“उनसे ज्यादा बहुत सी सुंदर महिलाएं है, स्टार कैपेंनर हैं| हिरोइन और आर्टिस्ट हैं जो उनसे बेहतर हैं| बीजेपी में खूबसूरत महिलाओं की कमी नहीं हैं, जहां खड़ा कर देंगे, उनसे ज्यादा वोट ला सकती हैं|” – ये बयान हैं सांसद विनय कटियार का, जो उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में दिया|
इस बयान को सुनने के बाद ऐसा लगता है जैसे विनय कटियार कोई सांसद नहीं बल्कि मिस वर्ल्ड कम्पटीशन में सुंदरता के पैमाने जांचने वाले अफसर हो, जिन्हें सुंदरता की बेहद बारीक परख हो|
उत्तर-भारत में चुनावी बिगुल बज चुका है| हर पार्टी अपनी-अपनी जीत की तैयारी में एड़ी-चोटी एक करने में जुटी है| चुनावी-दौर का यह एक ऐसा समय होता है जब उम्मीदवारों या यूँ कहें प्रतिभागी राजनीतिक पार्टियों को तात्कालिक मुद्दों पर और उनके सुधार को लेकर अपनी नीति पर बात करनी चाहिए| ऐसे में अनुभवी नेताओं द्वारा महिलाओं के लिए बेटी, सुंदरता व इज्जत जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके इस तरह की टिप्पणी करना न केवल उनकी संकीर्ण सोच बल्कि देश में राज करने की नीति में तेज़ी से इस्तेमाल में लाये जाने वाले निम्न-स्तरीय हथकंडों को भी दर्शाता है|
आगामी उत्तर-प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की स्टार प्रचारक है प्रियंका गांधी| जिनके खिलाफ़ अपने बयान के ज़रिए राजनीतिक दावं खेलने की कोशिश की विनय कटियार ने| प्रियंका गांधी ने जिसका जवाब देते हुए कहा कि – “वे सही हैं, उनके पास ऐसी महिलाएं हैं| लेकिन क्या बीजेपी मेरे साथियों को इस नज़रिए से देखती है, जो मज़बूत हैं, बहादुर और ख़ूबसूरत महिलाएं हैं? ये महिलाएं जहां हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने तमाम मुसीबतों का सामना किया है| अगर ऐसा है तो मुझे और भी हंसी आ रही है क्योंकि उन्होंने आधी आबादी के बारे में बीजेपी की सोच को ज़ाहिर कर दिया है|”
इस हफ्ते में महिलाओं पर दिया गया यह दूसरा विवादित बयान था| इससे पहले, जेडीयू के नेता शरद यादव ने पटना में कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन के मौके पर कहा कि “बेटी की इज्जत जाएगी तो गांव-मोहल्लों की इज्जत जाएगी, वोट एक बार बिक गया तो देश की इज्जत और आने वाला सपना पूरा नहीं हो सकता|” शरद यादव पहले जेडीयू के नेशनल प्रेसिडेंट रहे हैं| एनडीए के कन्वेयर रहे हैं| ऐसे ‘अनुभवी नेता’ की ओर से ऐसा दकियानूसी बयान आना हताश करता है|
कहते है प्यार और जंग में सब जायज़ है| इसी तर्ज पर अगर बात की जाए भारतीय राजनीति की तो इस जुमले की दिशा में बढ़ते राजनीतिज्ञ चुनावी मौसम में अक्सर दिखाई पड़ जाते है| पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने प्रतिद्वंदी को परास्त करने या नीचा दिखाने की फ़िराक में नेता खुद को आगे बढ़ाने की बजाए अपने को हर हद से नीचे गिराते जाते है| समय बदल गया| चुनाव के नियम और उन्हें लड़ने-जीतने की नीति बदल गयी|
अब आम का नहीं ख़ास या यूँ कहें लीक से हटकर काम करने से, सुर्ख़ियों में बने रहने से अपने वोटों को बढ़ाने का चलन चलता जा रहा है| ऐसे में देश के नेता इस चलन को विपरीत दिशा में आत्मसात करते इस कदर नज़र आते हैं कि किसी भी मुद्दे व दुर्घटना पर उनके विवादित बयान सुर्खियाँ बन जाते है और मुद्दे बेहद बारीक़| आज़ादी के इतने साल बाद कई सरकारें बदली, लेकिन डिजिटल इंडिया के दौर में अपने देश का, समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले और हमारे वोटों से चुने गए जननेताओं के ऐसे बयान कई सवाल खड़े देते हैं| सवाल – हमारे समाज की सोच का, समाज के लिए उचित प्रतिनिधि चुनने की क्षमता का और हमारी शिक्षा का|
गौरतलब है कि सुंदरता अपनी जगह एक सच्चाई है, लेकिन उसकी ओर तारीफ़ भरी निगाहों से देखना एक बात है और उसे ही स्त्री के मूल्यांकन की एकमात्र कसौटी बना लेना बिल्कुल दूसरी बात है| यह वह दौर है जब बात चाहे खेल-जगत की हो या प्रशासनिक सेवा व राजनीति की हर क्षेत्र में महिलाएं बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहीं है और लगातार सफलता के इतिहास में नए पन्ने जोड़ रही है, ऐसे में महिलाओं के अस्तित्व को इंसान की बजाय बेटी-बहु जैसे रिश्तों का नाम लेकर उनके साथ ‘इज्जत’ का पत्थर बांधते हुए उनके अस्तित्व को संबोधित करना निंदनीय है|
इस पूरे प्रकरण में यह समझना होगा कि जब बात महिला पर हो, उन्हें लेकर किसी भी तरह की संकीर्ण मानसिकता पर हो तो इसमें महिलाओं को समझदारी दिखाते हुए पितृसत्ता की सड़ी सोच रखने वाले शख्स पर निशाना साधना चाहिए न की उनकी राजनीतिक पार्टी की महिला प्रतिनिधि पर|