समाजराजनीति उत्तर प्रदेश चुनाव में बात भाजपा की जीत, महिला वोटर से लेकर दूसरे मुद्दों की| नारीवादी चश्मा

उत्तर प्रदेश चुनाव में बात भाजपा की जीत, महिला वोटर से लेकर दूसरे मुद्दों की| नारीवादी चश्मा

बात चाहे दावेदारी में राजनीतिक पार्टी की हो, महिला प्रत्याशियों की हो या फिर महिलाओं के नाम पार्टियों के वादे-इरादों की हो, महिलाएँ चुनाव की शुरुआत से लेकर अंत तक केंद्र में रही।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सात चरणों में हुए चुनाव के परिणाम आ चुके है, जिसके अनुसार, प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक़बार फिर जनता के बहुमत से जीत हासिल कर ली है और पार्टी दूसरी बार सत्ता में आ गयी है। उत्तर प्रदेश के इतिहास में 37 साल बाद ये संभव हुआ है, जब कोई पार्टी दूसरी बार जीतकर सत्ता में आयी। इस ऐतिहासिक जीत के लिए, पिछले दो सालों में मुफ़्त राशन और क़ानून व्यवस्था के बाद भाजपा को मिली इस जीत के पीछे महिला वोटर की अहम भूमिका रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में महिला वोटर ने जाति-वर्ग के भेद से परे ‘साइलेंट वोटर’ की भूमिका निभाई है। अग़र हम उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस पूरे चुनाव में महिलाओं की भूमिका अहम रही है। बात चाहे दावेदारी में राजनीतिक पार्टी की हो, महिला प्रत्याशियों की हो या फिर महिलाओं के नाम पार्टियों के वादे-इरादों की हो, महिलाएँ चुनाव की शुरुआत से लेकर अंत तक केंद्र में रही। सभी पार्टियों ने अपने-अपने घोषणापत्र में महिलाओं की सुरक्षा, सुविधा और विकास के नामपर ढ़ेरों योजनाओं के साथ चुनावी दांव खेला।

महिला वोटर की संख्या पुरुषों पर पड़ी भारी

जब भी बात राजनीति की आती है तो चाय की दुकान से लेकर घर में लगने वाली चकल्लस तक, हर जगह इस विषय पर पुरुषों का वर्चस्व दिखायी पड़ता है। पर जब लोकतंत्र में बात मतदान की आती है तो यहाँ महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से ज़्यादा दिखायी पड़ती है। उत्तर प्रदेश चुनाव में ये साफ़तौर पर देखने को मिला। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ईवीएम वोटिंग आँकड़ों के अनुसार इस साल राज्य स्तर पर 60.8 फ़ीसद वोटिंग हुई जो पिछले विधानसभा चुनाव में 61.11 फ़ीसद वोटिंग से कम थी। लेकिन इस वोटिंग प्रतिशत में महिलाओं की भागीदारी  62.24 फ़ीसद रही, जो पुरुषों के वोटिंग फ़ीसद 59.56 से ज़्यादा रहा, जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने यूपी में सहयोगी दलों के साथ 273 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि सपा गठबंधन ने 125 सीटों पर जीत दर्ज की।

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रैलियों का सर्वाधिक रेला महिला नेतृत्व में

वोटिंग फ़ीसद के बाद अगर बात करें चुनाव प्रचार की तो यहाँ भी महिला नेतृत्व ने बाज़ी मारी, जिसमें काँग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुल 209 रैली और रोड शो किया था, जो प्रदेश में चुनाव अभियान के तहत की जाने वाली रैलियों में सबसे ज़्यादा थी। वही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुल 203 कार्यक्रम किए। समाजवादी पार्टी के कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में कुल 131 रैलियाँ की। इसके साथ ही, प्रदेश में भाजपा के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कई जगहों पर रैली और रोड शो किया था। इन सबके बीच मायावती चुनाव प्रचार-प्रसार में न के बराबर दिखाई पड़ी और उन्होंने पूरे चुनाव प्रचार में कुल  18 रैलियों को संबोधित किया।

बात चाहे दावेदारी में राजनीतिक पार्टी की हो, महिला प्रत्याशियों की हो या फिर महिलाओं के नाम पार्टियों के वादे-इरादों की हो, महिलाएँ चुनाव की शुरुआत से लेकर अंत तक केंद्र में रही।

करारी शिकस्त में भी महिला प्रत्याशियों की भागीदारी

महिला नेतृत्व रैलियों के रेलें में जहां एकतरफ़ आगे रहा, वहीं अगर बात की जाए करारी शिकस्त की तो उसमें भी सबसे अधिक महिला प्रत्याशियों को मैदान में उतारने वाली काँग्रेस पार्टी आगे रही। काँग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूँ’ नारे के साथ मैदान में उतरी और क़रीब हर प्रत्याशी ने 3000 से कम वोट मिले। इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी वाड्रा ने 40 प्रतिशत सीट पर महिला प्रत्याशी को टिकट देने का वादा किया और इस वादे के साथ 148 सीट पर महिला प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी की जिसमें सिर्फ़ एक आराधना मिश्रा मोना अपनी सीट पर जीत हासिल कर पायी। उन्नाव सीट पर काँग्रेस ने उन्नाव रेप पीड़िता की माँ आशा देवी मैदान में उतरी। आशा देवी के प्रचार-प्रसार में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के साथ राजस्थान और मध्यप्रदेश की टीम मैदान में उतरी। लेकिन इसके बावजूद आशा देवी को 1555 वोट मिले। वहीं काँग्रेस की तरफ़ से लखनऊ सेंट्रल असेम्ब्ली सीट पर सीएए क़ानून के विरोध में सदफ़ ज़फ़र को टिकट दिया गया, जिसमें उन्हें मात्र 2927 वोट मिले।

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महिला वोटर और जीत के मुद्दे

बेशक पिछले के सालों में उत्तर प्रदेश के चुनाव महिलाओं की भूमिका अधिकतर ‘स्टार प्रचारकों’ या फिर महिलाओं पर विवादित बयान के आधार पर होती थी। लेकिन मौजूदा चुनाव ने कहीं न कहीं इस चलन को बदल दिया है। लेकिन इन सबके बीच जब बात महिला नेतृत्व की आती है तो महिलाओं की भूमिकाएँ बेहद सीमित नज़र आती है। यूँ तो एकबार फिर भाजपा सरकार की जीत के लिए कई वजहें बतायी जा रही है, जिसमें पिछले दो सालों से लगातार सरकार की तरफ़ से मुफ़्त राशन का आबँटन और मज़बूत राशन व्यवस्था अहम थी।

इस संदर्भ में ग्रामीण स्तर पर जब हमने वाराणसी शहर से दूर गाँव की कुछ महिलाओं से बात की तो उन्होंने इसबात पर ज़ोर दिया कि ‘वो उस सरकार को वोट करेंगीं, जिसने उनके घर में राशन की कमी नहीं होने दी।‘ महिलाओं की उस बात और चुनाव के इस परिणाम से ज़ाहिर है कि आधी आबादी का आधा से अधिक हिस्सा इस बात से संतुष्ट रहा है कि उन्हें राशन उपलब्ध करवाया गया। पर इन सबके बीच हमें ये समझना होगा कि सरकार के विकास का आधार जनता को राशन के लुभावन देकर उन्हें परजीवी बनाने की बजाय स्वावलंबन आधार हो, जिसमें जनता के उचित पोषण, रोज़गार, अधिकारों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और विकास को मुद्दा बनाया जाए और आधी आबादी की इन मुद्दों व उनके नेतृत्व की बात हो।  

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तस्वीर साभार : theprint.in

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