स्वास्थ्य स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित मेन्स्ट्रूअल कप के इस्तेमाल में हिचक क्यों ?| नारीवादी चश्मा

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए सुरक्षित मेन्स्ट्रूअल कप के इस्तेमाल में हिचक क्यों ?| नारीवादी चश्मा

रबर, सिलिकॉन या लैटेक्स से बना एक छोटा, लचीला कोन शेप का कप मेन्स्ट्रूअल कप, जिसे आजकल ईको फ़्रेंड्ली मेन्स्ट्रूअल प्रोडक्ट में काफ़ी पसंद किया जा रहा है।

बीते कुछ सालों में हम धीरे-धीरे ही सही पीरियड के मुद्दे पर बात करने लगे है, जिसकी वजह है पिछले कुछ सालों में पीरियड के मुद्दे पर बनने वाली फ़िल्में। ये अपने भारतीय समाज की अजीब विडंबना है कि जैसे ही किसी मुद्दे पर फ़िल्म बनती है तो हम सभी उसे ज़रूरी समझने लगते है और ऐसा ही हुआ पीरियड के मुद्दे पर भी। पीरियड को लेकर इस जागरूकता ने अपने साथ-साथ पीरियड मैनेजमेंट के लिए प्लास्टिक सेनेटरी पैड के व्यापार को भी ख़ूब बढ़ावा दिया। इसका नतीजा ये रहा कि पीरियड को एक समस्या के रूप में और प्लास्टिक सेनेटरी पैड को इसके समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया और फिर क्या ज़नकल्याण, जागरूकता और महिला सशक्तिकरण के नामपर प्लास्टिक सेनेटरी पैड का वितरण शुरू हो गया।

पीरियड के दौरान प्लास्टिक सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने की सलाह हमलोगों को सालों से दी जाती रही है। पहले पीरियड के दौरान सूती कपड़े के इस्तेमाल को सुरक्षित बताया जाता था, लेकिन बदलते समय के साथ  हाइजीन के नामपर सिर्फ़ प्लास्टिक सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। पर क्या आपको याद है कि पिछले सालों में आपने जितने भी प्लास्टिक सेनेटरी पैड का इस्तेमाल किया है, जो आज भी धरती से ख़त्म नहीं हुए और लगातार हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रहे है।

रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक सेनेटरी पैड को डिस्पोज होने में पाँच सौ से आठ सौ साल का वक्त लगता है। कई शोध में यह भी पाया गया है कि प्लास्टिक पैड न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि हमारे शरीर के लिए भी नुक़सानदायक होते है। भारत में मिलने वाले ज़्यादातर सेनेटरी पैड में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, जिससे स्किन प्रॉब्लम जैसे – रैसेज और इंफ़ेक्शन होने का ख़तरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, प्लास्टिक सेनेटरी पैड में इस्तेमाल होने वाले केमिकल पीएच लेवल को भी प्रभावित करते है, जिससे इंफ़ेक्शन की संभावना बध जाती है।  ऐसे में ज़रूरी है कि हम ईको-फ़्रेंड्ली मेन्स्ट्रूअल प्रॉडक्ट का इस्तेमाल करें, जिसमें कॉटन सेनेटरी पैड, टैम्पून और मेन्स्ट्रूअल कप शामिल है।  आज हम बात करने वाले है मेन्स्ट्रूअल कप के बारे में, जो ईको-फ़्रेंड्ली होने के साथ-साथ प्लास्टिक सेनेटरी पैड की अपेक्षा किफ़ायती होते है।

रबर, सिलिकॉन या लैटेक्स से बना एक छोटा, लचीला कोन शेप का कप मेन्स्ट्रूअल कप, जिसे आजकल ईको फ़्रेंड्ली मेन्स्ट्रूअल प्रोडक्ट में काफ़ी पसंद किया जा रहा है। मेन्स्ट्रूअल कप का इस्तेमाल पीरियड के दौरान वजाइना में इंसर्ट करके किया जाता है, जिसमें पीरियड का ब्लड इकट्ठा हो जाता है। एक मेन्स्ट्रूअल कप को अच्छी तरह साफ़ करके कई सालों तक दुबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।

अब सवाल है कि इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है?

सबसे पहले अपने हाथों को अच्छी तरह साफ़ करें, इसके बाद मेन्स्ट्रूअल कप को पहले अच्छी तरह साफ़ करें या इसे हल्के गुनगुने पानी में थोड़ी देर छोड़ भी सकते है, जिससे इसमें कोई कीटाणु न हो और फिर इसे सी-शेप में फ़ोल्ड करें और इसे वजाइना में इन्सर्ट करें।  मेन्स्ट्रूअल कप को वजाइना में इन्सर्ट करते ही ये वजाइना की बाहरी लेयर में फ़िट हो जाता है और वजाइना पूरी तरह सील हो जाता है, जिससे लिकेज की कोई समस्या नहीं होती है। सामान्यत: नोर्मल फ़्लो में एक मेन्स्ट्रूअल कप को लगाने के बाद दस-बारह घंटे तक मेन्स्ट्रूअल कप को निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। वहीं हैवी फ़्लो के दौरान इसे तीन-चार घंटे में बदलना चाहिए। कप को बदलने की प्रक्रिया में इकट्ठा हुए ब्लड को फेंककर इसे साफ़ पानी से धोकर दुबारा इस्तेमाल करना चाहिए। 

