संस्कृतिसिनेमा द रेलवे मैन: भोपाल गैस त्रासदी पर बनाई गई मार्मिक वेब सीरीज

द रेलवे मैन: भोपाल गैस त्रासदी पर बनाई गई मार्मिक वेब सीरीज

3 दिसंबर की रात को अचानक पाइप से पानी टपकता है। फैक्ट्री वर्कर इसे रोजाना की तरह नजरंदाज कर देते हैं। वे इसे ठीक करने की बजाय चाय ब्रेक के लिए चले जाते हैं। चाहे यूनियन कार्बाइड हो, इंडियन रेलवे हो या फिर सरकार हो, जो जिम्मेदारी निभाने के समय जिम्मेदारी से भाग खड़े हुए थे, उन सबपर यह सीरीज सवाल करती है।  

दिसंबर के पहले हफ्ते में नेटफ्लिक पर आई वेब सीरीज ‘द रेलवे मैन’ दुनियाभर के सबसे बड़े औद्योगिक हादसे की याद दिलाती है। इस भयावह मंजर को डॉक्यूमेंट करने वाली यह वेब सीरीज काफी चर्चा बटोर रही है। इसे यशराज फिल्म्स के बैनर तले रिलीज किया गया है, जिसकी कहानी भोपाल रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द घूमती है। रेलवे असिस्टेंट स्टेशन मास्टर के रूप में केके मेनन  है। एक सीजन के 4 एपिसोड के इस सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे एक स्टेशन मास्टर अपनी सूझबूझ से लोगों की जान बचाता है। जब भोपाल में चारों ओर जहरीली गैस फैली थी तो गोरखपुर मुंबई एक्सप्रेस को भोपाल रेलवे स्टेशन पर 32 मिनट के स्टॉपेज होने बावजूद, अपनी जिम्मेदारी लेते हुए तुरंत रवाना करवाते हैं।

नॉर्थ रेलवे जीएम की भूमिका में आर माधवन हैं। जूही चावला सहायक भूमिका में हैं। सीरीज का बड़ा हिस्सा भोपाल रेलवे स्टेशन पर फिल्माया गया है। इसमें फैक्ट्री और यूनियन कार्बाइड की कमियों पर प्रमुखता से बात की गई है और रेलवे की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान भी लगाए गए हैं। अहम यह भी है कि इस हादसे के कारणों पर बात और बहस की गई है। चाहे यूनियन कार्बाइड हो, इंडियन रेलवे हो या फिर सरकार हो, जो जिम्मेदारी निभाने के समय जिम्मेदारी से भाग खड़े हुए थे, उन सबपर यह सीरीज सवाल करती है।  

फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी शुरू होते ही हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों की भोपाल गैस त्रासदी की कवरेज दिखती है। इसके ठीक बाद एक पुलिस अधिकारी अपनी जीप में तीन लोगों को बैठाए हुए दिखता है। एक रिपोर्टर के पूछने पर कि उन्होंने किन्हें गिरफ्तार किया है, वह बताते हैं कि मिस्टर गोखले, मिस्टर मनोहर और मिस्टर एंडरसन (जो कि यूनियन कार्बाइड के डायरेक्टर थे)। अगले ही सीन में उन्हें जेल से छूटता दिखाया गया है और एक सरकारी प्लेन में बैठाकर अपने देश भेज दिया जाता है। बैकग्राउंड में कहानी बताई जाती है कि कैसे जान देने वाले को सजा मिल गई और जान लेने वाले को बचा लिया गया। एक पत्रकार सब दृश्यों की फोटो ले रहा है। वह जर्नलिस्ट राजकुमार केशवनी का किरदार निभा रहे सनी हिंदुजा हैं। केसवानी ने इस त्रासदी से ठीक पहले ही अपने लेख में बता दिया था कि कैसे भोपाल ज्वालामुखी के मुंह पर बैठा हुआ है। 

यूनियन कार्बाइड में भगदड़

पहली बार यूनियन कार्बाइड दिखाई जाती है जिसमें वर्कर भाग-दौड़कर काम में लगे हैं। सबके चेहरे का रंग एकदम उड़ जाता है क्योंकि एमआईसी का प्रेशर 100 से ऊपर चला जाता है। तभी एक फैक्टरी का कर्मचारी एमआईसी टैंक चेक करता है कि अगर टैंक ज्यादा गर्म हो गया तो फट भी सकता है। वहीं, पत्रकार केशवानी एक ऐसे फैक्ट्री वर्कर इमाद से उनके घर मिलने जाते हैं जो फिलहाल फैक्ट्री में काम नहीं करता है।

तस्वीर साभार: NDTV

उसे पता है कि कुछ ही समय पहले उसके भाई की जान इसी यूनियन कार्बाइड में काम करते करते गैस लीक होने की वजह से चली गई थी।  केशवानी उनसे फैक्ट्री में चल रहे काम के बारे में बात करते हैं जहां वह बताते हैं कि बिना किसी सेफ्टी के ही सब काम हो रहे हैं और इसका विरोध करने पर उन्हें काम से निकाल दिया गया है।   

