ऐसा नहीं है कि हर महिला को पीरियड्स के समय परेशानी होती है मगर जिन महिलाओं को पीरियड्स के वक़्त परेशानी होती है, उन्हें इस दौरान छुट्टी की ज़रूरत होती है। इसे देखते हुए सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में महिलाओं को छुट्टी दी जाती है। अरुणाचल प्रदेश के एक कांग्रेसी सांसद निनॉन्ग इरिंग का ‘मेंसुरेशन बेनेफिट बिल 2017’ सदन में पेश करने की बात कही थी। इस बिल में पीरियड्स के दौरान प्राइवेट और सरकारी दोनों क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को दो दिनों की छुट्टी देने का प्रावधान पेश किया गया था।
उस वक्त महिला बाल विकास मंत्रालय ने इस मुद्दे पर कहा था कि फिलहाल ऐसे किसी कानून की योजना नहीं है। कल्चर मशीन नामक एक मीडिया कंपनी ने अपने यहां काम करने वाली महिलाओं को पीरियड्स के पहले दिन छुट्टी देने का प्रावधान शुरू किया था। ‘कल्चर मशीन’ ने #FOPLeave के नाम से एक ऑनलाइन कैम्पेन भी चलाया था, जिसे लोगों का ज़बरदस्त समर्थन भी मिला था। हालांकि भारत में अभी तक पीरियड्स के दौरान महिलाओं को छुट्टी नहीं दी जाती है मगर कुछ कंपनियां और राज्य सरकार हैं, जो महिलाओं को वेतन के साथ छुट्टी प्रदान करते हैं।
पीरियड्स को लेकर अपने अधिकारों के प्रति महिलाओं का भी जागरूक होना जरूरी है, जिसके लिए महिलाओं को पीरियड्स के प्रति जागरूक करने तथा मेन्स्ट्रुएशन यानी मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बरतने को लेकर जागरूक करने के मकसद से हर साल दुनियाभर में 28 मई को मेन्स्ट्रुअल हाइजीन डे यानी माहवारी स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत साल 2014 में हुई थी। इटली सहित दुनिया में कई ऐसे देश है, जहां कामकाजी महिलाओं को तीन दिन का सवेतन माहवारी अवकाश (पेड लीव) दिया जाता है। इंडोनेशिया में कंपनियों को पीरियड्स के दिनों में औरतों से कम काम लेने की इजाजत दी गई है। जापान में सन् 1947 से ही लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में छुट्टियां मिलती हैं।
महिलाएं माहवारी के दौरान अगर महिलाएँ छुट्टी लेंगी तो ऐसा नहीं है कि उन्हें किसी के कमतर आंका जाएगा क्योंकि महिलाएं पीरियड्स के दौरान अनेकों तरह की परेशानियों से जूझती हैं। इसके लिए उन्हें अपने आप को समय देने और आराम की ज़रूरत होती है। अनेकों प्राइवेट कार्यस्थान पर महिलाओं को पीरियड्स के वक़्त छुट्टी तो मिलती है मगर उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता है। हालांकि अब भी प्राइवेट कंपनियां हैं, जो महिलाओं को छुट्टी नहीं देती क्योंकि इससे उन्हें लगता है कि उनकी प्रॉडक्टिविटी कम हो जाएगी।
और पढ़ें : ‘पीरियड्स’ पर जोक्स से मर्दों की आपत्ति क्यों है?
अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि हर साल महिलाओं के पीरियड्स दर्द की वजह से काम के संबंध में प्रॉडक्टिविटी में औसतन 33 फ़ीसद की कमी पायी जो औसतन 9 दिन की कमी के बराबर है। अनेकों प्राइवेट कंपनियां महिलाओं को कार्य पर भी नहीं रखती क्योंकि उन्हें पीरियड्स के दौरान छुट्टी देने में परेशानी होती है। इसके साथ मातृत्व अवकाश को भी अगर जोड़ लें तो महिलाओं को कार्य पर नहीं रखने की दलील और भी बढ़ जाती है।
हर साल महिलाओं के पीरियड्स दर्द की वजह से काम के संबंध में प्रॉडक्टिविटी में औसतन 33 फ़ीसद की कमी पायी जो औसतन 9 दिन की कमी के बराबर है।
हालांकि पीरियड्स के दर्द को हार्ट अटैक जितना ही बुरा कहा जा सकता है। एक स्टडी में शामिल करीब 70 फ़ीसद महिलाओं ने कहा कि वे ऐसा चाहती हैं कि उन्हें पीरियड्स के दौरान वर्किंग आवर्स में फ्लेक्सिबिलिटी मिले। साल 2016 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रफेसर ने यह बात कही थी कि पीरियड्स का दर्द हार्ट अटैक के दर्द जितना ही बुरा होता है। ऐसे में अनेकों महिलाओं को पीरियड्स में दौरान छुट्टी जरूर देनी चाहिए।
कभी-कभी यह सवाल भी उठाया जाता है कि जब महिलाएं बराबरी की बात करती है तो उन्हीं पीरियड्स के दौरान छुट्टी लेने की क्या ज़रूरत है? उन्हें पीरियड्स के दौरान छुट्टी नहीं लेकर अपनी बराबरी को सिद्ध करना चाहिए। इस तरह के कई सवाल है जो पीरियड के दौरान छुट्टी लेने पर महिलाओं से किए जाते हैं। पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चलने के दौरान और अपने आप को सिद्ध करने के लिए उन्हें बार-बार कहा जाता है। ऐसे में कुछ महिलाएं कहती हैं कि उन्हें पीरियड्स के दर्द छुट्टे की ज़रूरत नहीं है मगर महिलाओं में से ही अनेकों ऐसे महिलाएं भी होती है जिन्हें पीरियड्स के दौरान काम करने में परेशानी होती है। उन महिलाओं के लिए तो छुट्टी की व्यवस्था की जा सकती है और जो महिला छुट्टी नहीं लेना चाहती उन्हें छुट्टी नहीं दी जाए मगर जिन महिलाओं को छुट्टी की जरूरत है उन्हें तो छुट्टी अवश्य मिलनी चाहिए।
और पढ़ें : पीरियड को लेकर हर किसी के अनुभव अलग होते हुए भी एक है !
पीरियड्स के दौरान छुट्टी मिलना महिलाओं के लिए जरूरी है क्योंकि अनेकों महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें बिस्तर से उठने तक का मन नहीं करता तो वह काम कैसे कर पाएंगी? मेरा यह मानना है कि महिलाओं को पीरियड्स के दौरान छुट्टी मिलनी चाहिए और जो महिलाएं छुट्टी नहीं लेना चाहती वह उनके अधिकार में होना चाहिए कि वह उस छुट्टी का क्या करेंगी? ऐसे में जिन महिलाओं को छुट्टी की जरूरत नहीं लगती है, वह पीरियड्स के दौरान भी काम कर सकेंगी।
इसके साथ ही घर पर भी काम करने वाली महिलाओं को पीरियड के दौरान अपने आप पर पूरा ध्यान देना चाहिए और घर के कामों से भी कुछ समय के लिए किनारा कर लेना चाहिए और घर के बाकी सदस्यों को सारी बात समझ कर जानकर महिलाओं की मदद करनी चाहिए। दिनभर अगर महिलाएं काम के चक्कर में परेशान रहेंगी स्वयं को समय नहीं दे पाएंगी तो उनकी तबीयत खराब होगी ही। ऐसे में घर के सदस्यों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह महिलाओं के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें।
महिलाओं से गुज़ारिश है कि वे अपने हक के लिए अपनी आवाज़ ज़रूर बुलंद करें। अपने सेहत के लिए स्वयं जागरूक हो और स्वयं को समय देना सीखें। हर महिला के लिए ज़रूरी है कि वे अपने पीरियड्स के दौरान खुलकर अपनी बात सामने रखी और स्वयं के साथ समय बिताएं। अगर महिलाओं को लगता है कि उन्हें पीरियड्स के दौरान छुट्टी मिलनी चाहिए तो बेहतर है कि वह अपनी बात को सामने रखें और अपने हक की मांग स्वयं करें क्योंकि चुप रहने से सेहत संबंधी मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसलिए ज़रूरी है कि अपने हक के लिए अपने ज़रूरत के लिए स्वयं लड़ा जाए।
और पढ़ें : ‘पीरियड का खून नहीं समाज की सोच गंदी है|’ – एक वैज्ञानिक विश्लेषण
तस्वीर साभार : feminisminindia