मलयालम सिनेमा पर आधारित हेमा कमेटी की रिपोर्ट को सामने लाने में ‘वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव’ ने बड़ी भूमिका निभाई है। बीते महीने 19 अगस्त को हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम सिनेमा उद्योग की एक वास्तविकता से रूबरू करवाया है जबकि इसे सबसे प्रगतिशील इंडस्ट्री माना जाता है। इस रिपोर्ट ने अन्य कई ख़ामियों के साथ महिलाओं के साथ होनेवाले यौन शोषण और दुर्व्यवहार को उजागर किया। इससे यह भी उजागर हुआ कि किस तरह से मलयालम फ़िल्म उद्योग पुरुष निर्माताओं, निर्देशकों और अभिनेताओं के एक छोटे समूह के नियंत्रण में है, जिससे दुर्व्यवहार और असमानता की संस्कृति पनपती है। इन समस्याओं के मद्देनज़र वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव (डब्ल्यूसीसी) ने मलयालम फ़िल्म उद्योग को एक समान और सुरक्षित कार्यस्थल में बदलने के उद्देश्य से हाल ही में एक सिनेमा आचार संहिता प्रस्तावित की है।
हाल ही में सात सितंबर को डब्ल्यूसीसी ने सोशल मीडिया के माध्यम से एक नोट जारी किया। इस नोट में उन्होंने लिखा, “मलयालम फ़िल्म उद्योग का सभी के लिए समान और सुरक्षित कार्यस्थल के रूप में पुनर्निर्माण करने के लिए, हम आज अपनी प्रस्तावित सिफ़ारिशों के साथ एक श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि उद्योग के सभी सदस्य एकजुटता की भावना के
साथ एक सिनेमा आचार संहिता को अपनाने के लिए आगे आएंगे, जिससे हमारे फ़िल्म उद्योग को ऑनस्क्रीन और ऑफस्क्रीन बेहतर होने में मदद मिलेगी। देखते रहिए!” मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही महिलाओं ने ‘वीमंस इन सिनेमा कलेक्टिव’ नाम के संगठन की नींव रखी थी। साल 2017 की घटना इंडस्ट्री में महिलाओं के शोषण से जुड़ी इकलौती घटना नहीं थी। इसकी जांच विस्तार से हो इसके लिए वीमंस कलेक्टिव ने केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन से मुलाकात की, जिसके बाद ही केरल सरकार ने हेमा कमेटी का गठन किया।
डब्ल्यूसीसी आचार संहिता में किन बातों को किया गया शामिल
इंडिन एक्सप्रेस में प्रकाशित जानकारी के अनुसार डब्ल्यूसीसी ने सिनेमा कोड ऑफ कन्डक्ट में यौन उत्पीड़न और लिंग, वर्ग, जाति और अन्य कारकों के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव के लिए जीरो टॉलरेन्स की नीति को शामिल करने की मांग की है। उन्होंने उल्लंघनों की शिकायत दर्ज़ कराने के लिए एक आधिकारिक फोरम को स्थापित किए जाने की मांग भी की है। उनकी मांगों में ये बातें शामिल हैं-
- POSH अधिनियम 2013 के अनुसार किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।
- लैंगिक आधार पर भेदभाव, दुर्व्यवहार या उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।
- वर्ग, जाति, धर्म, नस्ल, के आधार पर भेदभाव, पूर्वग्रह, दुर्व्यवहार या उत्पीड़न नहीं किया जाएगा।
- किसी भी नशे के प्रभाव में काम नहीं करवाया जाएगा।
- एजेंटों या प्रोडक्शन करने वाले लोगों द्वारा किसी भी तरह का कोई अवैध कमीशन नहीं लिया जाएगा।
- किसी भी व्यक्ति या संस्था द्वारा कानून का पालन करने वाले किसी भी सिनेमा कर्मी को कोई धमकी, उसके साथ मौखिक दुर्व्यवहार, ज़बरदस्ती, हिंसा, उस पर अघोषित प्रतिबंध या जबरन उसके कार्य में बाधा नहीं डाली जाएगी।
