इतिहास नौटंकी की ‘गुलाब बाई’ जिन्होंने अपनी कला के ज़रिये दी थी पितृसत्ता को चुनौती

नौटंकी की ‘गुलाब बाई’ जिन्होंने अपनी कला के ज़रिये दी थी पितृसत्ता को चुनौती

नौटंकी की पहली महिला कलाकार हैं गुलाब बाई। नौटंकी में पहली स्त्री कलाकार, गुलाब बाई को शामिल करने का श्रेय तिरमोहन उस्ताद को जाता है, उन्हीं के प्रयास से कानपुर स्कूल की नौटंकी में गुलाब बाई शामिल हुईं। हमारे समाज की ही तरह संपूर्ण मनोरंजन भी पुरुष प्रधान रहा है और इस पुरुष प्रधान मनोरंजन में गुलाब बाई ने अपने ऐसे कदम जमाए कि उन्हें नौटंकी की 'महारानी', 'पटरानी' और 'मलिका' कहा जाने लगा।

अल्प आय, गरीब-पिछड़े लोगों के लिए लोक कला का बहुत बड़ा महत्व रहा है। ‘लोक’ यानी सामान्य जनता, लोक कला यानी वह कला जो सामन्य जनता की हो। लोक कलाएं अधिकांशतः इस वर्ग के मनोरंजन का साधन रही हैं जो उच्च वर्ग के मंहगे शौक आदि चीजें नहीं कर सकते थे। ऐसी ही लोक कलाओं में ‘नाटक’ बहुत चर्चित और मनोरंजक कला रही है जिसका आज आधुनिक रूप हम रंगमंच के ज़रिए देखते हैं। इन लोक नाटकों की एक खासियत थी कि आज के रंगमंच की तरह कोई दूसरा व्यक्ति हस्तलिपि ( स्क्रिप्ट) नहीं लिखता था बल्कि इसमें कलाकार अपने खुद के लिखे हुए संवाद बोलता था।

मगर अपवाद हर कला, क्षेत्र में होते हैं ऐसे ही दो अपवाद, दो नाटकों में देखने को मिलते हैं जो लिखित रूप में भी हमारे सामने मौजूद हैं और वे ‘लोक नाटक’ भी हैं। भिखारी ठाकुर के ‘बिदेसिया शैली’ वाले नाटक और ‘नौटंकी’। नौटंकी के दो घराने- कानपुर और हाथरस नौटंकी को भले ही आज अश्लील और फूहड़-नाच गाने से भरपूर कर दिया हो लेकिन नौटंकी उत्तर भारत की एक सुप्रसिद्ध लोकनाट्य विधा है। एक वक़्त था जब बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक नौटंकी खेली जाती थी। पुत्र-जन्म, विवाह और अलग-अलग अवसरों पर नौटंकी की मंडलियों को ख़ासतौर पर बुलाया जाता था।

आमतौर पर किसी भी लोकनाट्य की शैली को स्कूल की संज्ञा नहीं दी जाती है लेकिन नौटंकी के लिए यह बात ख़ारिज कर दी जाती है। नौटंकी के दो स्कूल/रूप/शैली या घराने हैं। एक है हाथरस घराना और दूसरा है कानपुर घराना। हाथरस घराने को नथाराम गौड़ ने विकसित किया और खूब लोकप्रियता हासिल हुई। पंडित नथाराम गौड़ की नौटंकियां ग़ैर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय रहीं। कानपुर स्कूल को विकसित और पहचान दिलवाने वाले थे श्री कृष्ण पहलवान। हाथरसी नौटंकी के बाद ही कानपुरी नौटंकी का विकास हुआ। कानपुर नौटंकी के तिरमोहन उस्ताद, लम्बरदार, छिद्दन उस्ताद आदि बड़े नाम रहे। दोंनो नौटंकियों में जितने भी संवाद होते हैं ऊंचे गायन और काफिये में ही होता है।

पहली महिला नौंटकी कलाकार गुलाब बाई

नौटंकी की बुनाई देखें तो इसमें जितने भी स्त्री पात्र हुआ करते थे उन सभी पात्रों को पुरुष ही निभाते थे। महिलाओं को स्वतंत्रता ही नहीं थी कि वे घर के दीवारों से बाहर निकलें। हाथरसी नौटंकी में आज भी स्त्रियां न के बराबर अभिनय करतीं हैं। लेकिन कानपुर की नौटंकी में इसमें बदलाव आया है और इस बदलाव को अंजाम दिया था पहली नौटंकी महिला कलाकार गुलाब बाई। कौन हैं नौटंकी की पहली महिला कलाकार गुलाब बाई। नौटंकी में पहली स्त्री कलाकार, गुलाब बाई को शामिल करने का श्रेय तिरमोहन उस्ताद को जाता है, उन्हीं के प्रयास से कानपुर स्कूल की नौटंकी में गुलाब बाई शामिल हुईं। हमारे समाज की ही तरह संपूर्ण मनोरंजन भी पुरुष प्रधान रहा है और इस पुरुष प्रधान मनोरंजन में गुलाब बाई ने अपने ऐसे कदम जमाए कि उन्हें नौटंकी की ‘महारानी’, ‘पटरानी’ और ‘मलिका’ कहा जाने लगा।

