Ravi Samberwal

इस दौर में लिखना, बोलना और देखना बेहद जरूरी है. सिनेमा हमें गढ़ता है और किताबें ही हमारा आधार हैं. जब उंगलियां कीबोर्ड पर नाच नहीं रही होती तो किताबें पढ़ने और फिल्म देखने का समय तलाशता हूं. करीब दो साल से प्रिंट मीडिया से जुड़ा हूं. खबरों की कटाई छंटाई ही दिनचर्या है या यूं कहें कि रातचर्या.
दैनिक भास्कर के बाद इन दिनों अमर उजाला के साथ हूं. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक की है. एमए मास कम्युनिकेशन जारी है.

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