इंटरसेक्शनलजेंडर सोलो ट्रैवल करने वाली आत्मनिर्भर महिलाएं और सुरक्षा की कमियां

सोलो ट्रैवल करने वाली आत्मनिर्भर महिलाएं और सुरक्षा की कमियां

रिसर्च गेट में कोलकाता के 100 महिला सोलो ट्रैवलर पर किए गए शोध में उनके जोखिम संबंधी धारणाओं और अनुभवों पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने अपनी मुख्य चिंताओं में अनवांटेड मेल अटेन्शन का अनुभव किया। 49 फीसद महिलाओं ने इसका अनुभव किया और 20 फीसद महिलाओं ने यौन हिंसा की सूचना दी।

महिला सोलो ट्रैवलर की अवधारणा आज एक प्रासंगिक ‘पर्यटन वर्ग’ बन गई है। पर्यटकों के रूप में, ये महिलाएं ऐसी यात्राओं की तलाश में रहती हैं जो एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा से कहीं अधिक कुछ लेकर आए। वे रोमांच, स्वतंत्रता, व्यक्तिगत तृप्ति की भावना, व्यक्तित्व के बढ़ोतरी या जीवन के शोरशराबा से दूर पलायन की तलाश में अकेले यात्रा करना पसंद करती हैं। आज असल में अधिकतर महिलाएं जो सोलो ट्रैवल करती हैं, वे अकेले इसलिए यात्रा नहीं करतीं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है या वे अकेली हैं। सोलो ट्रैवल अब एक विशिष्ट बाज़ार नहीं रह गया है। यह अकेले ही कुल यात्रा बाज़ार में एक बड़ा योगदान देता है और हाल के सालओं में इसमें भारी वृद्धि देखी गई है। रिसर्च गेट में प्रकाशित एक शोध बताती है कि ‘सोलो ट्रैवल’ जैसे शब्दों की ऑनलाइन खोज बढ़ी है, जो दिखाता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रकार की यात्रा में रुचि ले रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में ‘महिला सोलो ट्रैवल’ की खोज में पिछले साल की तुलना में 68 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। स्काईस्कैनर के साल 2025 की शुरुआत में जारी आंकड़ों से पता चलता है कि कुल सोलो ट्रैवलर में 54 फीसद महिलाएं हैं। भारत में भी यह चलन तेजी से बढ़ रहा है। मेकमाईट्रिप और ट्रिपोटो जैसे भारतीय ट्रैवल पोर्टलों के अनुसार पिछले दो सालओं में महिला सोलो ट्रैवल की मांग में 30-40 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार एक ट्रैवल वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय महिलाएं छुट्टियों पर पुरुषों की तुलना में 15 फीसद ज़्यादा खर्च करती हैं। इसके अलावा, वे अपनी अगली यात्रा की योजना और रिसर्च में 20 फीसद अधिक समय लगाती हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि आज की महिलाएं यात्रा को लेकर पहले से ज़्यादा आत्मनिर्भर और जागरूक हो चुकी हैं। लेकिन, ये आंकड़ें ये भी बताते हैं कि महिलाओं के लिए सुरक्षित और आरामदायक ट्रैवल एकदम किफायती नहीं है।

मेकमाईट्रिप और ट्रिपोटो जैसे भारतीय ट्रैवल पोर्टलों के अनुसार पिछले दो सालओं में महिला सोलो ट्रैवल की मांग में 30-40 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है। रिपोर्ट के अनुसार एक ट्रैवल वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय महिलाएं छुट्टियों पर पुरुषों की तुलना में 15 फीसद ज़्यादा खर्च करती हैं।

महिलाओं के सोलो ट्रैवल में बढ़ोतरी लेकिन चिंता बनी हुई

इस रिपोर्ट में हॉलिडेआईक्यू के मुताबिक, इस साल अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं की संख्या में करीब 6 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। अब महिलाएं लंबी यात्राएं करना पसंद करती हैं और उनके पास पुरुष यात्रियों की तुलना में अधिक बजट भी होता है। वहीं लगभग 42 फीसद महिलाएं अपने जीवनसाथी के साथ यात्रा करती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि जून महीना यात्राओं के लिए सबसे लोकप्रिय है, जबकि मार्च सबसे कम पसंद किया जाने वाला महीना है। यात्रा संतुष्टि के मामले में अहमदाबाद, बैंगलोर और दिल्ली की महिला यात्री सबसे अधिक खुश पाई गईं। वहीं, कोलकाता, हैदराबाद और पुणे की यात्री अपनी यात्राओं से कम संतुष्ट रहीं। यह रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के लिए होटल या रिसॉर्ट का स्थान सबसे अहम पहलू होता है। वे चाहती हैं कि उनका ठहरने का स्थान सुरक्षित और सुविधाजनक जगह पर हो। उनके लिए आराम, सुरक्षा और अनुभव ज्यादा मायने रखते हैं।