12 साल की गुलाब ने उस समय की जानी मानी नौटंकी कंपनी ‘तिरमोहन की कंपनी’ की नौटंकी अपने माँ, पिता और बहन के साथ एक मेले में देखी। नौटंकी का शीर्षक था ‘राजा हरिश्चंद्र’। उस नौटंकी को देखने के बाद उनके मन में इस कला से जुड़ने की इच्छा जागी और अगली सुबह ही उनके पिता लालबहादुर उन्हें लेकर तिरमोहन लाल के पास गए और गुलाब को नौटंकी से जोड़ने के लिए कहा।

जन्म और शुरुआती जीवन

गुलाब बाई पर लेखिका दीप्ति प्रिया मेहरोत्रा द्वारा लिखी गई किताब “द क्वीन ऑफ नौटंकी थिएटर” के अनुसार उनका जन्म 1920 में बलपुरवा नाम के गाँव में जिला फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में एक बेड़िया( घुमंतु जनजाति) परिवार में हुआ था। इस जनजाति की लड़कियां नाचने-गाने की कला में पारंगत होती हैं। यह कह सकते हैं कि इस जनजाति का जीवनयापन नाच गान से ही होता है। 12 साल की गुलाब ने उस समय की जानी-मानी नौटंकी कंपनी ‘तिरमोहन की कंपनी’ की नौटंकी अपने माँ, पिता और बहन के साथ एक मेले में देखी। नौटंकी का शीर्षक था ‘राजा हरिश्चंद्र’। उस नौटंकी को देखने के बाद उनके मन में इस कला से जुड़ने की इच्छा जागी और अगली सुबह ही उनके पिता लालबहादुर उन्हें लेकर तिरमोहन लाल के पास गए और गुलाब को नौटंकी से जोड़ने के लिए कहा।

हर वास्तविक किस्से की तरह यहां भी लड़की के नाम पर विरोध हुआ लेकिन गुलाब बाई ने बीती रात की नौटंकी की जब कुछ गज़लें और बहरे तावील सुनाई तो तुरंत ही तिरमोहन लाल ने गुलाब बाई को तेल साबुन के खर्च पर नौटंकी कंपनी में शामिल कर लिया और कानपुर चलने को कहा। गुलाब बाई डरी हुईं थीं लेकिन फिर डरते-डरते कानपुर पहुंची और नौटंकी के कार्यक्रम करने लगीं। जब कानपुर में उन्होंने तिरमोहन के साथ नौटंकियां खेलना शुरू किया तो चौराहों पर खूब हज़ारों में भीड़ नौटंकी देखने के लिए आती थी। उस समय नौटंकी कंपनियों का मुकाबला आपस में चला करता था। गुलाब बाई के आने के बाद तिरमोहन लाल की कंपनी और चल पड़ी। स्त्री कलाकार के मोह से भीड़ आती और नाटक खत्म होने के बाद गुलाब बाई की प्रतिभा के मोह में वापस जाती।

गुलाब बाई जैसी महिला, कलाकार के बारे में हम नहीं भी जानेंगे तो हमारे जीवन में कोई कमी नहीं आएगी लेकिन इन्हें जानने से बहुत कुछ हम सीख पाएंगे। संसाधन युक्त व्यक्ति बेशक वह सब पा सकता है जो उसे चाहिए लेकिन जिसके पास संसाधन नहीं हैं उसमें भी एक महिला जो पिछड़ी जनजाति से आ रही है वह ऐसी कला का हिस्सा बनती है जिसमें पुरुषों का दबदबा है और वह मुकाम भी वह हासिल कर लेती है जो उसे चाहिए था।

