स्वास्थ्यमानसिक स्वास्थ्य डिप्रेशन कोई हौवा नहीं है!

डिप्रेशन कोई हौवा नहीं है!

जब भी डिप्रेशन की शुरुआत होती है तो सभी को लगता है की वो व्यक्ति बस परेशान होगा किसी चीज़ को लेकर या हम ये सोच लेते है कि उसका मूड ख़राब होगा।

रिया कई दिनों से बहुत गुमसुम सी रहने लगी थी। तीन दिन फिर छह दिन और जैसे-तैसे एक हफ़्ता बीत गया। लेकिन रिया को अन्दर से कुछ भी बेहतर महसूस नहीं हुआ। शुरुआत में सबको लगता था कि उसका किसी बात से मूड ज़्यादा खराब है या फिर हो सकता है की वो कुछ छिपा रही है। लेकिन धीरे-धीरे रिया को और गंभीर रूप से तकलीफ़ होने लगी। उसका ज़्यादा से ज़्यादा रोने का मन करता या तो पहले से ज़्यादा सोने का। हद तो तब हुई जब रिया ने किताबें पढ़नी छोड़ दी, क्योंकि वो उसका सबसे पसंदीदा काम था। आखिरकार रिया की एक दोस्त ने पहचाना की ये सभी लक्षण डिप्रेशन के है और घर में सलाह करके रिया को एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक के पास ले जाया गया, जहाँ ये पता चला कि रिया वाकई डिप्रेशन से जूझ रही थी। वो सचमुच अपने मन की गिरहों की गांठों में कही फंस गई थी!

ये कहानी चाहे आप सभी को काल्पनिक लगे, लेकिन यही आज के दौर का सच है। आज देश में ढेरों लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। इससे एक जंग लड़ रहे है। डिप्रेशन एक आम बीमारी जैसी ही है, जिसमे एक पेशेवर मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सिक की राय लेना ज़रूरी होता है। जब भी डिप्रेशन की शुरुआत होती है तो सभी को लगता है कि वो व्यक्ति बस परेशान होगा किसी चीज़ को लेकर या हम ये सोच लेते है कि उसका मूड ख़राब होगा। अगर दो-चार दिन के अन्दर उसका मूड नहीं बदलता तो घरवाले ये तक कहना शुरू कर देते है कि ‘तुम्हारी तो आदत ही बन गई है मुहं बनाकर बैठने की!’ ऐसे में वो व्यक्ति जो वाकई में परेशान है और न ही समझ पा रहा है की उसे हुआ क्या है, उसके लिए सबकुछ और कठिन हो जाता है। ऐसे में डिप्रेशन को हम पहले कदम में ही नज़रंदाज़ कर देते हैं इसे अपने भीतर दबाये रखने का हमारा प्रयास जारी रहता है। ताकि हमारे कारण हमारे अपनों को बुरा न लगे या फिर वो असहज महसूस न करें। लेकिन अगर पहले से ही लक्षणों पर ध्यान दिया जाए तो इसे संभालने में आसानी हो जाती है।

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डिप्रेशन के लक्षण

डिप्रेशन के लक्षण अलग-अलग प्रकार के होते है जैसे – ज़्यादा सोना या पहले की तुलना में कम नींद आना। पहले जिन चीज़ों में मन लगता था उन चीज़ों में मन न लगना। थका हुआ महसूस करना। निराशावादी हो जाना। घबराहट महसूस करना। एंग्जायटी महसूस करना। अकेले रहने का मन करना। रोने की इच्छा बार-बार महसूस करना और अचानक से वज़न कम होना या बढ़ना। ये सभी डिप्रेशन के लक्षण होते है। ऐसा माना जाता है की व्यक्ति अगर इन सभी लक्षणों को दो हफ़्ते से ज़्यादा तक महसूस करें तो इसका मतलब यही है की आपको डिप्रेशन होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए अच्छा है कि डिप्रेशन की शुरूआती अवस्था में ही हम मदद के लिए कदम आगे बढ़ा ले। ऐसे में डिप्रेशन को पहले ही चरण पर नियंत्रित किया जा सकता है।

जिस तरह का रुख समाज डिप्रेशन को लेकर रखता है, वो रुख इसे बस एक हौवा बना देता है।

डिप्रेशन से जुड़ी धारणाएं

कई लोग डिप्रेशन के पहले चरण में मदद के लिए कदम आगे नहीं बढ़ा पाते क्योंकि इससे संबंधित धारणाएं व्यक्ति को और कमज़ोर कर देती है। इसके साथ ही, अक्सर डिप्रेशन के बारे में बढ़ा चढ़ाकर बोला जाता है।

वो व्यक्ति जो इससे पहले ही जूझ रहा है उसे शर्म महसूस करायी जाती है। अजीब-अजीब सी बातें की जाती है, जैसे – ‘अरे! डिप्रेशन? नहीं-नहीं तुम्हे क्यों होगा डिप्रेशन?’ या फिर ये कहना कि ‘क्या? तुम मनोचिकित्सक के पास जाना चाहती/चाहते हो? तुम पागल थोड़ी हो जो वहां जाओगे?’ मानसिक बीमारी ‘पागलपन’ के साथ भ्रमित और एक वर्जित विषय माना जाता है। इन सब बातों को सुनने के बाद बिखरा हुआ मन और बिखर जाता है। हिम्मत और हौसला कदम बढ़ाने का कम हो जाता है। यही कारण है कि कई लोग बहुत बाद में अपने कदम आगे बढ़ाते है।

डिप्रेशन कोई हौवा नहीं है!

जिस तरह का रुख समाज डिप्रेशन को लेकर रखता है, वो रुख इसे बस एक हौवा बना देता है। जबकि डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है और इसका इलाज भी कोई मुश्किल नहीं है। बशर्ते आप शुरूआती समय में ही सतर्क हो जाएँ और मदद के लिए कदम बढ़ाएं। समाज का इसे हौवा बनाने वाला तरीका ठीक वैसा ही है जैसे बस अपने अन्दर ही सबकुछ दबा छिपा कर बैठ जाओ क्योंकि अपने मन की बातें किसी बाहरी को नहीं बतानी चाहिए। ऐसा रवैया डिप्रेशन को एक बड़ा विकराल रूप बनाकर सिर्फ़ डराने का ही काम करता है!

डब्ल्यू.एच.ओ की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे उदास देश है। भारत में चिंता, सिज़ोफ्रेनिया, अवसाद और बाईपोलर डिसऑर्डर विकारों के अधिकतम मामले पाए गए है। ऐसे में ये कहना कि डिप्रेशन सिर्फ अमीर लोगों की बीमारी है या किसी दूसरे देश से आई है। पर वास्तव में ये आँख मूँदकर ख़ुद को धोखा देने वाली बातें बचकानी है। डिप्रेशन को अगर हम हौवा न बनाकर इंसानियत की नज़र से देखे और एक आम तरीके से सादगी से समझकर शायद हम किसी भी व्यक्ति की मदद कर पायेंगे और खुद की भी मदद कर पाएंगे। हमें ज़रूरत है तो बस इसे परिपक्वता और संवेदनशीलता से देखने की।

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तस्वीर साभार : talkspace

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