हालांकि देश में महिलाओं की अकेले यात्रा करने की दर बढ़ी है। लेकिन महिलाएं अब भी सुरक्षा, सामाजिक रूढ़िवादी दृष्टिकोण और पारिवारिक दबाव जैसी चुनौतियों से जूझ रही हैं। देश में सोलो ट्रैवल करने वाली महिलाओं को असल में कई चुनौतियों के साथ ही ट्रैवल करना पड़ता है। एक ओर परिवार और रिश्तेदारों की चिंता और निगरानी बनी रहती है, वहीं समाज उन्हें कभी लिबरल कभी आज़ाद या बाग़ी कहकर तंज कसता है। यह सामाजिक मानसिकता महिलाओं के आत्मविश्वास को प्रभावित करती है। कई बार यह डर और अविश्वास इतना गहरा होता है कि छोटे शहरों की लड़कियां उच्च शिक्षा या नौकरी के अवसरों से भी वंचित रह जाती हैं। सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर की सीमाओं में रोका जाता है। मार्च 2024 में झारखंड के दुमका ज़िले में एक विदेशी महिला के साथ गैंग रेप की घटना ने महिला यात्रियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए। वह अपने पति के साथ भारत घूमने आई थी। अपराधियों को सज़ा तो मिली, लेकिन इस घटना ने देश की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी असर डाला। ऐसी घटनाएं उन महिलाओं को भी निराश करती है जो स्वतंत्र रूप से यात्रा करना चाहती हैं।

रिसर्च गेट में कोलकाता के 100 महिला सोलो ट्रैवलर पर किए गए शोध में महिला सोलो ट्रैवलर के जोखिम संबंधी धारणाओं और उनके अनुभवों पर केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने अपनी मुख्य चिंताओं में अनवांटेड मेल अटेन्शन का अनुभव किया। 49 फीसद महिलाओं ने इसका अनुभव किया।

क्या यात्रा के सार्वजनिक माध्यम सुरक्षित हैं  

रिसर्च गेट में कोलकाता के 100 महिला सोलो ट्रैवलर पर किए गए शोध में महिला सोलो ट्रैवलर के जोखिम संबंधी धारणाओं और उनके अनुभवों पर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने अपनी मुख्य चिंताओं में अनवांटेड मेल अटेन्शन का अनुभव किया। 49 फीसद महिलाओं ने इसका अनुभव किया और 20 फीसद महिलाओं ने यौन हिंसा की सूचना दी। 36 फीसद प्रतिभागियों ने महसूस किया कि उनकी यात्रा के दौरान उन्हें देखा गया या उनका पीछा किया गया। वहीं 47 फीसद महिलाओं ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण कुछ समय के लिए यात्रा करने से परहेज किया। 30 फीसद को असुरक्षित महसूस होने के कारण यात्राएं रद्द करनी पड़ीं। शोध में शामिल कुल 51 फीसद महिलाओं ने देश में यात्रा के माहौल को असुरक्षित माना।

बात रेलवे की करें, तो महिला यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स ने ‘मेरी सहेली’ अभियान शुरू किया है। इसके तहत ट्रेन में अकेली यात्रा कर रही महिलाओं पर विशेष नज़र रखी जाती है और उन्हें ज़रूरत पड़ने पर तुरंत सहायता प्रदान की जाती है। यात्री किसी भी समस्या की स्थिति में हेल्पलाइन नंबर 182 पर तुरंत संपर्क कर सकती हैं। इसके अलावा, लोकल ट्रेनों में इमरजेंसी टॉक बैक सिस्टम (ETB) की सुविधा दी गई है, जिससे महिला यात्री सीधे रेलवे अधिकारियों से संवाद कर सकती हैं। लेकिन, कई बार ये तंत्र कारगर नहीं होते।

