भी किया। इतने योगदानों के बाद भी ऐतिहासिक पन्नों से इनका नाम गायब है। सुल्तान जहां 19वीं सदी की पहली महिला हैं जिन्होंने उस दौर में नारी शिक्षा को बढ़ाने हेतु आवाज़ उठाई और इसके लिए कदम भी उठाएं। 19वीं और 20वीं सदी के दौरान भारत के भोपाल की राज्यसत्ता पर बेगमों का भी लंबा शासन रहा था। बेगमों के शासन में से सुल्तान जहां बेगम भी एक बेगम रहीं, जिन्होंने भोपाल की गद्दी पर राज किया था।

सुल्तान जहां बेगम का प्रारंभिक जीवन

सुल्तान जहां बेगम का जन्म 19 जुलाई 1858 में भोपाल में हुआ। सुल्तान जहां बेगम बाकी मोहम्मद खान बहादुर व शाहजहां बेगम की पुत्री थी। सुल्तान जहां बेगम नवाबों के परिवार से संबंध रखती थी। सुल्तान जहां बेगम की दादी सिकंदर बेगम की साल 1868 में मृत्यु के बाद भोपाल कि राज्यसत्ता का उत्तराधिकारी उनकी मां को बना दिया गया था। उनकी मां ने भी भोपाल पर लंबे समय तक शासन किया।

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सुल्तान जहां बेगम के जन्म के बाद ही उनकी मां द्वारा उन्हें अच्छी व उच्च शिक्षा प्रदान की जाने लगी थी। सुल्तान जहां बेगम को शुरुआत से ही इस्लामिक कुरान का अनुवाद, पर्शियन, पस्तू, और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान भी प्रदान किया गया। सुल्तान बेगम को शिक्षा के साथ-साथ घुड़सवारी व तलवारबाजी की शिक्षा भी दी गई। सुल्तान जहां बेगम ने अपनी मां शाहजहां बेगम की मृत्यु के बाद 16 जून 1901 को राजगद्दी की बागडोर संभाली। सुल्तान जहां बेगम ने अपने शासनकाल में अपनी मां और अपनी दादी की ही परंपरा को आगे बढ़ाया। उन्होंने बहुत सी पुरानी परंपराओं में सुधार करके उन्हें आगे बढ़ाया। सुल्तान जहां बेगम ने अपने शासन काल में शिक्षा को अधिक से अधिक बढ़ावा दिया। विशेषतौर पर उन्होंने नारी शिक्षा को बढ़ाने में अधिक जोर दिया था।

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इसी क्रम में उन्होंने साल 1918 में भोपाल में मुफ्त व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था लागू की। साथ ही सुल्तान जहां के शासन काल में भोपाल में बहुत से अच्छे बदलाव और सुधार किए गए जिससे आगे चलकर भोपाल अधिक विकसित व पूर्ण हो पाया। लेकिन उस दौर में सुल्तान जहां बेगम को बहुत सी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। यह वह दौर था जब महिलाओं का इस तरह उभरकर सामने आना और गलत के खिलाफ आवाज उठाना अन्य रूढ़िवादी लोगो को भाता नहीं था। लेकिन फिर भी सुल्तान जहां बेगम ने अपने शासनकाल में अनेक जनसरोकार के काम किए और समाज में स्थापित भेदभावों का विरोध किया।

भोपाल में सुल्तान जहां बेगम का शासनकाल

सुलतान जहां बेगम का शासनकाल करीबन 25 वर्ष तक रहा। 16 जून 1901 से लेकर 20 अप्रैल 1926 तक उनका शासनकाल चला। अपने शासनकाल में सुल्तान जहां बेगम ने बहुत से महत्वपूर्ण बदलाव और सुधार किए थे। उन बदलावों में सुल्तान जहां बेगम ने अपनी प्रजा के लिए किए सुधारों में आर्थिक सुधारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया। उस दौर में कर प्रणाली बहुत अधिक हुआ करती थी। राज्य द्वारा कर बहुत अधिक हुआ करता था जिसे सुल्तान जहां बेगम ने कर प्रणाली में सुधार कर बहुत अधिक कम कर दिया था। जिससे प्रजा पर भार कम हो और प्रजा सुखी जीवन व्यतीत कर सकें। साथ ही उनकी प्रजा के गरीब तबके के लोगों को बुरी परिस्थितियों का अधिक सामना न करना पड़े। बेगम ने अपनी प्रजा के साथ-साथ अपने सैनिकों के लिए भी बहुत से अधिक सुधार किए जैसे उनके वेतन में उन्होंने वृद्धि कर दी, हथियारों का आधुनिकरण किया। अपने राज्य में बड़े-बड़े बांध व कृतिम जिलों का निर्माण भी करवाया। इसके साथ ही पुलिस की दक्षता में भी सुधार कियें।

