सावित्रीबाई फुले को ब्राह्मणवादी पितृसतात्मक समाज में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। जब वह लड़कियों को पढ़ाने जाती थी तब उन पर पत्थर और गोबर फेंके जाते थे। इसलिए वह अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाती थी। उन्होंने इन सारी चुनौतियों का सामना किया और भारत में महिला शिक्षा की नींव रखी। आज हमारे देश में महिलाएँ हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही है। आज वे शिक्षित और जागरूक होकर विकास की दिशा में आगे बढ़ रही है। आज हमारे समाज में महिला शिक्षा के लिए ढ़ेरों प्रयास किए जा रहे है। लेकिन आज से 170 साल से पहले लड़कियों की शिक्षा के लिए हमारी सामाजिक स्थिति ऐसी बिल्कुल भी नहीं थी। उस दौर में लड़कियों के लिए स्कूल खोलना पाप माना जाता था। तब 17 साल की सावित्रीबाई फुले ने इस महिला विरोधी अमानवीय व्यवस्था को चुनौती दी। वह पुणे के गंजी पेठ से भीड़ेवाड़ा तक महिला विरोधी व्यवस्था मुकाबला करते हुए लड़कियों और शूद्रों को पढ़ाने जाती थीं।
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