तस्वीर साभारः Gulab Bai: The Queen of Nautanki

तेल-साबुन के खर्च पर रखी गई गुलाब की प्रसिद्धि ने उनकी तनख्वाह पचास रुपये कर दी और बढ़ते-बढ़ते यह राशि हज़ार रुपए से अधिक हो गई और नौटंकी के दौरान मिली ‘भेंट’ अलग से हुआ करती थी। कई बार हज़ारों की तादाद में आने वाले दर्शकों में झगड़े भी हो जाया करते थे। फिर जब झगड़े बढ़ने लगे तो शहर कोतवाल (अंग्रेज) ने तिरमोहन लाल को शहर खाली करने को कह दिया और नौटंकी कंपनी को कानपुर शहर छोड़कर कन्नौज जाना पड़ा। गुलाब बाई जब कन्नौज शहर में आईं तो यहां भी उनकी नौटंकी लोकप्रिय हो गई। आज़ादी के आंदोलन के लिए भी गुलाब ने ‘बहादुर लड़की’ नाम से और उसी जैसे कई नाटक किए। बीस साल तक गुलाब बाई ने तिरमोहन लाल की कंपनी में काम किया।

जब अब नई कंपनी की शुरू

एक समय अपनी बहन के छत से गिर जाने की ख़बर सुनकर गुलाब बाई ने तिरमोहन लाल से कुछ पैसे मांगे लेकिन तिरमोहन लाल ने मना कर दिया। इसी वजह से गुलाब ने वह कंपनी की नौकरी छोड़ दी और कानपुर अपनी बहनों के पास लौट आई। कानपुर वापस आकर अपने जान पहचान के कलाकारों से मिलीं और एक नयी कंपनी शुरू की। लोगों ने दूसरी कंपनियों के डर से नयी कंपनी खोलने को मना किया लेकिन गुलाब नहीं मानीं। शादियों और बारातों में जा-जाकर उन्होंने एक बार फिर से नौटंकी शुरू की और धीरे-धीरे ‘ग्रेट गुलाब थिएटर कंपनी’ को स्थापित किया, वक्त के साथ मेहनत रंग लाई और उनकी कंपनी ने शहर में अपना बड़ा नाम कर लिया।

तेल साबुन के खर्च पर काम करने वाली एक महिला नौटंकी कलाकार अब दूसरों को काम देने लगी थी। अपने दम पर उन्होंने अपने भाई बहनों की परवरिश की तथा अपने बच्चों को भी खूब पढ़ाया लिखाया जबकि गुलाब बस अपने दस्तख़त करना ही जानती थीं।

तेल-साबुन के खर्च पर काम करनेवाली एक महिला नौटंकी कलाकार अब दूसरों को काम देने लगी थी। अपने दम पर उन्होंने अपने भाई बहनों की परवरिश की तथा अपने बच्चों को भी खूब पढ़ाया लिखाया जबकि गुलाब बस अपने दस्तख़त करना ही जानती थीं। उनकी कंपनी ठीक ठाक पंद्रह बीस साल तक चली लेकिन 1970 के बाद से सिनेमा का प्रभाव बढ़ने लगा और मनोरंजन टैक्स बढ़ने के कारण नौटंकी की लोकप्रियता धूमिल होती चली गई। उसके बाद गुलाब बाई की नौटंकी कंपनी बंद हो गई। 1988 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला और नौटंकी को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता मिली और साथ ही गुलाब बाई को इस विधा की सबसे प्रमुख कलाकार माना गया। 1990 में उन्हें पद्मश्री से नवाज़ा गया। 13 मई 1996 को गुलाब बाई की मृत्यु हो गई।

गुलाब बाई के बारे में जानना ज़रूरी क्यों है?

गुलाब बाई जैसी महिला, कलाकार के बारे में हम नहीं भी जानेंगे तो हमारे जीवन में कोई कमी नहीं आएगी लेकिन इन्हें जानने से बहुत कुछ हम सीख पाएंगे। संसाधन युक्त व्यक्ति बेशक वह सब पा सकता है जो उसे चाहिए लेकिन जिसके पास संसाधन नहीं हैं उसमें भी एक महिला जो पिछड़ी जनजाति से आ रही है वह ऐसी कला का हिस्सा बनती है जिसमें पुरुषों का दबदबा है और वह मुकाम भी वह हासिल कर लेती है जो उसे चाहिए था। गुलाब बाई की जीवन यात्रा इस ओर भी संकेत करती है कि अपनी कला से चाहे वो कोई भी कला हो हम व्यवस्था में दखल दे सकते हैं, हम आने वाली पीढ़ी के लिए सटीक उदाहरण पेश कर सकते हैं। जिस क्षेत्र में, जगह में अपनी ‘पहचान’ का कोई नहीं, वहां भी घुसा जा सकता है और ‘गुलाब’ बना जा सकता है।


स्रोतः

  1. Gulab Bai, The Queen of Nautanki Theatre
  2. Ek The Gulab

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