इंटरसेक्शनलजेंडर ऑनलाइन हिंसा का गढ़ बनते हम लड़कियों के इनबॉक्स

ऑनलाइन हिंसा का गढ़ बनते हम लड़कियों के इनबॉक्स

साल 2011 में पहली बार मैंने फेसबुक पर अपना अंकाउट बनाया था। तब से लेकर आज तक इनबॉक्स में अजनबी पुरुषों के मैसेज आते रहते हैं जो हाय, हेलो की शुरुआत से लेकर तू-तड़ाक और भद्दी गालियों तक बिना किसी रिप्लाई के पहुंच जाते हैं। ऐसी एकतरफ़ा बातचीत और बाद में अश्लील गालियां और तस्वीर के संदेश सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में महिलाओं के इनबॉक्स में आते हैं।

“हेलो…हाय, हाय, हाय ब्यूटीफुट, प्लीज एक्सपेट मॉय फ्रेंड रिक्वेस्ट” ये कुछ वे शब्द हैं जो अक्सर लड़कियों के सोशल मीडिया अंकाउट के इनबॉक्स में उन्हें जरूर मिलते रहते हैं। इससे इतर बहुत सी भद्दी बातें, तस्वीरें, स्टिकर कोई भी पुरुष जो फ्रेंडलिस्ट में भी नहीं है वे बेवजह मेसेज भेजते रहते हैं। सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ इस तरह का व्यवहार बहुत सामान्य बना दिया गया है। जो महिलाएं सोशल मीडिया पर खुले तौर पर स्पष्ट अपनी बात रखती हैं उनको तो सरेआम यौन उत्पीड़न, रेप, हत्या आदि की धमकियां तक दी जाती हैं। यह बिल्कुल ऐसा है जैसा महिलाएं सार्वजनिक स्थान पर होते समय उत्पीड़न का सामना करती हैं। सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाएं भले ही शारीरिक यौन हिंसा का सीधा विषय नहीं है लेकिन इस तरह की घटनाओं के पीछे की मानसिकता किसी दैहिक हिंसा से कम नहीं है। दोनों तरह के व्यवहार में इरादा एक ही है। पुरुष हर स्थिति में महिला के शरीर पर अपनी ताकत स्थापित करना चाहता है।

सोशल मीडिया के स्पेस में जहां पूरी दुनिया के किसी भी कोने के लोगों को, उनके काम को वर्चुअली जानने का मौका देता है। अपनी राय अन्य लोगों के सामने रखने का विकल्प देता है। वहीं, महिलाओं के लिए सोशल मीडिया का स्पेस बहुत मायनों में आज़ादी देने वाला स्पेस है। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के लिए जो दायरे बनाए गए हैं वे इस वर्चअल दुनिया में थोड़े कम हैं। यहां महिलाएं हंसती-गाती, बेबाकी से अपनी सेल्फी पोस्ट करती हैं। वह हर विषय पर अपनी बात रखती नज़र आती हैं। जहां पारंपरिक रूप से महिलाओं को कुछ कहने का मौका नहीं मिलता है, यहां वे अपनी मर्ज़ी से व्यवहार करती दिखती हैं। लेकिन यह स्पेस भी आज महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं रह गया। स्टॉकिंग, ट्रोलिंग जैसे ऑनलाइन लैंगिक हिंसा के अलग-अलग रूपों से उन्हें हर दिन दो-चार होना पड़ता है।

और पढ़ेंः महिलाओं के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल आज भी एक चुनौती है

साल 2011 में पहली बार मैंने फेसबुक पर अपना अंकाउट बनाया था। तब से लेकर आज तक इनबॉक्स में अजनबी पुरुषों के मैसेज आते रहते हैं जो हाय, हेलो की शुरुआत से लेकर तू-तड़ाक और भद्दी गालियों तक बिना किसी रिप्लाई के पहुंच जाते हैं। ऐसी एकतरफ़ा बातचीत और बाद में अश्लील गालियां और तस्वीर के संदेश सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में महिलाओं के इनबॉक्स में आते हैं। बिना किसी भी प्रकार की राय ज़ाहिर किये बगैर ही पुरुष महिलाओं के वर्चुअल स्पेस में उन्हें परेशान करते हैं। प्रोफाइल लॉक जैसे विकल्प मौजूद होने के बाद भी इनबॉक्स में आनेवाले इस तरह के संदेशों से नहीं बचा सकता है।

मेरे सोशल मीडिया अकांउट पर प्राइवेसी लगे होने के बावजूद इनबॉक्स में मुझे बिन मांगी तारीफ़ मिलती रहती है। मुझे देखें बिना मुझे ‘खूबसूरत’ बताकर जवाब न देने पर गालियों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मैं अक्सर इन प्रोफाइल्स को ब्लॉक और रिपोर्ट करना चुनती हूं। लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि ब्लॉक करने के बाद लोगों ने अन्य अकांउट से दोबारा परेशान किया है। इस बार इनबॉक्स में इस्तेमाल होने वाली भाषा बहुत ही ज्यादा भद्दी और गुस्से वाली होती है। ‘कब तक **** ब्लॉक करेगी तू’ जैसी बातें कहकर लगातार मेसेज भेजते रहते हैं। मेरी कुछ अन्य दोस्तों से इस विषय पर बात होने पर उन्होंने भी इस तरह की ही बातें साझा की है। दूसरी ओर रिपोर्ट करने के दौरान भी सवालों की एक लंबी लिस्ट पेश की जाती है। अकांउट रिपोर्ट करने के दौरान हिंसा के प्रकार का विकल्प, तरीका और भी असंवेदनशील है।

