यह वह दौर था जब महिलाओं के अस्तित्व और उनकी पहचान के बारे में बहुत कम बात होती थी। उस समय रमाबाई रानाडे ने महिलाओं की आजादी के लिए आवाज़ उठाई, उनके हक के लिए लड़ीं। उन्होंने महिलाओं को पढ़ाने और कौशल कार्य सिखाने के लिए काम किया। रमाबाई रानाडे ने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में लाने के लिए महत्वपूर्ण काम किया। रमाबाई रानाडे ने 20वीं सदी के भारत में महिलाओं के लिए बनाई रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ा और समानता के लिए काम किया। रमाबाई रानाडे एक नारीवादी, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षिका थीं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रमाबाई रानाडे का जन्म 25 जनवरी 1862 को महाराष्ट्र के सांगली जिले के छोटे से गाँव देवराष्ट्रि में हुआ था। उन दिनों लड़कियों को पढ़ने की इजाज़त नहीं थी इसलिए उनके पिता ने उन्हें पढ़ाया नहीं था। उस समय बाल विवाह की प्रथा का भी चलन था। रमाबाई रानाडे का विवाह भी महज 11 साल की उम्र में जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे से हो गया था। गोविंद रानाडे एक विधुर थे। दोंनो की उम्र में 20 वर्ष का अंतर था।
उनके पति ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। परिवार के अन्य लोगों की आलोचनाओं के बावजूद रमाबाई ने खुद को शिक्षित किया। गोविंद रानाडे ने उन्हें गणित, भूगोल और अन्य भाषाओं का ज्ञान दिया। साल 1882 में पंडिता रमाबाई पुणे आई थी, रानाडे ने उनकी बहुत मदद की थी। रानाडे उनसे बहुत प्रभावित थीं। उन्होंने क्रिश्चन मिश्नरी में अंग्रेजी की शिक्षा हासिल की थी। शिक्षा हासिल करने के दौरान ही उन्होंने सार्वजनिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था और शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी थी।
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रमाबाई रानाडे ने महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में लाने के लिए महत्वपूर्ण काम किया। रमाबाई रानाडे ने 20वीं सदी के भारत में महिलाओं के लिए बनाई रूढ़िवादी बेड़ियों को तोड़ा और समानता के लिए काम किया।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए किया बेजोड़ काम
रमाबाई रानाडे ने अपने पूरे जीवन महिलाओं के जीवन उत्थान के लिए काम किया। रमाबाई के सामाजिक कार्यों की शुरुआत प्रार्थना समाज में उनकी भागीदारी से शुरू हो गई थी। जहां पहले उन्होंने खुद सामाजिक सुधारों के बारे में जाना था। प्रार्थना समाज एक समाज सुधारक आंदोलन था जिसमें बहुत से सामाजिक मुद्दों पर बैठक और भाषण हुआ करते थे। इसकी स्थापना महादेव गोविंद रानाडे ने की थी। रमाबाई वहां की बैठकों में शामिल होती और उसके संदेश को अन्य महिलाओं तक पहुंचाने का काम करती थी। वह सार्वजनिक रूप से होने वाले धार्मिक अनुष्ठान जैसे कीर्तनों में जाकर महिलाओं को शिक्षित किया करती थी। वहां उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाती थीं और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती थीं।
रमाबाई रानाडे खुद एक कुशल वक्ता बन गई थीं और उन्होंने लोगों को संबोधित करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपना पहला भाषण नासिक हाई स्कूल में दिया था। उसके बाद रमाबाई ने लगातार एक के बाद एक अनिगिनत सभाओं को संबोधित करते हुए भाषण दिए। अंग्रेजी और मराठी पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी। उन्होंने आर्य महिला समाज की एक शाखा बॉम्बे (मुंबई) में स्थापित की थी। अपने काम की वजह से रमाबाई रानाडे बहुत लोकप्रिय भी हो गई थी। 1893 से 1901 के बीच रमाबाई लोकप्रियता के शीर्ष पर थी। उन्होंने बॉम्बे में हिंदू लेडीज सोशल एंड लिटररी क्लब की शुरुआत की। यह संस्था महिलाओं को भाषा, सामान्य ज्ञान, सिलाई और हस्तकला की ट्रेनिंग देती थी।
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रमाबाई रानाडे ने अपने पूरे जीवन महिलाओं के जीवन उत्थान के लिए काम किया। रमाबाई के सामाजिक कार्यों की शुरुआत प्रार्थना समाज में उनकी भागीदारी से शुरू हो गई थी। जहां पहले उन्होंने खुद सामाजिक सुधारों के बारे में जाना था। प्रार्थना समाज एक समाज सुधारक आंदोलन था जिसमें बहुत से सामाजिक मुद्दों पर बैठक और भाषण हुआ करते थे।
