समाजख़बर भारत में महिलाओं की स्थिति को बयां करते नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़े 

भारत में महिलाओं की स्थिति को बयां करते नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़े 

एनएफएचएस-5 के मुताबिक यदि भारत के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ो के बारे में बात करें तो भारत में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब है। पश्चिम बंगाल में 42 प्रतिशत महिलाएं ऐसी है जिनकी शादी जल्दी की गई। वहीं बिहार में यह आंकडा 40 फीसद और त्रिपुरा 39 फीसदी है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की नई रिपोर्ट में देश की सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार महिलाओं से जुड़े कई अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं। यह सर्वे दो चरणों में किया गया है। पहला चरण 17 जून 2019 से 30 जनवरी 2020 तक किया गया। पहले चरण में 17 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेशों ने भाग लिया। दूसरा चरण 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 के दौरान हुआ जिसमें 11 राज्य और तीन केंद्र शासित राज्यों ने हिस्सा लिया। नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति कैसी हैं, आइए डालते हैं उन पर एक नज़र। 

आज भी 25 फीसदी महिलाओं की कम उम्र में हो जाती है शादी

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS-5) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार भारत में 18 से 29 साल की उम्र वाली महिलाओं में से 25 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल के होने से पहली कर दी गई थी। द प्रिंट में प्रकाशित एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार 2019-21 के सर्वेक्षण में महिलाओं में यह दर 25 प्रतिशत है। 18-29 आयु के शादीशुदा पुरुषों में जल्दी शादी की दर 15 प्रतिशत है। 

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NHFS-5 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2019-21 के दौरान 15 से 49 साल की 11 फीसद महिलाओं ने जीवन में एक बार स्टिलबर्थ और अबॉर्शन का अनुभव किया है। 2015-16 में यह दर 12 प्रतिशत थी।

क्या है भारत के अन्य राज्यों की स्थिति

एनएफएचएस-5 के मुताबिक अगर भारत के अलग-अलग राज्यों के आंकड़ो के बारे में बात करें तो भारत में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब है। पश्चिम बंगाल में 42 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी जल्दी की गई। वहीं, बिहार में यह आंकड़ा 40 फीसद और त्रिपुरा 39 फीसदी है। झारखंड में 35 फीसदी, एक तिहाई महिलाओं की शादी कानूनी तय उम्र से पहुंचने से पहले ही कर दी गई। आंध्र प्रदेश में यह दर 33 फीसदी है। 

कानून द्वारा तय न्यूनतम उम्र से पहली शादी करने की दर असम में 32, दादर नगर हवेली और दमन दीव में 28 फीसदी, तेलंगाना में 27 फीसदी, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 25 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के अनुसार कानूनी उम्र से पहले महिलाओं की शादी के संदर्भ में सबसे बेहतर स्थिति 4 फीसद के साथ लक्षद्वीप है। जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में ऐसी महिलाओं की संख्या छह फीसद है। हिमाचल, गोवा और नगालैंड में यह दर 7 प्रतिशत के करीब है। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम उम्र में शादी करने का चलन कम हुआ है। 20 से 24 साल के आयुवर्ग में 23 प्रतिशत महिलाएं ऐसी है जिनकी शादी कानूनी उम्र से पहले कर दी गई। लेकिन 45-49 के आयु वर्ग में यह दर 47 फीसदी है। इसी तरह 45-49 उम्र वाले पुरुषों में 27 प्रतिशत की शादी 21 साल से पहले हुई और 25 से 29 आयु वाले में 18 प्रतिशत पुरुषों का विवाह तय आयु से पहले हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि स्कूल जाने वाली महिलाओं की शादी में देरी देखी गई है। 25 से 49 साल की उम्र वाली स्कूल न जाने वाली महिलाएं में शादी की औसत उम्र 17.1 साल है, जबकि 12 साल या उससे ज्यादा समय तक शिक्षा हासिल करने वाली महिलाओं में यह उम्र 22.8 दर्ज की गई।

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भारत में 15 से 24 साल की उम्र में महावारी होने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 64 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी नैपकिन, 50 प्रतिशत कपड़ा और 15 प्रतिशत स्थानीय स्तर पर बनने वाले नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर क्या है स्थिति

NHFS-5 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2019-21 के दौरान 15 से 49 साल की 11 फीसद महिलाओं ने जीवन में एक बार स्टिलबर्थ और अबॉर्शन का अनुभव किया है। 2015-16 में यह दर 12 प्रतिशत थी। रिपोर्ट के अनुसार, अबॉर्शन कराने वाली लगभग आधी महिलाओं (48 प्रतिशत) ने यह फैसला अनियोजित गर्भावस्था की वजह से लिया था। 16 प्रतिशत महिलाओं ने अपने अबॉर्शन के दौरान जटिलताओं का सामना किया है।

