इतिहास सरस्वती राजामणिः भारत की सबसे पहली युवा जासूसों में से एक| #IndianWomenInHistory

सरस्वती राजामणिः भारत की सबसे पहली युवा जासूसों में से एक| #IndianWomenInHistory

राजामणि की लगन से बोस बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने राजामणि को इंडियन नैशनल आर्मी में शामिल कर लिया। शुरू में राजामणि को आईएनए से बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग के बाद डिस्पेसरी विभाग में नर्स के पद पर भर्ती किया गया। शुरुआती दिनों में वह घायल सैनिक के घाव पर मरहम पट्टी करती थी लेकिन राजामणि इससे संतुष्ठ नहीं थीं वह इससे अधिक कुछ करना चाहती थी।

साल 1937 का समय था। महात्मा गांधी बर्मा की यात्रा पर गए हुए थे। गांधी वहां लोगों को ब्रिटिश शासन से मुक्ति की लड़ाई के लिए प्रेरित करने का आह्वान कर रहे थे। उस दौरान वह रंगून के सबसे धनी परिवार से मिले। पूरा परिवार इकठ्ठा होकर गांधी से मुलाकात कर रहा था। परिवार के सदस्यों का परिचय चल रहा था, तो उस समय उनकी 10 साल की बेटी राजामणि अपने बगीचे में बंदूक के साथ खेल रही थी।

जब गांधी ने उस बच्ची से पूछा कि तुम शूटर क्यों बनना चाहती हो? उस बच्ची ने जबाव दिया कि मैं लुटेरों को मारना चाहती हूं। जब मैं बड़ी हो जाउंगी कम से कम एक अंग्रेज को ज़रूर मार भगाऊंगी। वे हमें लूट रहे हैं। इस बच्ची की पहचान आगे जाकर सरस्वती राजामणि के तौर पर हुई जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था। वह भारत की सबसे कम उम्र की जासूस बनीं। वह इंडियन नैशनल आर्मी से जुड़ी हुई थीं। सरस्वती राजामणि नेता जी सुभाष चंद्र बोस से बहुत प्रभावित थी।

शुरुआती जीवन

सरस्वती राजामणि का जन्म 11 जनवरी, 1927 में रंगून, बर्मा वर्तमान में म्यांमार में हुआ था। तमिलनाडु से संबंध रखने वाला इनका परिवार उदार और बहुत समृद्ध था जो स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन करने के बाद ब्रिटिश राज में गिरफ्तारी से बचने के लिए बर्मा चला गया था। उनका परिवार लगातार आंदोलन से जुड़ा हुआ था। 

और पढ़ेंः रामादेवी चौधरीः स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक| #IndianWomenInHistory

सुभाष चंद्र बोस ने राजामणि के उत्साह और बहादुरी को देखकर उनके नाम के आगे सरस्वती लगा दिया। राजामणि की लगन से बोस बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने राजामणि को इंडियन नैशनल आर्मी में शामिल कर लिया। शुरू में राजामणि को आईएनए से बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग के बाद डिस्पेंसरी विभाग में नर्स के पद पर भर्ती किया गया।

नेता जी का प्रभाव

सरस्वती राजामणि जब 16 साल की थी वह रंगून में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा दिए गए एक भाषण से बहुत प्रभावित हुई। वह अंग्रेजी सेना के खिलाफ हथियार उठाने के लिए प्रेरित हुई। 17 जनवरी 1944 को नेता जी रंगून पहुंचे। वहां उन्होंने सेना के लिए फंड इकठ्ठा करने और भर्ती के लिए भी लोगों से आह्वान किया। भाषण के बाद युवा राजामणि ने अपने सारे गहने दान कर दिए। दूसरे दिन नेता जी उन गहनों को लौटाने राजामणि के घर पहुंंचे। राजामणि ने उन्हें लेने से न केवल इनकार किया बल्कि उनके पिता ने भी आईएनए के सहयोग के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।

सरस्वती राजामणिः भारत की युवा महिला जासूस #IndianWomenInHistory
तस्वीर साभारः Live History India

सुभाष चंद्र बोस ने राजामणि के उत्साह और बहादुरी को देखकर उनके नाम के आगे सरस्वती लगा दिया। राजामणि की लगन से बोस बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने राजामणि को इंडियन नैशनल आर्मी में शामिल कर लिया। शुरू में राजामणि को आईएनए से बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग के बाद डिस्पेंसरी विभाग में नर्स के पद पर भर्ती किया गया। शुरुआती दिनों में वह घायल सैनिक के घाव पर मरहम पट्टी करती थीं लेकिन राजामणि इससे संतुष्ट नहीं थीं वह इससे अधिक कुछ करना चाहती थीं। 

और पढ़ेंः बात भारत की आज़ादी की लड़ाई में शामिल कुछ गुमनाम महिला सेनानियों की। #IndianWomenInHistory

और बन गई युवा जासूस

एक दिन उन्होंने कुछ नागरिकों को ब्रिटिश सैनिकों के साथ पैसे के बदले सूचना साझा करते हुए देखा। उन्होंने इसकी जानकारी नेता जी को दी। नेता जी उस समय रंगून शहर से पांच किलोमीटर दूर एक बेस कैंप में थे। नेता जी राजामणि की बुद्धि और तेजी से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उन्हें एनआईए की झांसी की रानी रेजीमेंट में नियुक्त कर दिया। वहां उन्हें कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में अन्य महिला वालंटियर के साथ मिलिट्री ट्रेनिंग मिली। 

