समाजकैंपस ओडिशा की घटना बताती है कि कैसे रैगिंग आज भी छीन रही है विद्यार्थियों के बुनियादी अधिकार

ओडिशा की घटना बताती है कि कैसे रैगिंग आज भी छीन रही है विद्यार्थियों के बुनियादी अधिकार

यूजीसी द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर साल 2021 में 511 केस देश भर में रिपोर्ट किए गए। वहीं, 2018 में 1016 औप 2019 में 1070 केस रिपोर्ट किए गए थे।

19 नवंबर 2022, एनडीटीवी की ख़बर के मुताबिक़ ओडिशा राज्य के गंजम जिला के एक सरकारी कॉलेज में रैगिंग का मामला सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में एक माइनर लड़की को ज़बरदस्ती किस किया जा रहा है, और आसपास खड़े विद्यार्थी हंस रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक वीडियो में देखा गया कि एक फर्स्ट ईयर की माइनर लड़की को एक लड़का असॉल्ट कर रहा है और ये असॉल्ट भी सीनियर लड़कों द्वारा करवाया जा रहा है। अपराधी लड़का एक डंडा हाथ में लिए हुए है और जब लड़की उठने की कोशिश करती है तब लड़का उसे रोक देता है। कॉलेज ने इस मामले में शामिल 12 छात्रों को निष्काषित कर दिया है।

रैगिंग पर क्या कहते हैं आंकड़े?

जेंडर, जाति, धर्म, समुदाय आदि के इर्द-गिर्द हम रैगिंग के मामले देखते, सुनते रहते हैं। कुछ मामले हमारे सामने आ जाते हैं और तमाम मामले कभी भी हम तक नहीं पहुंचते बल्कि आत्महत्या से मौत या ड्रॉपआउट तक पहुंच जाते हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार यूजीसी द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर साल 2021 में 511 केस देश भर में रिपोर्ट किए गए। वहीं, 2018 में 1016 औप 2019 में 1070 केस रिपोर्ट किए गए थे।

सवाल है कि रैगिंग, जिसे एक वक्त में बहुत सामान्य मानते थे उसे लेकर अब क्या प्रावधान हैं? विद्यार्थियों को क्या इसके बारे में खबर है? क्या उन्हें इसके बारे में जागरूक किया गया है? रैगिंग की घटनाओं में शिक्षण संस्थान क्या अपनी भूमिका निभा रहे हैं? यूनिवर्सिटी स्तर पर रैगिंग को लेकर क्या काम हुए हैं?

यह कहने में क्या हिचकना कि अब हम एक ऐसा समाज बन चुके हैं जिसे घटनाओं की प्रामाणिकता के लिए डेटा पर, नंबरों पर निर्भर रहना ज्यादा बेहतर लगता है बजाय कि अपने आसपास घट रही घटनाओं को देखने, समझने के। मसलन ओडिशा की इस घटना में जब लड़की का उत्पीड़न किया जा रहा था तब आसपास के विद्यार्थी हंस रहे थे लेकिन असॉल्ट के खिलाफ कोई आवाज़ उठाता नहीं दिख रहा था।

नैशनल बुलेटिन की ख़बर के अनुसार इसी साल जनवरी 2022 में मुंबई के एक मेडिकल कॉलेज में सुगत भरत के साथ रैगिंग का केस सामने आया। वह तीन साल से अपने कलीग, वार्डन का जातिवादी व्यवहार, रैगिंग झेल रहे थे। पायल तड़वी आपको याद ही होंगी वह भी जाति के आधार पर होनेवाली रैगिंग का केस था। जिस तरह का समाज हम बन चुके हैं उसमें इस सवाल का उत्तर हमें पता है कि रैगिंग, हिंसा, ऊंच-नीच की प्रवृत्ति विद्यार्थियों में कहां से और कैसे पनप रही है। सवाल है कि रैगिंग, जिसे एक वक्त में बहुत सामान्य मानते थे उसे लेकर अब क्या प्रावधान हैं? विद्यार्थियों को क्या इसके बारे में खबर है? क्या उन्हें इसके बारे में जागरूक किया गया है? रैगिंग की घटनाओं में शिक्षण संस्थान क्या अपनी भूमिका निभा रहे हैं? यूनिवर्सिटी स्तर पर रैगिंग को लेकर क्या काम हुए हैं? इस लेख में हम इन्हीं सवालों से मुखातिब होंगे और जानेंगे कि रैगिंग को लेकर यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के क्या प्रावधान हैं।