और पढ़ें : ‘पीरियड का खून नहीं समाज की सोच गंदी है|’ – एक वैज्ञानिक विश्लेषण

मेन्स्ट्रूअल कप पर्यावरण और शरीर के लिए सुरक्षित होने के साथ-साथ प्लास्टिक पैड की अपेक्षा किफ़ायती भी है, लेकिन इसके बावजूद मेंस्ट्रुएटर इसके इस्तेमाल से अक्सर संकोच करती है, जिसकी वजह से मेन्स्ट्रूअल कप से जुड़े मिथ्य। तो आइए अब हम चर्चा करते है कुछ ऐसे मिथ्य के बारे में जो अक्सर मेन्स्ट्रूअल कप की तरफ बढ़ते कदम में बाधा बनते हैं।

मिथ्य :  मेन्स्ट्रुअल कप के इस्तेमाल से ‘वर्जिनिटी’ जा सकती है

तथ्य : मेन्स्ट्रूअल कप से जुड़ा एक कॉमन मिथ्य है, जो अक्सर इसके इस्तेमाल से रोकता है।  पहले तो हमें ये समझना होगा कि वर्जिन का कॉन्सेप्ट ही पितृसत्तात्मक है, जो वजाइना की झिल्ली को पवित्रता और अपवित्रता को जोड़कर देखता है। वजाइना में मौजूद झिल्ली को हाइमन कहते है, जिसको लेकर अक्सर मेंस्ट्रुएटर्स में ये डर रहता है कि अगर वे मेन्स्ट्रूअल कप का इस्तेमाल करती है तो इससे हाइमन फट सकता है। पर वास्तव में ऐसा नहीं, उम्र बढ़ने के साथ-साथ हाइमन की झिल्ली पतली होती जाती है, जो कई बार साइकलिंग, वर्कआउट या स्विमिंग करने से फट सकती है।  इसलिए सिर्फ़ मेन्स्ट्रूअल कप के इस्तेमाल मात्र से हाइमन फट सकता है, ये कहना कहीं से भी सही नहीं है।

रबर, सिलिकॉन या लैटेक्स से बना एक छोटा, लचीला कोन शेप का कप मेन्स्ट्रूअल कप, जिसे आजकल ईको फ़्रेंड्ली मेन्स्ट्रूअल प्रोडक्ट में काफ़ी पसंद किया जा रहा है।

मिथ्य : मेन्स्ट्रूअल कप इस इस्तेमाल असहज या अनकंफर्टेबल होता है।

तथ्य : मेन्स्ट्रूअल कप को वजाइना में इन्सर्ट करना होता है, जिसे लेकर अक्सर लोगों में यह डर होता है कि ये बेहद असहज होता होगा। पर सच्चाई ये है कि अगर मेन्स्ट्रूअल कप इस्तेमाल सही तरीक़े से किया जाए तो ये बेहद सुरक्षित और कम्फ़्टर्बल  होता है, जिससे किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है।

मिथ्य : मेन्स्ट्रूअल कप रात में पहनना ठीक नहीं है।

तथ्य : अक्सर मेंस्ट्रुएटर यह सोचती है कि मेन्स्ट्रूअल कप लगाने के बाद अगर वो लेटेंगीं तो इससे उनका मेन्स्ट्रूअल ब्लड वापस उनकी योनि में चला जाएगा, जो पूरी तरह ग़लत है। मेन्स्ट्रूअल कप आठ से बारह घंटे लिकेज प्रूफ़ रहता है, इसलिए इसे रात में बिना किसी डर के आराम से पहना जा सकता है। चूँकि मेन्स्ट्रूअल कप वजाइना को अच्छी तरह सील कर लेता है इसलिए इसमें लिकेज की समस्या न के बराबर होती है, जो रात में आपको किसी भी करवट बिना डर के सोने की राहत देती है।

मिथ्य : सभी को एक साइज का मेंस्ट्रुअल कप फिट होता है।

तथ्य : ये ज़रूरी नहीं है कि सभी को एक साइज़ का ही मेन्स्ट्रूअल कप फ़िट बैठे। मार्केट में अलग-अलग साइज़ के मेन्स्ट्रूअल कप उपलब्ध होते है जिसमें से आप सही विकल्प चुन सकते है। याद रखें, सही साइज़ का मेन्स्ट्रूअल कप आपको सहज और लिकेज की समस्या से सुरक्षित रखने में मदद करेगा।

ये तो बात हुई मेन्स्ट्रूअल कप और इससे जुड़े मिथ्य की। पर अगर अब तक आप भी मेन्स्ट्रूअल कप के इस्तेमाल में हिचक महसूस कर रहे थे, तो उन मिथ्यों को दूर कर मेन्स्ट्रूअल कप के इस्तेमाल कीजिए, क्योंकि ये न केवल आपके स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी नुक़सानदायक नहीं है।

और पढ़ें : प्लास्टिक सेनेटरी पैड का खतरनाक खेल | #ThePadEffect


तस्वीर साभार : स्वाती

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