इतिहास वीर गुंडाधुर : बूमकाल विद्रोह के जननायक

वीर गुंडाधुर : बूमकाल विद्रोह के जननायक

आदिवासियों द्वारा अंग्रेज़ों के विरुद्ध किए गए बूमकाल आंदोलन को आज़ादी की लड़ाई का हिस्सा ना मानते हुए इसे जनजाति विद्रोह तक सीमित कर दिया गया जबकि आदिवासियों की लड़ाई दोहरी थी। वह अपने जंगलों को बचाना चाहते थे। साथ ही अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद होना चाहते थे।

भारत के आदिवासी आंदोलनों (जनजाति विद्रोह) के इतिहास में साल 1910 के ‘बूमकाल विद्रोह‘ का उल्लेख बहुत ही कम जगहों पर मिलता है यही कारण है कि बाकी आदिवासी जननायकों की तरह गुंडाधुर को अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर वह पहचान और सम्मान नहीं मिल पाया जो देश के बाकी जननायकों को मिला है। गुंडाधुर का जन्म बस्तर के एक छोटे से गांव नेतानार्र में धुरवा आदिवासी समुदाय में हुआ था। वह अपने समुदाय के एक साधारण मगर साहसी युवा थे, जिसमें कई अद्भुत साहसिक गुण थे। मौजूदा समय की तरह उस समय भी बस्तर खनिज संपदा से समृद्ध था जिसके कारण यह ब्रिटिश काल में अंग्रेजों का प्रमुख औपनिवेशक केंद्र बन चुका था। बस्तर में उन दिनों राजतंत्र व्यवस्था लागू थी जो कि अंग्रेजों के अधीन होकर काम करती थी। ये दोनों ही मिलकर बस्तर की जनता पर लगातार अन्याय और अत्याचार कर रहे थे। सालों से चले आ रहे इस अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का बीड़ा गुंडाधुर और उनके साथियों ने उठाया। इसके लिए सबसे पहले समुदाय में बूमकाल सभा का आयोजन किया गया। बूमकाल