इतिहास डॉ.राशिद जहांः उर्दू साहित्य की ‘बुरी लड़की’ | #IndianWomenInHistory

डॉ.राशिद जहांः उर्दू साहित्य की ‘बुरी लड़की’ | #IndianWomenInHistory

राशिद जहां का उद्देश्य अपने लेखन के माध्यम से लोगों में आक्रोश पैदा करना नहीं था। वह लोगों को उस समय की वास्तिवकता के बारे में परिचित कराना और उनकी सोच को बदलने के लिए प्रेरित करना चाहती थीं।

राशिद जहां देश की शुरुआती शिक्षित महिलाओं में से एक हैं। लखनऊ और दिल्ली जैसे शहर में तालीम हासिल करनेवाली राशिद जहां ने महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर साहस और स्पष्टता से लिखा। उन्होने उस दौर में यह सब लिखा जब महिलाओं का घर से बाहर निकलना मना था। उस समय वह आंदोलनों में शामिल होकर समाज की बनाई संरचनाओं को चुनौती देती थीं। खुद की राह पर चलनेवाली राशिद जहां को बहुत से नामों से जाना जाता है, जैसे ‘चिंगारी, विद्रोही, बीसवीं सदी की कट्टरपंथी और विवादस्पद उर्दू नारीवादी, और उर्दू साहित्य की बुरी लड़की।’

राशिद जहां अपने दौर का वह सशक्त नाम हैं, जिसे समाज तरक्की पसंद लोग आज भी अपने जहन से नहीं निकाल पाए हैं। उस वक्त वह समय से आगे और समाज की बनाई रीतियों के बंधन को तोड़ती हुई अपनी शर्तों पर जीवन जीती थीं। राशिद जहां अपने जमाने की वह अंगारा थी जो कभी बुझ नहीं सकीं और जिसने आने वाली पीढ़ी को भी रोशन किया।

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शुरुआती जीवन

राशिद जहां का जन्म 25 अगस्त 1905 को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था। इनकी माता बेगम वहीद शाहजहां और पिता शेख अब्दुल्लाह थे। ये अपने माता-पिता की सात संतानों में सबसे बड़ी थीं। इनके पिता भारत में महिलाओं की अंग्रेजी आधारित शिक्षा के समर्थक थे। शेख अब्दुल्लाह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में महिला कॉलेज की स्थापना की। राशिद जहां को घर से ही पढ़ाई के अनुकूल माहौल मिला था। शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ से करने के बाद, उन्होंने लखनऊ के ईज़ाबेल थोबरोन कॉलेज से इंटर की पढ़ाई की थी। उसके बाद दिल्ली के लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बनकर निकलीं। उन्होंने स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में प्रशिक्षिण लिया था। पढ़ाई पूरी करने के बाद जहां ने यूनाइटेड प्रॉविन्सेस से जुड़ीं। प्रॉविन्सिकल मेडिकल सर्विस के तहत उन्होंने उत्तर भारत के बहराइच, बुलंदशहर और मेरठ जैसी जगहों पर अपनी सेवा दी। राशिद जहां पारंपरिक विचारों को चुनौती देनेवाली महिला थीं।

राशिद जहां अपने दौर का वह सशक्त नाम हैं, जिसे समाज तरक्की पसंद लोग आज भी अपने जहन से नहीं निकाल पाए हैं। उस वक्त वह समय से आगे और समाज की बनाई रीतियों के बंधन को तोड़ती हुई अपनी शर्तों पर जीवन जीती थीं। राशिद जहां अपने जमाने की वह अंगारा थी जो कभी बुझ नहीं सकीं और जिसने आने वाली पीढ़ी को भी रोशन किया।

आज से लगभग 90 साल पहले समय के लिए यह बात अकल्पनीय ही रही होगी लेकिन यह बिल्कुल सच कि राशिद जहां बेपरवाह खुद की समझ से जीवन जीती थीं। लोगों की परवाह किए बगैर वह खुले सिर और बॉब कट बालों में रहती थी। उस समय वह हाथ में आला लिए और दवाइयों का थैला लिए मरहम पट्टी करती थी।

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राशिद जहां का व्यक्तित्व

जहां के व्यक्तित्व के कई पहलू थे। वह पेशे से एक डॉक्टर, एक लेखिका थी। वह अपने समय के कई गंभीर मुद्दों पर लेखनी के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों पर सवाल करती थीं। जहां एक प्रसिद्ध कम्युनिस्ट और सामाजिक परिवर्तन में निवेश करने वाली अग्रणी कार्यकर्ता थीं। वह अपने जमाने में हर मामले में आगे थीं। जहां अपने समय की महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत थीं। राशिद जहां भारत में प्रारंभिक नारीवादियों में से एक हैं। वह ‘प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन’ के संस्थापक सदस्यों में से एक थी। वह प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन में अकेली वामपंथी विचारों वाली सदस्य थी। इस्मत चुगताई का काम राशिद जहां से अत्याधिक प्रेरित था। राशिद जहां के बारे में उन्होंने लिखा था, “उन्होंने मुझे बर्बाद कर दिया था क्योंकि वह बहुत बोल्ड थी। हर तरह की बातों पर खुलकर और जोर से बोलती थीं और मैं केवल उनकी नकल करना चाहती थी।”

राशिद जहां के पिता ने ‘खातून’ नाम से एक उर्दू पत्रिका की स्थापना की जिसमें जहां की मां का भी मुख्य योगदान था। उनके माता-पिता दोनों के प्रभाव से स्पष्ट था कि सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में लिखने के प्रति उनका झुकाव उनके परिवेश और वामपंथी विचारधारा के प्रभाव का कारण था।

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व्यवसायिक कार्य

डॉक्टरी पेशे के कारण उन्होंने साहित्य पर अधिक ध्यान नहीं दिया परंतु जितना लिखा ठोस लिखा। राशिद जहां कहानियां और नाटक लिखती थीं। इसके साथ ही नाटकों का मंचन भी करती और करवाती थीं। राशिद जहां का उद्देश्य अपने लेखन के माध्यम से लोगों में आक्रोश पैदा करना नहीं था। वह लोगों को उस समय की वास्तिवकता के बारे में परिचित कराना और उनकी सोच को बदलने के लिए प्रेरित करना चाहती थीं। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था, पितृसत्ता पर चोट की थी। उन्होंने घरेलू और सामाजिक जीवन में आवश्यक सुधारों को एक नई दिशा के रूप में काम किया।

अंगारे वाली राशिद जहां

साल 1932 में राशिद जहां का लघु कथाओं का एक संग्रह ‘अंगारे’ प्रकाशित हुआ। इस संग्रह के प्रकाशित होते ही विवादों की आंधी आ गई। उस समय से राशिद जहां को स्थानीय भाषा में ‘अंगारे वाली’ के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि, उनके इस संग्रह पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। अंधे की लाठी, चोर, दिल्ली की सैर, पर्दे के पीछे, और मर्द और औरत इनकी प्रमुख रचनाओं में से एक थी।

राशिद जहां आधिकारिक तौर पर 1933 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गई। बाद में उन्हें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा। कैंसर के इलाज के लिए वह अपने पति के साथ सोवियत संघ चली गई थी। इस खतरनाक बीमारी का सामना करते हुए 29 जुलाई 1952 को मात्र 47 साल की आयु में राशिद जहां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। जहां को मॉस्को के एक कब्रिस्तान में दफनाया गया। राशिद जहां कि समाधि पर उनके सम्मान में कम्युनिस्ट, डॉक्टर और लेखक लिखा गया।

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