संस्कृतिसिनेमा मस्त में रहने का : जीवन की लड़ाई में अकेले छूट गए बुजुर्गों की एक मार्मिक कहानी

मस्त में रहने का : जीवन की लड़ाई में अकेले छूट गए बुजुर्गों की एक मार्मिक कहानी

आज के बड़े बैनरों की प्रचार से भरपूर फिल्मों के बीच यह फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक आपको बांधे रखती हैं। मौजूदा फिल्मी दौर के सांचे से अलग फिल्म अपने किरदारों की मासूमियत से इतना प्रभावित करती है कि फिल्म देखते समय एक जुड़ाव का अहसास होता है और फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।

ओटीटी प्लेटफॉर्म प्राइम वीडियो पर मौजूद फिल्म ‘मस्त में रहने का एक’ एक साधारण सी कहानी लग सकती है यही वजह है कि फिल्म वास्तविक लगती है। कहानी में किरदारों की बुनाई इस कदर जमती है कि आज के बड़े बैनरों की प्रचार से भरपूर फिल्मों के बीच यह फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक आपको बांधे रखती हैं। मौजूदा फिल्मी दौर के सांचे से अलग यह फिल्म अपने किरदारों की मासूमियत से इतना प्रभावित करती है कि फिल्म देखते समय एक जुड़ाव का अहसास होता है और फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।

विजय मौर्य द्वारा निर्देशित मस्त मे रहने का शुरुआत सुबह सवेरे अलार्म से जागते एक वृद्ध आदमी को देखते हुए होती है जो बिस्तर पर लेटे हुए हल्की स्ट्रेचिंग करता है और बाद में सैर पर निकल जाता है। मुबंई में एक कॉलोनी में रहने वाला वीएस कामत (जैकी श्रॉफ) अकेला और बेहद अनुशासन में जीवन के अंतिम पड़ाव को काटने की कोशिश करता रहता है। पत्नी की मुत्यु के बाद वह अकेला है और तमाम तरह खुद को व्यस्त रखने के बाद दिन के आखिर तक उस पर अकेलापन हावी हो जाता है। यही वजह है कि जब एक रात उसके घर एक चोर, चोरी करने आता है तो वह उससे खुद को मारने की गुहार लगाता है। हालांकि चोरी की घटना के बाद कामत के जीवन में मोड़ आता है।

फिल्म मुंबई शहर के साथ लोगों के जीवन के संबंध को दिखाती है लेकिन यह किसी रफ़्तार से अलग अपनी धुन में गंभीर विषय जैसे शहरों में प्रवासी जीवन, गरीबी, बुजुर्गों का जीवन और अकेलेपन पर बात करती है। 

पुलिस की सलाह पर वह खुद के व्यवहार को बदले के लिए राजी होता है। पहले के मुकाबले सामाजिक होने की कोशिश के बीच पंजाबी महिला प्रकाश कौर (नीना गुप्ता) से मिलता है जो उसकी तरह अकेली है। वह कनाडा में अपने बेटे और बहू के साथ समझौतों से भरे जीवन से दूर मुंबई आती है। सम्मान और अपनेपन के माहौल बनाने के लिए बीच एक रात चोर उसके घर में भी आता है। ये दोनों अकेले बुजुर्ग अपने घर में चोरियों की वजह से आपस में घुलते-मिलते हैं। 

कहानी में चोर नन्हे (अभिषेक चौहान) पेशे से एक दर्जी है। वह बॉलीवुड की एक डांस मंडली के लिए कॉस्ट्यूम सिलता है। तमाम संघर्षों में ईमानदारी से जीवन जीने की कोशिश के जब आखिर में हताशा उसे घेरती है तब वह बुजुर्गों के घर चोरी करने का सहारा लेता है। इसी भाग-दौड़ में वह रानी (मोनिका पंवार) से मिलता है जो सड़क पर भीख मांगने का काम करती है। कहानी में इन चारों किरदार में मुंबई शहर उन्हें एक-दूसरे की ओर धकेलती है और जीवन के संघर्ष में जोड़े के रूप मे जोड़ती है। 

