जॉयलैंड: लैंगिक असमानता, पितृसत्ता, सेक्सुअलिटी की सच्चाई को सामने रखती एक उम्दा कहानीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Mar 28, 2023
दो बीघा ज़मीन: आखिर फ़िल्म की प्रासंगिकता खत्म क्यों नहीं हो रही है?By Rupam Mishra 7 min read | Feb 28, 2023
छतरीवालीः महत्वपूर्ण मुद्दे पर कमजोर कहानी के साथ बनी एक औसत फिल्मBy Nootan Singh 5 min read | Feb 2, 2023
टिकटशुदा रुक्का: ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के भयावह स्वरूप का ज़रूरी दस्तावेज़By Rupam Mishra 8 min read | Nov 24, 2022
मौजूदा दौर में क्यों प्रासंगिक है जातिवादी समाज के चेहरे को उधेड़ती फ़िल्म ‘दामुल’By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Nov 21, 2022
जाति और जेंडर की परतों को उकेरती उमा चक्रवर्ती की किताब ‘जेंडरिंग कास्ट: थ्रू ए फेमिनिस्ट लेंस’By Shweta Singh 5 min read | Nov 14, 2022
जेंडर की अलग-अलग परतों को खोलती वी. गीता की किताब ‘जेंडर’By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Jul 29, 2022
‘चूड़ी बाज़ार में एक लड़की’ किताब जो बताती है, “कोई लड़की संस्कृति के सामने एक दिन में घुटने नहीं टेकती है”By Pooja Rathi 5 min read | Jul 25, 2022
200 हल्ला हो: सच्ची घटना पर आधारित एक फिल्म जो आपको झकझोर देगीBy Supriya Tripathi 4 min read | Jun 16, 2022
झुंड : स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी की दीवार से उस पार का भारतBy Ravi Samberwal 5 min read | Mar 14, 2022
पचपन खंभे लाल दीवारेंः रीतियों और ज़िम्मेदारियों में फंसी एक स्त्री का दर्दBy Deep Shikha 4 min read | Mar 9, 2022
महिलाओं की दोस्ती, शोषण से आज़ादी और उनकी मर्ज़ी को उकेरती एक मज़बूत कहानी है पार्च्डBy Saumya Raj 6 min read | Mar 8, 2022