इंटरसेक्शनलजेंडर महिलाओं की भागीदारी के बिना कैसा ‘डिजिटल इंडिया’

महिलाओं की भागीदारी के बिना कैसा ‘डिजिटल इंडिया’

डिजिटल भारत में देश की औरतें इस क्रम में पुरुषों से पिछड़ती हुई नज़र आती हैं। मोबाइल फोन और इंटरनेट तक उनकी पहुंच उस तरह से नहीं है जिस तरह से पुरुषों की है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल में उन्हें जेंडर आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 

मुज़फ्फरनगर की रहनेवाली 60 वर्षीय सुनीता सोलंकी एक गृहणी हैं। स्मार्टफोन के इस्तेमाल को लेकर अपने अनुभव के बारे में बताते हुए उनका कहना है, “मेरे छोटे बेटे ने मुझे स्मार्टफोन चलाना सिखाया। मुझे हमेशा से कविता पढ़ने-लिखने का शौक रहा है। स्मार्टफोन के आने के बाद मैंने कविताएं पढ़नी और सुननी शुरू की। मैं अक्सर यूट्यूब पर कविताएं सुनती हूं। शुरुआत में यह एक करिश्मे जैसा लगता था। कितना कुछ है यहां जानने को। हर सवाल का जबाव मिल जाता है। शुरू-शुरू में फोन के इस्तेमाल को लेकर इतना उत्साहित थी, कुछ भी नया सीखती थी तो बहुत खुश हुआ करती थी।”

दुनिया में महिलाओं के साथ महज उनकी लैंगिक पहचान की वजह से भेदभाव किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश में यह और बड़ी समस्या बन जाती है। हर क्षेत्र में महज महिला होने पर उन्हें विकासक्रम में पीछे ढकेल दिया जाता है। ठीक इसी तरह सूचना के दौर में भी भारतीय महिलाएं पीछे छूट रही हैं। डिजिटल भारत में देश की औरतें इस क्रम में पुरुषों से पिछड़ती हुई नज़र आती हैं। मोबाइल फोन और इंटरनेट तक उनकी पहुंच उतनी नहीं है जितनी पुरुषों की है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल में उन्हें जेंडर आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 

भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के पास फोन होने की संभावना बेहद कम है। अगर फोन है भी तो उन तक इंटरनेट की पहुंच नहीं है। विश्व स्तर पर जारी होनेवाली कई रिपोर्ट्स इस तरह के आंकडें पेश कर चुकी हैं कि भारत में मोबाइल जेंडर गैप बड़ी संख्या में मौजूद है। जीएसएमए द मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार मोबाइल फोन के इस्तेमाल करनेवाली महिलाओं की संख्या में पिछली रिपोर्ट के मुकाबले ज्यादा अंतर नहीं आया है।

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भारत में फोन रखनेवाली महिलाओं में से 26 फीसदी के पास बेसिक फोन हैं। पुरुषों में यह दर 22 फीसदी है। 9 प्रतिशत महिलाएं फीचर फोन का इस्तेमाल कर रही है। डिजिटाइज़ेशन में बड़ी भूमिका निभानेवाले स्मार्टफोन के इस्तेमाल में महिलाएं काफी पीछे है। स्मार्ट फोन के इस्तेमाल में पुरुषों में यह दर 49 फीसद है तो केवल 26 फीसदी महिलाओं के पास स्मार्टफोन हैं।

जीएसएमए की मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार भारत में पुरुषों और महिलाओं में मोबाइल ऑनरशिप में 14 फीसदी का अंतर है। देश में 83 फीसदी पुरुषों के पास खुद का फोन है। वहीं, महिलाओं में यह दर 71 फीसदी हैं। लेकिन बात जब मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल की आती है तो महिलाओं और पुरुषों में यह अंतर बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में भारत में 41 फीसदी जेंडर गैप मौजूद है। पुरुषों में यह दर 51 प्रतिशत देखने को मिलती है वहीं, महिलाओं में केवल 30 प्रतिशत है। मोबाइल फोन में इंटरनेट के इस्तेमाल में महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस दिशा में विशेष रूप के कई तरह के बदलाव देखे जा चुके हैं। साल 2020 और 2021 के बीच महिलाओं के पास फोन रखने की दर 21 से 30 फीसदी हुई है। वहीं, पुरुषों में यह दर 42 से 45 प्रतिशत बढ़ी है। फोन की ऑनरशिप में भी पुरुषों की संख्या ज्यादा है। 

