इंटरसेक्शनलजेंडर साल 2025 की कुछ बेहतरीन महिला केंद्रित और नारीवादी फ़िल्में

साल 2025 की कुछ बेहतरीन महिला केंद्रित और नारीवादी फ़िल्में

इस साल प्रदर्शित हुई फिल्मों ने न केवल पारंपरिक रूढ़ियों की जंजीरों को तोड़ा है, बल्कि पितृसत्ता, अस्मिता, यौनिकता और आज़ादी जैसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर भी गहराई से बातचीत को सबके सामने रखा है। 

सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज का वह आईना है जिसमें हम अपनी संस्कृति, संघर्ष और बदलावों को देखते हैं। साल  2025 भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक क्रांतिकारी मोड़ बनकर उभरा है,  खासकर जब बात महिला-केंद्रित कहानियों और नारीवादी विमर्श की हो। इस साल प्रदर्शित हुई फिल्मों ने न केवल पारंपरिक रूढ़ियों की जंजीरों को तोड़ा है, बल्कि पितृसत्ता, अस्मिता, यौनिकता और आज़ादी जैसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर भी गहराई से बातचीत को सबके सामने रखा है। 

यह फिल्में महज कहानियां नहीं हैं, बल्कि यह उस पितृसत्तात्मक ढांचे पर कड़ा प्रहार हैं जो सदियों से महिलाओं के अस्तित्व को नियंत्रित करता आया है। इस साल की सिनेमाई यात्रा में निर्देशकों और कलाकारों ने मिलकर ऐसे पात्रों को गढ़ा है जो मूक नहीं हैं, बल्कि सवाल पूछते हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। यहां हम साल  2025 की दस ऐसी बेहतरीन फ़िल्मों का विश्लेषण कर रहे हैं, जिन्होंने नारीवादी दृष्टिकोण को एक सशक्त और नया रूप प्रदान किया है।

1 – मिसेज 

इस साल की शुरुआत में ही दर्शकों और आलोचकों के बीच चर्चा का केंद्र बनी फिल्म ‘मिसेज‘ एक ऐसी सिनेमाई कृति है, जो भारतीय वैवाहिक व्यवस्था की परतों को उधेड़ती है। आरती कदव की निर्देशित और ज़ी5 जैसे प्रमुख ओटीटी मंच पर प्रदर्शित यह फिल्म, एक महत्वाकांक्षी महिला के जीवन की त्रासदी को बयां करती है। फिल्म की कहानी सान्या मल्होत्रा और निशांत दहिया के किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जहां शादी के बाद एक महिला का जीवन घर की चारदीवारी और अंतहीन जिम्मेदारियों में सिमट कर रह जाता है। 

फिल्म बहुत ही बारीकी से दिखाती है कि कैसे एक प्रतिभाशाली महिला को ससुराल पक्ष के भावनात्मक शोषण का सामना करना पड़ता है। यह फिल्म इस कड़वे सच को उजागर करती है कि गंभीर पितृसत्तात्मक समाज में शादी अक्सर महिलाओं के दमन और उनके सपनों की हत्या का कारण बन जाता है। सान्या मल्होत्रा ने अपने अभिनय के माध्यम से एक पत्नी के उस आंतरिक संघर्ष और मौन चीख को बेहतरीन ढंग से पर्दे पर उतारा है, जिसे अक्सर ‘कर्तव्य’ के नाम पर अनदेखा कर दिया जाता है।

2- लोका चैप्टर 1: चंद्रा 

मलयालम सिनेमा ने हमेशा ही रचनात्मकता को अपनाया है और निर्देशक डोमिनिक अरुण की निर्देशित फिल्म ‘लोकाह चैप्टर 1: चंद्रा‘ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस फिल्म को भारत की पहली महिला सुपरहीरो फिल्म होने का गौरव प्राप्त है, जो केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है। यह नारीवाद के साथ-साथ हाशिये पर रह रहे आदिवासी समुदायों पर होने वाले अत्याचारों या भेदभाव के खिलाफ भी एक बुलंद आवाज़ है। इसकी कहानी चंद्रा के इर्द-गिर्द घूमती दिखाई देती है।

फिल्म की पटकथा केरल के स्थानीय मिथक ‘कल्लियंकट्टू नीली’, जो कि एक पारंपरिक प्रतिशोध  या बदला लेने वाली आत्मा की कहानी, से प्रभावित है। हालांकि, निर्देशक ने इसे आज के समय से जोड़कर संवेदनशील तरीके से दिखाया है। कल्याणी प्रियदर्शन का किरदार न केवल शारीरिक रूप से सशक्त है, बल्कि वह सामाजिक अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध का एक प्रतीक बनकर उभरता है। यह फिल्म शक्ति और न्याय की एक नई परिभाषा गढ़ती है, जहां एक महिला अपने समुदाय की रक्षक बनती है।