राजामणि ने सेना के इंटेलिजेंस विभाग के साथ काम किया। वह सेना से सबसे कम उम्र में जुड़ी और साथ में महिला जासूस भी बनीं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय, राजामणि को कोलकत्ता में ब्रिटिश सैन्य अड्डे में एक कार्यकर्ता के रूप में जासूसी के लिए भेजा गया। जहां वह अंग्रेज़ों की योजनाएं और रहस्य जान पाएं और आईएनए को दे सकें। उन्होंने साल 1943 में अंग्रेजों के द्वारा नेता जी की हत्या की योजना को उज़ागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

और पढ़ेंः कवयित्री ही नहीं एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं सुभद्रा कुमारी चौहान|#IndianWomenInHistory

लड़के का भेष धारण कर इकठ्ठा की जानकारी

राजामणि ने अन्य महिला सहयोगियों के साथ मिलकर भेष बदलकर अंग्रेजों के खिलाफ काम किया। उन्होंने लड़का बनकर अंग्रेजों की भारत के खिलाफ योजनाओं की जानकारी हासिल की। जब वह लड़के का रूप धारण करे हुई थी तो उनका नाम मणि था। एक बार उनकी एक सहयोगी ब्रिटिश सैनिक ने पकड़ लिया था। उसे बचाने के लिए राजामणि ने नृतकी की वेषभूषा पहनकर अंग्रेजों के शिविर में घुसपैठ की। उन्होंने ब्रिटिश सैनिक को नशीला पदार्थ खिलाया और अपनी सहयोगी को मुक्त करा दिया।

जब वे अपनी साथी को भगा रही थी ब्रिटिश गार्ड ने राजामणि को पैर में गोली मार दी थी लेकिन फिर भी वह वहां से निकलने में सफल रही। गाोली के घाव के बावजूद वह भागती रहीं और अंग्रेजों से बचने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गई। सर्च ऑपरेशन की वजह से वह घाव पर बिना मरहम पट्टी और भूखी-प्यासी रही। तीन दिन बाद वह अपनी साथी के साथ सकुशल आज़ाद हिंद फौज के कैंप पर लौटी। तीन दिन तक इलाज न मिलने की वजह से गोली के घाव ने उन्हें हमेशा के लिए लंगड़ाहट बख्श दी। राजामणि इस चोट को अपने जासूसी दिनों की प्यारी याद मानती थी। नेता जी उनके काम से बहुत खुश हुए और उनकी प्रंशसा की। जापानी सम्राट ने स्वयं उन्हें मेडल से सम्मानित किया और साथ में झांसी की रानी रेजीमेंट में लेफ्टिनेट की रैंक दीं। 

और पढ़ेंः उषा मेहता : स्वतंत्रता आंदोलन की सीक्रेट रेडियो ऑपरेटर| #IndianWomenInHistory

जब वे अपनी साथी को भगा रही थी ब्रिटिश गार्ड ने राजामणि को पैर में गोली मार दी थी लेकिन फिर भी वह वहां से निकलने में सफल रही। गाोली के घाव के बावजूद वह भागती रही और अंग्रेजों से बचने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गई। सर्च ऑपरेशन की वजह से वह घाव पर बिना मरहम पट्टी और भूखी-प्यासी रही। तीन दिन बाद वह अपनी साथी के साथ सकुशल आजाद हिंद फौज के कैंप पर लौटी। 

युद्ध के बाद का जीवन

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो की जीत के बाद नेता जी ने आईएनए को भंग कर दिया था। राजामणि के परिवार ने सृमद्धि खो दी थी और 1957 में वह अपने परिवार के साथ भारत वापिस आ गई थी। भारत आकर उन्होंने जीवन गुमनामी और गरीबी में बिताया। लंबे समय तक अनुभवी स्वतंत्रता सेनानी ने चेन्नई में एक कमरे में अकेले जीवन व्यतीत किया। साल 2005 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने उन्हें एक घर दिया जिसे राजामणि ने नेता जी की साथ की तस्वीरों से सजाया। 

तस्वीर साभारः Indiatimes.com

वृद्धावस्था के बावजूद राष्ट्र के प्रति सेवा का भाव उनका कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने बूढ़ी उम्र में भी देश के प्रति कुछ करने के जज्बे की वजह से वह दर्जी की दुकान पर जाकर बचा कपड़ा इकठ्ठा किया करती थीं। वह इस सामान का इस्तेमाल कपड़े बनाने के लिए किया करती थीं जिसे वह अनाथालय और वृद्धा आश्रम में दान दिया करती थीं। यही नहीं 2006 में सुनामी के दौरान उन्होंने अपनी मासिक पेंशन रिलीफ फंड में दे दी थी। 

साल 2008 में उन्होंने अपनी सेना की वर्दी और बिल्ले, नेताजी सुभाष चंद्र बोस म्यूजियम, कटक उड़ीसा को दान में दे दिए थे। साल 2018 में राजामणि ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। सरस्वती राजामणि वह नाम हैं जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपने योगदान के लिए कभी भुलाया नहीं जा सकता है। तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद उन्होंने अपने हौसले मजबूत रखे और देश के लिए कुछ करने का जज्बा हमेशा कायम रखा।

और पढ़ेंः दुर्गा देवी : क्रांतिकारी महिला जिसने निभाई थी आज़ादी की लड़ाई में अहम भूमिका | #IndianWomenInHistor


स्रोतः

Livehistoryindia.com

The Better India

YourStory

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content