समाजख़बर बुल्ली बाई ऐप: आवाज़ उठाती मुस्लिम महिलाओं पर एक और हमला

बुल्ली बाई ऐप: आवाज़ उठाती मुस्लिम महिलाओं पर एक और हमला

‘सुली डील्स’ और ‘बुल्ली बाई’ जैसे ऐप्स ने हमारे देश में स्त्री जाति से द्वेष और इस्लामोफोबिया की सामान्य जड़ों को उजागर किया है।

नए साल के आगमन पर पूरी दुनिया अपने दोस्तों-रिश्तेदारों को मैसेज भेज कर बधाइयां दे रही थी। इसी तरह एक मैसेज द वायर की पत्रकार इस्मत आरा ने भी अपने फोन पर रिसीव किया था। ये मैसेज उन्हें उनकी दोस्त ने भेजा था। उन्होंने उस मैसेज को एक बधाई सन्देश समझकर खोला मगर यह देखकर वह चौंक गई कि उनका नाम ‘बुल्ली बाई’ नामक ऐप पर नीलामी के लिए डाला गया है। इस्मत आरा के साथ होने वाली यह घटना मुस्लिम महिलाओं के प्रति द्वेष का एक रूप है। इस्मत आरा अकेली महिला नहीं हैं, जिनका नाम और प्रोफाइल इस ऐप पर बनाया गया है। उनके जैसी लगभग सौ से अधिक मुस्लिम महिलाएं हैं जिन्हें इस ऐप पर नीलाम किया जा रहा था। ‘द वायर’ के अनुसार पत्रकार इस्मत आरा ने इसके खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराई है।

क्या है पूरा मामला ?

साल 2022 की शुरुआत इस घटना के साथ हुई। जिसमें ‘बुल्ली बाई’ नामक एक ऐप के द्वारा 100 से अधिक मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों को ‘नीलामी’ के लिए डाल दिया गया। इन महिलाओं की ऑनलाइन बोली लगाई जा रही थी। उक्त ऐप में प्रमुख अभिनेत्री शबाना आज़मी, दिल्ली उच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश की पत्नी, नजीब की मां, कई मुस्लिम महिला पत्रकार, कार्यकर्ताओं और महिला राजनेताओं की तस्वीरें भी शामिल थीं। 67 साल की खालिद परवीन जिन्होंने नरसिंहानंद सरस्वती (जिनके खिलाफ हरिद्वार में भड़काऊ भाषण देने का मामला दर्ज हुआ है) के खिलाफ आवाज़ उठायी थी उनको भी इस ऐप पर नीलामी के लिए डाल दिया गया है। ‘बुल्ली बाई’ नाम के ऐप का विवाद पिछले साल जुलाई की ‘सुल्ली डील’ ऐप के विवाद के समान है, जिसमें लगभग 80 मुस्लिम महिलाओं को ‘बिक्री के लिए’ रखा गया था।

बुल्ली बाई ऐप क्या है?

‘बुल्ली बाई’ ऐप माइक्रोसॉफ्ट के स्वामित्व वाली ओपन सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट साइट गिटहब (GitHub) पर बनाया गया। इसी पर पिछले साल जुलाई माह में ‘सुल्ली डील्स’ नाम का भी ऐप बनाया गया था जोकि ‘बुल्ली बाई’ की ही तरह था।

‘बुल्ली,’ ‘सुल्ली’, ‘मुल्ली’- ये स्थानीय भाषा यानि स्लैंग में मुस्लिम महिलाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अपमानजनक शब्द हैं। ये शब्द स्थानीय भाषा में मुस्लिम महिलाओं के अपमान के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐप पर मुस्लिम राजनेताओं, पत्रकारों और अन्य प्रभावित महिलाओं के प्रोफाइल, जिसमें सर्वाइवरों की तस्वीरें और अन्य व्यक्तिगत विवरण शामिल थे। इन ऐप में सर्वाइवर महिलाओं की सहमति के बिना इनकी निजी जानकारी को इस्तेमाल कर उन्हें प्रचारित किया जा रहा था। सभी महिलाओं के फोटो उनकी सोशल मीडिया अकाउंट से लिए गए थे और उनके साथ छेड़छाड़ करके इस ऐप पर डाला गया था। यह घटना उस समय वायरल हो गई जब पत्रकार इस्मत आरा ने ‘बुल्ली बाई’ ऐप पर ‘डील ऑफ द डे’ में उनकी नीलाम की जा रही तस्वीर का स्क्रीनशॉट ले कर ट्विटर पर साझा किया। वास्तव में ऐसी कोई ‘नीलामी’ या ‘बिक्री’ नहीं हुई थी लेकिन इस ऐप का उद्देश्य महिलाओं को अपमानित करना और उन्हें डराना था। समाज की पुरानी रीत है कि जब भी किसी महिला को मानसिक रूप से तोड़ना चाहो तो उसके चरित्र को दाग़दार कर दो। बुल्ली बाई ऐप पर डाली गयी महिलायें वे सभी हैं जो कुरीतियों, सामाजिक बुराइयों, राजनैतिक मामलों में सक्रिय रहती हैं।

