संस्कृतिसिनेमा चमकीलाः पंजाब के घर-घर में गूंजे दलित गायक के संघर्षों को छूकर निकलती फिल्म

चमकीलाः पंजाब के घर-घर में गूंजे दलित गायक के संघर्षों को छूकर निकलती फिल्म

अमर सिंह चमकीला के गीत इतने हिट होते थे कि उनके रिकॉर्ड ब्लैक में बिकते थे। उन दिनों उनको इतना पसंद किया जाता था कि साल भर में 366 कार्यक्रम उनके होते थे। हालांकि उन पर आरोप लगे कि उनके गीतों में अश्लीलता और फूहड़ता है।

नेटफ्लिक्स पर 12 अप्रैल से स्ट्रीम हो रही फिल्म ‘चमकीला’ के बाद से ही संगीत जगत का बड़ा नाम, एल्विस ऑफ पंजाब और पंजाब का पहला रॉकस्टार कहे जाने वाले अमर सिंह चमकीला के ही चर्चे हैं। निर्देशक इम्तियाज अली के निर्देशन में बनी फिल्म ‘अमर सिंह चमकीला’ ने लोगों को एक बार फिर चमकीला को याद करने का मौका दिया है। यह फिल्म चमकीला और उनकी साथी अमरजोत कौर के छोटे से लेकिन दमदार जीवन पर है। 1988 में चमकीला, अमरजोत की हत्या कर दी गई, जब वे दोनों अपने करियर में शीर्ष पर थे और पंजाब में उनके चाहने वालों की बड़ी भीड़ थी। चमकीला वह शख्सियत हैं जो कला के लिए जिए और मरे हैं।

अमर सिंह चमकीला के गीत इतने हिट होते थे कि उनके रिकॉर्ड ब्लैक में बिकते थे। उन दिनों उनको इतना पसंद किया जाता था कि साल भर में 366 कार्यक्रम उनके होते थे। हालांकि उन पर आरोप लगे कि उनके गीतों में अश्लीलता और फूहड़ता है। उनका मानना था कि लोग यही सुनना पसंद करते हैं। उनके गीत एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, ग्रामीण जिंदगी की परेशानियां, नशा और जाति के मुद्दे पर आधारित होते थे। 

कौन था अमर सिंह चमकीला

अमर सिंह चमकीला की भूमिका में दिलजीत दोसांझ हैं जिन्होंने दमदार अभिनय से सबका दिल जीत लिया है। वहीं अमरजोत का किरदार परिणीति चोपड़ा ने संजीदगी के साथ बखूबी निभाया है। फिल्म के संगीत को एआर रहमान ने सजाया है। फिल्म की कहानी अमर सिंह चमकीला, अमरजोत और इन दोनों के संगीत के बीच तालमेल बैठाती है। इम्तियाज अली और साजिद अली ने पटकथा लिखी है। धनीराम यानी अमर सिंह चमकीला लुधियाना के डुग्गी में 21 जुलाई 1960 को करतार कौर और हरी सिंह सांडिला के घर जन्मे थे। वे दलित समाज से आते थे। छह साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था। 19 साल की उम्र में कपड़ा मिल में जुराबें बनाने का काम शुरू किया। संगीत में उनकी रूचि बचपन से ही थी। इसके बाद वह सुरेंद्र जिंदा से मिले जो एक संगीत अखाड़े में काम करते थे।  

फिल्म का जो पहला दृश्य दरअसल सबसे आखिर का है जिसे देखते ही दिल दहल जाता है। अमर सिंह चमकीला जिन महफिलों में गाने गाते हैं, उन्हें अखाड़ा कहा जाता है। जोर-शोर के साथ अमर सिंह चमकीला और अमरजोत के नाम की अनाउंसमेंट की जा रही है। लोग उनकी एक झलक पाने को बेताब हैं। अखाड़ा शुरू होने से पहले दोनों एक चौबारे में बैठकर खाना खा रहे हैं। इसके बाद गाड़ी में बैठकर अखाड़े में पहुंचते हैं। सबसे पहले चमकीला गाड़ी से उतरता है और उसके बाद अमरजोत जैसे ही गाड़ी से उतरती हैं, उनके माथे में गोली मार दी जाती है। तभी दो गोली चमकीला को लगती हैं और दोनों वहीं दम तोड़ देते हैं। फिल्म यहां से शुरू होती है। इस समय चमकीला की उम्र केवल 27 साल थी। इसके बाद फिल्म में 27 साल का जीवन, गायकी के लिए जद्दोजहद और पंजाब की सियासत दिखती है। 