50 प्रतिशत महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती है

महिलाओं के लिए मेंस्ट्रुअल हेल्थ एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है। देश में आज भी माहवारी होने वाली महिलाओं में से बड़ी संख्या इस दौरान सैनटरी नैपकिन की जगह कपड़ा या अन्य चीजों का इस्तेमाल करती हैं। द ट्रिब्यून में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक भारत में 15 से 24 साल की उम्र में महावारी होने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 64 प्रतिशत महिलाएं सैनेटरी नैपकिन, 50 प्रतिशत कपड़ा और 15 प्रतिशत स्थानीय स्तर पर बनने वाले नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 12 और उससे ज्यादा उम्र की स्कूल जाने वाली लड़कियां बिना स्कूल जाने वाली लड़कियों के मुकाबले पीरियड्स हाइजीन के प्रति ज्यादा सजग है। यह दर स्कूल जाने वाली में 90 प्रतिशत है जबकि स्कूल न जाने लड़कियों में केवल 44 प्रतिशत है। यदि मेंस्ट्रुअल हाइजीन प्रोटेक्शन में भारत के राज्य की स्थिति देखे तो बिहार (59 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (61 प्रतिशत) और मेघालय (65 प्रतिशत) में सबसे कम महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीन तरीकों को अपना पाती हैं। 

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सेक्स से मना करने पर पत्नी को मिलनी चाहिए सज़ा’

द प्रिंट के मुताबिक 82 प्रतिशत महिलाओं ने अपने पति को यौन संबंध बनाने से मना करने में सक्षम होना बताया है। वहीं पति-पत्नी के बीच यौन संबंध बनाने की सहमति को लेकर पुरुषों के एक वर्ग का कहना है कि पुरुष को सहमति लेने की आवश्यकता ही नहीं है। पत्नी के यौन संबंध बनाने से मना करने को लेकर पुरुषों से चार तरीके के व्यवहार के अधिकार के तौर पर फटकारना, पैसे देने से मना करना, जोर-जबरदस्ती करना और किसी अन्य महिला के साथ संबंध को लेकर विकल्प दिए गए। 

18-49 आयु वर्ग की 32 फीसदी महिलाओं ने अपने वैवाहिक जीवन में अपने साथी से शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा का सामना किया है। हिंसा के प्रकार में 28 प्रतिशत ने शारीरिक हिंसा का सामना किया है। एक चौथाई महिलाओं ने हिंसा की वजह से चोट का सामना किया।

परिवार नियोजन महिलाओं की ज़िम्मेदारी है

भारत में परिवार नियोजन की स्थिति की बात करे तो मॉर्डन कंट्रोसेप्टिव के तरीकों का 56 प्रतिशत के करीब इस्तेमाल होता है। परिवार नियोजन की जिम्मेदारी की बात आती है तो महिलाएं इसे प्रयोग करने में आगे हैं। एनएफएचएस की नई रिपोर्ट के अनुसार 35 प्रतिशत पुरुषों का कहना है कि बर्थ कंट्रोल की जिम्मेदारी महिलाओं का काम है। 15 से 49 आयु वर्ग की महिलाओं में 39 प्रतिशत बर्थ कंट्रोल के रूप में फीमेल स्टेरलाइजेशन यानी महिला नसबंदी का इस्तेमाल करना स्वीकारा है। इसके अलावा महिलाओं में कंट्रोसेप्टिव पिल का चलन भी बड़ी संख्या में है।

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एक चौथाई महिलाओं ने स्वीकारी हिंसा की बात 

महिलाओं के प्रति हिंसा की प्रवृत्ति भारतीय समाज में लगातार बनी हुई है। नई रिपोर्ट अनुसार 18 से 49 आयु वर्ग वाली तीस प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि उन्होंने 15 वर्ष की उम्र से किसी न किसी तरह की हिंसा का सामना किया है। छह प्रतिशत का मानना है कि उन्होंने जीवन में एक बार शारीरिक हिंसा का सामना भी ज़रूर किया है। इसी आयुवर्ग की तीन प्रतिशत महिलाओं ने अपनी प्रेगनेंसी के दौरान शारीरिक हिंसा होने की बात भी स्वीकारी है।  

18-49 आयु वर्ग की 32 फीसदी महिलाओं ने अपने वैवाहिक जीवन में अपने साथी से शारीरिक, यौन और भावनात्मक हिंसा का सामना किया है। हिंसा के प्रकार में 28 प्रतिशत ने शारीरिक हिंसा का सामना किया है। एक चौथाई महिलाओं ने हिंसा की वजह से चोट का सामना किया। शारीरिक हिंसा में महिलाओं ने मोच, आंख में चोट, हड्डी टूटना, जलाना, दांत टूटना और गहरे घाव का सामना किया है। केवल 14 प्रतिशत महिलाओं ने माना है कि शारीरिक हिंसा के दौरान किसी अन्य ने बचाव किया है।      

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तस्वीर साभारः Asia Dialogue

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