समाजकानून और नीति टू फिंगर टेस्ट: रेप सर्वाइवर की गरिमा, गोपनीयता और कानून का उल्लंघन करता एक परीक्षण 

टू फिंगर टेस्ट: रेप सर्वाइवर की गरिमा, गोपनीयता और कानून का उल्लंघन करता एक परीक्षण 

पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मेडिकल पेशेवरों द्वारा यौन हिंसा के सर्वाइवर्स पर टू-फिंगर टेस्ट की प्रथा पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आर. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार की पीठ ने यह निर्देश इसलिए जारी किया क्योंकि यह बात सामने आई थी कि टू-फिंगर टेस्ट का इस्तेमाल अब भी यौन अपराधों से जुड़े मामलों में किया जा रहा है, ख़ासकर नाबालिग सर्वाइवर्स पर।

पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मेडिकल पेशेवरों द्वारा यौन हिंसा के सर्वाइवर्स पर टू-फिंगर टेस्ट की प्रथा पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आर. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार की पीठ ने यह निर्देश इसलिए जारी किया क्योंकि यह बात सामने आई थी कि टू-फिंगर टेस्ट का इस्तेमाल अब भी यौन अपराधों से जुड़े मामलों में किया जा रहा है, ख़ासकर नाबालिग सर्वाइवर्स पर। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें कहा गया था कि यह बलात्कार सर्वाइवर्स की गोपनीयता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है

भारत में महिलाओं के लिए कई प्रगतिशील और सहायक कानून हैं मगर दुविधा यह है कि ये सभी कानून फाइल्स में तो अच्छे से लिखे गए हैं लेकिन व्यवहार में लागू नहीं हैं। भारतीय कानून कई विकसित देशों के कानूनों की तुलना में अधिक सुधारवादी प्रतीत होते हैं। हालांकि, व्यवहार में कानून का उल्लंघन बहुत ज़मीनी स्तर से ही होता रहता है। सबसे बुनियादी स्तर पर कानूनों का उल्लंघन, वास्तव में, हमारे सामूहिक विवेक को परेशान करना चाहिए। कानून के पालनकर्ताओं, डॉक्टरों और पुलिस अधिकारियों के बीच शिक्षा और समझ की कमी सर्वाइवर्स के लिए न्याय तक पहुंच में रुकावट पैदा करती है।

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पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मेडिकल पेशेवरों द्वारा यौन हिंसा के सर्वाइवर्स पर टू-फिंगर टेस्ट की प्रथा पर तत्काल रोक लगाने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति आर. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति एन. सतीश कुमार की पीठ ने यह निर्देश इसलिए जारी किया क्योंकि यह बात सामने आई थी कि टू-फिंगर टेस्ट का इस्तेमाल अब भी यौन अपराधों से जुड़े मामलों में किया जा रहा है, ख़ासकर नाबालिग सर्वाइवर्स पर।

जागरूकता की यह कमी न केवल सर्वाइवर्स को रिपोर्ट करने से रोक सकती है, बल्कि जब सर्वाइवर्स ने अपराध को रिपोर्ट करने का फैसला किया हो, तब भी जागरूकता की यह कमी उन्हें अधिक आघात और शक्तिहीन महसूस करवाती है। इन्हीं में एक कानून है- ‘टू फिंगर टेस्ट’ पर बैन। पिछले साल, भारतीय वायु सेना (IAF) की एक महिला अधिकारी ने अपने सहयोगी पर बलात्कार का आरोप लगाया था और उसने आरोप लगाया कि यौन उत्पीड़न की पुष्टि करने के लिए उसे अवैध टू-फिंगर टेस्ट से गुज़रना पड़ा। भारतीय वायु सेना की महिला अधिकारी जिसकी शिक्षा और समझ का अंदाज़ा एक आम इंसान भी लगा सकता है लेकिन उन्हें इस टेस्ट से गुज़रना पड़ा।

