समाजख़बर विकास का ‘आदर्श ग्राम’ और ‘मॉडल ब्लॉक’ आज भी बुनियादी सुविधाओं से अछूता कैसे है?

विकास का ‘आदर्श ग्राम’ और ‘मॉडल ब्लॉक’ आज भी बुनियादी सुविधाओं से अछूता कैसे है?

अब सवाल यह है कि क्या चित्रसेनपुर गाँव की उस बस्ती में रातोंरात पहुंचा राशन का पैकेट, हैंडपंप और हेल्थ कैम्प सिर्फ़ चुनावी दांव था? इसलिए बाक़ी किसी बस्ती में कोई काम की बजाय सिर्फ़ उसी बस्ती को संज्ञान में लिया गया, जहां का ट्वीट वायरल हुआ। सत्ता-प्रशासन के इस रवैए के बीच सवाल उठता है कि विकास के नाम पर आदर्श ग्राम और मॉडल ब्लॉक आज भी बुनियादी सुविधाओं से अछूता कैसे है?

साल 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद बीजेपी सरकार सत्ता में आयी। सत्ता में आने के बाद से विकास की नयी परिभाषा बनाए की दिशा में काम तेज़ी से होने लगा। ‘विकास’ के लिए योजनाएं तैयार की गई और उन्हें हर गाँव, हर घर तक पहुंचाने का प्रचार अभियान शुरू किया गया। इन्हीं योजनाओं को अच्छे तरीक़े से लागू करने के लिए सांसदों द्वारा ‘गाँव गोद लेने’ की योजना (सांसद आदर्श ग्राम योजना) शुरू हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से सांसद बनने के बाद सबसे पहला गाँव आराजीलाइन ब्लॉक के जयापुर गाँव को गोद लिया और इसे आदर्श गाँव बनाने का बीड़ा उठाया। इसके बाद विकास के नाम पर गाँव गोद लेने का सिलसिला शुरू हुआ। सांसदों द्वारा गोद लिए गाँवों में कितना विकास हुआ यह एक अलग पड़ताल का विषय है, पर गोद लेने से ये गाँव सुर्खियों में ज़रूर बने रहे।

अब यह तो बात हुई गाँव गोद लेने की। इसके बाद साल 2020 में वाराणसी ज़िले के सेवापुरी ब्लॉक को नीति आयोग ने गोद लिया और इसे ‘मॉडल ब्लॉक’ बनाने बीड़ा उठाया। इसी सेवापुरी ब्लॉक का एक गाँव है चित्रसेनपुर। बीती फ़रवरी में चित्रसेनपुर गाँव की मुसहर बस्ती में बुरी तरह बीमार सोनी नाम की एक लड़की का वीडियो स्वतंत्र पत्रकार नीतू ने ट्विटर पर पोस्ट किया और ज़िला प्रशासन से बच्ची के उचित इलाज के लिए मदद की अपील की। यह वीडियो उत्तर प्रदेश में जारी विधानसभा चुनाव के बीच तेज़ी से ट्विटर पर वायरल होने लगा। इसके बाद ज़िला प्रशासन ने इस खबर का संज्ञान लिया और उस बच्ची को ज़िला अस्पताल में भर्ती करवाया।

इतना ही नहीं, उसी शाम इस बस्ती में रहने वाले सभी परिवारों के बीच ज़िलाधिकारी की तरफ़ से राशन किट भी बांटी गई और अगले दिन बस्ती में हेल्थ कैम्प का भी आयोजन किया गया, जिसमें सभी लोगों को स्वस्थ बताया गया। चित्रसेनपुर गाँव की इस मुसहर बस्ती में क़रीब चालीस परिवार रहते हैं, जिनके लिए साफ़ पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी और ज़िलाधिकारी के निर्देश के बाद यहां एक हैंडपंप भी लगवाया गया। यह पहली बार था जब इस बस्ती में सरकारी अधिकारी पहुंचे थे।

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चित्रसेनपुर गाँव की मुसहर बस्ती की एक तस्वीर

एक बस्ती का विकास और दूसरी बस्तियों से सारी बुनियादी सुविधाएं नदारद

रातों-रात इस बस्ती में पहुंची इस ‘विकास की लहर’ से राशन-वितरण और हैंडपंप का काम तो हुआ लेकिन थोड़ी ही दूरी पर मौजूद इसी गाँव की दूसरी बस्ती में रहने वाले परिवार आज भी गंदे तलाब का पानी पीने को मजबूर हैं। वहीं, सेवापुरी ब्लॉक के ही राने गाँव की मुसहर बस्ती का यही हाल है। अब सवाल यह है कि क्या चित्रसेनपुर गाँव की उस बस्ती में रातों-रात पहुंचा राशन का पैकेट, हैंडपंप और हेल्थ कैम्प सिर्फ़ चुनावी दांव था? इसलिए बाक़ी किसी बस्ती में कोई काम की बजाय सिर्फ़ उसी बस्ती को संज्ञान में लिया गया, जहां का ट्वीट वायरल हुआ। सत्ता-प्रशासन के इस रवैये के बीच सवाल उठता है कि विकास के नाम पर आदर्श ग्राम और मॉडल ब्लॉक आज भी बुनियादी सुविधाओं से अछूता कैसे है?

