संस्कृतिसिनेमा आईसी 814: कंधार हाइजैक पर बनी सीरीज़ के स्टीरियोटाइप और विवाद

आईसी 814: कंधार हाइजैक पर बनी सीरीज़ के स्टीरियोटाइप और विवाद

इस सीरीज़ के बाबत निर्माताओं पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर आतंकियों के असली नामों को छिपाया और उनकी जगह पर भोला, शंकर, डॉक्टर, बर्गर जैसे नाम इस्तेमाल किए। असल में ये अपहरणकर्ता एक-दूसरे को इन्हीं उपनामों से संबोधित करते थे जिसके कारण फिल्म में इसे दिखाया गया।

ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म नेटफ्लिक्स पर 29 अगस्त को एक नई सीरीज़ रिलीज़ हुई है, जिसका नाम आईसी 814—द कंधार हाइजैक है। इस सीरीज़ में 24 दिसम्बर 1999 को काठमांडू से दिल्ली आ रहे एयरइंडिया के विमान IC 814 के हाइजैक की कहानी दिखाई गई है। इस विमान में 188 यात्री थे और इसे हाइजैकर्स ने पूरे सात दिन तक हाइजैक करके रखा था। यह भारतीय इतिहास में  किसी विमान को सबसे लम्बे समय तक हाइजैक किए जाने की घटना थी। यह सीरीज़ कैप्टेन देवी शरण, जो उस विमान के पायलट थे, और पत्रकार सृजय चौधरी की किताब ‘फ्लाइट इन्टू फियर’ पर आधारित है। 

यह सीरीज़ रिलीज़ होते ही विवादों के घेरे में आ गई और लोगों ने नेटफ्लिक्स, अनुभव सिन्हा और इस सीरीज को बायकॉट करने की माँग की। अगर फ़िल्मों या किसी सीरीज़ पर उठ रहे विवाद की बात करें तो सही मायने में यह किसी फ़िल्म के लिए फ़ायदेमन्द ही साबित होता है क्योंकि इससे लोग उसे देखने के लिए प्रेरित होते हैं। वे जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर इसमें ऐसा क्या दिखाया गया है जिस पर इतना विवाद हो रहा है। लेकिन किसी सीरीज़ या फ़िल्म पर उठे विवादों के सन्दर्भ में हमारे लिए यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि आरोप मिथ्या है या सच में उनका कोई तार्किक आधार भी है। 

गूगल पर “आईसी 814 अपहरणकर्ताओं की पहचान सरकार” शब्दों से सर्च करने पर 6 जनवरी 2000 को तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा दिया गया एक बयान मिला। इस बयान के अनुसार भी केंद्र सरकार बताती है कि आतंकवादियों से इन नामों का कोड नेम की तरह इस्तेमाल किया है।

सीरीज़ के लेकर क्या हुआ विवाद 

इस सीरीज़ के बाबत निर्माताओं पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने जानबूझकर आतंकियों के असली नामों को छिपाया और उनकी जगह पर भोला, शंकर, डॉक्टर, बर्गर जैसे नाम इस्तेमाल किए। असल में ये अपहरणकर्ता एक-दूसरे को इन्हीं उपनामों से संबोधित करते थे जिसके कारण फिल्म में इसे दिखाया गया। गूगल पर “आईसी 814 अपहरणकर्ताओं की पहचान सरकार” शब्दों से सर्च करने पर 6 जनवरी 2000 को तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा दिया गया एक बयान मिला। इस बयान के अनुसार भी केंद्र सरकार बताती है कि आतंकवादियों से इन नामों का कोड नेम की तरह इस्तेमाल किया है। हालांकि इसपर ट्विटर और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के आईटी सेल प्रभारी अमित मालवीय भी इसी गलत सूचना को आगे बढ़ाते हुए नज़र आए थे जहां उनका आरोप था कि सीरीज में आतंकवादियों को जानबूझकर हिन्दू दिखाया गया। बता दें कि सीरीज़ में यह साफ़-साफ़ दिखाया गया है कि आतंकी मुस्लिम हैं और वे इन कोड नेम्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।