फिल्म में स्पष्ट नहीं है कि उन दोनों की जान किसने ली है। असल जिंदगी में भी उनकी हत्या करने वालों की पहचान तक नहीं हो पाई है। अमर सिंह चमकीला एक समय में इतने प्रसिद्ध हुए थे कि बाकी कलाकारों को काम मिलना बंद हो गया था। उनके एक से बढ़कर एक रिकॉर्ड आ रहे थे। प्रवासी पंजाबी भी उसके संगीत पर मंत्रमुग्ध थे। उनकी प्रसिद्धि उसे उग्रवादियों, धार्मिक नेताओं और पुलिस के गुस्से से नहीं बचा सकी। 

चमकीला जवाब में कहते हैं “यह बंदूक वालों का तो काम है गोली चलाना, यह चलाएंगे। हम गाने बजाने वाले हैं। हमारा काम है गाना गाना हम गाएंगे। ना वह हमारे लिए रुकेंगे और ना हम उनके लिए रुकेंगे। जब तक हम हैं स्टेज पर हैं। जीते जी मर जाएंगे इससे तो अच्छा है मरकर जिंदा रहें।”

चमकीले ने पहली एल्बम सुरिंदर सोनिया के साथ मिलकर निकाली जिसमें आठ गाने थे, जिसका नाम टकुए से टकुआ खड़के रहा। इसके लिए सोनिया को 600 रुपए मिले और चमकीला को 200 रुपए दिए गए। चमकीला के कुछ साथी भी थे जो हमेशा उसके साथ रहते थे। इसके बाद उसने अपने साथियों के साथ पैसे को लेकर बराबरी की बात की तो उन्हें वहां से भगा दिया गया। साथ ही जिसके पास ये काम कर रहे थे उन्होंने कहा कि “मैंने साथ क्या बैठा लिया तू अपनी जात भूल गया। तुझे क्या लगा हमारे बराबर का हो गया है। मैंने बनाया चमकीला को और जब चाहूं खत्म भी कर सकता हूं। इसलिए जो दे रहा हूं चुपचाप उठाता रह वरना, भूखा मारेगा। घूर क्या रहा है।” इसके जवाब में चमकीला कहता हैं, “भूखा तो नहीं मरूंगा, चमार हूं, भूखा तो नहीं मरूंगा।”

इसके बाद अमर सिंह चमकीला बनने की कहानी शुरू होती है। वह खुद का ही काम करना शुरू करता है और अखाड़े करने लगता है। कुछ समय बाद अखाड़े के लिए महिला गायिका की तलाश में उनकी मुलाकात अमरजोत कौर से हुई जो जट समाज से थी। दोनों ने एक साथ गाना शुरू किया। यह जोड़ी हिट हो गई। उनके एक से बढ़कर एक अखाड़े हुए। उनके कार्यक्रमों को सुनने लोग इतने ज्यादा आते थे कि घरों की छतों पर भी खड़े होने की जगह नहीं मिलती थी। फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती है चमकीला और अमरजोत की जोड़ी का नाम भी खूब चमकने लगता है। इतना क्रेज था कि शादी में अखाड़े के लिए समय न मिले तो शादियां कैंसल हो जाती थी।

तस्वीर साभारः The Week

अमरजोत का परिवार जब उसे चमकीला के साथ काम करने से मना करता है तो दोनों शादी कर लेते हैं। हालांकि चमकीला की पहली शादी गुरमेल कौर से हुई थी जिनके 2 बच्चे भी थे। चमकीला यह बात अपने साथियों से लेकर अमरजोत से भी छिपाता है। हालांकि खुद की बात को साबित करने के लिए वह इसे ही एकमात्र तरीका बताता है। चमकीला, अमरजोत को बताता है कि अब हमारी जोड़ी को कोई अलग नहीं कर सकता है। दोनों ने करीब 99 से ज्यादा गीत साथ में गाए। उनका एक लड़का चैमान चमकीला भी है।

साल 1984 के समय में जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था। चमकीला पर कई संगठनों की ओर से दबाव बनाया जाने लगा कि अश्लील गाने गाना बंद करो नहीं तो अंजाम बुरा होगा। उन्होंने बात मान भी ली और इसके बाद से धार्मिक गीत गाने शुरू कर दिए। ‘नाम जप लै’ और ‘बाबा तेरा नानका’ उनके बहुत ही ज्यादा पसंद किए जाने वाले गीत बने। अब वह सभी अखाड़ों में केवल धार्मिक गाने ही गाते थे। लेकिन कुछ समय बाद लोग दोबारा से अखाड़ों में पुराने गानों की फरमाइश करने लगे। उन्होंने दोबारा वही गीत गाने शुरू कर दिए। इसी बीच दोबारा से उन्हें धमकियां मिलने लगीं। उनके शुभचिंतक यही कहने लगे कि कुछ समय घर में ही रहो, जान का खतरा है। 