3- स्थल 

मराठी सिनेमा अपनी यथार्थवादी कहानियों के लिए जाना जाता है और निर्देशक जयंत दिगंबर सोमलकर की फिल्म ‘स्थल‘ इस परंपरा को आगे बढ़ाती है। यह फिल्म ग्रामीण भारत में व्याप्त पितृसत्तात्मक मानसिकता पर एक करारा जवाब है। नंदिनी चिकटे और तारनाथ खिरातकर के अभिनय से सजी यह फिल्म ‘अरेंज मैरिज’ की उस प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करती है, जहां  महिलाओं को इंसान के बजाय सामान की तरह देखा और परखा जाता है। फिल्म इस बात पर गंभीरता से प्रकाश डालती है कि कैसे महिलाओं को शिक्षा के अवसरों से वंचित रखा जाता है और उनके व्यक्तिगत जीवन के सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार उनसे छीन लिया जाता है। नंदिनी चिकटे का अभिनय उस मूक पीड़ा और विवशता को सामने लाता है, जिसे हमारा समाज परंपरा और संस्कृति के नाम पर सदियों से सही ठहराता आ रहा है।

4- इमरजेंसी

राजनीति और सत्ता के गलियारों में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करती फिल्म ‘इमरजेंसी‘ भारतीय लोकतंत्र के एक ज़रूरी अध्याय को खोलती है। नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध इस फिल्म का निर्देशन और मुख्य भूमिका खुद कंगना रनौत ने निभाई है। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर केंद्रित यह फिल्म न केवल उस दौर के राजनीतिक उथल-पुथल को दिखाती है, बल्कि एक महिला नेता के व्यक्तिगत संघर्षों को भी सामने लाती है। यह फिल्म एक पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था में एक महिला की शक्ति, उसकी महत्वाकांक्षा और उससे जुड़ी जटिलताओं को दिखाती है। फिल्म यह दिखाती है कि सत्ता के शिखर पर बैठी महिला को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कैसे उसका व्यक्तित्व और उसके निर्णय इतिहास की धारा को प्रभावित करते हैं। यह शक्ति और जेंडर के समीकरणों को समझने का एक प्रयास है।

5- बैड गर्ल 

तमिल सिनेमा की फिल्म ‘बैड गर्ल‘, उन सामाजिक मानदंडों को चुनौती देती है, जो एक महिला के चरित्र को परिभाषित करते हैं। वर्षा भरत के निर्देशन में बनी और अंजलि शिवरामन के सशक्त अभिनय से सजी यह फिल्म एक मुख्य पात्र की आत्म-खोज की यात्रा है। कहानी में नायिका उन सभी परिभाषाओं के खिलाफ जाती है, जो समाज ने एक कथित अच्छी लड़की के लिए तय की हैं। यह फ़िल्म किशोरावस्था से युवावस्था तक के सफ़र को सरल ढंग से दिखाती है। यह एक लड़की की अपनी कामुकता, रिश्तों और अपनी पहचान को खोजने की बेबाक कोशिश है। अंजलि शिवरामन ने उस विद्रोह और आज़ादी को जीवंत किया है जो समाज की नैतिक पुलिसिंग और रूढ़िवादी सोच को सीधे तौर पर चुनौती देती है।

6- परधा 

तेलुगु फिल्म ‘परधा‘, या परदा जो प्राइम वीडियो पर देखी जा सकती है, निर्देशक प्रवीण कांद्रेगुला की  निर्देशित एक दिल छू लेने वाली कहानी है।अनुपमा परमेश्वरन, संगीता कृष्ण और दर्शना राजेंद्रन के दमदार अभिनय से सजी यह फिल्म, एक काल्पनिक गांव की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जहां एक कथित श्राप के डर से महिलाओं को हमेशा घूंघट में रहना अनिवार्य कर दिया गया है। यह केवल एक प्रथा की कहानी नहीं है, बल्कि यह महिलाओं की अपनी पहचान खोजने और उसे स्थापित करने के संघर्ष की दास्तान है। फिल्म मौन से साहस और अधीनता से आज़ादी पाने की प्रक्रिया को बेहद संवेदनशीलता से दिखती है। अनुपमा और दर्शना का अभिनय यह साबित करता है कि जब महिलाएं एकजुट होती हैं, तो वे आत्मबल के सहारे सदियों पुरानी दकियानूसी परंपराओं और बेड़ियों को तोड़ सकती हैं। यह फिल्म ‘सिस्टरहुड’ या भगिनीवाद की शक्ति का जश्न मनाती है।

