परियेरुम पेरुमल: जातिगत घृणा से भरे समाज का भयावह रूप दिखाती फिल्मBy Rupam Mishra 7 min read | Mar 24, 2023
फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने वाली महिला सिनेमेटोग्राफरBy Nootan Singh 4 min read | Mar 23, 2023
टेढ़ी लकीर: लड़कियों का लड़कियों से इश्क़ करना और फूल देना इस्मत चुग़ताई के लिखे में कितना सहज थाBy Sadaf Khan 5 min read | Mar 16, 2023
बेबी हलदरः हिंसा की बंदिशों को तोड़, घरेलू कामगार से लेखिका बनने तक का सफरBy Sarala Asthana 4 min read | Mar 3, 2023
दो बीघा ज़मीन: आखिर फ़िल्म की प्रासंगिकता खत्म क्यों नहीं हो रही है?By Rupam Mishra 7 min read | Feb 28, 2023
फिरदौसः एक औरत के सेक्स वर्कर होने की तकलीफों से बेचैन करता उपन्यासBy Pooja Rathi 5 min read | Feb 24, 2023
एक वायरल वीडियो के बहाने, ‘बिहारी’ होने के कुछ ‘ऑटोएथनोग्राफिक’ नोट्स!By Aishwarya Raj 6 min read | Feb 9, 2023
अनुपम सिंह की किताब ‘मैंने गढ़ा है अपना पुरुष’ पूर्व निर्धारित नियमों को उलट देने की खूबसूरत ज़िद!By Rupam Mishra 6 min read | Feb 6, 2023
छतरीवालीः महत्वपूर्ण मुद्दे पर कमजोर कहानी के साथ बनी एक औसत फिल्मBy Nootan Singh 5 min read | Feb 2, 2023
एक कोशिश, माया एंजेलो और सुशीला टाकभौरे की कविताओं में समानता ढूंढने कीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jan 31, 2023
बाल विवाह से लेकर घरेलू हिंसा, कठपुतली कॉलनी की मीना कैसे बनीं आज पूरे समुदाय की प्रेरणाBy Saba Khan 5 min read | Jan 12, 2023
ख़ास बात: ‘फ़ेमिनिस्ट कम्यूनिटी लाइब्रेरी’ के ज़रिये नारीवाद और एलजीबीटी+ राइट्स की बात करतीं ‘ऋतुपर्णा’By Swati Singh 8 min read | Jan 10, 2023
नारी, नायिका, नज़रिए और नेतृत्व की पेशकश फ़िल्म ‘कला’ क्यों देखी जानी चाहिए? By Swati Singh 5 min read | Jan 4, 2023