इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ जानिए उन ट्रांस महिलाओं के बारे में जो साल 2025 में सुर्खियों में रहीं

जानिए उन ट्रांस महिलाओं के बारे में जो साल 2025 में सुर्खियों में रहीं

इस साल कई ट्रांस महिलाएं और क्वीयर व्यक्ति अपनी मेहनत, साहस और आत्मविश्वास के दम पर समाज की सोच को चुनौती देते नज़र आए। यह लेख ऐसी ही बेहतरीन ट्रांस महिलाओं के बारे में हैं, जिन्होंने इस साल न केवल देश में बल्कि दुनिया में सम्मान हासिल किया। आइए जानते हैं उन ट्रांस महिलाओं के बारे में जो साल 2025 में सुर्खियों में रहीं। 

समाज आज के आधुनिक दौर में भी सदियों पुरानी रूढ़िवादी मानसिकता से ग्रस्त है। जहां एक तरफ महिला और पुरुष के सामाजिक खांचों में फिट बैठने बालों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं दूसरी तरफ समाज के पूर्वाग्रह एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के व्यक्तियों के लिए आज भी बने हुए हुए हैं। हालांकि कई समस्याओं के बावजूद भी ट्रांस समुदाय आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है और हर एक क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के मौके तलाश रहा है। लेकिन यह राह आसान नहीं है। ट्रांस और क्वीयर समुदाय को आज भी शिक्षा, रोज़गार, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ता है। फिर भी इस साल कई ट्रांस महिलाएं और क्वीयर व्यक्ति अपनी मेहनत, साहस और आत्मविश्वास के दम पर समाज की सोच को चुनौती देते नज़र आए। यह लेख ऐसी ही बेहतरीन ट्रांस महिलाओं के बारे में हैं, जिन्होंने इस साल न केवल देश में बल्कि दुनिया में सम्मान हासिल किया। आइए जानते हैं उन ट्रांस महिलाओं के बारे में जो साल 2025 में सुर्खियों में रहीं। 

1 – अनीता प्रसाद

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, इस साल बोगड़ी की रहने वाली 52 वर्षीय अनीता प्रसाद ने एक नया इतिहास रच दिया है। वह कर्नाटक की पहली ट्रांसजेंडर महिला हैं, जिन्हें परिवहन विभाग से भारी मालवाहक वाहन (एचजीवी ) चलाने का लाइसेंस प्राप्त हुआ है। उन्होंने साल 2021 में ट्रांसजेंडर महिला के रूप में अपना जेंडर परिवर्तन किया था। वह ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन की संस्थापक और विस्टारिक रोबोटिक्स एंड श्रीजन की सह-संस्थापक हैं। इसके साथ ही उन्होंने वाईएसयू कैलिफोर्निया से प्रबंधन में पीएचडी की है और उनके पास भारतीय विज्ञान संस्थान से कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डायनामिक्स में प्रमाणन सहित कई डिग्रियां और प्रमाण पत्र भी हैं।अनीता प्रसाद की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत सफलता नहीं है, बल्कि यह ट्रांस समुदाय के लिए रोज़गार और सम्मानजनक अवसरों की नई संभावनाओं को भी दिखाती है। भारी वाहन चलाने जैसे पेशे को अब तक पुरुषों से जोड़ा जाता रहा है, ऐसे में एक ट्रांस महिला का इस क्षेत्र में आगे आना रूढ़िवादी सोच को सीधी चुनौती देता है।

