समाजख़बर एडिडास के विज्ञापन पर रोक और ‘ब्रेस्ट’ पर बाज़ार की सेंसरशिप

एडिडास के विज्ञापन पर रोक और ‘ब्रेस्ट’ पर बाज़ार की सेंसरशिप

एडवरटाइजिंग वॉचडॉग ने प्राप्त शिकायतों में पाया है कि इस विज्ञापन में व्यापक नग्नता को बढ़ावा दिया गया है। महिलाओं के शरीर को सेक्शुलाइज किया गया है। कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या यह पोस्टर दिखाने के लिए सही है जहां उनके बच्चे भी इसे देख सकते हैं। ट्वीटर ने भी यह कहा है कि कुछ यूजर ने यह पोस्ट रिपोर्ट की है।

महिलाओं और उनके शरीर पर बहस बहुत होती है लेकिन वह बहस करनेवाला कौन है ये जानना बहुत ज़रूरी है। एक ऐसी ही बहस प्रगतिशील और विकसित कहे जानेवाले देश ब्रिटेन से शुरू हुई है। हाल ही में मशहूर स्पोर्ट्स कंपनी एडिडास स्पोर्ट्स ब्रा के विज्ञापन पर लगी रोक के बाद से महिलाओं के शरीर, उसका विज्ञापनों में गलत प्रयोग, उनकी सहजता, सोशल मीडिया सेंसरशिप आदि कई तरह की बहसों को जन्म दे दिया है। एडिडास स्पोर्ट्स ब्रा के विज्ञापन में महिलाओं की नग्न छाती की तस्वीरों को दिखाने को अश्लीलता और हानिकारक बताते हुए यह रोक लगाई गई है। 

इस साल के शुरू में एडिडास ने #SupportsIsEverything कैंपेन के तहत स्पोर्ट्स ब्रा इन ऑल शेप एंड साइज लॉन्च किया था। इस हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए कंपनी की ओर से कहा गया था कि हम विश्वास रखते हैं कि सभी महिलाओं की ब्रेस्ट को सपोर्ट और कम्फर्ट की आवश्यकता है जिस वजह से हमने 43 स्टाइल की नई ब्रा रेंज लॉन्च की है। इस कैंपेन में 25 ब्रेस्ट के अलग-अलग साइज और शेप की तस्वीरों का एक कोलॉज लगाया हुआ था जिसे यूके एडवरटाइजिंग वॉचडॉग की तरफ से बैन किया गया है। 

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क्या है पूरा मामला

इंटरनेट पर मौजूद एडिडास के ऐड में महिलाओं की छाती की बिना कपड़ों में तस्वीर और जिसमें बहुत से रंग और आकार का इस्तेमाल किया गया है जिसे बैन कर दिया गया है। बीबीसी में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक एडिडास स्पोर्ट्स ब्रा की रेंज की विविधता को बढ़ावा देने के लिए दर्जनों स्तनों की विशेषता वाले अभियान को यूके की एडवरटाइजिंग अथॉरिटी ने न्यूडिटी और वीमन बॉडी का ऑब्जेक्टिफिकेशन कहकर रोक लगाई है। एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (एएसए) के अनुसार इस कैंपेन की एक तस्वीर पर 24 शिकायत दर्ज होने के बाद यह फैसला लिया गया है।

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एडवरटाइजिंग वॉचडॉग ने प्राप्त शिकायतों में पाया है कि इस विज्ञापन में व्यापक नग्नता को बढ़ावा दिया गया है। महिलाओं के शरीर को सेक्शुअलाइज़ किया गया है। कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या यह पोस्टर दिखाने के लिए सही है जहां उनके बच्चे भी इसे देख सकते हैं। ट्विटर ने भी यह कहा है कि कुछ यूज़र्स ने यह पोस्ट रिपोर्ट की है। एएसए ने कहा है कि उसे नहीं लगता है कि जिस तरह से महिलाओं को ट्वीट में दिखाया गया वह यौन रूप से स्पष्ट था या आपत्तिजनक था। लेकिन उन्होंने पाया है कि यह पोस्टर अनटार्गेट मीडिया के लिए योग्य नहीं है क्योंकि वहां बच्चे उन्हें देख सकते हैं। 

