समाजख़बर यूपी चुनाव 2017: बेटी, बहु और पत्नी की उम्मीदवारी ‘पितृसत्ता के घूंघट की ओट से’

यूपी चुनाव 2017: बेटी, बहु और पत्नी की उम्मीदवारी ‘पितृसत्ता के घूंघट की ओट से’

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं| जनता से लेकर नेता तक सभी लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहें है|

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं| जनता से लेकर नेता तक सभी लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहें है| भले ही उम्मीदवारों की फ़ेहरिस्त में आधी दुनिया को नाममात्र तक सीमित किया गया है लेकिन चुनाव-प्रचार से लेकर आंशिक उम्मीदवारी और बतौर मतदाता महिलाएं इस महापर्व में कहीं भी पीछे नहीं है| हाँ यह बात अलग है कि राजनीति में उनका अस्तित्व बहन, पत्नी, बहु और बेटी तक सीमित कर दिया गया है| इसकी कई वजहें हैं – कोई अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने चुनावी मैदान में है तो कोई पति-पिता के मान-सम्मान के लिए| राजनीति में उनके अस्तित्व की चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइये हम गौर करते है चुनावी मौसम में अलग-अलग मोर्चे पर डटी महिलाओं की भूमिका पर –

चुनावी-मंचों पर ‘आधी दुनिया के बोल’

चुनाव-प्रचार के दौरान रायबरेली में आयोजित जनसभा में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि – खोखले वादों और झूठ बोलने वालों को अब प्रदेश की जनता को पहचानना होगा| उन्होंने सवाल पूछा कि मोदीजी ने बनारस के लिए क्या किया| फिर खुद जवाब दिया कि कुछ नहीं| उन्होंने 8 नवंबर को ताली बजाकर नोटबंदी की| मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहती हूं क्या महिलाओं द्वारा एक-एक पाई जोड़कर रखा गया पैसा भ्रष्टाचार का था|

वहीं सहार में चुनावी जनसभा संबोधित करने पहुंची सांसद एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल ने कहा कि – लोग पार्टी पर भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं, पर 108 एम्बुलेंस बिना किसी भेदभाव के मदद कर रही है| केंद्र सरकार पर यह कहकर निशाना साधा कि केंद्र ने आज तक कोई काम नहीं किया| एक सरकार ने हाथियों के बुत खड़े किए और दूसरी ने जनता को बैंकों के सामने लाकर खड़ा कर दिया|

प्रियंका और डिंपल दोनों ही बेटी-बहु के रूप में राजनीतिक दलों से ताल्लुक रखती हैं| चुनाव प्रचार के दौरान उनके इन भाषणों से साफ़ है कि राजनीतिक दावंपेंचों की समझ में वे पुरुषों से कहीं भी पीछे नहीं है|

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पत्नियों की उम्मीदवारी

यूँ तो यूपी चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या न के बराबर है| पर जिन भी महिला उम्मीदवारों को सियासत में लाने की जद्दोजहद की जारी रही उनमें से ज्यादातर महिलाएं अपने पतियों के पक्ष में चुनावी मैदान में उतरी या उतारी गयी है| बात की जाए, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की पिछली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे राकेश धर त्रिपाठी इस बार आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के आरोपों की वजह से भदोही से चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं| ऐसे में यहां से उनकी पत्नी प्रमिला धर त्रिपाठी अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं|

इलाहाबाद की मेजा सीट पर आपराधिक छवि वाले उदयभान सिंह करवरिया ने अपनी पत्नी नीलम करवरिया को भाजपा से टिकट दिलवाया है|

भारतीय जनता पार्टी में, महिला मोर्चे की अध्यक्ष स्वाति सिंह एक और मिसाल हैं| भाजपा के निष्कासित पूर्व प्रांतीय उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति लखनऊ की सरोजिनीनगर सीट से चुनाव लड़ रही हैं|

पूर्व विधायक दिलीप वर्मा की कांग्रेस विधायक पत्नी माधुरी वर्मा इस बार भाजपा के टिकट पर बहराइच की नानपारा सीट से चुनाव लड़ रही हैं| बहराइच में ही मौजूदा विधायक वकार अहमद शाह की पत्नी रुआब सईदा इस बार बहराइच सीट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं| शाह अखिलेश यादव सरकार में मंत्री थे, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से उनके विधायक पुत्र यासिर शाह को उनके स्थान पर मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था|

