इतिहास डॉक्टर प्रभा अत्रे: शास्त्रीय संगीतकार और महिला सशक्तिकरण की मिसाल| #IndianWomenInHistory

डॉक्टर प्रभा अत्रे: शास्त्रीय संगीतकार और महिला सशक्तिकरण की मिसाल| #IndianWomenInHistory

डॉक्टर प्रभा अत्रे एक कुशल कलाकार होने के साथ-साथ एक विचारक, शोधकर्ता, समाज सुधारक, लेखिका, संगीतकार और गुरु के रूप में भी उभर कर सामने आईं ।

संगीत सदियों से मानव समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह केवल मनोरंजन का ही तरीका नहीं है, बल्कि संगीत ने भावनाओं और संस्कृतियों को सुरों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम किया है। लेकिन भारतीय समाज में एक ऐसा समय भी था। जब महिलाओं को घर की चारदीवारी से बाहर कदम रखने की आज़ादी तक नहीं दी जाती थी। गाना-बजाना तो दूर की बात है, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में जगह बना पाना आसान नहीं था। ऐसे माहौल में जहां महिलाओं के लिए अपनी पहचान बनाना कठिन था, वहीं कुछ साहसी और प्रतिभाशाली महिलाओं ने इन रूढ़िवादी परंपराओं की दीवारें तोड़ीं और समाज को यह दिखाया कि कला का कोई जेंडर नहीं होता। इन्हीं महान हस्तियों में से एक थीं ‘प्रभा अत्रे’ जिन्होनें किराना घराने की परंपरा को अपनाते हुए शास्त्रीय संगीत में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से न केवल संगीत की दुनिया में अपनी जगह बनाई, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए नए रास्ते भी खोले।

शुरुआती जीवन 

शास्त्रीय संगीत को ऊंचाइयों में पहुंचाने वाली गायिका डॉक्टर प्रभा अत्रे का जन्म 13 सितंबर 1932 को पुणे में आबासाहेब और इंदिरा बाई अत्रे के यहां हुआ था। उन्हें और उनकी बहन को संगीत में रुचि तो थी, लेकिन उन्होंने संगीत को अपने भविष्य के रूप में नहीं सोचा था। प्रभा को आठ साल की उम्र में संगीत का शौक तब हुआ जब उनकी मां इंदिराबाई की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। तब उनके किसी दोस्त ने उन्हें शास्त्रीय संगीत सुनने का सुझाव दिया। जो उन्हें अच्छा महसूस करने में मदद करेगा। अपनी मां के साथ प्रभा भी शास्त्रीय संगीत के उन अध्यायों को सुनने लगी, जिसने उनके भीतर बैठे संगीत प्रेमी को शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया। 

प्रभा को आठ साल की उम्र में संगीत का शौक तब हुआ जब उनकी मां इंदिराबाई की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। तब उनके किसी दोस्त ने उन्हें शास्त्रीय संगीत सुनने का सुझाव दिया। अपनी मां के साथ प्रभा भी शास्त्रीय संगीत के उन अध्यायों को सुनने लगी, जिसने उनके भीतर बैठे संगीत प्रेमी को शास्त्रीय संगीत सीखने के लिए प्रेरित किया। 

हालांकि प्रभा का परिवार संगीत से जुड़ा हुआ नहीं था। गुरु शिष्य परंपरा में उन्होंने संगीत की शिक्षा ली। उन्होंने विजय करंदीकर, सुरेशबाबु माने और हीराबाई हिराबाई बरोदेकर से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। जो उस समय शास्त्रीय संगीत के चर्चित नाम हैं। उन्होंने संगीत के प्रति गहन लगाव के लिए बड़े गुलाम अली खान और उस्ताद अमीर खान जैसे उस्तादों को प्रेरणा माना। इसी के साथ उन्होंने संगीत की शिक्षा के साथ ही फर्ग्यूसन कॉलेज पुणे से विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे कॉलेज से कानून की पढ़ाई की। संगीत की दुनिया में उन्होंने गंधर्व महाविद्यालय मंडल से संगीत अलंकार (मास्टर ऑफ म्यूजिक ) किया। इसके साथ ही उनकी कत्थक की भी औपचारिक शिक्षा हुई थी। वह अन्य कलाओं में भी दिलचस्पी लेती थीं। उन्होंने संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ वर्षों तक उन्होंने आकाशवाणी में भी काम किया। इसके बाद वो मुंबई में एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और बाद में संगीत विभाग की प्रमुख बनीं। 

संगीत और लेखन के क्षेत्र में योगदान 

वरिष्ठ पत्रकार मुकुंद संगोराम ने बीबीसी मराठी को बताया कि, उन्होंने किराना घराने की खासियत को बरकरार रखा। किराना घराना अन्य संगीत घरानों से अलग था, जिसके गायक सुर और भाव का पूरा ध्यान रखते थे। उनकी गायकी अपने आप में अलग गुण समेटे होती है। शास्त्रीय संगीत उनकी रगों में बहता था। वह न सिर्फ शास्त्रीय संगीत गाती थी, बल्कि लेखन भी किया करती थीं। उन्होंने संगीत का बहुत गहन अध्ययन किया। उसके बाद,उन्होंने संगीत कार्यक्रमों में भाग लेना शुरू किया। इकॉनॉमिक टाइम्स के अनुसार, साल 1969 में उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति दी। वह अपने कार्यक्रमों में अपनी ‘बंदिशें’ प्रस्तुत करती थीं। उनकी कुछ रचनाएं राग मारू बिहाग में ‘जगु मैं सारी रैना’, राग कलावती में ‘तन मन धन’ और राग किरवानी में ‘नंद नंदन’ उन्हें शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के बीच पसंदीदा बनाती थीं और उन लोगों के बीच भी जो शास्त्रीय संगीत के कद्रदान नहीं थे।