आवास, पानी, रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधाओं से अछूती इन बस्तियों में पोषण भी एक बड़ी समस्या है, जिसे सत्ता झुठलाने की कोशिश करती है। यह तो बात हुई ज़मीनी सच्चाई की जहां पोषण एक बड़ी चुनौती है। लेकिन जब पोषण के मुद्दे पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर बात हुई तब भी केंद्र सरकार ने इसे अवैज्ञानिक बता दिया। लेकिन सच्चाई यही है कि गाँव की वंचित तबके की बस्तियों में आज भी परिवार नमक-चावल या सूखी रोटी से अपना पेट भरने को मजबूर हैं।

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स की साल 2021 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 101वें पायदान पर है। भारत का यह स्थान देश में भुखमरी की समस्या का संकेत है। सरकार पोषण के नाम पर राशन वितरण की योजनाएं चला रही है और यह बात उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की जीत का बड़ा कारण पिछले दो साल से शुरू हुए राशन वितरण को ही बताया गया।

सरकार ने भुखमरी की समस्या को दूर करने के लिए हमारे देश में पोषण अभियानईट राइट इंडिया मूवमेंट,  फूड फोर्टिफिकेशनराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी योजनाएं शुरू की हैं। हालांकि, इन तमाम विशेष योजनाओं के बावजूद विश्वस्तर पर भारत का भुखमरी में यह स्थान साफ़ करता है कि ज़्यादातर योजनाएं आज भी सिर्फ़ कागज़ों में दर्ज़ आंकड़ों तक सीमित हैं। साल 2014 के हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की लिस्ट में भारत 55वें स्थान पर था, जिसमें तेज़ी से बढ़ोतरी हुई जो चिंता की बात है।

पोषण से दूर, राने गाँव की मुसहर बस्ती के बच्चे

विकास के दावों से दूर हैं ग्रामीण वंचित समुदाय

जब भी हम विकास की बात करते है तो देश या समाज का विकास इस बात से तय किया जाता है कि समाज के हाशिएबद्ध समुदाय की बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच कितनी हुई और वे अपने अधिकारों को कैसे सुरक्षित कर पा रहे हैं। स्वस्थ जीवन के लिए पोषण, साफ़ पीने का पानी और आवास ये किसी भी इंसान की बुनियादी ज़रूरते हैं। आज हम विकास मॉडल की बात करते हैं। सरकार विकास के नाम पर गाँव-ब्लॉक गोद लेकर उसे मॉडल बनाने के लिए बेहिसाब रुपए खर्च कर रही है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यही है कि इस विकास की एक भी किरण समाज के हाशिएबद्ध समुदाय तक न के बराबर पहुंच रही है।

अब हमें ये समझना होगा कि सिर्फ़ योजनाओं की घोषणा, इसके लिए अलग विभाग बनाने या फिर अरबों का फंड पास करने मात्र से कोई भी बदलाव नहीं आएगा, जब तक इसे ज़मीनी स्तर पर सही तरीक़े से लागू न किया जाए। देशभर में विकास का मॉडल दिखाए जा रहे वाराणसी में ‘विश्वनाथ कॉरिडोर’ और ‘नमामि गंगा योजना’ अन्य प्रदेश-देश के लोगों के लिए आकर्षण बन चुका है, जिसे हम विकास का मानक मानकर विकास पूरा होने की बात कर रहे हैं। लेकिन इस चमकते विकास के पीछे की कड़वी सच्चाई यही है कि आज हमारा देश भुखमरी की समस्या के कगार पर है। आज भी गांव में जाति के आधार पर बंटी बस्तियों में वंचित तबकों की बस्तियां हर बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इसलिए ज़रूरी है कि विकास के काग़ज़ों में जुड़ते इन गाँव-ब्लॉक की ज़मीनी सच्चाई सामने लाई जाए, जिससे योजनाओं को ज़मीन तक पहुंचाने में मदद हो।

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तस्वीर साभार: सभी तस्वीरें रेणु द्वारा उपलब्ध करवाई गई हैं

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