इतिहास टोनी मोरिसन : साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतनेवाली पहली ब्लैक लेखिका

टोनी मोरिसन : साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतनेवाली पहली ब्लैक लेखिका

टोनी मोरिसन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली ब्लैक महिला साहित्यकार थीं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी टोनी मोरिसन को कभी अपने लिखे से संतुष्ट नहीं हुई। उन्हें हमेशा यह लगता था कि जो कुछ भी लिखा है वह अधूरा है। उसमें काफ़ी तथ्य को जोड़ा या घटाया जा सकता है।

सामान्य ज्ञान का एक प्रश्न है- साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली ब्लैक महिला कौन है? जवाब- टोनी मोरिसन। आज हम इन्हीं टोनी मोरिसन के बारे में बात करेंगे जिन्होंने जो भी लिखा आज उसे ब्लैक लोगों के गुलामी के दौर के दारुण इतिहास के दस्तावेज के रूप में पढ़ा जाता है। लेकिन उनका लिखना और छपना हमेशा से इतना आसान नहीं था। जिस टोनी मोरिसन को कालांतर में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, कभी उनके लिखे को प्रकाशक दरवाज़े से लौटा दिया करते थे। उनके साहित्य की उपेक्षा की भी लंबी फ़ेहरिस्त है।   

जिस ‘द ब्लूएस्ट आई‘ की वजह से टोनी मोरिसन को पहचान मिली, उसे छपवाने के लिए उन्हें न जाने कितनी ठोकर खानी पड़ी थी। यह एक आत्मकथात्मक उपन्यास है। यह एक ब्लैक लड़की की कहना ही है जो नीली आँखें पाना चाहती है। दर्द से भरे इस उपन्यास में टोनी मोरिसन के जीवन की कहानी मिलती है। इस कहानी पर साल 1998 में एक फिल्म बनी थी।

टोनी मोरिसन ने कभी आत्मकथा लिखने की कोशिश भी नहीं की। इसके पीछे उनका तर्क था कि उनके जीवन में आत्मकथा योग्य कोई सामग्री नहीं। हालांकि, अब दुनिया जानती है कि उनका जीवन कितना दिलचस्प था। और उनके जीवन में आत्मकथा के योग्य कितनी सामग्री उपलब्ध है। तो चलते हैं टोनी मोरिसन की जीवन यात्रा पर। साल 1931 में फरवरी का महीना था जब 18 तारीख को टोनी मोरिसन का जन्म ओहायो के लोरैन में हुआ। पहले इनका नाम चोल एंथोनी वोफ़ोर्ड रखा गया। एंथोनी नाम इन्हें बारह साल की उम्र में कैथोलिक धर्म स्वीकारते समय मिला। आगे चलकर इसी एंथोनी का संक्षिप्त रूप टोनी बना।

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अमेरिका का ओहायो राज्य साल 1903 से ही गुलामी का विरोध कर रहा था। यह स्थान ‘अंडरग्राउंड रेलरोड’ से भागते समय गुलामों की शरणस्थली था। टोनी मोरिसन के माता-पिता नस्लवाद और रंगभेद से बचने के लिए यहां आ कर बसे। हालांकि, यहां भी ब्लैक लोगों के प्रति नफ़रत पर्याप्त थी। लेकिन दक्षिण की तुलना में कम थी। इसी स्थान से सबसे पहले साल 1821 में बेंजामिन लुन्डी ने ब्लैक लोगों का ‘जीनियस ऑफ यूनिवर्सल एमान्सीपेशन‘ नामक पहला न्यूज़ पेपर शुरू किया था।

टोनी मोरिसन अपने पिता जॉर्ज रमाह वोफ़ोर्ड और माँ एला रमाह वोफ़ोर्ड की चार संतानों में दूसरे नंबर पर थीं। परिवार मुफ़लिसी का इस कदर शिकार था कि मकान का किराया देना भी मुश्किल था। एक वक्त ऐसा भी आया जब किराया ना मिलने की वजह से मकान मालिक ने उनके घर में आग ही लगा दी। तब टोनी मोरिसन मात्र दो वर्ष की थीं। घर को जला दिए जान के बाद भी परिवार वालों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वो दूसरे घर में रहने चले गए। पिता यूएस स्टील में वेल्डर का काम करते थे लेकिन टोनी की पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उन्हें कई अन्य जगहों पर भी काम करना पड़ता था, यानी एक साथ कई नौकरी करनी पड़ती थी। इस मजबूरी को ‘मेहनती पिता’ के आवरण से नहीं ढकना चाहिए। इसमें अमेरिकी श्वेत समाज की वह चाल भी शामिल है जिसके तहत ब्लैक लोगों को गुलाम और गरीब रखने की परम्परा रही है।

