प्रिय पाठक, यह लेख पढ़ने के लिए मुफ्त है और मुफ्त ही रहेगा लेकिन इसका उत्पादन करना मुफ्त नहीं है। अगर आप उस काम का समर्थन करना चाहते है जो उच्च गुणवत्ता वाले नारीवादी मीडिया कंटेंट को प्रकाशित करने वाली एक एक्टिविस्ट सुधा वर्गीस कहती हैं, “शिविरों में रहने के कुछ दिनों के भीतर, लोगों को पता चल जाता है कि उनके बगल में कौन रहता है और वह कहां का है।” वर्गीस कहती हैं कि शिविरों में यौन उत्पीड़न और हिंसा के मामले सामने आए हैं, जिसमें युवा लड़कियों और महिलाओं का इसका शिकार बनाया गया। बिहार में महिलाओं पर बाढ़ के प्रभाव पर 2016 के एक अध्ययन में भी इसी तरह के उदाहरण मिले। 16 वर्षीया रेखा यादव ने शोध के लेखक को बताया, “हमें छेड़खानी और उत्पीड़न की समस्या का सामना करना पड़ा क्योंकि हमारे माता-पिता ने हमें घर में अकेला छोड़ दिया था और कोई सुरक्षा नहीं थी।”
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अधिक शोध और लक्षित नीतियों की आवश्यकता
विश्व स्तर पर, विभिन्न अध्ययनों ने महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को बढ़ाने में जलवायु परिवर्तन की भूमिका पर प्रकाश डाला है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की 2020 की एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे पर्यावरण में गिरावट, लिंग आधारित हिंसा के विभिन्न रूपों जैसे, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और जबरन वेश्यावृत्ति की स्थिति को बदतर कर सकती है। दक्षिण एशिया में 2010 के एक अध्ययन ने, श्रीलंका में लिंग आधारित हिंसा पर 2004 हिंद महासागर की सुनामी के प्रभाव को देखा, जबकि 2020 में प्रकाशित शोध ने पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में बाढ़ और हिंसा के बीच इसी तरह के संबंधों का पता लगाया। दोनों अध्ययनों में पाया गया कि इस तरह की घटनाओं के बाद महिलाओं को शारीरिक, भावनात्मक और यौन हिंसा के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ता है।
इस बीच भारत में 2020 के एक अध्ययन ने 2004 की सुनामी और अंतरंग साथी की तरफ से होनेवाली हिंसा के बीच के संबंध को देखा, जबकि 2018 के एक पेपर ने दिखाया कि कैसे दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में वर्षा परिवर्तनशीलता और भूजल की कमी के कारण अधिक बोरवेल खोदने की जरूरत होती है, और इसकी लागत की भरपाई के लिए महिलाओं को अपने आभूषणों से हाथ धोना पड़ रहा है। यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया में जेंडर एंड डेवलपमेंट की प्रोफेसर और पेपर की लेखकों में से एक, नित्या राव, कहती हैं, “यह महिलाओं से पुरुषों की तरफ शिफ्ट हो रही एक उपयुक्त शक्ति है।” ये छोटे अध्ययन अप्रत्यक्ष संबंधों को उजागर करते हैं, शोधकर्ताओं का कहना है कि इसके पीछे के प्रत्यक्ष संबंधों को सामने लाना असंभव है क्योंकि कई कारक हिंसा की घटनाओं को प्रभावित करते हैं। अनुसंधान और आंकड़ों की कमी, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी लिंग आधारित हिंसा के लिए ट्रिगर्स की समझ में बाधा बन रही है।
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इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी में रिसर्च डायरेक्टर और ऐजंगक्ट एसोसिएट प्रोफेसर अंजल प्रकाश बताते हैं कि अपेक्षाकृत कम शोधकर्ता लैंगिक मुद्दों पर काम करते हैं। वह आंकड़े एकत्र करने की कठिनाइयों पर भी प्रकाश डालते हैं: “इन मुद्दों का पता लगाने के लिए किसी भी शोधकर्ता के लिए लैंगिक आंकड़ों को अलग-अलग करना होगा और इसमें ऐसे संकेतक शामिल होने चाहिए जो सामाजिक असमानता को उजागर करते हैं। ”
वहीं, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में कॉलेज ऑफ सोशल वर्क में एक असिस्टेंट प्रोफेसर और भारतीय सुनामी प्रभाव अध्ययन की लेखक स्मिता राव ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की संरचना और कार्यप्रणाली में बदलाव के क्रमिक दौर की वजह से देश का भारत में स्वास्थ्य, विवाह और घरेलू हिंसा पर आंकड़ों का सबसे व्यापक स्रोत – आंकड़ों की तुलना कठिन हो गई। साथ ही, इस सर्वेक्षण ने राज्य स्तर पर महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर आंकड़े प्रदान किये, जिससे अधिक बारीक स्तरों पर प्रभावों को समझना मुश्किल हो गया।
जलवायु परिवर्तन और आपदाओं पर वर्तमान सरकार की नीतियों में भी लैंगिक दृष्टिकोण का अभाव है। बाढ़ पर हाल ही में जारी संसदीय रिपोर्ट में महिलाओं का उल्लेख नहीं है, जबकि जलवायु परिवर्तन पर 28 कार्य योजनाओं में से 43 फीसदी में लिंग का कोई महत्वपूर्ण उल्लेख नहीं है। यहां तक कि जो नीतियां लिंग को संबोधित करती हैं, वे महिलाओं को एक श्रेणी के रूप में देखती हैं, और यह विश्लेषण करने में विफल रहती हैं कि लिंग, हाशिए के अन्य रूपों के साथ कैसे प्रतिच्छेद करता है। नित्या राव कहती हैं: “भारत के संदर्भ में, जाति (भी) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आखिरकार, यह असमान शक्ति और शक्ति संबंधों के बारे में है।” वह कहती हैं कि जलवायु संबंधी आपदाएं, दुनिया भर में महिलाओं के लिए बड़ी कीमत पर उन संबंधों को और अधिक असमान बना रही हैं।
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इस आलेख में कुछ लोगों के नाम उनकी गोपनीयता बनाए रखने के लिए बदल दिए गए हैं।
यह लेख मूल रूप से द थर्ड पोल हिंदी पर प्रकाशित हुआ था जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं