समाजख़बर आज भी टीनएज प्रेग्नेंसी के सबसे प्रमुख कारणों से एक है बाल विवाह

आज भी टीनएज प्रेग्नेंसी के सबसे प्रमुख कारणों से एक है बाल विवाह

अध्ययन के अनुसार आधे से अधिक माता-पिता और सास-ससुर ने बाल विवाह प्रथा का समर्थन किया हैं। 59 प्रतिशत लोगों ने माना है कि बाल विवाह एक ज़रूरी परंपरा है।

भले ही भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए कानून मौजूद है, लेकिन इस प्रथा को आज भी हमारे पितृसत्तात्मक समाज में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। हमारा समाज बाल विवाह का समर्थन करता दिखता है। नतीजतन, शादी के बाद बाल वधूएं छोटी उम्र में ही गर्भवती भी हो जाती हैं। इस बात की तस्दीक करती हाल में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर पांच में से तीन बाल वधूएं किशोरावस्था में ही गर्भवती हो जाती हैं। गैर-सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की ‘चाइल्ड मैरिज इन इंडिया‘ के नाम से प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कम उम्र में शादी के कारण लड़कियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। 

क्राई द्वारा यह अध्धयन आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा के चार ज़िलों चित्तूर, चंदौली, परभणी और कंधमाल के आठ ब्लॉक के 40 गांवों में किया गया है। अध्ययन के अनुसार आधे से अधिक माता-पिता और सास-ससुर ने बाल विवाह प्रथा का समर्थन किया है। 59 प्रतिशत लोगों ने माना है कि बाल विवाह एक ज़रूरी परंपरा है। अध्ययन में पाया गया है कि केवल 16 प्रतिशत माता-पिता और सास-ससुर और 34 प्रतिशत बाल वर और वधूओं को ही बाल विवाह के नकारात्मक परिणाम के बारे में पता था।

यूएनएफपीए के अनुसार विकासशील देशों में हर दिन 18 साल से कम उम्र की 20,000 लड़कियां बच्चों को जन्म देती हैं। भारत में छोटी उम्र में गर्भावस्था की समस्या भी लगातार बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग सात प्रतिशत महिलाएं 15-19 साल की उम्र में मां बन गई थीं। किशोरावस्था में गर्भधारण की दर ग्रामीण क्षेत्र में (7.9) और शहरी क्षेत्र (3.8) प्रतिशत है।

क्राई के अध्ययन के अनुसार आधे से अधिक माता-पिता और सास-ससुर ने बाल विवाह प्रथा का समर्थन किया है। 59 प्रतिशत लोगों ने माना है कि बाल विवाह एक ज़रूरी परंपरा है। अध्ययन में पाया गया है कि केवल 16 प्रतिशत माता-पिता और सास-ससुर और 34 प्रतिशत बाल वर और वधूओं को ही बाल विवाह के नकारात्मक परिणाम के बारे में पता था।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार किशोर गर्भावस्था की वजह से हर साल भारत को 7.7 अरब यूएस डॉलर का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकलन के अनुसार किशोर गर्भावस्था की वजह से भारत को जीडीपी में 12 प्रतिशत का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। किशोरावस्था में गर्भधारण की प्रमुख वजहों में बाल विवाह, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की शिक्षा में कमी, कम उम्र में बच्चे पैदा करने दबाव, यौन हिंसा, गर्भनिरोधक की जानकारी का अभाव या उस तक पहुंच न होना शामिल हैं। आज भी महिलाओं के अस्तित्व को बच्चे पैदा करने तक ही सीमित रखना भी इसकी एक प्रमुख वजह है। 

कम उम्र में शादी है एक बड़ी वजह

भारत सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का मसौदा पेश किया जा चुका है। इससे अलग सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि भारत में कम उम्र में शादी का चलन लगातार बना हुआ है। परंपरा, रिवाज, लड़कियों को बोझ मानने की सोच की वजह से बाल विवाह आज भी लगातार जारी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार पिछले पांच सालों में भारत में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले शादी कर दी गई थी। शादी की कानूनी उम्र तय होने के बावजूद हर साल समय से पहले बच्चों की शादी करने के आंकड़े हमारे सामने आते रहते हैं।