ताउम्र ब्लैक के लिए लड़ने वालीं टोनी मोरिसन के परिवार को भी रंगभेद का सामना करना पड़ा। भारत में जिस तरह दलितों और मुसलमानों की मॉब लिंचिंग आम हो गई है। कभी अमेरिका में ब्लैक लोगों के लिए भी मॉब लिंचिंग आम बात थी। टोनी के पिता ने तो अपने सामने दो ब्लैक व्यापारियों की श्वेत भीड़ द्वारा हत्या देखी थी। इन सभी घटनाओं का सीधा प्रभाव उनकी जिंदगी और परिवार पर पड़ा।

टोनी मोरिसन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली ब्लैक महिला साहित्यकार थीं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी टोनी मोरिसन कभी अपने लिखे से संतुष्ट नहीं हुई। उन्हें हमेशा यह लगता था कि जो कुछ भी लिखा है वह अधूरा है। उसमें काफ़ी तथ्य को जोड़ा या घटाया जा सकता है।

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अमेरिका में ब्लैक लोगों की जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण थी। शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय तथा आय जैसी मूलभूत ज़रूरतें भी उन्हें आसानी से उपलब्ध नहीं हुआ करती थी। एक समय तक अमेरिका में ब्लैक बच्चों के लिए एक भी स्कूल नहीं हुआ करता था। ब्लैक लोगों को जानबूझकर शिक्षा से वंचित रखा जाता था। यहां तक कि जब मोरिसन हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय पढ़ने गई तब तक ये विश्वविद्यालय केवल श्वेतों के लिए आरक्षित था। ख़ैर, वक्त बीता, ब्लैक लोगों को भी पढ़ने का अवसर मिला।

टोनी मोरिसन ने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा लोरैन हाई स्कूल से प्राप्त की। हावर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की तथा 1955 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री हासिल की। मोरिसन ने विलियम फ़ॉक्नर तथा वर्जीनिया वुल्फ़ के कार्यों में ‘आत्महत्या’ विषय पर अपना शोध पूरा किया। दिलचस्प यह हैं कि कभी जिस विश्वविद्यालय में ब्लैक लोगों को पढ़ने तक पर पाबंदी थी। उस विश्वविद्यालय में न केवल टोनी मोरिसन पढ़ीं बल्कि पढ़ाने का भी काम भी किया।

टोनी मोरिसन नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली ब्लैक महिला साहित्यकार थीं। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने के बाद भी टोनी मोरिसन कभी अपने लिखे से संतुष्ट नहीं हुई। उन्हें हमेशा यह लगता था कि जो कुछ भी लिखा है वह अधूरा है। उसमें काफ़ी तथ्य को जोड़ा या घटाया जा सकता है। उनका कहना था कि अपने लिखे से संतोष प्राप्त करना उचित नहीं हैं। ये ‘संतोष’ ज्ञान मार्ग में अवरोध पैदा करता है।

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एक नारीवादी होने के बावजूद भी उन्हें नारीवादी कहलाना पसंद नहीं था। इसके पीछे उनका तर्क था कि पुरुषों पर लिखने वाले हेमिंग्वे को कोई पुरुषवादी नहीं कहता, केवल रूस पर लिखने के लिए जब सोल्ज़ेनित्सिन को रुसीवादी नहीं कहा जाता, तो केवल स्त्रियों पर लिखने के कारण मैं नारीवादी कैसे हो गई। दरअसल टोनी मोरिसन पश्चिमी देशों की उन नारीवादी लेखिकाओं जैसी नहीं थीं, जो अपने एक पक्षीय दृष्टिकोण के कारण अपने लेखों में जाने-अनजाने एकांगी हो गईं।