इसके अलावा, डब्ल्यूसीसी ने सोमवार को प्रस्तावित संहिता का पहला हिस्सा अपने सोशल मीडिया हैंड्स पर साझा किया, यह अनुबन्धों से जुड़ा है। इसके तहत डब्ल्यूसीसी ने प्रस्ताव दिया है कि फ़िल्म उद्योग में कार्यरत हरेक व्यक्ति के पास, चाहे उनकी भूमिका कुछ भी हो, एक अनुबन्ध होना चाहिए। इस अनुबन्ध में ये सब शामिल होगा जैसे फ़िल्म का नाम क्या है, नियोक्ता और कर्मचारी की जानकारी: कौन काम पर रख रहा है और किसे काम पर रखा जा रहा है, इसके बारे में विवरण। वेतन: कर्मचारी को कितना भुगतान किया जाएगा और भुगतान कैसे किया जाएगा। वहीं कर्मचारी की भूमिका: कर्मचारी क्या काम करेगा अनुबन्ध की अवधि: कर्मचारी फ़िल्म पर कितने समय तक काम करेगा यह भी लिखना होगा। श्रेय: फ़िल्म में कर्मचारी को कैसे श्रेय दिया जाएगा इसको भी स्पष्ट करना होगा। साथ ही, अनुबन्ध में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के बारे में एक धारा शामिल होनी चाहिए।
कितनी कारगर होगी आचार संहिता
प्रत्येक फ़िल्म कर्मचारी के लिए रोजगार अनुबंध होने से कई फ़ायदे होंगे। यह नौकरी की ज़िम्मेदारियों, वेतन और अन्य महत्वपूर्ण विवरणों को रेखांकित करके स्पष्टता प्रदान करता है, जिससे गलतफ़हमी और विवादों के निपटारे में मदद मिलती है। ये अनुबन्ध यह सुनिश्चित करके कानूनी सुरक्षा भी प्रदान करते हैं कि नियोक्ता और कर्मचारी दोनों अपने अधिकारों और दायित्वों को समझते हैं। वे निर्दिष्ट करते हैं कि कर्मचारियों को कैसे और कब मुआवजा दिया जाएगा, इससे उन्हें उनके काम के लिए उचित भुगतान मिल सकेगा।
यौन उत्पीड़न के संबंध में भी स्पष्ट दिशा-निर्देश होने से उत्पीड़न को रोकने में मदद मिलेगी। इससे मलयालम सिनेमा उद्योग में कार्यरत लोगों में स्वीकार्य और अस्वीकार्य व्यवहार क्या है, इस बारे में स्पष्टता आएगी। इससे शिकायतों के समाधान के लिए एक निष्पक्ष प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा और यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के आरोपियों पर कार्रवाई हो सकेगी। जैसा कि हमने देखा भी कि किस तरह से हेमा रिपोर्ट जारी होने के बाद से ही न केवल कुछ लोग गिरफ़्तार हुए, बल्कि कुछ और महिलाएं भी अभिनेताओं और निर्देशकों के खिलाफ़ यौन दुराचार के आरोप लगाने के लिए आगे आई हैं।
अगर इसी तरह का माहौल आगे भी रहा, तो बेशक अभिनेत्रियों में एक क़िस्म की एकजुटता की भावना आएगी और वे आगे आकार यौन दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ निडर होकर बोल सकेंगी। एक अच्छी तरह से कार्यान्वित आचार संहिता किसी भी संगठन में एक सकारात्मक, नैतिक और पेशेवर माहौल को बढ़ावा देने में योगदान दे सकती है। लेकिन सारी बात यहीं पर आकार अटक जाती है कि किसी भी आचार संहिता का अनुपालन घूम-फिरकर लोगों पर ही निर्भर करता है। मलयालम फ़िल्म उद्योग में इस आचार संहिता का अनुपालन कितनी गंभीरता से हो सकेगा यह इस पर निर्भर करेगा कि फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और मलयालम फ़िल्म उद्योग के अन्य लोग इसे कितनी गम्भीरता से लेते हैं। इसके साथ ही, हमें इस बात के लिए भी तैयार रहना होगा कि जिस तरह से मुख्यधारा के समाज में यौन उत्पीड़न की बहुत सी घटनाएं हमारी जानकारी में ही नहीं आ पातीं, उसी तरह से मलयालम सिनेमा उद्योग में भी बहुत सी घटनाएं दर्ज़ ही नहीं हो सकी है या सकेंगी और जब तक घटना की शिकायत ही दर्ज़ नहीं होगी, तब तक कार्रवाई की बात सोची भी नहीं जा सकती है।