एक व्यक्ति किस तरह का फोन रखता है और उसका इस्तेमाल कैसे करता है, यह बहुत महत्वपूर्ण है। अगर वह स्मार्टफोन रखता है तो उसकी इंटरनेट तक आसान पहुंच बन पाती है या नहीं। ठीक इसी तरह रिपोर्ट में तीन तरह के फोन कैटेगरी ( बेसिक, फीचर और स्मार्टफोन) में बांटकर उसमेें महिलाओं और पुरुषों में बीच स्थित अंतर को दिखाया गया है। भारत में फोन रखनेवाली महिलाओं में से 26 फीसदी के पास बेसिक फोन हैं। पुरुषों में यह दर 22 फीसदी है। 9 प्रतिशत महिलाएं फीचर फोन का इस्तेमाल कर रही हैं। डिजिटाइज़ेशन में बड़ी भूमिका निभानेवाले स्मार्टफोन के इस्तेमाल में महिलाएं काफी पीछे हैं। स्मार्ट फोन के इस्तेमाल में पुरुषों में यह दर 49 फीसद है तो केवल 26 फीसदी महिलाओं के पास स्मार्टफोन हैं।

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भारत में स्मार्ट फोन रखने में महिलाओं में यह दर साल 2019 में 14 फीसदी थी। साल 2020 में यह दर 25 प्रतिशत तक दर्ज की गई। 2021 में केवल एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी पर 26 प्रतिशत दर्ज की गई। वहीं पुरुषों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल करने की दर 2019 में 36 प्रतिशत थी जो 2021 तक 49 प्रतिशत पहुंची है। फोन के एक सप्ताह के इस्तेमाल में भी महिलाएं पुरुषों से पीछे हैं।   

रिपोर्ट के अनुसार लोअर एंड मिडिल इनकम देशों में स्मार्टफोन और उसमें इंटरनेट के इस्तेमाल में तेजी से बढ़ावा हुआ है। हालांकि, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या सभी देशों में कम है। दक्षिण एशिया में यह अंतर ज्यादा बढ़ता हुआ दिखता है। मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल में 2017 में यह अंतर 67 प्रतिशत था जो 2020 में 36 प्रतिशत पहुंच गया था लेकिन वर्तमान में यह दर 41 प्रतिशत पहुंच गई है। 

स्मार्टफोन को लेकर ग्रामीण महिलाओं के क्या हैं अनुभव

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुटबी गाँव की रहनेवाली 42 वर्षीय रीना का कहना है, “मैंने स्मार्टफोन चलाना अभी-अभी सीखा है। तीन महीने पहले बेटी के नया फोन लेने के बाद उसने अपना फोन मुझे दे दिया। बच्चे बाहर पढ़ते हैं। घर पर खाली समय के दौरान फोन पर कई नई-नई चीजें सीख रही हूं। मैंने यूट्यूब से सिलाई करना सीखा है और तो और वॉशिंग मशीन में कुछ दिक्कत आ गई थी वह भी मैंने यूट्यूब से देखकर ही ठीक की थी। टाईपिंग नहीं होती है तो वॉयस मैसेज कर बच्चों से बात कर लेती हूं, वीडियो कॉल कर घर बैठे ही उनका कॉलेज देख लिया। पहले लोगों को फोन में लगे हुए देखती थी तो कहती थी कि पता नहीं क्या सारा दिन सब फोन में लगे रहते हैं अब समझ में आया कि इंटरनेट पर तो हर तरह की जानकारी है।”

