एक कोशिश, माया एंजेलो और सुशीला टाकभौरे की कविताओं में समानता ढूंढने कीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jan 31, 2023
कॉलेज में शाकाहारी भोजन परोसने के पीछे की रणनीति कैसे एक ख़ासवर्ग और विचारधारा से प्रेरित है!By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jan 25, 2023
नौटंकी की ‘गुलाब बाई’ जिन्होंने अपनी कला के ज़रिये दी थी पितृसत्ता को चुनौतीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Dec 22, 2022
नारीवादी, समतावादी और समाजवादी संविधान ने समाज के रूप में हमें कितना बदला है?By Aashika Shivangi Singh 5 min read | Dec 21, 2022
संसद, विधानसभा में महिलाओं की ना के बराबर भागीदारी भारतीय राजनीति के लिए नहीं है अच्छा संकेतBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Dec 16, 2022
ओडिशा की घटना बताती है कि कैसे रैगिंग आज भी छीन रही है विद्यार्थियों के बुनियादी अधिकारBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Dec 12, 2022
मैरी वुलस्टोनक्राफ्ट के विचार कैसे भारतीय शिक्षा व्यवस्था की बेहतरी के लिए हो सकते हैं मददगारBy Aashika Shivangi Singh 5 min read | Nov 25, 2022
मौजूदा दौर में क्यों प्रासंगिक है जातिवादी समाज के चेहरे को उधेड़ती फ़िल्म ‘दामुल’By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Nov 21, 2022
बुढ़न थियेटर: छारा समुदाय के प्रति रूढ़िवादी धारणा को तोड़ रहा है युवाओं का यह समूहBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Oct 27, 2022