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सोशल मीडिया पर महिलाओं की ब्रेस्ट पिक्चर को लेकर बैन और ब्लॉक का सिलसिला बहुत समय से चल रहा है। फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसी सभी सोशल साइट्स पर महिलाओं की ब्रेस्ट, निप्पल की तस्वीरों को लेकर आपत्ति जताई गई है और पोस्ट करने वाले को कुछ समय के लिए ब्लॉक तक किया गया है। कई केसों में बच्चे को दूध पिलाती माँओं की तस्वीरों तक को हटाया गया।

एडिडास ने रखा अपना पक्ष

वहीं, अपना पक्ष रखते हुए एडिडास यूके ने कहा है कि इन तस्वीरों का उद्देश्य विभिन्न अलग-अलग शेप और साइज को सेलिब्रेट करना है। तस्वीर के माध्यम से विभिन्नता दिखाना और ब्रा के महत्व को समझाने से है। उन्होंने कहा है कि मॉडल की सुरक्षा और पहचान के लिए उनके चेहरों को क्रॉप कर दिया गया है। सभी मॉडल ने अपनी मर्ज़ी से इस कैंपेन में हिस्सा लिया है और हमारे उद्देश्य का समर्थन किया है।  

कैंपेन के समर्थन में राय

जहां एक ओर विज्ञापन पर 24 शिकायत दर्ज होने के बाद बैन लगाने का फैसला लिया गया है वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर एक वर्ग इस विज्ञापन की प्रंशसा भी कर रहा है। इंस्टाग्राम पर कुछ लोग इस कदम की सराहना कर रहे हैं। कैंपेन को रूढ़िवादी संस्कृति के खिलाफ एक कदम बताया जा रहा है जो खासतौर एक वर्ग की सेक्शुअलिटी को कंट्रोल करने का काम करता है। इस कैंपेन के बाजार के पक्ष से अलग दूसरी बहस यह भी खड़ी हो गई है कि क्यों विज्ञापन जगत में महिलाओं के शरीर को तय पैमानों से अलग दिखाने पर हंगामा खड़ा हो जाता है।   

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सोशल मीडिया और सेंसरशिप 

सोशल मीडिया पर महिलाओं की ब्रेस्ट पिक्चर को लेकर बैन और ब्लॉक का सिलसिला बहुत समय से चल रहा है। फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसी सभी सोशल साइट्स पर महिलाओं की ब्रेस्ट, निप्पल की तस्वीरों को लेकर आपत्ति जताई गई है और पोस्ट करने वाले को कुछ समय के लिए ब्लॉक तक किया गया है। कई केसों में बच्चे को दूध पिलाती माँओं की तस्वीरों तक को हटाया गया। ब्रेस्ट कैंसर की जागरूकता से जुड़ी तस्वीरों के लिए भी सेंसरशिप का इस्तेमाल किया गया। सोशल साइट्स पर फ्री निप्पल मूवमेंट तक चलाया गया और तर्क दिया गया कि सोशल मीडिया पर एक पुरुष और महिला के लिए अलग-अलग मानदंड बनाए हुए हैं। यहां एक पुरुष बिना किसी बाधा सेंसरशिप के डर से अपनी तस्वीरें डाल सकता है।

फ्री द निप्पल मूवमेंट सोशल मीडिया पर बहुत ही ज्यादा चर्चा का विषय रहा है। सोशल मीडिया पर टॉपलेस महिलाओं की तस्वीरों की अनुमति दी जाएं या नहीं। सोशल मीडिया पर महिलाओं के निपल्स को सेंसर करना हिप्पोक्रेसी और गैरज़रूरी है। यहां तक की ब्रेस्ट कैंसर की जागरूकता के लिए निप्पल दिखाने वाली तस्वीरें पोस्ट की जाती हैं तो उन्हें सोशल मीडिया की पॉलिसी का उल्लघंन का हवाला देकर हटा दिया जाता है। अमेरिका में ब्रेस्ट कैंसर की जागरूकता के लिए सोशल मीडिया पर मुहीम चलाने वाली रोवीना किनक्लैड ने फेसबुक पर महिलाओं की ब्रेस्ट से जुड़ी जागरूकता और परेशानियों से जुड़ी तस्वीर डालने के बाद उन्हें नोटिस दिया गया।