और पढ़ें : सुल्ली डील्स: मुस्लिम महिलाओं की ‘बोली’ लगाता सांप्रदायिक और ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक समाज

पुलिस की लापरवाही

भारत में मुस्लिम महिलाओं को ऑनलाइन “नीलामी” करके परेशान करने का पिछले छह महीनों में यह दूसरा प्रयास है। इस ऐप के ज़रिए इस्तेमाल करने वाले तक मैसेज जाता था जिसमें लिखा होता था ‘योर डील ऑफ द डे’। इस मैसेज में मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें होती है। पिछले साल रितेश झा नामक व्यक्ति सुल्ली डील्स के समय चर्चा में आया था। रितेश झा ने इस ऐप का एक स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए हिंदू लड़कों से ऐप पर उपस्थित मुस्लिम लड़कियों की बोली लगाने को कहा था। इसके बाद रितेश झा का नाम ट्विटर पर गिरफ्तारी के लिए ट्रेंड भी हुआ था। उसने एक कॉल रिकॉर्डिंग पर यह भी कबूल किया था कि उसने घर में काम करने वाली मुस्लिम महिला का न सिर्फ यौन शोषण किया बल्कि उसका वीडियो इंटरनेट पर भी डाला था। इसके बाद रितेश को गिरफ्तार करने की मांग उठी लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सुल्ली डील्स विवाद के समय पुलिस द्वारा अपनाये गए ढीले रवैये ने ही छह महीने के भीतर ‘बुल्ली बाई’ जैसे विवादित नए ऐप को जन्म दिया है। यदि उस समय पुलिस द्वारा इस मामले में कड़ी कार्रवाई होती तो शायद कोई भी इस तरह की हरकत दोबारा नहीं कर पाता।

बुल्ली बाई ऐप के खिलाफ अलग-अलग राज्यों में कई एफआईआर दर्ज होने के बाद इस पर पुलिस ने एक्शन लिया और अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। बीबीसी में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ बुल्ली बाई ऐप मामले में चार गिरफ़्तारियां हो चुकी है। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अधिकारियों ने गुरुवार को असम से 20 साल के नीरज बिश्नोई को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार बिश्नोई इस मामले का मुख्य साजिशकर्त्ता है। पुलिस ने कहा है कि इस ऐप को इसी व्यक्ति ने डिजाइन किया है। बीसीसी की इस खबर में केपीएस मल्होत्रा, डिप्टी कमिश्नर ऑफ साइबर क्राइम टीम ने कहा है कि बिश्नोई मुख्य ट्वीटर हैंडल चला रहा था और ये ही महिलाओं की तस्वीर ऐप पर शेयर कर रहा था।

इससे पहले इस मामले में मुंबई पुलिस द्वारा तीन गिरफ्तारियां हो चुकी है। बैंगलौर से 21 वर्षीय विशाल कुमार, जो इंजीनियरिंग का छात्र है। इसके अलावा दो लोग उत्तराखंड से गिरफ्तार किए गए है। जिसमें एक 18 वर्षीय श्वेता सिंह है और दूसरा 21 वर्षीय मंयक रावत है। ये दोनों भी छात्र है। इस मामले में कुछ और लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया है।

यदि ये गिरफ्तारी पिछले वर्ष ही हो जातीं तो इस साल ये नया ऐप नये नामों के साथ दोबारा महिलाओं के खिलाफ इस तरह की हरकत ना होती। बुल्ली डील के मामले में हुई अबतक की गिरफ़्तारियों में शामिल चारों लोग छात्र है। इतनी छोटी सी उम्र में इतने बड़े कारनामे को अंजाम देने के पीछे सिवाए घृणा के और कोई कारण नहीं हो सकता।

कैसे यह मुद्दा धार्मिक और जेंडर पहचान से जुड़ा है ?

