पूमनी का उपन्यास ‘हीट’ : जाति और वर्ग की दीवारों को लांघती एक तमिल कहानी By Sahil Firoz 7 min read | Jul 9, 2025
अरुणा रॉय की ‘द पर्सनल इज़ पॉलिटिकल’: जहां निजी अनुभव बनते हैं राजनीतिक बदलाव की बुनियादBy Shivani Khatri 7 min read | Jul 8, 2025
सितारे ज़मीन पर: संवेदनशीलता से बुनी गई एक सरल लेकिन असरदार फिल्मBy Sonali Rai 6 min read | Jul 4, 2025
भारतीय मेनस्ट्रीम सिनेमा में सांस्कृतिक विविधता की समस्यात्मक पेशकशBy Sahil Firoz 7 min read | Jul 3, 2025
मन्नू भंडारी की दीपा की दुनिया: जब प्रेम स्वतंत्र चेतना से टकराता हैBy Rupam Mishra 7 min read | Jun 30, 2025
सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ती हिंदी में स्त्री आत्मकथाओं का उभरता स्वरBy Rupam Mishra 7 min read | Jun 25, 2025
वो भारतीय शॉर्ट फ़िल्में, जो बदल रही हैं क्वीयर कहानियों का इतिहासBy Priti Kharwar 6 min read | Jun 10, 2025
सवर्ण नजरिए से ‘जातिवाद’ को दिखाती बॉलीवुड को क्यों बदलने की जरूरत है?By Sonali Rai 5 min read | Jun 5, 2025
गांव, यादें और प्रेम का दस्तावेज़: शिरीष खरे की ‘नदी सिंदूरी’By Shivani Khatri 5 min read | Jun 5, 2025
ब्राह्मणवादी पितृसत्ता को चुनौती देती, स्त्री अस्मिता की आवाज़ है कृष्णा सोबती की ‘मित्रो मरजानी’By Sarala Asthana 6 min read | May 29, 2025
अमृता प्रीतम की ‘जंगली बूटी’: अंगूरी के प्रेम और पहचान की तलाश करती कहानीBy Rupam Mishra 7 min read | May 28, 2025
पितृसत्तात्मक व्यवस्था की पड़ताल करती फिल्म ‘कोर्ट: स्टेट वर्सेस अ नोबडी’By Sonali Rai 7 min read | May 27, 2025