इस पर रोवीना कहती हैं फेसबुक के मानक सेक्सिस्ट हैं और महिलाओं के ब्रेस्ट को सेक्शुअलाइज़ करने का काम करते हैं। महिलाओं की निपल्स की तस्वीरों पर बैन और भी अपमानजनक तब लगता है जब साल 2013 में फेसबुक ने हिंसा से जुड़े वीडियो पर प्रतिबंध हटा दिया जिसका तर्क यह दिया गया था कि ये वीडियो हिंसा के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ा सकते हैं। लेकिन यदि फोटो में महिलाओं के निप्पल दिखते हैं तो उसे अनुचित माना जाता है न कि सेक्सिज़म और ब्रेस्ट को सेक्सिज़म करने के खिलाफ मुकाबला करने का तरीका। इस तरह की सोच न केवल सोशल मीडिया की समस्या है बल्कि यह एक सामाजिक मुद्दा भी है।   

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महिलाओं की तस्वीर की सेंसरशिप एक तरह से उनकी शरीर की स्वायत्ता का विरोध है। यदि मान लीजिए एक महिला अपनी किसी तस्वीर को शेयर करती है, यदि वह न्यूड भी है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका इरादा सेक्शुअल है। एक महिला के ऐसी तस्वीर डालने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे स्वतंत्रता, स्त्रीत्व, सहजता और कला कुछ भी हो सकता है।

महिलाओं और पुरुषों के शरीर को लेकर सोच

शरीर की स्वायत्ता को लेकर बात की जाए तो महिलाओं के शरीर पर उनका हक माना ही नहीं जाता है। पितृसत्ता की यही सोच बाजार में भी प्रचलित है। यहां महिलाओं के शरीर को हर छोटी से छोटी चीज को बेचने के लिए ऑब्जेक्टिफाइ किया जाता है। दूसरी ओर एडिडास के विज्ञापन में महिलाओं के स्तन के चित्र बाज़ार की उस तस्वीर से उलट है जिसे पुरुषों द्वारा स्थापित किया गया है। डायवर्सिटी के संदेश के साथ अलग-अलग रंग और आकार उस छवि को मिटाने का काम करते हैं जो बरसों से बाजार में स्थापित किए हुए थे जिसमें आकर्षण, गोरा रंग को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। दूसरा पुरुषों की शर्टलेस तस्वीरों और विज्ञापनों में उनको एक पल में ही स्वीकार करना विज्ञापन जगत में मौजूद लिंगभेद को भी दिखाता है।   

एडिडास का कदम महज एक योजना 

हालांकि, प्रोग्रेसिव दिखने की शक्ल में यह भी पूंजीवादी बाजार की एक योजना ही है जिसमें प्रगतिशीलता का चोला पहनकर मुनाफा कमाया जाता है। बाज़ार की प्रगतिशीलता के पक्ष पर बात करते हुए वाशिंगटन पोस्ट के लेख में नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रेनी एंगेलन के अनुसार चीजों को बेचने के लिए महिलाओं के शरीर के अंगों को इस्तेमाल करने के लिए यह कुछ भी नया और अलग नहीं है। एंगलेन कहती हैं कि विज्ञापनों में जो लोग देखते हैं उससे कही ज्यादा विभिन्नता मौजूद है। वह तर्क देती हैं कि एडिडास ने ध्यान आकर्षित करने के लिए महिलाओं की छाती की तस्वीरों का एक कोलॉज बनाया और पोस्ट कर दिया है। इसमें कुछ भी खत्म करने वाला नहीं है। 

महिलाओं की तस्वीर की सेंसरशिप एक तरह से उनकी शरीर की स्वायत्ता का विरोध है। यदि मान लीजिए एक महिला अपनी किसी तस्वीर को शेयर करती है, यदि वह न्यूड भी है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका इरादा सेक्शुअल है। एक महिला के ऐसी तस्वीर डालने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे स्वतंत्रता, स्त्रीत्व, सहजता और कला कुछ भी हो सकता है। इस मुद्दे के हर पहलू से अलग एडिडास का विभिन्नता का पहलू महिलाओं के शरीर के बाज़ार के बनाए पैमानों से अलग चलने का कदम है। जिस पर बात करने की बहुत आवश्यकता है।

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तस्वीर साभारः Yahoo News UK

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