सेवा-सदन की स्थापना कर की सेवा
साल 1901 में पति की मृत्यु के बाद रमाबाई दोबारा पुणे लौट गई थी। वहां वह अपने पैतृक घर फुले बाजार में रहीं। लगभग एक साल तक रमाबाई घर में ही रहीं उसके बाद उन्होंने फिर से अपना ध्यान सामाजिक कामों में लगा लिया। उसके बाद उन्होंने भारत महिला परिषद का आयोजन किया। रमाबाई रानाडे ने सेवा सदन की स्थापना की। उस समय सेवा सदन से हजारों महिलाएं जुड़ीं। 1908 में पारसी समाज सुधारक बी.एम. मालबारी और दयामल गिदूमल रमाबाई रानाडे के पास महिलाओं के लिए घर और भारतीय महिलाओं को नर्स की ट्रेनिंग देने के विचार के साथ आए। रमाबाई के मार्गदर्शन में इस तरह सेवा सदन, बॉम्बे में अस्तित्व में आया। 1909 में पुणे में सेवा सदन शुरू किया गया था। 1915 में सेवा सदन का एक सोसायटी के तौर पर रजिस्ट्रेशन किया गया था। इस संस्थान ने एक महिला प्रशिक्षण कॉलेज, तीन महिला हॉस्टल जिसमें एक मेडिकल छात्रों के लिए और नर्सों के लिए था।
1924 में रमाबाई का निधन हो गया था। रमाबाई रानाडे भारत में नारीवाद की नींव मजबूत करने वाली शख्सियत थीं जिन्होंने अपना पूरे जीवन लोगों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष किया। रमाबाई रानाडे जीवन भर समाज सुधारक के तौर पर काम करती रहीं।
सेवा सदन नर्सिंग और मेडिकल एसोसिएशन के तहत महिला नर्सों को ट्रेनिंग दी गई। स्वास्थ्य, प्राथमिक चिकित्सा, सफाई और पब्लिक हेल्थ के बारे में जानकारी दी गई। रमाबाई रानाडे ने नर्सिंग को लेकर समाज में बने पूर्वाग्रहों को हटाने के लिए काम किया। उन्होंने प्रशिक्षित नर्सो को पुरुष रोगियों के उपचार को लेकर असहजता को दूर किया। सेवा सदन में हजारों महिलाओं को नर्सिंग का प्रशिक्षिण देकर उन्हें सेवा में लगाया।
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साल 1904 में रमाबाई रानाडे ने बॉम्बे में भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस के पहले सत्र की अध्यक्ष बनीं। समाज में वंचित और शोषित समुदाय की महिलाओं के उत्थान की ओर विशेष ध्यान दिया। रमाबाई ने बाल विवाह की प्रथा को रोकने की दिशा में भी काम किया। वह केंद्रीय कारावास में महिला विंग में लगातार जाती थी। इसके अलावा उन्होंने बाल सुधार स्कूल में लड़कों और स्थानीय अस्पतालों में भी लोगों से लगातार मुलाकात करती थीं। 1913 में भीषण अकाल के दौरान गुजरात और काठियावाड में भी राहत कार्यों में योगदान दिया।
रमाबाई ने लड़कियों के लिए प्री-प्राइमरी शिक्षा अनिवार्य करने के लिए आंदोलन करा। साल 1921-22 में महिलाओं के लिए वोट के अधिकार के लिए बॉम्बे प्रेसीडेंसी में आंदोलन किया। रमाबाई ने राजनीतिक सुधार की भी मांग रखी और महिलाओं के लिए बराबर प्रतिनिधित्व की नींव रखी थी।
रमाबाई ने आर्य महिला समाज को स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। रमाबाई रानाडे ने महिलाओं की शिक्षा को सबसे ज्यादा महत्व दिया। रमाबाई ने लड़कियों के लिए प्री-प्राइमरी शिक्षा अनिवार्य करने के लिए आंदोलन करा। साल 1921-22 में महिलाओं के लिए वोट के अधिकार के लिए बॉम्बे प्रेसीडेंसी में आंदोलन किया। रमाबाई ने राजनीतिक सुधार की भी मांग रखी और महिलाओं के लिए बराबर प्रतिनिधित्व की नींव रखी थी।
रमाबाई ने एक समाज सुधारक से अलग एक लेखिका भी थी। उन्होंने मराठी में अपनी आत्मकथा ‘अमाच्य आयुष्यतिल कही आठवानी’ लिखी। इसमें उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन की संक्षिप्त जानकारी दी। इसके अलावा उन्होंने जस्टिस रानाडे के व्याख्यानों का एक संग्रह भी प्रकाशित किया था। रमाबाई रानाडे के समाज सुधार में किए योगदान के लिए 14 अगस्त 1962 में जन्म शताब्दी वर्ष में भारतीय डाक ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। रमाबाई के जीवन और समाजिक सुधारों में दिए उनके योगदान पर मराठी में एक टीवी सीरियल भी प्रसारित हो चुका है।
1924 में रमाबाई का निधन हो गया था। रमाबाई रानाडे भारत में नारीवाद की नींव मजबूत करने वाली शख्सियत थीं जिन्होंने लोगों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष किया। रमाबाई रानाडे जीवन भर समाज सुधारक के तौर पर काम करती रहीं।
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