इंटरसेक्शनलजेंडर विच हंट: महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक भयानक रूप

विच हंट: महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक भयानक रूप

आज के दौर में अक्सर यह देखा जाता है कि किसी महिला को 'डायन' बताकर उस पर शोषण करने का कारण कुछ और होता है। कभी निजी दुश्मनी, तो कभी घर और ज़मीन का मामला, कभी महिलाओं को आगे न बढ़ने देने की चाह या कभी केवल महिलाओं को आसानी से निशाना बना पाने की सामाजिक छूट की वजह से महिलाएं इसका करती हैं।

भारत में विच हंट की समस्या सदियों से चली आ रही है। विच हंट में किसी महिला को डायन बताकर उसके शरीर को मुक्त करने के नाम पर, उन पर शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है। कई बार इस दौरान उनकी मौत भी हो जाती है या इस प्रक्रिया में उनकी हत्या कर दी जाती है। आम तौर पर समाज में यह धारणा मौजूद है कि यह अंधविश्वास की उपज है। लेकिन विच हंट जैसे अपराध की जड़ें सिर्फ अंधविश्वास में नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक नियमों में जकड़ी हैं जिसका सामना हमेशा से महिलाएं ही करती आई हैं। सालों पहले शुरू हुए इस कुरीति का आज स्वरूप बदल चुका है।

आज के दौर में अक्सर यह देखा जाता है कि किसी महिला को ‘डायन’ बताकर उस पर शोषण करने का कारण कुछ और होता है। कभी निजी दुश्मनी, तो कभी घर और ज़मीन का मामला, कभी महिलाओं को आगे न बढ़ने देने की चाह या कभी केवल महिलाओं को आसानी से निशाना बना पाने की सामाजिक छूट की वजह से महिलाएं इसका करती हैं। केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों का अंधविश्वास और जादू-टोने की रोकथाम के लिए मौजूदा कानून के बावजूद, आज भी विच हंट कई राज्यों में जारी है।

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विच हंट एक मामूली सामाजिक कुरीति नहीं है। यह एक गंभीर समस्या है, अपराध है जिसे सामाजिक और जातिगत भेदभाव और आर्थिक तंगी को नज़रअंदाज़ कर समझा नहीं जा सकता। साथ ही, अक्सर जिस महिला को इसका सामना करना पड़ता है, उसके पूरे परिवार को गांव से बाहर निकाल दिया जाता है। कई बार इन्हें वापस अपने ही गांव में रहने के लिए जुर्माना भरना पड़ता है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2000 से 2016 के बीच 2500 से अधिक लोगों को जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं, तथाकथित रूप से ‘डायन’ बताकर प्रताड़ित कर उनकी हत्या कर दी गई। गौरतलब हो कि महाराष्ट्र और झारखंड जैसे कई राज्यों में एंटी सुपरस्टीशन और प्रिवेंशन ऑफ़ विच प्रैक्टिसेस मौजूद है। इसके बावजूद तेलंगाना टुडे की एक खबर बताती है कि झारखंड में प्रतिदिन 3 विच हंट के मामले सामने आते है जिसमें 90 प्रतिशत महिलाएं होती हैं।

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आज के दौर में अक्सर यह देखा जाता है कि किसी महिला को ‘डायन’ बताकर उस पर शोषण करने का कारण कुछ और होता है। कभी निजी दुश्मनी, तो कभी घर और ज़मीन का मामला, कभी महिलाओं को आगे न बढ़ने देने की चाह या कभी केवल महिलाओं को आसानी से निशाना बना पाने की सामाजिक छूट की वजह से महिलाएं इसका करती हैं।

क्या है विच हंट की मूल वजह

पारंपरिक रूप से विच क्राफ्ट का अर्थ है दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए जादू या अलौकिक शक्तियों का उपयोग। विच हंट में तथाकथित विच को खोज निकालने की प्रक्रिया की जाती है। इस शब्द का इज़ात यूरोप में हुआ। मध्ययुगीन और आधुनिक यूरोप के प्रारंभिक दौर में जिन महिलाओं को डायन बताया जाता था, उनके बारे में माना जाता था कि वे अपने ही समुदाय पर हमला करती हैं। उस दौर से ही विच हंट के लिए यह धारणा प्रचलित थी कि इस अलौकिक शक्ति पर काबू किसी दूसरे सुरक्षात्मक जादू से ही पाया जा सकता है या विफल किया जा सकता है। जिन महिलाओं को संदिग्ध माना जाता था, उन्हें अपने रहने के जगह से भगा दिया जाता था, हमला किया जाता या उनकी हत्या कर दी जाती थी।