तस्वीर साभार: OTT Play

एक जगह पर एक हाइजैकर कहता है कि रमज़ान का महीना चल रहा है। एक और दृश्य में जब एक आतंकी ग़लती से दूसरे आतंकी का नाम ले लेता है, तो वह उसे असल नाम लेने से मना करता है। बताया जा रहा है कि सीरीज़ में आतंकियों के नाम साफ़-साफ़ न बताए जाने से बहुसंख्यकों की भावनाएं आहत हो रही थीं, और आखिरकार इस विवाद के समाधान के लिए भारत सरकार को भी शामिल होना पड़ा। भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने नेटफ्लिक्स की कंटेंट हेड मोनिका शेरगिल को तलब किया जिसके बाद सीरीज़ की शुरुआत में उल्लिखित डिस्क्लेमर में आतंकियों के असल नाम जोड़ दिए हैं। इस बाबत नेटफ्लिक्स की कॉन्टेन्ट हेड मोनिका शेरगिल ने हाल ही में बयान दिया कि भारत में कहानियां कहने की समृद्ध परंपरा है और नेटफलिक्स इन कहानियों को इनके सच्चे प्रस्तुतीकरण के साथ दिखाने को प्रतिबद्ध है। 

फ़िल्म के कई दृश्य हैं जो औरतों और मर्दों की समाज में बनी-बनाई भूमिकाओं को ही प्रस्तुत करते हैं, उन्हें चुनौती नहीं देते। सीरीज़ के पहले ही एपिसोड में इंडियन एम्बेसी का फर्स्ट ऑफिसर पाकिस्तान एम्बेसी के फर्स्ट ऑफिसर से राम से पूछता है, “सब ख़ैरियत है, राम मियाँ, कुछ ढूँढ रहे हैं क्या?” इस पर वह मज़ाकिया अन्दाज़ में जवाब देता है, “अचार”

समाज की रूढ़ियों को चुनौती नहीं देती है सीरीज़ 

फ़िल्मों को समाज का आईना कहा जाता है। एक तरफ़ तो वे समाज में घट रही घटनाओं और रूढ़ियों को जस का तस दिखाकर कहीं न कहीं उन्हें बढ़ावा देने का काम करती हैं, तो दूसरी तरफ़ कुछ फिल्में ऐसी भी होती हैं, जो इन रूढ़ियों को चुनौती देती हैं। अफ़सोस कि यह सीरीज़ रूढ़ियों को चुनौती देने के मामले में काफ़ी पीछे है। फ़िल्म के कई दृश्य हैं जो औरतों और मर्दों की समाज में बनी-बनाई भूमिकाओं को ही प्रस्तुत करते हैं, उन्हें चुनौती नहीं देते। सीरीज़ के पहले ही एपिसोड में इंडियन एम्बेसी का फर्स्ट ऑफिसर पाकिस्तान एम्बेसी के फर्स्ट ऑफिसर से राम से पूछता है, “सब ख़ैरियत है, राम मियाँ, कुछ ढूँढ रहे हैं क्या?” इस पर वह मज़ाकिया अन्दाज़ में जवाब देता है, “अचार”, इसके बाद वो आगे कहता है, “बीवी इंदौर गई है। कभी-कभी खाने के लिए अचार ढूँढते हैं, कभी अचार के लिए खाना।”

इस डायलॉग का विश्लेषण करें तो हम पाएँगे कि इसमें ऐसा दिखाया गया है कि बीवी के न होने से एक आदमी को खाने में तकलीफ़ हो रही है, यानी घर पर पति के लिए खाना पकाने की ज़िम्मेदारी औरत की है। इसी तरह से फ्लाइट अटेंडेन्ट की भूमिका में दो महिलाओं को दिखाया गया है। इन्हें बहुत दयालु और पैसेंजर्स की देखभाल करनेवाली के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। यह प्रस्तुतीकरण कहीं न कहीं समाज में महिलाओं के इस तरह की देखभाल वाली भूमिकाएं निभाने से जुड़ा हुआ है। फ्लाइट अटेंडेन्ट के अलावा विमान में यात्रा कर रही एक और औरत को देखभाल करनेवाली भूमिका में दिखाया गया है। वह औरत अपने पति और डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे के साथ यात्रा कर रही होती है और विमान पर चढ़ने से लेकर सीट पर बैठाने तक वही अपने बच्चे की मदद करती है। 

