नारीवाद मेरा फेमिनिस्ट जॉय: डर के पार अपनी राह चुनने की हिम्मत मेरी असली खुशी

मेरा फेमिनिस्ट जॉय: डर के पार अपनी राह चुनने की हिम्मत मेरी असली खुशी

मेरे लिए अब 'नई चीज़' करना मतलब है, हर दिन कुछ ऐसा चुनना जो मुझे खुद के करीब लाए। कभी किसी नए विषय पर लिखना, कभी किसी महिला की कहानी सुनना, कभी किसी बच्चे को पढ़ाना। हर छोटी कोशिश में वही ऊर्जा है जो मुझे जीवित रखती है। कई लोग सोचते हैं कि खुशी बड़ी उपलब्धियों में छिपी होती है, पर मैंने सीखा है कि असली संतोष वहीं है, जहां आप खुद के निर्णयों से जीवन को दिशा देते हैं।

कभी-कभी जीवन हमारे लिए रास्ते नहीं चुनता, बल्कि हमें मजबूर करता है कि हम अपने लिए रास्ता खुद बनाएं। मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख यही रही। मैंने सीखा कि खुशी तभी मिलती है, जब हम अपने निर्णय खुद लेने लगते हैं। जब मैं दसवीं में थी, मेरे पिता चाहते थे कि मैं बायोलॉजी लूं, लेकिन मेरे सपनों की दिशा कुछ और थी। मैं पायलट बनना चाहती थी। मुझे गणित पसंद था। आसमानों में उड़ान का सपना तब मेरे भीतर पल रहा था। मैंने पिता की इच्छा के विपरीत जाकर गणित चुना। यह मेरा पहला निर्णय था, जिसमें डर भी था और आज़ादी का स्वाद भी। उस दिन से मैंने सीखा कि अपनी पसंद चुनना ही आत्मसम्मान की पहली सीढ़ी है।

मेरा स्कूल लड़कियों का स्कूल (गर्ल्स स्कूल) था। पिता चाहते थे कि मैं वहीं 12वीं करूं लेकिन मुझे वहां की पढ़ाई संतोषजनक नहीं लगी। फीस ज़्यादा थी और माहौल सीमित। मैंने एक नॉन-एटेंडिंग कॉलेज में एडमिशन लेकर कोचिंग शुरू की, जहां लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते थे। मेरे पिता को यह रास नहीं आया, पर मैं अपनी ज़िद पर डटी रही। यही दूसरा बड़ा निर्णय था। सुरक्षा की सीमा से बाहर निकलना और दुनिया को अपने नजरिए से देखना। धीरे-धीरे जीवन ने और इम्तिहान लिए। जब पता चला कि पायलट बनने में करोड़ों लगते हैं, तो जैसे सपना टूट गया। मैं बहुत रोई। पर उसी टूटन से एक नया रास्ता निकला। मैंने खुद को पढ़ाने में झोंक दिया। पहले कुछ बच्चों को, फिर मोहल्ले के कुछ और बच्चों को। शाम तक क्लास चलती और कुछ पैसे घर में आते। उस कमाई में आत्मनिर्भरता का स्वाद था। मैंने महसूस किया कि मेहनत से कमाए पैसे में वही खुशी है, जो किसी सपने के पूरे होने में होती है।

पिता चाहते थे कि मैं वहीं 12वीं करूं लेकिन मुझे वहां की पढ़ाई संतोषजनक नहीं लगी। फीस ज़्यादा थी और माहौल सीमित। मैंने एक नॉन-एटेंडिंग कॉलेज में एडमिशन लेकर कोचिंग शुरू की, जहां लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते थे। मेरे पिता को यह रास नहीं आया, पर मैं अपनी ज़िद पर डटी रही।

घर की स्थिति खराब थी। पिता बेरोजगार थे और अमूमन गुस्से में रहते थे। माँ ने अपने गहने बेचकर मेरा कॉलेज फॉर्म भरा। उनके त्याग और मेरे निर्णयों के बीच ही मेरी कहानी आकार लेने लगी। मैंने ठान लिया कि अब मैं अपनी राह खुद तय करूंगी, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो। इसी बीच मेरे जीवन में मेरा जीवनसाथी आया। एक दोस्त की तरह उसने मुझे समझा, सुना और कुछ वक़्त के लिए मेरी थकान मिटा दी। लेकिन समाज और परिवार की नज़रों में ये सब गलत था। जब मैंने होली पर उसे घर बुलाया, तो पिता ने मुझसे कई दिनों तक बात नहीं की। उनके लिए मेरी स्वतंत्रता विद्रोह था, पर मेरे लिए यह अपने निर्णयों की ज़िम्मेदारी थी। मैंने सीखा कि हर निर्णय कीमत मांगता है। पर वही कीमत हमें मजबूत भी बनाती है।