अक्सर उन पर औपचारिक रूप से मुकदमा चलाया जाता था और उन्हें सजा दी जाती थी। विच हंट की घटनाएं भारत के अलावा बुर्किना फासो, घाना, केन्या, मलावी, नेपाल और तंजानिया में भी होती हैं। आज विच हंट के रूप में बदलाव के कारण यह हिंसा का भयानक रूप बन चुका है जिसका सामना मूल रूप से महिलाएं करती हैं। अक्सर विच हंट की घटनाएं व्यक्तिगत विवादों, आपसी जलन और पड़ोसी या परिवार के सदस्यों के बीच ज़मीन या जायदाद को लेकर हो रहे लड़ाइयों से जुड़े होते हैं। गांवों में आज भी फसल का ख़राब होना, बीमारी या मौत जैसी घटनाओं को किसी अलौकिक शक्ति जैसे डायन का अभिशाप मानते हैं।

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बुनियादी सुविधाएं जैसे स्वास्थ्य और चिकित्सा की सेवाएं न होने से कारण आम लोग डॉक्टर से पहले झाड़-फूंक या जादू-टोना करने वालों की ओर रुख करते हैं। हमारे पितृसत्तात्मक समाज में आम तौर पर महिलाएं सबसे निचले पायदान पर रहती हैं। ऐसे में हाशिये पर रह रहे समुदायों की अशिक्षित और आर्थिक तंगी से जूझ रही महिलाओं को आपसी रंजिश में विच हंट का भुक्तभोगी बनाना आसान होता है। भारतीय गांवों में आज भी कई पुरुष जादू-टोना या झाड़-फूंक कर लोगों के इलाज का दावा करते हैं। लेकिन इस तथ्य के बावजूद, पितृसत्तात्मक समाज उन पर किसी अलौकिक शक्ति का प्रभाव बताकर सवाल नहीं करता।

हालांकि, आम लोग विच हंट को महज अंधविश्वास के बुनियाद पर नज़अंदाज़ कर देते हैं। लेकिन इस भयानक कुरीति के पीछे जबरदस्त जातिगत और सामाजिक ऊंच-नीच और भेदभाव काम करती है। साथ ही, लोगों का आज के दौर में झाड़-फूंक पर विश्वास का मतलब है कि सरकार अंधविश्वास जैसी समस्या को दूर नहीं कर पाई है। साथ ही, गांव में ऐसे ओझाओं का होना इस बात का प्रमाण है कि सुदूर इलाकों में डॉक्टरों और चिकित्सकों से ज्यादा ये लोग आम जनता की पहुंच में हैं और विश्वसनीय है।

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विच हंट एक मामूली सामाजिक कुरीति नहीं है। यह एक गंभीर समस्या है, अपराध है जिसे सामाजिक और जातिगत भेदभाव और आर्थिक तंगी को नज़रअंदाज़ कर समझा नहीं जा सकता। साथ ही, अक्सर जिस महिला को इसका सामना करना पड़ता है, उसके पूरे परिवार को गांव से बाहर निकाल दिया जाता है। कई बार इन्हें वापस अपने ही गांव में रहने के लिए जुर्माना भरना पड़ता है।

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा का एक रूप है विच हंट

विच हंट की प्रथा भयावह और क्रूर है। अक्सर लोगों को विशेषकर महिलाओं को समुदाय और अपने इलाके से निकाल दिया जाता है। उन्हें बदनाम और प्रताड़ित किया जाता है या हत्या कर दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में अगर वे जीवित भी रहे, तो उन्हें समुदाय से अलग जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। ओडिशा सरकार और एक्शन ऐड एसोसिएशन ने ‘विच हंटिंग इन ओडिशा’ के नाम से राज्य के 12 जिलों पर एक अध्ययन जारी किया है। यह रिपोर्ट बताती है कि किसी व्यक्ति को ‘डायन’ घोषित करने के प्रमुख कारणों में बच्चों या अन्य ग्रामीणों का स्वास्थ्य, ज़मीन हथियाने के मामले, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे और ख़राब फसल के मामले शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार 30 प्रतिशत से अधिक मामलों में पीड़ित की मृत्यु हो गई और 70 प्रतिशत मामलों में विच हंटिंग से पीड़ित और उनके परिवारों को अपना क्षेत्र छोड़ना पड़ा। यह पाया गया कि ऐसी महिलाएं विच हंट की सबसे ज्यादा सामना करती हैं, जो विधवा हैं या अपने साथी से अलग अकेले रहती हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार न सिर्फ पीड़ितों को बल्कि उनके बच्चों को सामाजिक रूप से बहिष्कृत और मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। विभिन्न अध्ययनों और रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90 से 95 प्रतिशत विच हंट के मामले महिलाओं के साथ होते हैं। आम तौर पर पुरुषों को अगर इसका सामना करना भी पड़े, तो वे प्राथमिक रूप से इसके पीड़ि नहीं होते। विच हंटिंग पर एक अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि पितृसत्तात्मक समाज में जहां जेंडर आधारित विशेषाधिकार और सुविधाएं दी जाती हैं, वहां औरतों को निशाना बनाना आम है। इन अध्ययनों से यह भी साफ़ है कि ये ऐसी महिलाएं हैं, जो सामाजिक मानदंडों के उलट चलने का प्रयास करती हैं, अपनी ज़मीन या संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा करती हैं या इनकी स्थिति गांव के दूसरे परिवारों से बेहतर होती हैं। अक्सर तथाकथित ऊंची जाति के पुरुष विच हंट को ऐसी दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ एक शक्तिशाली साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जो मुखर और साहसी हैं। ये ऐसी महिलाएं होती हैं, जो अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने में सक्षम हैं और सीधे-सीधे तरीके से जातिवाद और पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती देती हैं।