कहानी में किरदारों और दृश्यों का खेल   

स्टेशन मास्टर की ड्यूटी नाइट शिफ्ट में होती है। हालांकि कोई खास काम राहत पर वह दिन में ही स्टेशन पहुंच जाते हैं।  स्टेशन पर भी सब सामान्य है। गाना गाकर भीख मांगते बच्चे, चाय और ब्रेड पकौड़े के स्टॉल और बैकग्राउंड में वही महिला एनाउंसर की आवाज जिसकी आवाज सुनाई पड़ती है। सीरीज की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। कोई भी दृश्य बनावटी नहीं लगता। यूनियन कार्बाइड के अंग्रेज अफसर की एक्टिंग देखकर उनसे नफरत होना तय है। फैक्ट्री और घटना की हर डिटेल बारीकी से आसान भाषा में समझाई गई है। हालांकि कुछ अनावश्यक सीन भी हैं जिन्हें देखकर लगता है कि अगर यह हिस्सा न होता तो कोई फर्क नहीं होने वाला था। ऐसे ही एक किरदार है जो पुलिस की वर्दी में रेलवे स्टेशन को लूटने के इरादे से आता है। लेकिन वह सीरीज के अंत तक लोगों की मदद करता रहता है। उसे चोर या लुटेरा दिखाना थोड़ा अजीब है। 

फैक्ट्री के कमियों को उजागर करती कहानी

कहानी आगे बढ़ती है और दिखाया जाता है कि कैसे एक-एक करके फैक्ट्री में ढेर सारी टेक्निकल गलतियां होती है। 3 दिसंबर की रात को अचानक पाइप से पानी टपकता है। फैक्ट्री वर्कर इसे रोजाना की तरह नजरंदाज कर देते हैं। वे इसे ठीक करने की बजाय चाय ब्रेक के लिए चले जाते हैं। उनके वापस आने से पहले ही गैस लीक हो जाती है फैक्ट्री वर्कर्स का दम घुटने लगता है और आंखें जलने लगती हैं। इसे बढ़ता देख सब वर्कर घबरा जाते हैं और अफरा-तफरी मच जाती है। फैक्ट्री में लापरवाही इस हद तक थी कि सभी इमर्जेंसी अलार्म तक बंद कर दिए गए थे।  

टैंक का फटना और शहर में गैस का फैलना

मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) गैस का टैंक फट जाता है और गैस शहर में फैलने लगता है। इसके कुछ ही देर बाद एक के बाद एक लोग बेहोश और मरने लगने हैं। फिल्म में यह दृश्य डरावना और भयावह है। एक-दूसरे की आंखों और चेहरे पर मौत देख लेना भी सबसे बड़ा भय है। 3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के लिए सबसे मनहूस रात थी।

तस्वीर साभार: The Guardian

एमआईसी नाम की जहरीली गैस हवा में घुलकर लोगों के फेफड़ों पर असर करने लगी और देखते ही देखते हजारों जिंदगियों दांव पर लग गए। हजारों लोगों की मौत नींद में ही हो गई। करीब एक घंटे में 30 टन के आसपास गैस भोपाल की हवा में फैल गई। सड़कों पर आदमी, औरत, बच्चे, बूढ़े, जानवर सबकी लाशें पड़ी थी। फिल्म में इन घटनाओं को मार्मिकता से दिखाया गया है।

घटना के दौरान स्टेशन मास्टर की भूमिका

हालांकि सीरीज का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ भोपाल रेलवे स्टेशन तक ही सीमित है। स्टेशन मास्टर ने हजारों लोगों की जान कैसे बचाई है यह सीरीज का मुख्य बात है। इस डरावने मंजर के बीच प्रशासन और यूनियन कार्बाइड, रेलवे अधिकारियों और सरकार के बीच के बातचीत को दिखाया गया है। यह देखकर निराशा होती है कि रेलवे ने एक समय के लिए भोपाल रेलवे स्टेशन पर मौत के मुंह में फंसे लोगों को बचाने की बजाय रेल नेटवर्क अचानक बंद कर सभी ट्रेन रोक दी थी। करीब आधी सीरीज के बाद एंट्री होती है नॉर्दर्न रेलवे जीएम के किरदार में आर माधवन की। वह क्या प्लान लेकर आते हैं इसे जानने के लिए यह वेब सीरीज देखनी चाहिए। 

क्या थी भोपाल गैस त्रासदी

भोपाल में 1969 में युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री स्थापित की गई। इसमें करीब आधा शेयर होल्डिंग भारत सरकार का रहा। इसके ठीक दस साल बाद यहां प्लांट लगाकर सेविन नाम का पेस्टिसाइड तैयार किया जाने लगा। इससे पहले यह देश के बाहर से मंगवाया जाता था। इसमें मिथाइल आइसोसाइनेट नाम की जहरीली और खतरनाक गैस मिलाई जाती थी जिसे लिक्विड फॉर्म में रखा गया था। इसके खतरनाक होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह हवा और पानी के संपर्क में आते ही जानलेवा हो जाती है। इस फैक्ट्री में सेफ्टी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही थी। प्रशिक्षित स्टाफ, नियमित मेंटेनेंस, सुरक्षा उपकरणों को बंद करने जैसे कई उल्लंघन हो रहे थे जिससे किसी हादसे को रोकने में मदद मिलती है। कार्बाइड फैक्ट्री के आसपास रहने वाली करीब 20 हजार लोगों को यह नहीं पता था कि इतना नजदीक यह खतरनाक केमिकल तैयार किया जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे में करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई थी।

वहीं हजारों लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए थे। लंबे समय तक वहां की आबादी, अपंगता, आंखों की रोशनी, फेफड़ों की बीमारी, गर्भावस्था में समस्याओं से जूझती रही। इस वेब सीरीज की लेखनी की सराहना की जानी चाहिए कि इस भूले जा चुके घटना पर मेनस्ट्रीम सिनेमा में बतौर कहानी दिखाने का प्रयास किया। इसे देखते हुए एक बार के लिए लगेगा कि हमारे आसपास भी जहरीली हवा तो नहीं। यह सीरीज खत्म होने तक साथ आपको बांधे रखती है।

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