यूजीसी द्वारा जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर साल 2021 में 511 केस देश भर में रिपोर्ट किए गए। वहीं, 2018 में 1016 औप 2019 में 1070 केस रिपोर्ट किए गए थे।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने के लिए यूजीसी एंटी रैगिंग विनियम, 2009 को अधिसूचित किया गया। यूजीसी के अनुसार “कोई भी उच्छृंखल आचरण चाहे वह बोले गए या लिखे गए शब्दों से हो या किसी ऐसे कार्य से हो जिसका प्रभाव किसी अन्य छात्र के साथ छेड़खानी, व्यवहार या अशिष्टता के साथ हो, उपद्रवी या अनुशासनहीनता में लिप्त हो। ऐसी गतिविधियां जो एक फ्रेशर या जूनियर छात्र में झुंझलाहट, कठिनाई या मनोवैज्ञानिक नुकसान का कारण बनती हैं या उसके लिए भय या आशंका पैदा करती हैं या छात्रों को कोई ऐसा कार्य करने या कुछ ऐसा करने के लिए कहती हैं जो ऐसा छात्र सामान्य पाठ्यक्रम में नहीं करेगा और जो शर्म या शर्मिंदगी की भावना पैदा करने या उत्पन्न करने का प्रभाव है, जिससे नये या जूनियर छात्र के शरीर या मानस पर बुरा असर पड़ता है।”

देशभर के हर विश्वविद्यालय, कॉलेज में एंटी रैगिंग कमिटी, सेल होना अनिवार्य है और इसे सुनिश्चित करना कॉलेज प्रशासन की ज़िम्मेदारी है। विद्यार्थियों को इस विषय में जानकारी देने के लिए यूजीसी द्वारा एंटी रैगिंग ज़ीरो पॉलिसी की बुकलेट उपलब्ध करवाना भी इस विषय के बारे में विद्यार्थियों को जागरूक करने की पहल है। कॉलेज के अध्यापक, हेड आदि की यह जिम्मेदारी है कि वे इसका पालन करें और ऐसा न होने पर वे भी सवालों के घेरे में आ सकते हैं।

यूजीसी की ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी के मुताबिक किसी भी विद्यार्थी द्वारा छोटी, बड़ी किसी भी तरीके की रैगिंग बर्दाश्त नहीं की जाएगी और तत्काल प्रभाव से ऐक्शन लिया जाएगा। हालांकि यह ऐक्शन तत्काल नहीं लिया जाता है जैसा कि सुगत भरत के केस में, पायल तड़वी के केस में हुआ। रैगिंग में लिप्त विद्यार्थियों के साथ कॉलेज प्रशासन द्वारा तो कार्रवाई की ही जाती है जैसे संस्थान से सस्पेंशन, एग्जाम देने से रोकना आदि। पुलिस द्वारा भी कार्रवाई की जा सकती है।

विधार्थी न होते हुए भी रैगिंग के बारे में जानना क्यों जरूरी है?

विद्यार्थी न होते हुए भी रैगिंग को हमें जानना-समझना इसीलिए भी ज़रूरी है कि हमारे आसपास के विद्यार्थियों को रैगिंग का सामना न करना पडे़। हम उन्हें पहले से इसके बारे में बताकर रखें और अगर वे इस तरह की चीज़ों से सामना करते भी हैं तो उन्हें पता हो कि उन्हें क्या ऐक्शन लेना चाहिए। रैंगिग को लेकर हमने तीन विद्यार्थियों से इस मसले पर बात की। क्या वे रैगिंग शब्द से परिचित थे? क्या उन्हें एडमिशन के वक्त संस्थान द्वारा ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी का बुकलेट जागरूक करने के लिए उपलब्ध कराया गया था? अगर उन्हें रैगिंग का सामना करना पड़ा है तब उन्होंने किस तरह की चीज़ों का सामना किया है?