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ओडिशा सरकार और एक्शन ऐड एसोसिएशन ने ‘विच हंटिंग इन ओडिशा’ के नाम से राज्य के 12 जिलों पर एक अध्ययन जारी किया है। यह रिपोर्ट बताती है कि किसी व्यक्ति को ‘डायन’ घोषित करने के प्रमुख कारणों में बच्चों या अन्य ग्रामीणों का स्वास्थ्य, ज़मीन हथियाने के मामले, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे और ख़राब फसल के मामले शामिल हैं।

एंटी विच हंट कानून के बावजूद क्यों नहीं रुक रहा विच हंट

हालांकि कई राज्यों में एंटी सुपरस्टीशन या एंटी विच हंट कानून मौजूद है लेकिन विच हंट को पूरी तरह रोका नहीं जा सका है। उदाहरण के लिए, झारखंड में झारखंड विचक्राफ्ट प्रिवेंशन एक्ट के होने के बावजूद, द वायर में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल लगभग 40-50 लोग विच हंट का सामना करते हैं जिनमें ज्यादातर महिलाएं होती हैं। साल 2019 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े के अनुसार झारखंड विच हंट के मामलों में देश में तीसरे स्थान पर था। विभिन्न राज्यों के मौजूदा कानून विच हंट के शिकार हुए लोगों के विशिष्ट जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं।

एनसीआरबी में विच हंट से जुड़े हिंसा के मामलों में सिर्फ हत्या दर्ज हैं जहां विच हंट को कारण के रूप में दिए जाने का प्रावधान है। वहीं, विच हंट अंधविश्वास से जुड़े होने के बाद भी हमारा कानून अंधविश्वास को खत्म करने या इस पर काबू पाने की बात नहीं करता। विच हंट के शिकार लोगों को पीटा जाता है, जलाया जाता है, मानव मल खाने के लिए मजबूर किया जाता है और बलात्कार या यौन शोषण भी किया जाता है। पीड़ितों को अक्सर बहिष्कृत किया जाता है और कई बार हत्या कर दी जाती है। लेकिन हमारा कानून ऐसी हिंसा से पीड़ितों की सुरक्षा की बात नहीं करता।

न ही विच हंट के शिकार जीवित लोगों की पुनर्वास, आजीविका, समाज में दोबारा स्थान, मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य की बात करता है। ओडिशा सरकार और एक्शन ऐड के रिपोर्ट अनुसार बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में विच हंट कानून किसी भी व्यक्ति को ‘डायन’ बताने जैसे प्रारंभिक प्रक्रिया को अपराध मानते हैं। लेकिन अलग-अलग अपमानजनक नामों से पुकारना, पीड़िता को गाली देना और अश्लील गानों के कारण लगने वाली चोट को साधारण मानते हैं। साथ ही, पथरी, मुंडन, चेहरे का काला पड़ जाना, जबरन मल-मूत्र का खिलाने को भी साधारण चोट के रूप में ही माना जाता है। ओडिशा सरकार और एक्शन ऐड की रिपोर्ट को माने तो, केवल 69 फीसद मामलों में पुलिस की जांच, गिरफ्तारी या करवाई हुई। इस रिपोर्ट में राज्य भर से विच हंट के 100 मामलों पर अध्ययन किया गया, जिसमें 27 प्रतिशत मामले बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण हुए, 43 से अधिक परिवार में वयस्क सदस्य के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के कारण और 24.5 मामलों में कोई निर्दिष्ट कारण नहीं पाया गया। वहीं, 5 प्रतिशत मामले ज़मीन हथियाने और फसल खराब होने से संबंधित थे।

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तस्वीर साभार: Hindustan Times

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