7 – हक़ 

संवैधानिक अधिकारों और धर्म के बीच फंसी एक महिला के संघर्ष को सामने लाने वाली फिल्म हक़ नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध एक ज़रूरी फ़िल्म है। सुपर्ण वर्मा के निर्देशन में बनी, यामी गौतम और इमरान हाशमी की अभिनीत यह फिल्म ऐतिहासिक शाहबानो मामले पर आधारित है। यह एक मुस्लिम महिला की न्याय के लिए लड़ी गई लंबी और कठिन लड़ाई की कहानी है। फिल्म तीन तलाक, महिलाओं के अधिकार, लैंगिक समानता,  व्यक्तिगत विश्वास और धर्मनिरपेक्ष कानून जैसे बेहद संवेदनशील और ज्वलंत मुद्दों की पड़ताल करती है। यह फ़िल्म धर्म के संदर्भ में मौजूद सामाजिक चुनौतियों के बीच, भरण-पोषण और सम्मान के अधिकार के लिए पितृसत्तात्मक परंपराओं और कानूनी उलझनों का सामना करती। एक महिला के साहस को सरल और प्रभावी ढंग से दिखाती है। यामी गौतम का किरदार उन सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करता है जिन्होंने अपने हक़ के लिए व्यवस्था से टकराने का साहस किया।

8- थलावारा

मलयालम फिल्म ‘थलावारा‘ यह साबित करती है कि नारीवादी फिल्में केवल महिला पात्रों तक सीमित नहीं हैं। अखिल अनिलकुमार के निर्देशन में बनी और अर्जुन अशोकन और रेवती शर्मा की अभिनीत यह फिल्म नारीवादी विषयों से गहराई से जुड़ती है। भले ही इसका नायक एक पुरुष हो। फिल्म ज्योतिष, गहरी पितृसत्तात्मक शर्म और विटिलिगो के संदर्भ में सामाजिक सौंदर्य मानकों और आत्म-स्वीकृति के संघर्ष को सामने लाती है। यह उन पारिवारिक और सामाजिक दबावों की तीखी आलोचना करती है जो न केवल महिलाओं को चुप कराते हैं, बल्कि पुरुषों को भी टॉक्सिक मैस्कुलिनिटी के जाल में फंसाते हैं। यह फिल्म गरिमा और व्यवस्थागत मुद्दों पर एक सशक्त टिप्पणी है, जो जेंडर के दायरों से परे जाकर मानवता की बात करती है।

9 – आप जैसा कोई 

विवेक सोनी के निर्देशन में बनी और नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध फ़िल्म आप जैसा कोई रोमांटिक कॉमेडी के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण सामाजिक संदेश भी पेश करती है। आर. माधवन और फातिमा सना शेख के अभिनय से सजी यह फिल्म उम्र के अंतराल और रिश्तों से जुड़ी पितृसत्तात्मक अपेक्षाओं को चुनौती देती है। कहानी एक 42 वर्षीय पारंपरिक संस्कृत प्रोफेसर और 32 वर्षीय आधुनिक, स्वतंत्र फ्रांसीसी शिक्षक के इर्द-गिर्द घूमती है। एक अनाम चैट ऐप कनेक्शन के माध्यम से शुरू हुई यह प्रेम कहानी रूढ़िवादी पारिवारिक मूल्यों और आधुनिक इच्छाओं के बीच के टकराव को खूबसूरती से दिखाती है। फातिमा सना शेख का किरदार एक ऐसी आत्मनिर्भर महिला का है जो अपने जीवन साथी के चुनाव में सामाजिक दबाव के आगे झुकने से साफ इनकार कर देती है, जो यह संदेश देता है कि प्रेम और साथी चुनने का अधिकार केवल व्यक्ति का अपना होना चाहिए।

10 – द गर्लफ्रेंड

राहुल रविंद्रन के निर्देशन में बनी तेलुगु फ़िल्म द गर्लफ्रेंड, जो नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है, एक गंभीर और संवेदनशील ड्रामा फ़िल्म है। रश्मिका मंदाना और दीक्षित शेट्टी की अभिनीत यह फिल्म रिश्तों में होने वाले भावनात्मक शोषण और ‘टॉक्सिक रिलेशनशिप’ की काली सच्चाई को उजागर करती है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे पुरुष पात्र अपने प्रेम और सुरक्षा के नाम पर अपनी प्रेमिका को एक जटिल और घुटन भरे संबंध में बांध लेता है। फिल्म घरेलू हिंसा के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभावों को बहुत बारीकी और संवेदनशीलता से दिखाती है। यह केवल पीड़ा की कहानी नहीं है, बल्कि पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला की मुक्ति और आत्म-स्वीकृति की यात्रा भी है। रश्मिका मंदाना का अभिनय भय से लेकर मुक्ति तक के सफर को इतने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है कि दर्शक उस दर्द और बाद में मिली आज़ादी को महसूस कर सकते हैं।

साल  2025 की यह फिल्में केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि यह बदलाव की आहट हैं। यह फिल्में हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम जिस समाज में रह रहे हैं, वह महिलाओं के लिए कितना न्यायपूर्ण है। निर्देशकों और लेखकों ने अपनी कला के माध्यम से उन कहानियों को मुख्यधारा में लाया है जो अक्सर हाशिये पर रह जाती थीं।

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