2 – मालेम थोंगैम

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक,  मामेल थोंगैम मणिपुर की प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता हैं। इस साल उन्होंने 2 अक्टूबर को नई दिल्ली के कुतुब मीनार से अपनी शांति यात्रा शुरू की थी और उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और नागालैंड जैसे राज्यों से गुजरते हुए वह अपने गृह राज्य मणिपुर पहुंचीं। गौरतलब है कि 2,300 किलोमीटर से अधिक लंबी अपनी यात्रा के दौरान उन्हें सबसे बड़ी बाधा का सामना अपने राज्य में ही करना पड़ा, क्योंकि कुकी समूह की जनजातीय एकता समिति ने कांगपोकपी जिले से उनके गुजरने पर आपत्ति जताई थी। हालांकि कई समस्याओं के बावजूद, उन्होंने बीएसएफ के काफिले के साथ कांगपोकपी जिले को पार किया और इम्फाल पहुंच गई। शांति का संदेश लेकर 75 दिनों से ज़्यादा समय तक साइकिल चलाने के बाद, जब वो वहां पर पहुंचीं, तो वहां हजारों लोगों ने उनका स्वागत किया। थोंगैम की यह यात्रा केवल एक शारीरिक सफ़र नहीं थी, बल्कि यह विभाजन, हिंसा और पहचान के संकट का सामना कर रहे मणिपुर के लिए शांति का प्रतीक बन गई।

3 – के. पोन्नी और ए. रेवती

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक,  इस साल राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर दिवस के मौके पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने सर्वश्रेष्ठ ट्रांसजेंडर व्यक्ति पुरस्कार से ट्रांस महिलाओं को सम्मानित किया। इसके तहत डिप्लोमा, स्नातक डिग्री और पीएचडी जैसे विभिन्न स्तरों पर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे 10 ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सम्मानित किया गया और उन्हें शैक्षिक सहायता प्रदान की गई। गौरतलब है कि तूतीकोरिन की के. पोन्नी को कला और शिक्षा के क्षेत्र में उनके लगातार योगदान के लिए चुना गया, जबकि नमक्कल की ए. रेवती को उनके सामाजिक कामों  के माध्यम से ट्रांस समुदाय के व्यक्तियों को प्रेरित करने के लिए यह सम्मान मिला। इस पुरस्कार के तहत दोनों को प्रशस्ति पत्र और 50,000 रुपये प्रदान किए गए। यह पहल केवल सम्मान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया कि ट्रांस और क्वीयर समुदाय की पहचान को शिक्षा और सामाजिक योगदान के माध्यम से मजबूत किया जा सकता है। 

4 –  मोहिनी महंत 

अमृतसर में गणतंत्र दिवस के अवसर पर पंजाब की पहली ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और राष्ट्रीय लोक अदालत की न्यायविद मोहिनी महंत को सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान ट्रांसजेंडर समुदाय के उत्थान और सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए दिया गया। पीएचडी और  मास्टर डिग्री धारक हैं। वे लंबे समय से अपने समुदाय के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं।वह मनसा फेडरेशन वेलफेयर सोसाइटी नाम की एक गैर-लाभकारी संस्था चलाती हैं, जो ट्रांसजेंडर लोगों को शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक सहायता प्रदान करती है। वर्तमान में, वह और उनकी टीम यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि समुदाय के पंजीकृत सदस्यों को आधार कार्ड, मतदाता कार्ड और पैन कार्ड जैसे ज़रूरी दस्तावेजों तक पहुंच प्राप्त हो, जिससे वे केंद्रीय योजनाओं के तहत कल्याणकारी लाभों का लाभ उठा सकें।

5 – जेन कौशिक

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, राजनीति विज्ञान और अंग्रेजी में दोहरी स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त 32 वर्षीय स्कूल शिक्षिका जेन कौशिक पिछले छह महीनों से हैदराबाद के एक निजी बोर्डिंग स्कूल में पढ़ा रही हैं। इससे पहले जेन को एक ही साल के भीतर उत्तर प्रदेश और गुजरात के दो निजी स्कूलों से अपनी ट्रांसजेंडर पहचान के कारण इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने साल 2022 से इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करनी शुरू की और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। गौरतलब है कि इस साल 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने औपचारिक रूप से यह स्वीकार किया कि निजी संस्थानों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव करने की अनुमति नहीं है।अदालत ने दोनों स्कूलों और दोनों राज्य सरकारों को जेन को 50,000 रुपये मुआवज़ा देने का आदेश भी दिया। इसके अलावा, ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और उसके नियमों के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए एक सलाहकार समिति गठित करने का निर्देश दिया गया।

