स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य जानें, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर महिलाओं का जागरूक होना क्यों है बेहद ज़रूरी

जानें, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर महिलाओं का जागरूक होना क्यों है बेहद ज़रूरी

यौन एवं प्रजनन अधिकार मनुष्य के मौलिक मानव अधिकारों में से एक हैं। यौन एवं प्रजनन अधिकार का मतलब यह है कि हर इंसान को अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा अधिकार है। बावजूद इसके फिर भी दुनियाभर में ही लोगों को उनकी पसंद से शादी करने, बच्चे पैदा करने, अपनी सेक्सुअलिटी और जेंडर को असर्ट करने और सेक्स करने को नियंत्रित किया जाता है।

भारतीय समाज में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर आज भी खुलकर बात नहीं होती है। इस वजह से हर साल लाखों लोग यौन संक्रमण जैसी समस्याओं का सामना करते हैं। विशेष तौर पर महिलाएं यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का अधिक सामना करती हैं। समाज में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 12 फरवरी को ‘यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है। इसका मकसद यौन संक्रमण से संबधित रोगों और स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जानकारी देना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से मकसद केवल यौन संबधी रोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है।

क्या होते हैं यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार

यौन एवं प्रजनन अधिकार मनुष्य के मौलिक मानव अधिकारों में से एक हैं। यौन एवं प्रजनन अधिकार का मतलब यह है कि हर इंसान को अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा अधिकार है। बावजूद इसके फिर भी दुनियाभर में ही लोगों को उनकी पसंद से शादी करने, बच्चे पैदा करने, अपनी सेक्सुअलिटी और जेंडर को असर्ट करने और सेक्स करने को नियंत्रित किया जाता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और मौलिक अधिकार के कई पहलूओं आपस में जुड़े हुए हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समिति ने कहा है कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में अक्सर मानव अधिकारों का उल्लघंन होता है। इन अधिकारों में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ किसी भी तरह की यातना और अमानवीय व्यवहार इसका उल्लंघन है। साथ ही इस अधिकार का उल्लंघन तब होता है जब महिलाओं को आवश्यक प्रजनन सेवाएं नहीं प्रदान की जाती हैं। इसमें किसी भी प्रकार की लिंग आधारित हिंसा भी निषेध है।

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यौन एवं प्रजनन अधिकार मनुष्य के मौलिक मानव अधिकारों में से एक हैं। यौन एवं प्रजनन अधिकार का मतलब यह है कि हर इंसान को अपने शरीर के बारे में फैसले लेने का पूरा अधिकार है। बावजूद इसके फिर भी दुनियाभर में ही लोगों को उनकी पसंद से शादी करने, बच्चे पैदा करने, अपनी सेक्सुअलिटी और जेंडर को असर्ट करने और सेक्स करने को नियंत्रित किया जाता है।

बात महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की

महिलाओं के मामले में उनके स्वास्थ्य से जुड़े फैसले लेने का अधिकार उनके पति, ससुराल के लोग, परिवार से लेकर धार्मिक नेता और राज्य तक लेता है। महिलाओं और लड़कियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर लिए जानेवाले ऐसे फैसलों के बहुत ही खतरनाक परिणाम होते हैं। इसलिए यौन प्रजनन को मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति से जुड़ा हुआ विषय कहा गया है। शारीरिक रूप से स्वच्छ प्रजनन की क्षमता होना सबसे महत्वपूर्ण है। मानसिक तौर पर प्रजनन संबंधी फैसले जैसे यौन संबंध बनाने, शादी करने का फैसला और गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने से है। सामाजिक तौर पर प्रजनन से जुड़ी हुई सभी सुविधाओं का उपयोग कर पाना। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के तहत सेक्सुलिटी, गर्भनिरोधक तक पहुंच, सुरक्षित गर्भसमापन, यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई), एचआईवी, लिंग आधारित हिंसा, गर्भावस्था और असुरक्षित गर्भसमापन प्रमुख मुद्दे हैं।

अच्छा यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य महिलाओं के सामान्य स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह उनके पसंद और निर्णय लेने की क्षमता पर केंद्रित है। भारतीय पितृसत्तात्मक समाज की सोच के अनुसार महिलाओं के शरीर पर उसका अधिकार नहीं होता है। यहां महिलाओं की यौन इच्छा और अधिकारों का तो कोई महत्व ही नहीं है। इसलिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य केवल शारीरिक भलाई के बारे में नहीं है। यह एक स्वस्थ और सम्मानीय रिश्ते, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और सुरक्षित और सही जानकारी का विषय भी है, जिसमें भारतीय महिलाएं बड़ी संख्या में पिछड़ी हुई हैं। महिलाओं के जिंदगी के हर चरण में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे जुड़े हुए हैं। जिसमें मेस्ट्रुएशन, प्रजनन क्षमता, सर्वाइकल स्क्रीनिंग, गर्भनिरोधक, गर्भावस्था, यौन संक्रमण रोग, पीसीओडी और मेनोपॉज शामिल है। 

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महिलाओं के पास यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की जानकारी होना क्यों है जरूरी