मुंबई शहर की रफ़्तार से अलग यह फिल्म अपनी गति से आगे बढ़ती है। धीरे-धीरे आगे बढ़ती कहानी किरदारों के व्यक्तिगत रहस्यों और संघर्षों को सामने रखती है। इन सबके बीच इन किरदारों में मौज-मस्ती के कुछ पल और उम्मीद का दामन थामे रखे हुए भी दिखाया गया है। फिल्म चारों मुख्य किरदारों से अलग बिलकीस (राखी सावंत) भी है जो एक डांसर है और नन्हे को काम पर वही रखती है। वह नन्हे को काम देती है और तुरंत ही डिलीवरी की डिमांड भी चाहती भी है। इन सबके बीच फिल्म रूके बिना मन को खुश करने वाले सीन देखने को मिलते हैं। जैसे कामत और प्रकाश कौर की दोस्ती, शराब पीने की लालसा और नन्हे और रानी के बीच का संवाद जो मासूमियत से भरे होते हैं और यही कारण है कि वह चेहरे पर मुस्कान भी लाते दिखते हैं।

तस्वीर साभारः The Hindu

फिल्म के कलाकारों ने अपने अभिनय में किरदार की बारीकी को बहुत शानदार तरीके से निभाते नज़र आए हैं। बात अगर जैकी श्राफ की करें तो वह अपने हाव-भाव, तेल से चिपके बाल और कमर तक पैंट बांधकर थोड़ी झुकी चाल में बिल्कुल एक साधारण हमारे-आपके पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग अंकल की तरह दिखे हैं। उनके चेहरे पर उदासी और अकेलेपन का भाव आंखो की कोर से साफ दिखता है जो उनके किरदार से दर्शकों को बांधे रखता है। वही नीना गुप्ता पंजाबी महिला के किरदार में खूब जंचती है हालांकि उनका किरदार उसी आम पंजाबी महिला से प्रेरित नज़र आता है जैसा अक्सर बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाया जाता है। जो मुंहफट है, तेज बोलती है लेकिन उनके अभिनय का उत्साहपन इन चीज को नज़रअंदाज भी करने देता है। हताश नन्हे मन में बुदबुदाता हुआ और रूक-रूक कर मुस्कुराता दिखता है। उसके चेहरे पर एक प्रवासी व्यक्ति का संघर्ष और बड़े शहर में जीवन जीने के बाद भी घर जाने की इच्छा बहुत मासूमियत से दिखती है।  

इस फिल्म के किरदारों का जीवन उदासी से भरा जीवन है लेकिन फिल्म देखने वालों को किसी तरह की उदासी से नहीं घेरती है और यही निर्देशक की सबसे बड़ी सफलता है कि वह अपना संदेश देने में कामयाब होते हैं। क्योंकि फिल्म मुंबई शहर के साथ लोगों के जीवन के संबंध को दिखाती है लेकिन यह किसी रफ़्तार से अलग अपनी धुन में गंभीर विषय जैसे शहरों में प्रवासी जीवन, गरीबी, बुजुर्गों का जीवन और अकेलेपन पर बात करती है। यह हल्की-फुल्की फिल्म है लेकिन इसकी मार्मिकता इसे असल में बहुत भारी बनाती है।   

मुबंई में एक कॉलोनी में रहने वाला वीएस कामत (जैकी श्रॉफ) अकेला और बेहद अनुशासन में जीवन के अंतिम पड़ाव को काटने की कोशिश करता रहता है। पत्नी की मुत्यु के बाद वह अकेला है और तमाम तरह खुद को व्यस्त रखने के बाद दिन के आखिर तक उस पर अकेलापन हावी हो जाता है।

अकेलापन आज के समाज की वह वास्तविकता है जिस पर बात करने से लोग अभी बचते हैं। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अकेलेपन को वैश्विक स्तर पर सार्वजिक स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता बताया। इस विषय से जुड़ी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा गया है कि अकेलेपन महसूस करने की न कोई उम्र है औ न कोई सीमा है। द गार्जियन में प्रकाशित ख़बर के अनुसार चार में एक बुजुर्ग व्यक्ति सामाजिक रूप से एकांत का अनुभव करते हैं जो दुनिया के सभी जगहों पर समान है। बुजुर्ग व्यस्कों में अकेलपन की वजह से 50 प्रतिशत में डिमेंटिआ और 30 प्रतिशत में धमनी रोग या स्ट्रोक होने की संभावना हो सकती है। विशेषज्ञों ने कहा है कि यह समस्या किसी एक देश को नहीं बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है। यही कारण है कि इस जटिल विषय पर यह फिल्म वक्त की ज़रूरत भी लगती है और इस पर चर्चा करने का संदेश भी देती है। 


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content