नारीवादी महिला और लेखिका

सुल्तान जहां बेगम एक नारीवादी महिला थीं जिन्होंने शुरुआत से ही नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया था। उन्होंने समाज को महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया था। वे हमेशा से ही लिंग भेदभाव को समाप्त करना चाहती थी। उन्होंने हर कदम पर लिंग भेदभाव का समाज में डटकर विरोध किया। उस दौर मे सुल्तान जहां बेगम ने नारियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन भी किया। वह सभी को शिक्षा प्राप्त करने हेतु समान अवसर प्राप्त किए। उन्होंने नारी शिक्षा पर बहुत से भाषण भी दिए, जिससे कि नारी प्रोत्साहित हो सकें।

उस दौर में नारियों को शिक्षा का इतना ज्ञान नहीं था जिससे कि वे अपने हुनर को भी पहचान पाती। सुल्तान जहां बेगम ने उनके हुनर को उभारने के लिए अनेक कार्यक्रमों का भी आयोजन कराया। जिसमें महिलाओं को सिलाई,कढ़ाई इत्यादि का प्रशिक्षिण दिलवाया, जिससे वह अपने हुनर को पहचान सकें और आत्मनिर्भर बन सकें। सुल्तान जहां बेगम ने शिक्षा के साथ-साथ नारी स्वच्छता व उनके स्वास्थ्य पर भी अधिक गौर किया। अशिक्षित महिलाओं को स्वच्छता व शिक्षा के बारे में जागरूक किया। सुधारों के कारण सुल्तान जहां बेगम को समाज सुधारक के नाम से भी जाना जाता हैं।

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हमेशा से ही उन्होंने नारी उत्थान की बात को बढ़ावा दिया और लिंग भेदभाव का डटकर विरोध किया। वह हमेशा से ही लिंग भेदभाव के खिलाफ थी जिससे कि उन्हें नारीवाद महिला भी कहा जाता है। उन्होने लिंग भेदभाव के साथ जाति भेदभाव का भी विरोध किया था। साथ ही हिंदू महिलाओं को भी समान अवसर प्रदान किए, जितने मुस्लिम महिलाओं को प्रदान किए गए थे।

सुल्तान जहां बेगम एक लेखिका भी रह चुकी हैं उन्होंने बहुत सी किताबें भी लिखी है जिनमें उन्होंने अपने विचारों को उन किताबों में खुलकर प्रकट किया। वह हर तरह के भेदभाव का खुलकर विरोध किया करती थी। उनकी लिखी किताबें अधिकतर महिलाओं से संबंधित हुआ करती थी। जैसे तुजके, सुलतानी गौहर इकबाल, अख़्तर, हयाते कुद्सी इत्यादि।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रथम महिला कुलाधिपति

सुल्तान जहां बेगम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रथम महिला कुलाधिपति थीं। उन्होने हमेशा से ही शिक्षा के माध्यम से नारी के उत्थान के लिए काम किया। उन्होंने महिलाओं को समानता दिलानी चाही, तथा उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त कराना भी चाहा था। वह चाहती थी कि जिस तरह पुरुषों को उच्च शिक्षा प्रदान की जा रही है उसी तरह समान अवसर व समानता महिलाओं को भी प्रदान कि जानी चाहिए। इसके लिए वह हमेशा डटकर खड़ी रहती थी। उन्होंने इसके लिए आवाज भी उठाई, जिससे वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रथम कुलाधिपति बनीं। सुलतान जहां बेगम का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना कराने में बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना हर धर्म की महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए की थी। वह हर धर्म की महिलाओं मुस्लिम और हिंदू महिलाओं को उस यूनिवर्सिटी में दाखिले लेने के लिए समान अवसर प्रदान कराने के पक्ष में थी।  

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तस्वीर साभारः Wikipedia

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