टोनी मोरिसन किसी विचारधारा के बंधन में नहीं बंधना चाहती थीं। उनका मानना था कि किसी भी प्रकार की विचारधारा रचनाकार को सीमित कर देता है। यही वजह है कि टॉनी मोरिसन किसी विचारधारा के अंतर्गत ना रहकर हमेशा उन्मुक्त होकर लिखती रहीं। जब उनके उपन्यास ‘पैराडाइज’ पर समीक्षकों ने उनके लिए नारीवाद शब्द का इस्तेमाल किया तो उन्होंने बड़े जोर से इसका विरोध किया। अपने विरोध को दर्ज करवाते हुए उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा, ”बिल्कुल नहीं। मैं कभी भी किसी ‘वाद’ में नहीं लिखूंगी। मैं ‘वाद’ के उपन्यास नहीं लिखती हूँ। टोनी मोरिसन अपने किसी भी उपन्यास के अंत का निर्णय स्वयं नहीं लेती थी। वो पाठकों के लिए खुला छोड़ देती थी। वह कहती थी कि पुनर्व्याख्या, पुनर्विचार, थोड़ी अस्पष्टता, दुविधा के लिए अंत को खुला छोड़ना जरूरी होता है।

जिस टोनी मोरिसन को कालांतर में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, कभी उनके लिखे को प्रकाशक दरवाज़े से लौटा दिया करते थे। उनके साहित्य की उपेक्षा की भी लंबी फ़ेहरिस्त है।   

टोनी मोरिसन ने द ब्लूएस्ट आई, सूला, सॉन्ग ऑफ़ सोलोमन, टार बेबी, बिलवड, पैराडाइज़, लव, जाज़ और द मर्सी जैसे अद्वितीय उपन्यास लिखा। अपने साहित्य को ग्रामीण साहित्य बताते हुए टोनी कहती हैं, ‘मैं ग्रामीण साहित्य लिखती हूँ। जो ग्रामीणों के लिए है, कबीले के लिए है। मेरे लोगों के लिए ये साहित्य आवश्यक है।’

हो भी क्यों ना टोनी लिए उनका उपन्यास सदैव एक खोज का विषय रहा है। वह लिखने से पहले अपने अतीत को शोध के रूप में याद करती थी। वह याद करती थी कि अतीत में उनकी जिंदगी कैसी थी। वर्तमान कैसा है, वर्तमान पर अतीत का असर कितना है। फिर अपने तमाम अनुभवों को जुटाकर वो ब्लैक लोगों का एक दारुण जीवन कागज पर उकेर दिया करती थीं। टोनी के उपन्यास, उसके पात्र सभी बहुत जटिल हुआ करते थे, जैसा की जिंदगी जटिल होती है। जिंदगी के तमाम किरदार जटिल होते हैं। टोनी कहती भी थी, ‘जीवन एकरेखीय नहीं होता है।’ उपन्यासों के अलावा टोनी मोरिसन ने कई कहानी, नाटक और लेख भी लिखे। ओपेरा के लिए गीत संगीत भी लिखे। साथ ही बच्चों के लिए भी साहित्य का सृजन किया।

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पुरस्कार और सम्मान

टोनी मोरिसन को साल 1993 में ‘बिलवेड’ उपन्यास के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था। पुरस्कार से सम्मानित करते हुए स्वीडिश एकेडमी ने कहा, ”वह भाषा की गहराइयों में डूबकर उसे नस्ल की बेड़ियों से आजाद करना चाहती है और बात कविता सी सुंदर भाषा में करती है।”  

नोबेल पुरस्कार से पहले साल 1988 में ‘बिलवेड’ उपन्यास के लिए ही टोनी मोरिसन को अमेरिका के प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका था। टोनी मॉरिसन को साल 1996 में नेशनल बुक फाउंडेशन्स मेडल ऑफ डिस्टिंग्शिड कॉन्ट्रीब्यूशन टू अमेरिकन लेटर्स का पुरस्कार भी मिला था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें साल 2012 में प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से सम्मानित किया था। टोनी मोरिसन पुरस्कार की राशियों और प्रोफेसर के रूप में मिलने वाले वेतन को विश्व के अलग-अलग हिस्सों के ब्लैक बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर देती थीं।

टोनी मोरिसन कहती थीं कि मौन मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। साल 2019 में 5 अगस्त की रोज टोनी मोरिसन अचानक हमेशा के लिए मौन हो गईं। ताउम्र ब्लैक लोगों के लिए लिखने और लड़ने वाली टोनी मोरिसन का निधन हो गया।  

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तस्वीर साभार :lottie.com

स्रोत : lottie.com
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