इंटरसेक्शनल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम : एक विरल लेकिन जानलेवा बीमारी

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम : एक विरल लेकिन जानलेवा बीमारी

टीएसएस ख़ून में बैक्टीरिया के संचारित होने और ज़हर पैदा करने से होता है। ये सबसे पहले 1978 में अमेरिका में देखी गई थी।

आजकल पीरियड्स के दौरान सुरक्षा के लिए कई तरह की सामग्री उपलब्ध है। जहां एक ज़माने में ज़्यादातर औरतों को सैनिटरी पैड्स भी उपलब्ध नहीं होते थे, आज हमारे पास टैम्पॉन और मेंस्ट्रुअल कप जैसे कई विकल्प हैं जो महीने के उन दिनों हमारी सुरक्षा बेहतर तरीके से करते हैं। लेकिन इन प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल करते वक़्त हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की बेहद ज़रूरत है। क्योंकि अगर ये ज़्यादा देर तक हमारे शरीर के अंदर रहें तो इंफेक्शन हो जाने का ख़तरा है। इस इंफेक्शन से एक बहुत ख़तरनाक बीमारी भी पैदा हो सकती है। ये बीमारी है टीएसएस या ‘टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम।’

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम ख़ून में बैक्टीरिया के संचारित होने और ज़हर पैदा करने से होता है। ये सबसे पहले 1978 में अमेरिका में देखी गई थी जब एक शिशु रोग विशेषज्ञ ने कुछ बच्चों में इसके लक्षण देखे थे, और उनके खून में ज़हरीले पदार्थ पाए थे। साल 1980 तक इसके की और केसेज़ सामने आ चुके थे और एक शोध से ये सामने आया कि ये बीमारी ज़्यादातर मेंस्ट्रुएट करती औरतों में नज़र आई है। वो औरतें जो सुपर-अब्ज़ॉर्बेंट टैम्पॉन का इस्तेमाल करती हैं। पहली बार इस बीमारी का संयोग इन टैम्पॉन्स के साथ पाया गया। ये सिद्ध हुआ कि टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का कारण खुले हुए घावों से हुआ इंफेक्शन भी हो सकता है, जिसके कारण ये मर्दों और बच्चों में भी पाई गई है, पर ज़्यादातर इसका शिकार महिलाएं ही हैं और इसका मुख्य कारण है टैम्पॉन न बदलना। वैसे टीएसएस, एक बहुत ‘रेयर’ बीमारी है। भारत में एक साल में इसके 100 से भी कम केसेज़ होते हैं, तो डरने की ऐसी कोई बात नहीं है। फिर भी अगर एक बार किसी को हो गया तो ये उसके लिए बेहद ख़तरनाक हो सकता है। उसकी जान जा सकती है या शरीर के ज़रूरी अंग भी काम करना बंद कर सकते हैं। जिसकी वजह से सावधानी बरतने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है।

टीएसएस ज़्यादातर तब होता है जब शरीर में टैम्पॉन के बहुत देर तक रहने से उस पर एक तरह का बैक्टीरिया पैदा होता है। ये बैक्टीरिया हमारे वैजाइना से होते हुए हमारे पूरे शरीर मैं फैल जाता है। इसके कुछ शुरुआती लक्षण हमें अनुभव हो सकते हैं जैसे तेज़ बुखार, गले में खराश, सिरदर्द, बदन दर्द, उलटी, दस्त, ब्लड प्रेशर में गिरावट, बेहोश होना, चक्कर आना, और मिर्गी के दौरे। कुछ लोगों को हथेलियों और पैरों के तलवों पर रैशेज़ और जलन भी होते हैं। रिसर्च बताता है कि 15 से 25 साल की महिलाओं को टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का सबसे ज़्यादा ख़तरा है।

और पढ़ें : पीएमएस में महिलाओं को होती है मूड स्विंग की परेशानी आखिर क्या है वजह

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम की वजह से हार्ट अटैक भी आ सकता है और लिवर और किडनियां भी काम करना बंद हो सकती हैं। कई बार लोगों के हाथ, पैर या उंगलियां भी चलना बंद हो गए हैं जिसकी वजह से उन्हें काट देना पड़ा है। इसकी वजह ये है कि टीएसएस के कारण पूरे शरीर में ज़हर पैदा हो जाता है जिससे शरीर के ज़रूरी हिस्से ख़राब हो जाते हैं।

टीएसएस ज़्यादातर तब होता है जब शरीर में टैम्पॉन के बहुत देर तक रहने से उस पर एक तरह का बैक्टीरिया पैदा होता है।

ये सब सुनने में डरावना लग सकता है पर इससे बचने का रास्ता बेहद आसान है। टीएसएस आमतौर पर खून में बैक्टीरिया के प्रवेश की वजह से होता है। इसलिए पीरियड्स के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। ये तरीके आज़माकर टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम से हम बच सकते हैं :

  • टैम्पॉन या मेंस्ट्रुअल कप को दिन में चार या छह घंटों के बीच बदलें। रात में सोने के वक़्त पैड का इस्तेमाल करें।
  • अगर पहले कभी टीएसएस की शिकार हुई हैं तो टैम्पॉन का इस्तेमाल न किया करें।
  • टैम्पॉन या कप बदलने के बाद हाथ अच्छे से धोएं।
  • इस्तेमाल के बाद मेंस्ट्रुअल कप को अच्छी तरह से डिसिंफ़ेक्ट किया करें। उसे गर्म पानी में उबालें। इससे उस पर लगे कीटाणु मर जाते हैं।

अगर आपको लगता है कि आपको टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम हुआ है, फ़ौरन अपने नज़दीकी गायनेकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। अगर समय पर इसका इलाज किया गया तो ये कुछ दिनों या हफ़्तों में ठीक हो जाता है। पर जितनी देर की जाए, ये उतना ही ख़तरनाक होता जाता है और आपके शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है। आमतौर पर इसका इलाज ऐंटी-बायोटिक दवाओं से संभव है। टीएसएस की जांच के लिए अभी तक कोई एक टेस्ट तो नहीं है, पर इसकी जांच ज़्यादातर ब्लड टेस्ट, किडनी और लीवर टेस्ट, कई तरह के एक्स-रे वगैरह से की जाती है। अगर ज़्यादा देर तक इसे नज़रअंदाज़ किया जाए और ये शरीर में बहुत ज़्यादा फैल जाए तो सर्जरी की भी ज़रूरत हो सकती है।

और पढ़ें : ‘पीरियड का खून नहीं समाज की सोच गंदी है|’ – एक वैज्ञानिक विश्लेषण

अपनी सेहत के बारे में किसी तरह का कॉम्प्रोमाइज करना ठीक नहीं है, इसलिए किसी भी तरह की शारीरिक तकलीफ़ को नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है। हम नहीं जानते कि ये कब भारी पड़ सकता है। अगर पीरियड्स के दौरान आपको किसी भी तरह की तकलीफ़ हो जो आमतौर पर नहीं होती, तो नि:संकोच डॉक्टर को दिखाएं। साथ ही इस बात का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है कि आप किस तरह के प्रॉडक्टस का इस्तेमाल कर रही हैं, उन्हें वक़्त पर बदल रही हैं या नहीं, और वे आपको सूट कर रहे हैं या नहीं। टीएसएस से घबराने की ज़रूरत नहीं है पर हर हाल में सतर्क रहना और सावधानी बरतनी चाहिए। हम अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा इसी तरह कर सकते हैं।


तस्वीर साभार : medicalxpress

Leave a Reply