यूजीसी के एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर कॉल, एंटी रैगिंग मोबाइल एप्लीकेशन (गूगल प्ले से डाउनलोड किया जा सकता है) और एंटी रैगिंग वेबसाइट www.antiragging.in पर शिकायत दर्ज़ करवाई जा सकती है।

दिल्ली विश्वविद्यालय से इस वक्त हिंदी में पीएचडी कर रहीं प्रीति (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “जब मैं पहली बार कॉलेज में गई थी तब रैगिंग शब्द से परिचित थी लेकिन कॉलेज या यूजीसी द्वारा विद्यार्थियों को जागरूक करने के लिए कोई बुकलेट कॉलेज प्रशासन ने उपलब्ध नहीं करवाई थी।” वहीं, वर्तमान में सिविल सेवा की तैयारी कर रहीं रोमी बताती हैं कि उन्होंने अपने कॉलेज के वक्त ‘थ्री इडियट्स’ फ़िल्म के माध्यम से रैगिंग के बारे में जाना था। हालांकि कॉलेज इसके प्रति जागरूकता के लिए किसी भी तरह की बुकलेट उपलब्ध नहीं करवाया था। सीधे तौर पर उन्होंने रैगिंग नहीं झेली लेकिन सीनियर्स द्वारा उन्हें एक तरह की हीन भावना का एहसास उनके कपड़ों को लेकर, रहने के स्थान को लेकर जरूर करवाया गया था।

वहीं उत्तर प्रदेश के ड्रामा स्कूल में पढ़ रहे पंकज (बदला हुआ नाम) विस्तार में बताते हैं, “नाट्य विद्यालय आने के बाद मैं रैगिंग से ठीक ढंग से परिचित हुआ। बीस लोगों में चुने जाने के बाद जब मैं यहां आया तो गार्ड ने मुझे पहले ही आगाह कर दिया कि तुम दो दिन देर से आए हो और तुम्हारे बाकी साथियों का “प्रोसेस” चल रहा है। मैं थोड़ा सहम गया कि यह क्या होता है? एक सीनियर आया और मुझसे नाम पूछकर मेरा सामान उठाकर ऊपर हॉस्टल में ले गया। फिर हमारा प्रोसेस शुरू हुआ। मुझसे मेस में एक सीनियर ने नाम पूछा मैंने नाम बताया। वह सभी के सामने मुझ पर चिल्लाया और बोला खड़ा होकर बता ##&& (गाली)। मेरे बैच के सब लोग मुझे घूरने लगे। मैंने खड़े होकर अपना नाम बताया। फिर यह सिलसिला चलता रहा।”

उनका आगे कहना है, “वे लोग रात भर जगाते और सुबह चार बजे उठा दिया करते थे। अलग-अलग टास्क हमें दिए जाने लगे और ड्रामा स्कूल में किस तरह एडजस्ट करना है, हमें भद्दी गालियां दे-देकर ट्रेन करते। हर रात एक सीनियर हमारा परिचय लेने के लिए आता और तक़रीबन दो ढाई बजे रात को छोड़ता। जहां सारे सीनियर हमारे गायन, नृत्य और अभिनय की परीक्षा लेते और न कर पाने पर सभी के सामने बेइज्जत करते। ये सब “प्रोसेस” के नाम पर हो रही रैगिंग थी लेकिन हममें से कोई आवाज़ न उठा सका क्योंकि काफ़ी समय से यहां पर ऐसा चलता आ रहा था और इन सब में ऊपर के लोग भी शामिल रहते थे ताकि उनकी कक्षाओं में बैठने के लिए हम तैयार हो सकें। आज भी वे सारी बातें मेरे लिए एक ट्रॉमा के रूप में बैठीं हुईं हैं। कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें मैं याद नहीं करना चाहता लेकिन शारीरिक शोषण को छोड़कर यहां सब हुआ। हालांकि अब यहां यह सब बंद है।”

रैंगिग पर रोक लगाने के लिए लिए विद्यार्थियों और अध्यापकों के बीच बेहतर रिश्ते का कायम होना ज़रूरी है ताकि विद्यार्थी शिक्षक से सब कह सके और शिक्षक समझ सकें। दूसरा कॉलेज प्रशासन को अपनी छवि धूमिल न करने की आड़ में रैगिंग के केस को दबाना नहीं चाहिए। बुकलेट या पैंपलेट के माध्यम से विद्यार्थियों को यह बताया जाना चाहिए कि रैगिंग बैन है, अपराध है और किस तरह के सख्त कदम उनके ख़िलाफ़ उठाए जा सकते हैं। अगर कोई भी रैगिंग का सामना करे तो यूजीसी के एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर 1800-180-5522 पर कॉल, एंटी रैगिंग मोबाइल एप्लीकेशन (गूगल प्ले से डाउनलोड किया जा सकता है) और एंटी रैगिंग वेबसाइट www.antiragging.in पर शिकायत दर्ज़ करवाई जा सकती है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content