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भारत में डिजिटल जेंडर गैप की खाई बनाने की प्रमुख वजह भारतीय पितृसत्तात्मक व्यवस्था है। इसके तहत महिलाओं और लड़कियों के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है जिसमें उन्हें फोन के इस्तेमाल करने से भी रोका जाता है। यदि वे फोन रखती हैं तो उन्हें अपने पासवर्ड परिवार के सदस्यों के साथ साझा करते पड़ते है। महिलाओं और लड़कियों के फोन पर घर के पुरुष सदस्य हमेशा निगरानी करते हैं।

डिजिटल जेंडर गैप है अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं पर अनेक किस्म की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। ठीक इसी तरह महिलाओं और लड़कियों के फोन के इस्तेमाल करने को भी मना किया जाता है। द हिंदू में प्रकाशित ख़बर के अनुसार यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में कहा गया है कि यहां एक तिहाई से कम महिलाएं इंटरनेट यूजर होने की वजह से देश में लड़कियों और महिलाओं को समाज और घर में हाशिये पर रहने का खतरा है। अगर वे डिजिटल रूप से अशिक्षित रहती हैं तो यह भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने का काम करता है। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय ग्रामीण क्षेत्र में लड़कियों को इंटरनेट के इस्तेमाल करने की रोक-टोक का ज्यादा सामना करना पड़ता है। 

भारत में मोबाइल जेंडर गैप के क्या है कारण

भारत में डिजिटल जेंडर गैप की खाई बनाने की प्रमुख वजह भारतीय पितृसत्तात्मक व्यवस्था है। इसके तहत महिलाओं और लड़कियों के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है जिसमें उन्हें फोन के इस्तेमाल करने से भी रोका जाता है। यदि वे फोन रखती हैं तो उन्हें अपने पासवर्ड परिवार के सदस्यों के साथ साझा करते पड़ते है। महिलाओं और लड़कियों के फोन पर घर के पुरुष सदस्य हमेशा निगरानी करते हैं। सीमित इस्तेमाल करने के लिए उन्हें फोन दिया जाता है। 

इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने से उन्हें रोका जाता है। बिजनेस स्टैंडर्ड के एक लेख के अनुसार पितृसत्तात्मक समाज मानता है कि फोन से लड़कियों का चरित्र खराब होता है। कई पिता और पतियों का कहना है कि फोन के इस्तेमाल करने की वजह से उनके यौन संबंध बन सकते हैं। इसी वजह से शादी से पहले लड़कियों के फोन रखने पर पाबंदी लगा दी जाती है। लड़की के पिता लड़कियों पर पैसे खर्च करने को व्यर्थ मानते हैं। आर्थिक रूप से किसी अन्य पर निर्भर होने की वजह से महिलाएं फोन और इंटरनेट की सुगम पहुंच से दूर रह जाती हैं। उनके इस तरह के प्रयोग को अतिरिक्त खर्चा बता दिया जाता है। 

भारत में परिवार के अंदर होनेवाले भेदभाव का व्यवहार उन्हें डिजिटल उपकरणों तक पहुंच बनाने से रोकता है। वर्तमान में तेजी से बढ़ती तकनीक के दौर में अगर महिलाएं पीछे रहती हैं तो यह अंतर उनके सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ा कर रहा है। डिजिटल होती दुनिया में अगर महिलाएं इससे जुड़ नहीं पाती हैं तो वह बेहतर विकल्पों से वंचित रहकर विकास में पीछे रह जाएगी। यूनिसेफ़ के अनुसार अगर लड़कियों को डिजिटल अडॉप्शन और उसके इस्तेमाल से रोका जाता है तो वह रोजगार के कम विकल्प उनके सामने होंगे। कार्यक्षेत्र में उनकी उपस्थिति पर इसका असर पड़ेगा। डिजिटल लिटरेसी, एक्सेस और ऑनलाइन सेफ्टी से इस बाधा को पार किया जा सकता है।

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तस्वीर साभारः National Herald

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