इंटरसेक्शनलजाति टीना डाबी की शादी पर एक बार फिर दिखा समाज और मीडिया का जातिवादी और महिला-विरोधी चेहरा

टीना डाबी की शादी पर एक बार फिर दिखा समाज और मीडिया का जातिवादी और महिला-विरोधी चेहरा

टीना डाबी के हर फैसले पर उनकी जाति को खासतौर पर आधार बनाया जाता है। उनकी दूसरी शादी के मौके पर भी यही हुआ है। जैसे ही उनकी शादी की तस्वीरों में बैकग्राउंड में डॉ.आंबेडकर की फोटो सामने आई तो सोशल मीडिया पर इस बात पर बहस छिड़ गई। उनके इस फैसले का निरादर करते हुए उनकी जाति और आरक्षण को शामिल कर दिया गया।

किसी के निजी जीवन में झांकना भारतीय समाज अपनी ज़िम्मेदारी समझता है। सोशल मीडिया और न्यूज़ इंडस्ट्री इस काम को बखूबी कर रहे हैं। किसी भी व्यक्ति जिसकी एक सार्वजनिक पहचान है उसके जीवन से जुड़ी कोई भी अपडेट हो उसे हाथों-हाथ एक सनसनी बना दिया जाता है। इंटरनेट स्पेस में ऐसी जानकारी हर वक्त तैरती रहती है। इसी तरह आईएएस अफ़सर टीना डाबी को सूचनाओं के दौर में एक ऐसा कीवर्ड बना दिया गया है जिनके जीवन से जुड़ी हर ख़बर को एक सनसनी बनाकर पेश किया जाता रहा है।

सर्च इंजन में टीना डाबी का नाम डालते ही उनकी उम्र, जाति, बॉयफ्रेंड, तलाक और पति को लेकर जानकारी दिखनी शुरू हो जाती है। बीते हफ्ते दोबारा शादी के बंधन में बंधी आईएएस अफ़सर टीना डाबी एक बार फिर से सुर्खियों में हैं। उनके आईएएस बनने से लेकर अब तक की हर घटना पर अनेक प्रतिक्रियाएं सामने आती रही हैं। टीना डाबी एक दलित महिला हैं जिन्होंने साल 2015 में यूपीएससी में पहला स्थान प्राप्त किया था। अपनी पहली ही कोशिश में यह उपलब्धि हासिल करने के बाद उनकी जाति और आरक्षण को केंद्र में रखकर उनको लगातार इस जातिवादी समाज ने ट्रोल किया है।

तस्वीर साभार: Twitter

मीडिया में बड़ी-बड़ी हेडलाइंस के साथ उनकी उपलब्धि से ज्यादा उनकी जाति को टारगेट किया गया। आरक्षण और मेरिट पर जातिवादी समाज की डिबेट के बाद उनके निजी जीवन को लेकर भी पब्लिक में खूब चर्चा की गई। उनके जीवन के निजी पहलू की कवरेज में समाज की संकीर्णता बहुत ही असंवेदनशील तरीके से सामने आई। टीना ने पहली शादी उसी साल के यूपीएससी की परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने वाले अतहर आमिर खान से की थी। दोनों के फैसलों पर लोगों की बहुत अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।

सोशल मीडिया पर हैशटैग #tinadabi के साथ जितनी शादी की मुबारकबाद की बातें है उतनी ही जातिवादी, स्त्रीदेषी प्रतिक्रियाएं मौजूद हैं। “देखेंगे कितने दिन टिकेगी ये शादी, लड़कियों को अंकल पसंद आ रहे हैं, ये शादी भी बेमेल है, ख़ान साब में क्या कमी थी उन्हें क्यों छोड़ दिया, आंबेडकर की तस्वीर क्यों लगाई, शादी के दिन सफेद साड़ी कौन पहनता है, अब तो आप दोनों को अपनी अगली पीढ़ी के लिए आरक्षण छोड़ देना चाहिए और क्या अतहर आमिर भी शादी में शामिल हुए थे,” जैसी बातें मौजूद हैं।

और पढ़ेंः टीना और अतहर के फ़ैसले के बीच समाज का नफ़रती चेहरा

इन दोनों की शादी देश में चर्चा का विषय बन गई थी। किसी ने अंतरधार्मिक शादी का स्वागत किया, किसी ने धार्मिक सौहार्द बताया तो वहीं एक वर्ग ने इसका विरोध भी किया। हिंदू महासभा ने इन दोनों की शादी को ‘लव जिहाद‘ तक करार दिया था। धर्म का एंगल जोड़कर टीना डाबी के परिवार तक को टारगेट किया गया। उनके परिवार पर शादी को न करने के लिए या कम से कम अतहर को धर्म बदलने के लिए मनाने तक के प्रस्ताव दिए गए। संगठन ने यह तक कहा था कि अतहर आमिर की घर-वापसी करने में परिवार का पूरा समर्थन करेंगे।

