समाजकैंपस कर्नाटक: हिजाब पहनने पर रोक के ख़िलाफ़ छात्राओं का विरोध जारी

कर्नाटक: हिजाब पहनने पर रोक के ख़िलाफ़ छात्राओं का विरोध जारी

हिजाब के कारण स्कूल की छात्राओं के साथ भेदभाव किया जाना भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान की खिल्ली उड़ाता प्रतीत होता है।

साल 2022 की शुरुआत हिन्दुस्तान की मुस्लिम महिलाओं के लिए अच्छी नहीं रही है। पहले ‘बुल्ली बाई’ ऐप पर 100 से अधिक मुस्लिम महिलाओं की नीलामी की ख़बर और फिर कर्नाटक के उडुपी में सरकारी महिला पीयू कॉलेज में 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कक्षा में प्रवेश पर प्रतिबंध की ख़बर ने मुस्लिम महिलाओं की अस्मिता पर चोट पहुंचाई है। अभी ‘बुल्ली बाई’ ऐप की बहस ठंडे बस्ते में गई भी नहीं थी कि कर्नाटक की इन 6 छात्राओं का कक्षा के बाहर खड़े होकर अपने अधिकार के लिए शांतिपूर्ण प्रोटेस्ट करना दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है। अलजज़ीरा में छपी रिपोर्ट के मुताबिक बीते 31 दिसंबर की सुबह को जब ए.एच अल्मास और उसकी दो दोस्त अपनी कक्षा में आईं, तो उनके अध्यापक उनपर चिल्लाए, “बाहर निकलो।” उसी दिन से इन मुस्लिम लड़कियों को कक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि उन्होंने हिजाब, या हेडस्कार्फ़ पहन रखा था।

तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी इन छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कक्षाओं में प्रवेश करने नहीं दिया जा रहा है। ये छात्राएं तब से रोज़ाना समय पर कॉलेज आती हैं और उनको कक्षा के बाहर रहने पर मज़बूर किया जा रहा है। इनको कॉलेज द्वारा ‘अनुपस्थित’ के रूप में चिह्नित किया जा रहा है। इस पर छात्राओं का कहना है कि वे वार्षिक परीक्षा में बैठने के लिए ज़रूरी उपस्थिति प्रतिशत को लेकर चिंतित हैं क्योंकि रोज़ाना कॉलेज आने के बावजूद भी उन्हें अनुपस्थित दिखाया जा रहा है। यह मुद्दा चर्चा का विषय नहीं बन पता अगर उन छात्राओं की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल नहीं होती। सोशल मीडिया पर फोटो वायरल होने के कारण छात्राओं को बाहर खड़े रहने पर मजबूर करने का घटनाक्रम जग ज़ाहिर हो गया।

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स्कूल द्वारा हिजाब प्रतिबंध ने भारत में आक्रोश फैला दिया है। छात्र और मानव-अधिकार समूहों ने कॉलेज प्रशासन पर मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ पूर्वाग्रह का आरोप लगाया है। उडुपी के एक स्थानीय वकील संघ ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कॉलेज प्रशासन और शिक्षकों के खिलाफ छात्राओं को “परेशान” करने की जांच की मांग की है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि युवा मुस्लिम छात्राओं को शिक्षा से वंचित करना और उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और उनकी आस्था के बीच चयन करने के लिए मजबूर करना मानवाधिकार का मुद्दा है और इसे इसी तरह  माना जाना चाहिए। 

वहीं, द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक सीएफआई राज्य समिति के सदस्य मसूद ने द हिंदुस्तान गजट को बताया कि छात्राओं को धमकी दी गई और एक पत्र लिखने के लिए मजबूर किया गया कि वे पिछले 15 दिनों से कक्षाओं में भाग नहीं ले रही हैं। प्रिंसिपल ने लेक्चरर के साथ मिलकर लड़कियों को धमकी दी कि अगर वे पत्र नहीं लिखती हैं, तो हम जानते हैं कि आपको कैसे लिखना है।” इसी मानसिक प्रताड़ना के कारण एक छात्रा बीमार भी पड़ गई। इतना सब होने के बाद भी छात्राएं हार मानने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनका अधिकार है और वे अपने अधिकार को नहीं छोड़ सकती।

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कर्नाटक में बीजेपी का शासन है और केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है। बीते कुछ सालों में कर्नाटक और देश के अलग-अलग हिस्सों में मुसलमानों के प्रति नफरत, हिंसा आदि बढ़ती चली जा रही है। कर्नाटक में भी हाल के कुछ सालों में न सिर्फ मुसलमान बल्कि ईसाइयों को भी निशाना बनाया जा रहा है। ये घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब भाजपा शासित कर्नाटक में धार्मिक आधार पर विभाजन स्पष्ट रूप से गहराता जा रहा है। हाल ही में राज्य विधानसभा ने ‘द कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट टू फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन बिल 2021‘ पारित किया, जिसे राज्य में जबरन धर्मांतरण के कथित खतरे को कम करने के लिए ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही हाल के दिनों में कर्नाटक के अलग-अलग हिस्सों में गिरिजाघरों पर भी हमले की खबरें हमें देखने को मिली हैं।

लैंगिक और धार्मिक पहचान के कारण महिलाओं पर होते हमले

दुनियाभर में धार्मिक प्रतिबंध अक्सर महिलाओं को निशाना बनाते हैं। कई देशों में महिलाओं को निंदा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके कपड़ों को बहुत धार्मिक माना जाता है। दूसरी तरफ़ कई देशों में महिलाओं को निंदा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके कपड़े पर्याप्त धार्मिक नही होते हैं। ये प्रतिबंध अक्सर व्यक्तियों या समूहों द्वारा सामाजिक उत्पीड़न का रूप लेते हैं, लेकिन कई बार इसमें आधिकारिक सरकारी कार्रवाई भी शामिल होती है। भारत में महिलाओं को दोनों रूपों में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। हिजाब पहनकर अपनी पहचान असर्ट करने और धर्म का पालन करने पर भी और जीन्स पहनकर पर्याप्त धार्मिक न होने पर भी। सामान्य रूप से एक महिला होने के कारण होनेवाली कठिनाइयों के बारे में लगभग हर एक महिला की एक परेशान करने वाली कहानी है, मौखिक दुर्व्यवहार, उत्पीड़न, अवांछित यौन इच्छा या शारीरिक हमले। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के साथ होनेवाली इन अलग-अलग घटनाएं बीते कुछ सालों से बढ़ती नज़र आ रही हैं।

मुस्लिम विरोधी माहौल में महिलाएं विशेष रूप से जो हिजाब या नकाब पहनती हैं, उनपर एक अलग बोझ होता है, क्योंकि जो महिलाएं हिजाब और नकाब पहनती हैं वे दूर से ही इस्लाम का प्रतिनिधित्व करती हुई नज़र आती हैं। उन्हें भेदभाव, उत्पीड़न और हमलों के जोखिम का सामना ज्यादा करना पड़ता है। उडुपी में भी यही हो रहा है। कहने को स्कूल में और भी कई मुस्लिम लड़कियां हैं मगर जो लड़कियां हिजाब पहनती हैं उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। भारत के सभी नागरिकों की तरह मुस्लिम महिलाओं को भी अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। उन्हें समान व्यवहार करने का भी अधिकार है और उनके धर्म, उनके लिंग या उनकी राष्ट्रीयता या जातीयता के बारे में धारणाओं के कारण उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। हिजाब के कारण स्कूल की छात्राओं के साथ भेदभाव किया जाना भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान की खिल्ली उड़ाता प्रतीत होता है।

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तस्वीर साभार : ट्विटर

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