महिलाओं के लिए पीरियड्स भी चुनौतियां और समस्या का कारण बन सकती है। यात्रा के दौरान कई बार महिलाएं अचानक असुविधा का सामना करती हैं। इस स्थिति में ट्रेन के छोटे, गंदे वॉशरूम का उपयोग करना बेहद कठिन हो जाता है। सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, रेल व्यवस्था को महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखकर अधिक संवेदनशील बनना होगा।

महिला यात्रियों के स्वास्थ्य के लिए सुविधाओं की कमी

भारतीय रेल व्यवस्था हर दिन लाखों लोगों की यात्रा का माध्यम है। लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या रेलवे ने महिला यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर पर्याप्त चिंता दिखाई है? हालांकि भारत सरकार की ‘मेरी सहेली योजना’ कई मामलों में मददगार साबित हुई है। उदाहरण के लिए, साल 2023 की एक रिपोर्ट में आरपीएफ ने चलती ट्रेन में एक गर्भवती महिला का सुरक्षित प्रसव कराया। यह योजना की संवेदनशीलता और तत्परता को दिखाता है। लेकिन सवाल यह भी है कि अगर किसी महिला की तबीयत अचानक ज़्यादा बिगड़ जाए या स्थिति गंभीर हो जाए, तो क्या ट्रेन में उचित इलाज की व्यवस्था है? क्या ट्रेन में महिला डॉक्टर या प्राथमिक दवाइयों की सुविधा उपलब्ध है? कई बड़े और स्थानीय रेलवे स्टेशनों पर 24/7 इमरजेंसी मेडिकल रूम शुरू किए गए हैं, जो सराहनीय कदम है। लेकिन यात्रा के दौरान स्वास्थ्य संकट आने पर त्वरित चिकित्सकीय सहायता का अभाव अब भी महसूस किया जाता है।

महिलाओं के लिए पीरियड्स भी चुनौतियां और समस्या का कारण बन सकती है। यात्रा के दौरान कई बार महिलाएं अचानक असुविधा का सामना करती हैं। इस स्थिति में ट्रेन के छोटे, गंदे वॉशरूम का उपयोग करना बेहद कठिन हो जाता है। सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, रेल व्यवस्था को महिलाओं की जरूरतों को ध्यान में रखकर अधिक संवेदनशील बनना होगा। ट्रेन और स्टेशनों में सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगाई जानी चाहिए, ताकि लोगों को विशेष कर महिलाओं को सुविधा हो। इसके अलावा, रेल कोचों में एक चैन्जिंग कक्ष का प्रावधान किया जा सकता है, जहां महिलाएं कपड़े बदल सकें या नैपकिन का आराम से इस्तेमाल कर सकें। ट्रेन या सार्वजनिक जगहों में साफ पानी की व्यवस्था, रात में सुरक्षित एक जगह से दूसरी जगह जाने की सहूलियत भी जरूरी है।

महिलाओं के सोलो ट्रैवल का बढ़ता चलन केवल पर्यटन की प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के आत्मविश्वास, स्वतंत्रता और आर्थिक सशक्तिकरण का प्रतीक है। लेकिन इसके साथ यह भी समझना जरूरी है कि सोलो ट्रैवल को सच में सुरक्षित और समावेशी अनुभव बनाने के लिए सरकार, पर्यटन उद्योग, और समाज तीनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। सुरक्षा, स्वास्थ्य और सम्मान महिला यात्रियों के लिए समान रूप से जरूरी हैं। रेलवे, होटल, और अन्य सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को महिलाओं की ज़रूरतों के प्रति अधिक संवेदनशील और सुलभ बनाना होगा। साथ ही, समाज को भी महिलाओं की स्वतंत्रता को ‘खतरा’ या ‘विद्रोह’ की तरह नहीं, बल्कि एक सामान्य और समान अधिकार की तरह देखना चाहिए। महिला सोलो ट्रैवल केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि महिलाएं अब अपनी शर्तों पर दुनिया को देखना चाहती हैं। उनका सफर आत्मनिर्भरता और समानता की दिशा में बढ़ता हुआ कदम है और इस यात्रा में पूरे समाज को उनका साथ देना चाहिए।

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