किशोरावस्था में गर्भधारण की प्रमुख वजहों में बाल विवाह, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की शिक्षा में कमी, कम उम्र में बच्चे पैदा करने दबाव, यौन हिंसा, गर्भनिरोधक की जानकारी का अभाव या उस तक पहुंच न होना शामिल हैं। आज भी महिलाओं के अस्तित्व को बच्चे पैदा करने तक ही सीमित रखना भी इसकी एक प्रमुख वजह है। 

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) की साल 2022 की रिपोर्टस्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन ‘के अनुसार कम उम्र में शादी युवा लड़कियों के बच्चे के जन्म को लेकर निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। उदाहरण के तौर पर एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार में 15 से 19 साल की हर पांच में से एक लड़की ने शादी के तुरंत बाद ससुराल वालों की ओर से बच्चे का दबाव का सामना किया है। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारत में शादी के तुरंत बाद किशोरियों पर मां बनने का दबाव डाला जाता है। इस स्थिति में लड़कियों की सहमति बिल्कुल मायने नहीं रखती है। बच्चे के दबाव की वजह से उन्हें यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। 

स्वास्थ्य पर क्या है असर

क्राई की रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में शामिल केवल 51 प्रतिशत बाल वधुओं ने छोटी उम्र में गर्भावस्था से जुड़े जोखिम के बारे में जागरूकता की बात कही है। छोटी उम्र में गर्भवती होने की जानकारी के मामले में ओडिशा में सबसे ज्यादा कमी देखी गई है। यहां केवल 13 प्रतिशत बाल वधू ही इसके बारे में जानती थीं। जल्द गर्भावस्था से होनेवाले जोखिम में 80 प्रतिशत बाल वधुओं ने माना है कि इससे जन्म के समय बच्चे का वजन कम हो सकता है। 69 फीसदी बाल वधुओं ने छोटी उम्र में गर्भवती होने की वजह से एनीमिया यानी शरीर में खून की कमी की शिकायत की बात भी स्वीकार की है। 63 प्रतिशत ने डिलीवरी के समय परेशानी की बात भी कही है।

मेरठ में निजी क्लीनिक चलानेवाली डॉ सरिता त्यागी का कहना है, “टीनएज प्रेगनेंसी की सबसे पहली समस्या यह है कि छोटी उम्र में उनका शरीर इसके लिए तैयार नहीं होता है। उनके शारीरिक अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं। टीन प्रेगनेंसी में एनीमिया की बहुत ज्यादा परेशानी होती है। इसके अलावा बल्ड प्रेशर, समय से पहले डिलीवरी, बच्चों का कम वजन जैसी परेशानी सामने आती है। एनीमिया की वजह से टीन प्रेगनेंसी में डिलीवरी के दौरान अधिक ब्लीडिंग की वजह से माँ की जान को खतरा बन जाता है। यही नहीं, अगर बच्चे की डिलीवरी के दौरान ज्यादा परेशानी आ रही है तो कई विषम परिस्थितयों में गर्भाशय निकालने तक की स्थिति आ जाती है।”

कुपोषण की समस्या को बढ़ाने में किशोर गर्भावस्था भी योगदान है। किशोरावस्था में गर्भधारण के कारण माँ के साथ-साथ बच्चे के भी कुपोषित होने की संभावना होती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार किशोर अवस्था मे मां बनना लड़कियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और अधिकारों को प्रभावित करता है। किशोर गर्भधारण की वजह से एनीमिया, यूटीआई, समय से पहले डिलीवरी और नवजात की मौत का खतरा बना रहता है। हेल्थलाइन के अनुसार छोटी उम्र में गर्भवती होने के कारण माँ की मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। इस वजह से किशोर माँओं को चिंता, अवसाद और पैनिक अटैक का सामना करना पड़ता है।

जल्दी शादी होने की वजह से अनेपक्षित गर्भधारण की संख्या भी बढ़ जाती है। अनेपक्षित गर्भावस्था को खत्म करने के लिए असुरक्षित अबॉर्शन का सहारा लिया जाता है। भारत में मातृत्व मृत्यु दर की तीसरी सबसे बड़ी वजह असुरक्षित अबॉर्शन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साल 2019 तक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 15-19 साल तक की किशोरियों ने अनुमान के तौर पर 21 मिलियन गर्भ हर साल धारण किए। इनमें से लगभग आधे अनपेक्षित थे। अनुमान के अनुसार इनमें से 12 मिलियन ने जन्म लिया है।