भाजपा सांसद कौशल किशोर की पत्नी जय देवी इस बार लखनऊ की मलीहाबाद सीट से पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं|

आगरा की बाह सीट से रानी पक्षालिका भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं| वह हाल में भाजपा में शामिल हुए राजा महेंद्र अरिदमन सिंह की पत्नी हैं|

गाजीपुर की मुहम्मदाबाद सीट पर अलका राय भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं| वह भाजपा के दिवंगत पूर्व विधायक कृष्णानंद राय की पत्नी हैं|

अंबेडकरनगर की टांडा सीट से संजू देवी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं| वह हिंदू युवा वाहिनी के नेता रामबाबू गुप्ता की पत्नी हैं, जिनकी साल 2013 में एक सांप्रदायिक घटना में हत्या कर दी गई थी| संजू अपने पति के नाम पर वोट मांगी रही हैं और अपने पति की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने की जी-तोड़ कोशिश कर रही हैं|

राष्ट्रीय लोकदल रालोद के दिवंगत प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी शोभा सिंह अब भाजपा में शामिल हो गई हैं| वह फ़ैज़ाबाद की बीकापुर सीट से चुनाव लड़ रही हैं|

इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा विधायक पूजा पाल इसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं| उनके पति राजू पाल की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को लेकर हत्या कर दी गई थी| इस मामले में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद का नाम सामने आया था| पूजा अपने पति की सियासी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं|

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चुनाव-प्रचार में अभिनेत्रियाँ

समाजवादी पार्टी के प्रचार अभियान में मशहूर एक्ट्रेस और राज्यसभा सांसद जया बच्चन ने कानपुर देहात में एक रैली को संबोधित किया| उन्होंने अखिलेश के समर्थन में नारेबाजी कर रहे लोगों से कहा कि वो नारेबाजी करने के बजाय जनसंपर्क में जुट जाएं और 11 मार्च को नतीजे आने के बाद अखिलेश जिंदाबाद के नारे लगाएं|

इसी तर्ज पर, कोसी में बसपा प्रत्याशी मनोज पाठक के समर्थन में रोड शो करने पहुंची बॉलीवुड अभिनेत्री जीनत अमान| उन्होंने वहां जनता से वोट मांगे|

अव्वल रहीं आंवला की महिला मतदाता

उत्तर प्रदेश के आंवला विधानसभा क्षेत्र के 90 फीसद पोलिंग बूथ पर मतदान करने के मामले में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे कर दिया| इससे पहले इस क्षेत्र में वोटिंग को लेकर महिलाओं में इतना उत्साह कभी नहीं देखा गया| उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र से बसपा के अगम मौर्य, भाजपा के धर्मपाल और सपा से सिद्धराज सिंह, यानी कि सभी पुरुष उम्मीदवार है|

गौरतलब है कि चुनावी मंच से लेकर उम्मीदवारी और मतदान तक हर मोर्चे पर महिलाएं सक्रियता से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं| पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पितृसत्ता के इस चुनावी समर में महिलाओं के स्वतंत्र-अस्तित्व के इतर उनके बेटी, बहु, बहन और मतदाता के रूप को हाथोंहाथ लिया है| उनका प्रतिनिधित्व तो हर मंच पर दिखाया जा रहा है पर पितृसत्ता के घूंघट की ओट से| उम्मीदवारी में या तो वे अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाती दिख रही है या फिर पतियों की सीट से चुनावी मैदान में हैं| चुनावी-मंच पर बोल तो उनके है लेकिन उनके पुरुष प्रतिनिधि की पैरवी के लिए| अभिनेत्रियाँ मंच पर तो है लेकिन पुरुष उम्मीदवारी के नाम जपते हुए| अधिक संख्या में महिला मतदाताओं ने वोट देकर इतिहास तो रचा दिया लेकिन किसी पुरुष-उम्मीदवार के लिए| अब सवाल यह है कि महिलाएं कब तक पितृसत्ता के घूंघट की ओट से सत्ता संभालने, उन्हें चुनने और सक्रिय प्रचार करने के हुनर का इस्तेमाल पितृसत्ता-स्थापन के लिए करती रहेंगी?

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