किशोर युवतियों और महिलाओं को पास यौन स्वास्थ्य, स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं और अधिकारों के उल्लघंन के बारे में जानकारियों का अभाव है। सबसे पहले परिवार के सदस्य उनके अधिकारों के उल्लघंन का स्रोत बनते हैं। हर महिला अच्छे यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की हकदार है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में किशोरों की आबादी का पांचवां हिस्सा है, फिर भी उनकी यौन और प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को अक्सर अनदेखा किया जाता है। यदि महिलाओं और युवतियों के पास यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों की जानकारी होगी वे स्वंय को एचआईवी, लिंग आधारित हिंसा, मातृ मृत्यु दर, यौन संचारित रोग और स्वास्थ्य सेवाओं तक अपनी पहुंच बना सकती है। इन अधिकारों तक पहुंच बढ़ने के कारण महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। बेहतर स्वस्थ्य के साथ उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी। परिवार नियोजन, बच्चे पैदा करने की आजादी उनके लिए समानता के अवसर पैदा करेगी, जिससे महिलाएं घर से बाहर काम करने के अवसर का लाभ उठा पाएंगी और उनकी आर्थिक क्षमता बढ़ेगी।

बायोमेड सेंट्रल के जर्नल अनुसार युगांडा में युवतियों ने एक अध्ययन में कहा कि यौन प्रजनन और स्वास्थ्य अधिकारों की जानकारी उन्हें हिंसा के खिलाफ बोलने के लिए सशक्त बनाएगी। इस सुझाव दिया गया कि समुदाय और सरकारी अधिकारियों को शिक्षित करने की आवश्यकता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी हुई अधिकारियों की जानकारी में भी कई प्रकार के भ्रम हैं। इस अध्ययन में एक प्रतिभागी ने सुझाव दिया कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों की जानकारी को लड़को और पुरुषों में भी विस्तारित करना चाहिए। क्योंकि महिलाओं को उनके एसआरएचआर को प्राप्त करने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

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भारत में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की नजर से महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच एक स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। भारतीय परिवार व्यवस्था में महिला स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया जाता है। भारत में असुरक्षित गर्भासमापन मातृत्व मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। भारत में हर साल लगभग 15.6 मिलयन गर्भासमापन होते हैं। हर दिन 10 महिला की मौत होती है।भारत मे लगभग 6 प्रतिशत व्यस्क आबादी में यौन संचारित रोग (एसटीडी) रिप्रोडॉक्टिव टैक्ट्र इन्फेक्शन (आरटीआई) का हर साल इलाज किया जाता है। यह आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में तीस मिलियन लोग यौन संचारित संक्रमण एसटीआई से घिरे हुए हैं। गरीबी और सामाजिक भारत में एसटीडी के इलाज में बड़ी बाधा है। द स्क्रोल में छपी ख़बर के अनुसार भारत में गर्भनिरोधक तरीकों को अपनाने का भार पुरुष के मुकाबले महिला पर ज्यादा है। हर आठ में तीन पुरुष यह मानते हैं कि गर्भनिरोधक महिलाओं का विषय है पुरुष को इसके बारे में सोचने की कोई आवश्यकता नहीं है।

महिलाओं के प्रति यौन हिंसा के विषय में बात की जाए तो यहां देश मे मैरिटल रेप के लिए कोई कानून नहीं है। एक जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर तीन में से एक महिला इंटीमेट पार्टनर वायलेंस का सामना करती है। यह हिंसा शारीरिक, भावनात्मक और यौन हिंसा होती है। भारत में केवल दस में से एक महिला ही इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवा पाती है। यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की पिछले साल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हैं जहां महिला को उसके शरीर से जुड़े फैसले लेने की कोई आजादी नहीं है। यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में महिलाओं से यौन संंबंध बनाने के लिए सहमति लेना कोई मायने नहीं रखता है।

महिला स्वास्थ्य की बात करें तो वर्तमान में भारत में बड़ी संख्या में महिलाएं पीरियड प्रोडक्ट की पहुंच से दूर है। बीबीसी में प्रकाशित जानकारी के अनुसार भारत में 71 प्रतिशत किशोर लड़कियां तबतक पीरियड के बारे में नहीं जानती है जबतक उनको नहीं है। भारत में केवल मेस्ट्रुएशन होने वाली केवल 36 प्रतिशत महिलाओं की ही सैनेटरी नैपकीन तक पहुंच हैं। आज भी महिलाएं अपनी महावारी के समय राख, सूखे पत्ते, उपले और मिट्टी को इस्तेमाल करती हैं। मैस्ट्रुएशन हाइजीन के नाम पर महिलाओं में बहुत कम जानकारी है। 

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों तक महिलाओं तक सुगम पहुंच उनके जीवन स्तर को सुधारती है। महिलाओं को सही समय पर चिकित्सीय जांच से उनको गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है। स्वास्थ्य सुविधा तक गर्भवती महिलाओं की जल्दी पहुंच से मातृत्व मृत्यु को कम किया जा सकता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के प्रयोग से महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक दशा में बहुत परिवर्तन लाया जा सकता है। हाशिये पर रहने वाली महिलाओं विशेष रूप से किशोर, विकलांग, सेक्स वर्कर्स, शोषित जातियों और वर्ग से आनेवाली महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधा तक उनकी पहुंच बढ़ाना बेहद ज़रूरी है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनका स्वास्थ्य बेहतर होना बहुत आवश्यक है।

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तस्वीर: फेमिनिज़म इन इंडिया

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