इस तरह की चर्चा ने एक और मोड़ तब ले लिया जब इस जोड़े ने दो साल बाद आपसी सहमति से अलग होने का फैसला लिया। उनके अलगाव पर धर्म से जुड़ी बयानबाज़ी का सैलाब आ गया। लोग धार्मिक शोषण का अनुमान लगाने लगे। कहा गया कि अतहर ने टीना पर धर्म बदलने और बुर्का पहनने का अत्याचार किया। जो हिंदूवादी लोग जाति के नाम से पहले टीना पर जातिवादी टिप्पणियां करते थे वह अब धर्म को लेकर उनके समर्थन में खड़े दिखे।

टीना के जीवन की जितनी भी जानकारियां पब्लिक में सामने आई उसके कारण उन्हें कभी जातिवादी तो कभी धार्मिक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। यूपीएससी की सफलता पर उनकी जाति और मेरिट को लेकर ट्रोल किया गया। एक दलित महिला के पहले स्थान पर आने पर आरक्षण को निशाना बनाया। दूसरी ओर अपने साथी के तौर पर एक मुस्लिम व्यक्ति को चुनने बाद में उससे अलग होने पर धर्म की असफलता और सफलता के साथ जोड़ा। समाज में यदि कोई भी महिला, ख़ासकर दलित तबके से आनेवाली महिला रूढ़ियों को चुनौती देती है तो उसके सामने ऐसी ही परिस्थितियों को पैदा कर दिया जाता है। 

और पढ़ेंः पितृसत्ता के दायरे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म!

टीना डाबी के हर फैसले पर उनकी जाति को खासतौर पर आधार बनाया जाता है। उनकी दूसरी शादी के मौके पर भी यही हुआ है। जैसे ही उनकी शादी की तस्वीरों में बैकग्राउंड में डॉ.आंबेडकर की फोटो सामने आई तो सोशल मीडिया पर इस बात पर बहस छिड़ गई। उनके इस फैसले का निरादर करते हुए उनकी जाति और आरक्षण को शामिल कर दिया गया।

टीना की दूसरी शादी और सोशल मीडिया

एक बार फिर से टीना डाबी की दूसरी शादी के बाद से सोशल मीडिया और न्यूज़ में उनसे जुड़ी खबरों और प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई है। उनकी शादी से जुड़ी अलग-अलग तस्वीरों को अलग-अलग हेडलाइंस के साथ पेश किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #tinadabi के साथ जितनी शादी की मुबारकबाद की बातें है उतनी ही जातिवादी, स्त्रीदेषी प्रतिक्रियाएं मौजूद हैं।

“देखेंगे कितने दिन टिकेगी ये शादी, लड़कियों को अंकल पसंद आ रहे हैं, ये शादी भी बेमेल है, ख़ान साब में क्या कमी थी उन्हें क्यों छोड़ दिया, आंबेडकर की तस्वीर क्यों लगाई, शादी के दिन सफेद साड़ी कौन पहनता है, अब तो आप दोनों को अपनी अगली पीढ़ी के लिए आरक्षण छोड़ देना चाहिए और क्या अतहर आमिर भी शादी में शामिल हुए थे,” जैसी बातें मौजूद हैं।

टीना डाबी के हर फैसले पर उनकी जाति को खासतौर पर आधार बनाया जाता है। उनकी दूसरी शादी के मौके पर भी यही हुआ है। जैसे ही उनकी शादी की तस्वीरों में बैकग्राउंड में डॉ.आंबेडकर की फोटो सामने आई तो सोशल मीडिया पर इस बात पर बहस छिड़ गई। उनके इस फैसले का निरादर करते हुए उनकी जाति और आरक्षण को शामिल कर दिया गया। मेरिट की बात को उछालकर उनके पति और उनसे आगे के लिए आरक्षण छोड़ने के मूवमेंट चलाने के समर्थन में ट्वीट्स किए गए। बौद्ध रीति-रिवाज के अनुसार हुई शादी और उनके पहने कपड़ों तक पर भी फब्तियां कसी गई। मीडिया में दलित महिला की पसंद और चुनाव की बात को नज़रअंदाज कर ब्राह्मणवादी मेल गेज़ के साथ ख़बरें पेश की गईं।     

इन सब बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारा समाज कितना जातिवादी और महिला-विरोधी है। इस पूरे ट्रेंड में एक दलित महिला के जीवन की उपलब्धियों और निजी फैसलों पर अपना जातिवादी स्त्रीद्वेषी चेहरा सामने रखता है। किसी भी व्यक्ति के प्रेम, विवाह और अलगाव के फैसलों पर विचलित होते हमारे समाज की संकीर्णता का यह ट्रेंड बढ़ता ही जा रहा है। भारतीय समाज की यह बहुत बड़ी कमी है कि यहां एक-दूसरे के निजी स्पेस का सम्मान नहीं करते हैं। इसके अलावा किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में बात करने को अपना अधिकार मानकर चलते हैं। इसमें कोई महिला है तो बातों का स्तर बहुत नीचे पहुंच जाता है। यदि एक दलित महिला है तो उसे ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के ट्रोल्स और मीडिया से जातीय टिप्पणियों का भी सामना करना पड़ता है। 

और पढ़ेंः तलाक़ का फ़ैसला हो स्वीकार क्योंकि ‘दिल में बेटी और विल में बेटी’| नारीवादी चश्मा


तस्वीर साभार: Twitter

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content