गुरु शिष्य परंपरा में उन्होंने संगीत की शिक्षा ली। उन्होंने विजय करंदीकर, सुरेशबाबु माने और हीराबाई हिराबाई बरोदेकर से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली। जो उस समय शास्त्रीय संगीत के चर्चित नाम हैं। उन्होंने संगीत के प्रति गहन लगाव के लिए बड़े गुलाम अली खान और उस्ताद अमीर खान जैसे उस्तादों को प्रेरणा माना।

उन्होंने अपने संगीत को हर बार एक नए तरीके से प्रस्तुत किया। चाहे ‘ख़्याल’ हो, ‘तराना’ हो, ‘ठुमरी’ हो, ‘दादरा’ हो, ‘ग़ज़ल’ हो या ‘भजन’, अपनी कला के प्रति उनकी ईमानदारी और समय के प्रति संवेदनशीलता उनकी सोच और गायन में साफ तौर पर दिखाई देती थी । उन्होंने अपूर्व कल्याण, मधुरकांस, पटदीप, तिलंग, भैरव, भीमकाली और रवि भैरव जैसे नए रागों की भी रचना की। उन्होंने संगीत में कुल 11 किताबें लिखी। म्यूजिक कंपोजिशन में लिखी गई तीन पुस्तकें स्वरागिनी, स्वरारांगी, स्वरंजनी काफी प्रसिद्ध हैं। साथ ही कम उम्र में ही, उन्होंने ‘संगीत शारदा’, ‘संगीत विद्याहरण’, ‘संगीत शक्कलोल’, ‘संगीत मृच्छकटिक’, ‘बिराज बहू’ और ‘लिलाव’ समेत मराठी मंचीय संगीत नाटकों में प्रमुख भूमिकाएं निभाईं।

एक कुशल कलाकार होने के अलावा, अत्रे एक विचारक, शोधकर्ता, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, संगीतकार और गुरु के रूप में भी उभर कर सामने आईं । उन्होंने शिक्षा प्रणाली में बदलाव की वकालत की ताकि शास्त्रीय संगीत को हर जगह पहुंचाया जा सके। उन्होनें दुनिया भर के छात्रों को गुरु-शिष्य परंपरा और संस्थागत शिक्षा दोनों तरीकों से संगीत सिखाने के लिए स्वरमयी गुरुकुल की स्थापना की। उनका मानना था कि इन दोनों प्रणालियों के बीच का अंतर मिटाना बहुत ज़रूरी है। गुरु-शिष्य परंपरा में, प्रदर्शन के पहलू पर ध्यान केंद्रित करके वह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली चाहती थीं जहां कलाकार किसी की नकल करने के बजाय अपनी खुद की गायन शैली विकसित कर सकें।

उन्होंने संगीत में कुल 11 किताबें लिखी। म्यूजिक कंपोजिशन में लिखी गई तीन पुस्तकें स्वरागिनी, स्वरारांगी, स्वरंजनी काफी प्रसिद्ध हैं। साथ ही कम उम्र में ही, उन्होंने ‘संगीत शारदा’, ‘संगीत विद्याहरण’, ‘संगीत शक्कलोल’, ‘संगीत मृच्छकटिक’, ‘बिराज बहू’ और ‘लिलाव’ समेत मराठी मंचीय संगीत नाटकों में प्रमुख भूमिकाएं निभाईं।

पुरस्कार और सम्मान 

प्रभा को शास्त्रीय संगीत और उनके लेखन के लिए बहुत सराहा गया और सम्मानित भी किया गया। उन्होंने संगीत को देश और विदेश हर जगह पहुंचाने में अपना योगदान दिया। साल 1976 में प्रभा को संगीत कला आचार्य पुरस्कार दिया गया। इसके बाद जगतगुरु शंकराचार्य ने उन्हें ‘गानप्रभा’ की उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार ने साल 1990 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके बाद साल 1991 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें भारतीय कला और संगीत के संरक्षण, समृद्धि और लोकप्रिय बनाने में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया था। साल 2002 प्रभा के लिए बहुत खास रहा। उस साल  के पहले चार महीनों में ही उन्हें चार बड़े पुरस्कार मिले, जिनमें भारत सरकार का पद्म भूषण सम्मान भी शामिल था। साल 2011 से तात्यासाहेब नातू ट्रस्ट और गानवर्धन, पुणे ने उनके सम्मान में ‘स्वरयोगिनी डॉ. प्रभा अत्रे राष्ट्रीय शास्त्रीय संगीत पुरस्कार’ की शुरुआत की। साथ ही साल 2022 में उन्हें देश के दूसरे बड़े सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से भी सम्मानित किया गया है।

 उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए समर्पित कर दिया। 13 जनवरी 2024 को उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन अपनी संगीत रचनाओं के माध्यम से वो हर एक संगीत प्रेमी के दिल में हमेशा जिंदा रहेंगी। यही नहीं, वह आने वाले कई दशकों तक अपनी कला के लिए जानी जाएंगी। उन्होंने न सिर्फ शास्त्रीय संगीत को जीवित रखा बल्कि यह संदेश भी दिया कि बदलाव और पुनर्जीवित होने की संभावना हर कला में मौजूद है। वह अपने मुक्त विचारों और कला के प्रति गहन प्रेम के लिए जानी जाएंगी। जिनकी आवाज के रस और मधुर पन ने लोगों के दिलों में जगह बनाई। उनका कला के लिए समर्पण और निरंतर अभ्यास उनके व्यक्तित्व को सराहता है,जिसने अपने दायरों को लांघ कर महिला इतिहास में अपने लिए जगह बनाई।

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