 6- अदिति शर्मा 

हरियाणा के करनाल जिले की रहने वाली एक ट्रांस महिला अदिति शर्मा समाज के लिए मिसाल बन गई हैं। पारंपरिक मानदंडों को तोड़ते हुए वह साल 2015 से करनाल में एक प्राथमिक स्कूल चला रही हैं। इस साल हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि, उन्होंने अपने संकोच से बाहर निकलने और शिक्षाविद बनने का फैसला करने में थोड़ा समय लगा। यह दिखाने के लिए कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकते हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों की मदद कर सकते हैं। समाजशास्त्र में स्नातक और सौंदर्य प्रसाधन में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर चुकीं हैं, उन्होंने आर्थिक तंगी के कारण अपने स्कूल में शौचालय साफ करने से लेकर प्रधानाचार्य के रूप में काम करने तक, सभी प्रकार की नौकरियां की हैं। इस साल अदिति शर्मा के लिए एक छोटी जीत के रूप में, हरियाणा मानवाधिकार आयोग (एचएचआरसी ) ने उनकी शिकायत को संज्ञान में लिया। यह शिकायत उन्होंने शिक्षा विभाग के खिलाफ दायर की थी, जिसने उनके स्कूल को मान्यता देने में विफलता दिखाई थी।

7- जैकलीन प्रधान

इस साल जोरथांग की रहने वाली 21 वर्षीय जैकलीन प्रधान सिक्किम की मिस यूनिवर्स का ताज जीतने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला बनी है, जो कि सिक्किम और एलजीबीटीक्यू+  समुदाय के व्यक्तियों के लिए न केवल एक ऐतिहासिक पल है, बल्कि समावेशिता और प्रतिनिधित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अब वह मिस यूनिवर्स इंडिया प्रतियोगिता में राज्य का प्रतिनिधित्व करेंगी। ​​कई सालों की हिंसा और संघर्ष के बाद यह जीत उनके लिए एक बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 

8 – डॉ. बियोंसी लैशराम 

बियोंसी लैशराम उत्तर पूर्वी भारत की पहली ट्रांसजेंडर महिलाहैं जिन्होंने डॉक्टर का पद हासिल किया है। मणिपुर की ट्रांसजेंडर महिलाएं उन्हें आशा की किरण के रूप में देखती हैं। जेंडर ट्रांजिशन के बाद, उन्होंने अपने सरकारी पहचान पत्र में अपना सही नाम और जेंडर पहचान दर्ज करवा लिया था। लेकिन, उनके शैक्षणिक रिकॉर्ड को अपडेट करने का अनुरोध संबंधित अधिकारियों ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद, फरवरी 2024 में उन्होंने इसे चुनौती देने के लिए राज्य के उच्च न्यायालय का रुख किया। 

इस साल वो इसलिए सुर्ख़ियों में रही क्योंकि, मणिपुर उच्च न्यायालय ने उनको अपने शैक्षणिक रिकॉर्ड में अपना सही नाम और लैंगिक पहचान दर्ज कराने की अनुमति दी है। यह फैसला ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के आधिकारिक रिकॉर्ड और दस्तावेज़ों में उनके सही नाम और लैंगिक पहचान को शामिल करने के अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि इस संबंध में कानून मौजूद है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभी भी बहुत ज़्यादा सुधार की ज़रूरत है। 

साल 2025 में सुर्खियों में रहीं ये ट्रांस महिलाएं केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों की कहानियां नहीं हैं, बल्कि उस लंबे और कठिन संघर्ष की गवाही हैं, जो ट्रांस समुदाय के व्यक्ति रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सामना करते है। शिक्षा, रोज़गार, न्याय, स्वास्थ्य, राजनीति और प्रतिनिधित्व जैसे अलग–अलग क्षेत्रों में इन महिलाओं ने रूढ़िवादी सोच को चुनौती दी और यह साबित किया कि अवसर मिलने पर ट्रांस महिलाएं भी समाज के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। लेकिन जब तक समाज और राज्य मिलकर ट्रांस समुदाय के लिए सुरक्षित, सम्मानजनक और समावेशी वातावरण नहीं बनाएंगे, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा। लेकिन इन महिलाओं की मौजूदगी यह भरोसा भी दिलाती है कि बदलाव संभव है।

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