“साल 2011 में पहली बार मैंने फेसबुक पर अपना अंकाउट बनाया था। तब से लेकर आज तक इनबॉक्स में अजनबी पुरुषों के मैसेज आते रहते हैं जो हाय, हेलो की शुरुआत से लेकर तू-तड़ाक और भद्दी गालियों तक बिना किसी रिप्लाई के पहुंच जाते हैं। ऐसी एकतरफ़ा बातचीत और बाद में अश्लील गालियां और तस्वीर के संदेश सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में महिलाओं के इनबॉक्स में आते हैं।”

सामाजिक, राजनीतिक मुद्दों पर बोलती महिलाएं मतलब ज्यादा गालियां

घर और समाज में अक्सर महिलाओं को उनकी बात कहने से रोका जाता है ऐसे में सोशल मीडिया हमें बोलने की जगह देता है। लेकिन ऐसा देखा गया है कि जो महिलाएं धर्म, राजनीति, सामाजिक बंधन और समानता पर खुलकर अपनी बात रखती है उनके साथ ऑनलाइन हिंसा का रूप और भी क्रूर हो जाता है। इनबॉक्स में मिलनेवाले अपशब्द सरे आम बोल दिए जाने लगते हैं। चरित्र हनन, बलात्कार की धमकियां मिलने लगती हैं। पितृसत्तात्मक ढांचे में सामाजिक मुद्दे और राजनीति के विषय पर महिला के विषय नहीं माने जाते हैं और इन पर उनकी राय पुरुषों की नज़र में कोई मायने नहीं रखती है। सोशल मीडिया पर मुखर रूप से बोलने वाली महिलाओं को इस कारण ट्रोल किया जाता है। उनको वर्चुअल स्पेस में सार्वजनिक रूप से मौखिक यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।

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लड़कों को ‘कूल’ बनना होता है   

यह लेख लिखते वक्त कई किशोर लड़कियों और लड़को से बातचीत करने के दौरान एक बात सामने निकलकर आई कि कभी लड़कों ने अपने इनबॉक्स में इस तरह की स्थिति का सामना नहीं किया। लेकिन इससे इतर जब उनसे यह पूछा कि आप क्यों लड़कियों को मैसेज करते हैं तो जवाब में “ऐसे ही, दोस्तों में अंटेशन लेना,” जैसी बातें निकलकर सामने आई। बस ऐसे ही जैसे जवाब सुनने में जितने सीधे लगते हैं उनके पीछे की सोच बहुत गहरी है। पितृसत्ता की सोच के दायरे में बड़े होते इन लड़कों को लगता है कि किसी लड़की को परेशान करना उनका हक है। लड़की से दोस्ती होना या बात करना बहुत बड़ा टास्क है जो उन्हें अपने दोस्तों के ग्रुप में खुद को कूल साबित करना है।

भारतीय संस्कृति के तथाकथित आदर्शवाद के बोझ के तले बड़े होते इन लड़को के लिए वर्चुअल स्पेस में लड़कियों से बात करना बड़ी उपलब्धि बन जाती है। भारतीय समाज में आज भी एक लड़के और लड़की की दोस्ती को सहजता से नहीं देखा जाता है। आमतौर पर परिवार में लड़के और लड़की की दोस्ती की अनुमति नहीं होती है। आखिरकार इंटरनेट पर बिना परिवार और सामाजिक डर के बात करना एक मौका होता है। हमेशा अपने आसपास लड़कियों और औरतों के साथ हिंसा होते देखकर बड़े होते ये लड़के ऑनलाइन स्पेस में भी उनके साथ हिंसा करना सामान्य मान लेते हैं।

हमारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था का ही परिणाम है कि कैसे हम लड़किया वर्चुअल स्पेस में भी खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पाती हैं। कैसे इनबॉक्स में आकर पुरुष अधिकार जताना शुरू कर देते हैं, और न मामने पर सीधे जोर-जबरदस्ती और अश्लील भाषा पर आ जाते हैं।

वर्चुअल स्पेस के इस व्यवहार से बढ़ता तनाव

भारत में हम महिलाएं यह बात अच्छे से जानती हैं कि यहां का माहौल हमारे लिए बहुत असुरक्षित है। तमाम तरह के अपने निजी अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकती हूं कि हम इस भावना को भूलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते हैं। वास्तविकता से अलग एक आभासी दुनिया में भी हमें इस असुरक्षा की भावना को अपने अंदर रखना पड़ रहा है। सोशल मीडिया पर स्टॉक करने का यह व्यवहार हमें इस वर्चअल स्पेल में सतर्क रहने को कह रहा है। लगातार इस तरह के व्यवहार के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। दूसरी ओर महिलाओं के साथ ऑनलाइन दुर्व्यवहार की ख़बरें सामने आने से असुरक्षा की भावना और बढ़ी है।

सुल्ली बाई, बुल्ली बाई डील ऐप वाले मामले इसकी ताजी मिसाल हैं। ऐसी घटनाएं महिलाओं को सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने और कुछ कहने से पहले इसके परिणाम के बारे में एक बार सोचने के लिए मजबूर करती हैं। हमारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था का ही परिणाम है कि कैसे हम लड़किया वर्चुअल स्पेस में भी खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पाती हैं। कैसे इनबॉक्स में आकर पुरुष अधिकार जताना शुरू कर देते हैं, और न मामने पर सीधे जोर-जबरदस्ती और अश्लील भाषा पर आ जाते हैं।

और पढ़ेंः ऑनलाइन स्पेस में महिलाओं की स्वस्थ्य आलोचना क्यों नहीं होती     


तस्वीर : रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए                         

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