तस्वीर साभारः Mint Lounge

चमकीला जवाब में कहते हैं “बंदूक वालों का तो काम है गोली चलाना, वे चलाएंगे। हम गाने बजाने वाले हैं। हमारा काम है गाना हम गाएंगे। ना वह हमारे लिए रुकेंगे और ना हम उनके लिए रुकेंगे। जब तक हम हैं स्टेज पर हैं। जीते जी मर जाएंगे इससे तो अच्छा है मरकर जिंदा रहें।” उन्होंने देश के बाहर कनाडा और दुबई में भी कार्यक्रम किए। यह फिल्म एक दमदार प्रयास है अमर सिंह चमकीला और अमरजोत के काम को करीब से देखने, समझने का। फिल्म में चमकीला के मूल गीतों को पंजाबी में ही प्रस्तुत किया गया है। जिनका हिंदी अनुवाद स्क्रीन पर दिखाई देता है। फिल्म में अमर सिंह और अमरजोत के फुटेज को भी शामिल किया गया है। इम्तियाज अली ने अपने निर्देशन के ज़रिये चमकीला के जीवन को बेहतर तरीके से डॉक्यूमेंट किया है और ऑडियंस तक एक जरूरी फिल्म पहुंचाई है। इस तरह के दलित कलाकारों पर फिल्में बनना और उनका जीवन डॉक्यूमेंट किया जाना आवश्यक है। 

उनकी मौत के पीछे कौन रहा होगा यह आज भी एक पहेली बनी हुई है। उस दौर में साथ काम करने वाले कलाकार, पंजाब की सियासत या फिर कोई अन्य निजी जानकार लेकिन उनकी हत्या पर होने वाली जांच भी जल्द ही बंद हो गई थी। चमकीला और अमरजोत की जोड़ी ने खूब सारे ऐसे गीत दिए हैं जिन्हें आज भी शादी ब्याह या खुशी, त्योहार के मौके पर गाया जाता है। इस जोड़ी को वो मान-सम्मान नहीं मिल सका जिसके वो हकदार थे। 

वे पहलू जो फिल्म से अछूते रहे

चमकीला ग्रामीण दलित परिवेश से आने वाले लोक गायक थे। ऐसे में उनका संघर्ष कठिन हो जाता है। इस पर गहरे तरीके से कहीं बात नहीं की गई है। उनकी दूसरी पत्नी अमरजोत जट समाज से थीं। उस दौर में एक दलित का अन्य जाति में शादी के बाद की चुनौती का भी जिक्र नहीं है। कुछ लोगों को चमकीला इसलिए भी अखरते थे कि वो दलित समाज से थे। यह भी उनकी हत्या का एक कारण हो सकता है। फिल्म में यह एंगल भी एकदम मिसिंग है। फिल्म में उनके एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर बने गानों को जरूरत से ज्यादा जगह दी गई है, जबकि नशाखोरी, ग्रामीण जिंदगी की परेशानियां और ग्रामीण परिवेश पर बने गीत नजरंदाज किए गए हैं। वहीं पहली पत्नी के होते हुए किसी को बिना बताए दूसरी शादी कर लेना और उसे एक ही डायलॉग में जस्टिफाई भी कर देना अखरता है और देर तक कचोटता है। वहीं, जब किसी की बायोपिक पर बात होती है तो उस इंसान की खूबियों के साथ खामियों पर भी चर्चा होती है। यहां फिल्म में थोड़ा और कुछ कहा जा सकता था।  

साल 1984 के समय में जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था। चमकीला पर कई संगठनों की ओर से दबाव बनाया जाने लगा कि अश्लील गाने गाना बंद करो नहीं तो अंजाम बुरा होगा। उन्होंने बात मान भी ली और इसके बाद से धार्मिक गीत गाने शुरू कर दिए।

चमकीला की दलित पहचान, उसके पंजाब के समाज से निकले गीत, सामाजिक-आर्थिक विभाजन और संगीत उद्योग में बड़े पैमाने में समाज में क्या हो रहा है ये फिल्म में छूट गए है लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि फिल्म नहीं देखी जानी चाहिए। निसंदेह इम्तियाज अली ने अपनी फिल्म से लोगों को चमकीला की याद दिलाई है। फिल्म चमकीला के संगीत पर ज्यादा केंद्रित रही है। दिलजीत दोसांझ कुछ दृश्यों में ख़ासे जमे है और परिणीति चोपड़ा ने अमरजोत के किरदार के रूप में खुद को साबित किया है। नेटफ्लिक्स के जरिए चमकीला को घर-घर तक पहुंचाने की उनकी कोशिश सफल भी हुई है और वो संगीत जिसके लिए चमकीले को निशाना बनाया गया वह फिर से लोगों द्वारा पसंद किया जा रहा है। 


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