समय बीता। कॉलेज के एडमिशन के लिए फिर संघर्ष हुआ। माँ ने कहीं से पैसे जुटाए और मैं दिल्ली चली आई। ट्रेन की वह यात्रा मेरे जीवन का सबसे बड़ा मोड़ थी। स्टेशन पर माँ ने जब मेरा हाथ छोड़ा, तो मुझे एहसास हुआ कि अब जीवन के हर फैसले की जिम्मेदारी मेरी है। वही क्षण मेरे लिए असली स्वतंत्रता का था। डर था, पर उस डर के पार ही खुशी थी। दिल्ली में शुरूआती दिन कठिन थे। पैसे कम, ज़िम्मेदारियां ज्यादा। पर मैंने अपने फैसलों से अपनी पहचान बनाई। मैंने पत्रकारिता को चुना क्योंकि मैं हमेशा समाज की आवाज़ बनना चाहती थी। उन कहानियों को बताना चाहती थी जो अक्सर दबा दी जाती हैं। मैंने मेहनत की, रात-रात जागकर रिपोर्ट लिखीं, इंटरव्यू लिए और अपने अनुभवों को शब्दों में ढाला। जब मेरा पहला आर्टिकल नवोदया टाइम्स में प्रकाशित हुआ, तो मेरे भीतर जो सुकून था, वह किसी पुरस्कार से बड़ा था।

स्टेशन पर माँ ने जब मेरा हाथ छोड़ा, तो मुझे एहसास हुआ कि अब जीवन के हर फैसले की जिम्मेदारी मेरी है। वही क्षण मेरे लिए असली स्वतंत्रता का था। डर था, पर उस डर के पार ही खुशी थी। दिल्ली में शुरूआती दिन कठिन थे। पैसे कम, ज़िम्मेदारियां ज्यादा।

वह पल मेरी यात्रा का सार था। यह मेरे निर्णय को लेकर जीवन में आगे बढ़ने की खुशी थी। कोई ताली नहीं, कोई सम्मान नहीं, बस एक गहरी सांस और भीतर की आवाज़ थी कि हाँ, मैंने कर दिखाया। अब जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो पाती हूं कि मेरी खुशी कभी स्थायी नहीं थी। वह हर उस पल में छिपी थी जब मैंने खुद के लिए फैसला लिया। पिता से विरोध करना, असफलता के बाद भी उठ खड़ा होना, माँ की उम्मीदों को ताकत बनाना और अपने रास्ते खुद चुनना। यही असली सुख था। आज भी आर्थिक स्थिति उतनी आसान नहीं है, रिश्ते अब भी जटिल हैं, और जीवन में कई अधूरी बातें हैं। लेकिन अब मेरे भीतर वो डर नहीं है जो कभी मेरे फैसलों को रोकता था। अब मेरे लिए खुशी का मतलब केवल सफलता नहीं, बल्कि वह आत्मविश्वास है जो हर निर्णय के बाद जन्म लेता है।

मेरे लिए अब ‘नई चीज़’ करना मतलब है, हर दिन कुछ ऐसा चुनना जो मुझे खुद के करीब लाए। कभी किसी नए विषय पर लिखना, कभी किसी महिला की कहानी सुनना, कभी किसी बच्चे को पढ़ाना। हर छोटी कोशिश में वही ऊर्जा है जो मुझे जीवित रखती है। कई लोग सोचते हैं कि खुशी बड़ी उपलब्धियों में छिपी होती है, पर मैंने सीखा है कि असली संतोष वहीं है, जहां आप खुद के निर्णयों से जीवन को दिशा देते हैं। डर, असफलता और विरोध के बावजूद जब आप अपनी राह चुनते हैं, तब हर कदम अपने आप में एक उत्सव बन जाता है। मेरे लिए यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ है। मैं अब भी सीख रही हूं, बढ़ रही हूं और हर दिन अपने भीतर की आवाज़ को सुनने की कोशिश करती हूं। यही मेरी नारीवादी खुशी है कि मुझे अपने शर्तों पर जीने की, गलतियां करने की और फिर से शुरुआत करने की आज़ादी है।

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