फ्लाइट अटेंडेन्ट की भूमिका में दो महिलाओं को दिखाया गया है। इन्हें बहुत दयालु और पैसेंजर्स की देखभाल करनेवाली के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। यह प्रस्तुतीकरण कहीं न कहीं समाज में महिलाओं के इस तरह की देखभाल वाली भूमिकाएं निभाने से जुड़ा हुआ है।

पुरुषों और महिलाओं के लिए स्टीरीओटाइप  

चौथे एपिसोड में जब विमान कंधार में उतरता है तो छाया नाम की एयर होस्टेस अपने बाकी साथियों (जिनमें चार पुरुष हैं) के लिए कॉफ़ी लेकर आती है और कहती है, “आज की लास्ट कॉफ़ी, अब कब मिलेगी पता नहीं सर।” यहां दो तरह का भेद नज़र आता है। छाया का महिला होना और इस वजह से उसका सबके लिए कॉफ़ी लेकर आना और दूसरा यह भी कि ओहदे में वह अपने उन साथियों से निम्न दर्जे पर थी, जिन्हें वो कॉफ़ी सर्व कर रही थी। इस दृश्य को ध्यान से देखने पर हम यह भी पाते हैं कि कॉफ़ी वाली ट्रे में केवल चार गिलास कॉफ़ी ही है और उसके चार पुरुष साथी कॉफ़ी की ओर देख रहे हैं। दृश्य यहीं पर ख़त्म हो जाता है, लेकिन इस दृश्य में ख़ुद छाया और उसकी दूसरी महिला साथी एयर होस्टेस भी हैं, वे न खुद अपने विषय में सोचतीं न ही फिल्म में उनकी जरूरतों के विषय में दिखाया जाता है।

तस्वीर साभार: The Quint

इसके अलावा इसी एपिसोड के एक और दृश्य में एयर होस्टेस छाया को टॉयलेट में जाकर मल से भरे टॉयलेट को साफ़ करने की कोशिश करते दिखाया गया है, जबकि कैप्टेन टायलेट में आई तकनीकी खराबी को दूर करने के लिए फ्लाइट के नीचे के हिस्से में जाकर फ्लश के सक्शन को ठीक करता है। इसके लिए सभी पैसेंजर्स ताली बजकर कैप्टेन का प्रोत्साहन करते हैं। कैप्टन से पहले छाया ने जो कोशिश की, वह पूरी तरह अदृश्य हो जाती है। भले ही छाया टॉयलेट को ठीक करने में सफल नहीं होती, लेकिन साफ़ करने की उसकी कोशिश के बारे में छाया की साथी एयर होस्टेस और आतंकी बर्गर के अलावा किसी को पता तक नहीं चलता। 

इसके अलावा सीरीज़ में गालियों के तौर पर इस्तेमाल किया गया शब्द भी आपत्तिजनक है और इसे कई बार इस्तेमाल किया गया है। भले ही वास्तविकता को दिखाने के लिए ऐसा किया गया हो, लेकिन ये फिर से उसी मानसिकता का सामान्यीकरण करता है कि गुस्सा होने पर पुरुषों द्वारा माँ-बहन की गाली देना कोई बड़ी बात नहीं। सीरीज़ के किरदारों की बात करें तो सभी प्रमुख ओहदों और भूमिकाओं में पुरुष कलाकारों को ही लिया गया है। सभी प्रकार के अहम निर्णयों को लेते हुए वही नज़र आते हैं। इस प्रकार अगर स्त्रियों की समावेशी भूमिकाओं की बात करें तो उसमें यह सीरीज़ काफ़ी पीछे है। 

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