मेरठ में निजी क्लीनिक चलानेवाली डॉ सरिता त्यागी का कहना है, “टीनएज प्रेगनेंसी की सबसे पहली समस्या यह है कि छोटी उम्र में उनका शरीर इसके लिए तैयार नहीं होता है। उनके शारीरिक अंग पूरी तरह से विकसित नहीं हुए होते हैं। ख़ासतौर पर उनके जननांग अंग जैसे गर्भाश्य का पूरा विकास नहीं हो पाता है जिससे कि वे गर्भावस्था को सही तरीके से पूरा कर सकें। टीन प्रेगनेंसी में एनीमिया की बहुत ज्यादा परेशानी होती है। इसके अलावा बल्ड प्रेशर, समय से पहले डिलीवरी, बच्चों का कम वजन जैसी परेशानी सामने आती है। एनीमिया की वजह से टीन प्रेगनेंसी में डिलीवरी के दौरान अधिक ब्लीडिंग की वजह से माँ की जान को खतरा बना जाता है। यही नहीं, अगर बच्चे की डिलीवरी के दौरान ज्यादा परेशानी आ रही है तो कई विषम परिस्थितयों में गर्भाशय निकालने तक की स्थिति आ जाती है। इसके अलावा कम उम्र और सेक्स एजुकेशन की जानकारी के अभाव की वजह से यौन संचारित रोग होने का खतरा भी बना रहता है।”  

गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी और पहुंच

यह सच है गर्भनिरोधक पर खुलकर बात करना भारतीय समाज में आज भी वर्जित है। क्राई के अध्ययन में शामिल बाल वधुओं में बड़ी संख्या में गर्भनिरोधक की जानकारी का अभाव पाया गया है। केवल 17 प्रतिशत बाल वधुओं ने पहले बच्चे के जन्म से पहले किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया था। वहीं, केवल 28 प्रतिशत बाल वधुओं ने गर्भनिरोधक के इस्तेमाल की बात कही हैं। महिला या पुरुष की नसंबदी के बारे में जानकारी के सवाल में केवल 49 प्रतिशत बाल वधुओं ने इसकी जानकारी के बारे में हाँ की है।

छोटी उम्र में शादी होने के बाद बड़ी संख्या में किशोर जोड़ो में गर्भनिरोधक की पहुंच और जानकारी के अभाव की बात कई आंकड़े स्पष्ट करते हैं। भारत में सेक्स एजुकेशन की कमी भी इसका एक बड़ा कारण है। दूसरी ओर गर्भनिरोधक की ज़िम्मेदारी आज भी महिलाओं पर डाल दी जाती है। गर्भनिरोधक की मांग या इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की मोरल पुलिसिंग भी की जाती है। बच्चे पैदा करने को लेकर महिलाओं की एजेंसी को पितृसत्तात्मक समाज हमेशा से नकारता आया है। एनएफएचएस-5 के डेटा के अनुसार केवल 19 प्रतिशत विवाहित किशोर और 32 प्रतिशत युवा महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं।

गटमैकर इंस्टिट्यूट के अनुसार भारत में गर्भावस्था से बचने के लिए प्रजनन आयु की सभी महिलाओं (27 प्रतिशत) में से किशोर महिलाओं में (71 प्रतिशत) आधुनिक गर्भनिरोधक की ज्यादा आवश्यता है। यही नहीं, ग्रामीण क्षेत्र में 18 साल की उम्र से कम युवा लड़कियां जो गर्भावस्था से बचना चाहती है उनमें यह मांग और अधिक बढ़ जाती है। सेक्स और गर्भनिरोधक के बारे में खुलकर बात न करना और आसान पहुंच न होने की वजह से भारत में गांव हो या शहर दोंनो ही क्षेत्रों में गर्भनिरोधक की ज़रूरत को पूरा करना भी एक कल्पना जैसा लगता है।  

किशोर गर्भाधारण सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़ी हुई समस्या नहीं है बल्कि यह एक सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक समस्या भी है जो कई स्तरों पर किशोर जोड़ों के जीवन को प्रभावित करती है। कम उम्र में शादी और उसके बाद बच्चे होने से उन्हें उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। इस वजह से किशोर और किशोरियों की शिक्षा प्रभावित होती है। अशिक्षित होने की वजह से वे अपने जीवन में आगे बढ़ने से दूर हो जाते हैं। अशिक्षा की वजह से आर्थिक स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं हो पाती है। जानकारी के अभाव की वजह से अपने जीवन के फैसले लेने से वंचित रहते हैं। इस तरह परिणामों का जीवन के हर स्तर पर प्रभाव पड़ता है।

 


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