कब हुई इस अमानवीय परीक्षण की शुरुआत

इस परीक्षण की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई थी। इसका मक़सद सर्वाइवर के यौन इतिहास के बारे में जानकारी का पता लगाने के लिए हाइमन और योनि की शिथिलता की जांच शामिल था। योनि में एक उंगली को डालने से यदि सर्वाइवर को कठिनाई का सामना करना पड़ता है तो इसका अर्थ यह है कि सर्वाइवर कुंवारी है, जबकि दो उंगलियों का आसानी से योनि के अंदर चले जाना इस बात का प्रमाण देता है कि उसे ‘संभोग की आदत है।’

स्पष्ट रूप से, इस परीक्षण का कोई वैज्ञानिक महत्व नहीं है; हाइमन का न होना और योनि छिद्र की शिथिलता सेक्स से असंबंधित कारणों से भी हो सकती है और यहां तक ​​​​कि अगर उश शख़्स का बलात्कार किया गया है तो यह टेस्ट अप्रासंगिक है क्योंकि उसके साथ बिना उसकी सहमति के यह किया गया है। भारत में इस टेस्ट का इस्तेमाल रेप सर्वाइवर के साथ रेप हुआ है या नहीं इसकी पुष्टि करने के लिए बरसों से किया जाता रहा है। कानूनी रूप से यह टेस्ट भारत में बैन है लेकिन फिर भी इसके इस्तेमाल से जुड़ी खबरें आती रहती हैं।

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रेप आफ्टर रेप

यह परीक्षण बलात्कार के बाद फिर से बलात्कार भी कहलाता है। इस टेस्ट के दौरान एक बलात्कार सर्वाइवर के साथ डॉक्टर द्वारा दोबारा से उसकी योनि में ऊंगली डालकर परीक्षण करने से उसे फिर दोबारा उसी कष्ट और तनाव से गुज़रना पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में बताया गया है कि मोदी की ज्यूरिस्प्रुडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी (21वां संस्करण) के अनुसार चिकित्सा न्यायशास्त्र, फोरेंसिक चिकित्सा और विष विज्ञान की पाठ्यपुस्तक के अनुसार भी बलात्कार के अपराध का गठन करने के लिए, यह ज़रूरी नहीं है कि सर्वाइवर की योनि में लिंग का पूर्ण प्रवेश और हाइमन का टूटना आवश्यक हो।

ह्यूमन राइट्स वॉच की साल 2017 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि डॉक्टरों ने अपमानजनक लक्षण वर्णन करने के लिए आक्रामक, अपमानजनक और अमानवीय टू फिंगर परीक्षण करना जारी रखा है।

नारायणम्मा (कुम0) बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य के वाद में हाई कोर्ट ने माना कि दो अंगुलियों के प्रवेश और हाइमन के फटने का तथ्य यह स्पष्ट संकेत नहीं देता है कि सर्वाइवर को संभोग की आदत है। डॉक्टर को यह विचार करना होगा कि क्या हाइमन बहुत पहले फटा हुआ था? दो अंगुलियों के प्रवेश के तथ्य को सर्वाइवर के प्रतिकूल नहीं माना जा सकता है, क्योंकि यह योनि में डाली गई उंगलियों के आकार पर भी निर्भर करेगा।

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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मुंशी के वाद में कहा है कि भले ही बलात्कार की सर्वाइवर महिला पहले संभोग की आदी हो, लेकिन यह निर्णायक प्रश्न नहीं है। भले ही सर्वाइवर ने पहले अपना कौमार्य खो दिया हो, लेकिन यह निश्चित रूप से किसी भी व्यक्ति को उसके साथ बलात्कार करने का लाइसेंस नहीं दे सकती है। क्या सर्वाइवर एक कामुक चरित्र की महिला है, बलात्कार के मामले में यह पूरी तरह से एक अप्रासंगिक मुद्दा है क्योंकि यह आरोपी है जिस पर मुकदमा चल रहा है न कि सर्वाइवर।

इंटरनेशनल कोवेनेंट ऑन इकनोमिक, सोशल, एंड कल्चरल राइट्स 1966; यूनाइटेड नेशंस डिक्लेरेशन ऑफ़ बेसिक प्रिंसिपल्स ऑफ़ जस्टिस फॉर विक्टिम्स ऑफ़ क्राइम एंड एब्यूज ऑफ़ पावर 1985 के अनुसार बलात्कार के सर्वाइवर ऐसे कानूनी सहारा के हकदार हैं जो उन्हें फिर से आघात नहीं पहुंचाए या उनकी शारीरिक या मानसिक अखंडता और गरिमा का उल्लंघन नहीं करता हो। सर्वाइवर इस तरह से संचालित चिकित्सा प्रक्रियाओं के भी हकदार हैं जो उनके सहमति के अधिकार का सम्मान करते हैं। चिकित्सा प्रक्रियाओं को ऐसे तरीके से नहीं किया जाना चाहिए जो क्रूर, अमानवीय, या अपमानजनक उपचार का गठन करता है और लैंगिक हिंसा से निपटने के दौरान स्वास्थ्य को सर्वोपरि माना जाना चाहिए। राज्य यौन हिंसा से बचे लोगों को ऐसी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित उपाय किए जाने चाहिए और उनकी निजता में कोई मनमाना या गैरकानूनी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

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साल 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, मार्च 2014 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बलात्कार सर्वाइवर के साथ व्यवहार करने और उनका इलाज करने के लिए नए दिशानिर्देश तैयार किए और सभी अस्पतालों को सर्वाइवर्स की फोरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए एक निर्दिष्ट कमरा स्थापित करने के लिए कहा। इसके अलावा उन पर किए गए टू-फिंगर परीक्षण को अवैज्ञानिक करार दिया। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग (डीएचआर) ने विशेषज्ञों की मदद से भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर आपराधिक हमले के मामलों से निपटने के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का एक सेट तैयार किया है।

दिशानिर्देशों में डॉक्टर को सर्वाइवर्स के साथ हुए कथित हमले के इतिहास को रिकॉर्ड करने, सर्वाइवर्स की शारीरिक जांच करने और यहां तक ​​कि सर्वाइवर्स को मनोवैज्ञानिक रूप से इलाज और परामर्श देने को कहा गया। लेकिन असलियत में, अधिकांश मामले निर्धारित दिशा-निर्देशों के विपरीत दृष्टिकोण दिखाते हैं और सर्वाइवर्स के साथ लापरवाही का बर्ताव करते हुए उसकी चिकित्सा परीक्षण किया जाता है। ह्यूमन राइट्स वॉच की साल 2017 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि डॉक्टरों ने अपमानजनक लक्षण वर्णन करने के लिए आक्रामक, अपमानजनक और अमानवीय टू फिंगर परीक्षण करना जारी रखा है।

टू-फिंगर टेस्ट 2013 में बैन होने के बावजूद देश में आज भी कई जगह यौन अपराधों की पुष्टि के लिए महिलाओं पर इस्तेमाल हो रहा है। इसका प्रमाण हालिया कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला और पिछले साल का सेना की महिला अधिकारी द्वारा इस पर बयान है। बलात्कार सर्वाइवर्स को अक्सर अपने घरों, पुलिस थानों में और फिर उन अस्पतालों जहां उनका चिकित्सीय परीक्षण होता है, वहां अपमानजनक, और भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है। बलात्कार के बाद सर्वाइवर मानसिक और शारीरिक रूप से कई चुनौतियों का सामना करते हैं, ऐसे समय में एक डॉक्टर एक बड़े समर्थन के रूप में काम कर सकता है। लेकिन जागरूकता की कमी और बलात्कार सर्वाइवर को गंभीरता से न लिए जाने के कारण डॉक्टर द्वारा किया जानेवाला यह टेस्ट बलात्कार सर्वाइवर के लिए एक अमानवीय प्रक्रिया और मानवाधिकार उल्लंघन के समान है।

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तस्वीर साभार: India Today

Comments:

  1. Abhi says:

    Iska Brahmanwaad se koi Lena Dena nhi h.
    Ye sab ek parson ki soch or uske aas pass ke
    Samaj dwara thopa jata h.
    Jahaa tak Mera manna h to educated log is mansikta se Kaafi had tak bahaar Nikle h.

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