बात यहां सिर्फ साहित्यिक दुनिया की चुप्पी की नहीं है। बात है उस भीड़ की भी है जो एकदम स्तरहीन भाषा को अपना हथियार बनाकर सर्वाइवर की मोरल पोलिसिंग में जुटी है।
एडवरटाइजिंग वॉचडॉग ने प्राप्त शिकायतों में पाया है कि इस विज्ञापन में व्यापक नग्नता को बढ़ावा दिया गया है। महिलाओं के शरीर को सेक्शुलाइज किया गया है। कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या यह पोस्टर दिखाने के लिए सही है जहां उनके बच्चे भी इसे देख सकते हैं। ट्वीटर ने भी यह कहा है कि कुछ यूजर ने यह पोस्ट रिपोर्ट की है।
नारीवाद के बारे में सभी ने सुना होगा। मगर यह है क्या? इसके दर्शन और सिद्धांत के बारे में ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम। इसे पूरी तरह जाने और समझे बिना नारीवाद पर कोई भी बहस या विमर्श बेमानी है। नव उदारवाद के बाद भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति आए बदलाव के बाद इन सिद्धांतों को जानना अब और भी जरूरी हो गया है।