इस प्रकार के ऐप सांप्रदायिक मानसिकता के साथ तैयार किए जाते हैं। इनका मकसद समाज में ज़हर घोलना होता है। इसके ज़रिए उन महिलाओं को निशाना बनाया जाता है जो समाज में होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती हैं। जो महिलायें राजनैतिक रूप से सक्रिय हैं वो भी इनके निशाने पर होती हैं। जिन महिलाओं के फोटो और प्रोफाइल इस ऐप पर शेयर किए गए हैं उनके लिए यह मानसिक प्रताड़ना देने वाला रहा है। पत्रकार इस्मत आरा अपने ट्विटर अकाउंट में लिखती हैं कि ”यह बहुत दुखद है कि एक मुस्लिम महिला के रूप में आपको अपने नए साल की शुरुआत इस डर और घृणा के साथ करनी पड़ रही है। बेशक, मैं अकेली नहीं हूं जिसे इस नए ऐप द्वारा टारगेट किया जा रहा है।” दिल्ली के एक जज की बेटी ने जब अपनी मां की तस्वीर को इस ऐप पर देखा तो लिखा कि मेरी मां एक लेखिका और एक साहित्यिक इतिहासकार हैं। वह सबसे अच्छी ‘sourdough ब्रेड’ बनाती है और बारिश में टहलने जाना पसंद करती है। उन्हें लगभग सभी लोग “आपा” कहते हैं और वह लाल जूतों की दीवानी है। कल, उन्हें GitHub ऐप पर होस्ट की गई मुस्लिम महिलाओं की ‘नीलामी’ में बेचा गया था। कोई बेटी नहीं सोच सकती कि उसे किसी दिन ये पंक्तियाँ लिखनी पड़ सकती हैं।

‘सुल्ली डील्स’ और ‘बुल्ली बाई’ जैसे ऐप्स ने हमारे देश में महिलाओं से द्वेष और इस्लामोफोबिया की सामान्य जड़ों को उजागर किया है। ‘सुल्ली’ और ‘बुल्ली’ से पहले मुस्लिम महिलाओं को ‘मुल्ली’ के नाम से भी पुकारा जाता रहा है। ये सभी शब्द मुस्लिम महिलाओं के अपमान के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। इससे पहले भी कई बार मुस्लिम महिलाओं को लेकर सार्वजनिक मंच से आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया जा चुका है। इन ऐप्स के द्वारा मुस्लिम महिलाओं को नीलाम कर उनकी पहचान और अस्तित्व को कमजोर करने का काम किया जा रहा है।

मुस्लिम महिलाओं का यौन चित्रण लंबे समय से समाज में प्रचलित है, और उनके प्रति निर्देशित हिंसा और दुर्व्यवहार से निकटता से संबंधित है। जागृत, उदारवादी हलकों में ‘मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति’ की बयानबाजी होती रहती है। ‘सत्ता की राजनीति’ और ‘मुस्लिम महिलाओं का संरक्षण’ जैसे मुद्दे मुस्लिम महिला को “शिकार” बनाते हैं। इन्हीं मुद्दों पर राजनैतिक रोटियों सेंकी जाती रहती हैं। मुस्लिम महिला की कल्पना इस्लामी पर्दे में की जाती है। यह कल्पना की जाती है कि वह अशिक्षित, विनम्र और किसी भी विशेषता से वंचित काले बुर्क़े में नक़ाब लिए हुए होती है। क्योंकि वह सवर्ण/अभिजात वर्ग की नारीवादी कथा में फिट नहीं होती है इसीलिए उसका शोषण करना आसान हो जाता है। महिलाओं से द्वेष और इस्लामोफोबिया का प्रचलन-परिणाम यह हुआ है कि सवर्ण पुरुषों की भीड़ घूंघट में रहस्यमय अनोखी महिला को “जीतने” के विचार को दर्शाती है। इस प्रकार इन ऐप्स के द्वारा मुस्लिम महिलाओं के शरीर हिंसा की जगह बन जाते हैं। मुस्लिम महिलाओं को गाली देना अब केवल महिलाओं को अपने अधीन करने के बारे में नहीं है, बल्कि मुस्लिम वर्ग पर एक अप्रत्यक्ष हमला है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से हमारे देश में धार्मिक रूप से विरोध निकल कर बाहर आयें हैं, उसमें इस प्रकार के घटनाएं होना सामान्य सी बात लगती है। ‘सुल्ली डील्स’ और ‘बुल्ली बाई’ जैसे ऐप्स मुस्लिम धर्म और खासकर मुस्लिम महिलाओं के प्रति अपनी नफरत का संचार करने के लिए एक सीधा प्रयास है।

ये सब मुस्लिम अमानवीयकरण की व्यवस्थित परियोजना का एक हिस्सा हैं। ये पुरुष मुस्लिम महिलाओं को दूसरे धर्म की महिलाओं से और नीचा दिखाते हैं। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को पहले से ही “कमतर प्राणी” के रूप में माना जाता है। राइट विंग हिन्दुओं द्वारा मुसलमानों को सबसे खराब माना जाता है, और इसलिए मुस्लिम महिलायें इन सबमें सबसे निचले दर्जे पर मानी जाती हैं। यह विचार उसी भावना से उपजा है जो ‘लिंचिंग’ और ‘घृणा अपराधों’ को बढ़ावा देता है।

और पढ़ें : लैंगिक/यौन हिंसा पर कैसे करें रिपोर्ट| #AbBolnaHoga


तस्वीर साभार : sentinelassam

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content