हम अंदाज़ा लगा ही सकते हैं कि जब दलितों का आज भी इतना शोषण होता है तो आज से 150 साल पहले क्या हाल रहा होगा। ऐसे में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने इनके हकों की बात उठाई। पति-पत्नी की इस जोड़ी ने मांगा और महार जातियों के बीच काम किया। महाराष्ट्र में ये जातियां सबसे निचली मानी जाती थीं। उन्होंनें इन जातियों में भी सबसे दबे हुए वर्ग की लड़कियों और औरतों के साथ काम किया।
सदियों के शोषण को मिटाने के लिए शिक्षा को एक ताकतवर हथियार माना गया। शिक्षा अभी तक ब्राह्मणों के हक में ही थी। ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने दलितों को शिक्षा में हिस्सेदार बनाया। दलित लड़कियों के लिए ज्योतिबा ने स्कूल खोला। इसमें टीचर बनीं सावित्रीबाई। 1848 से 1851 तक ऐसे 18 स्कूल खोले गए।
यह आसान काम नहीं था। ऊंची जाति के लोगों ने उनको भला-बुरा कहा। सावित्रीबाई पर गोबर और पत्थर फेंके। उनके ससुराल वालों को भड़काया। कहा, “इनके काम से आपकी बयालिस पीढ़ियां नरक मेंजाएंगी!” दोनों को अपना घर छोडना पड़ा। ज्येतिबा ने छुआछूत मिटाने के लिए और अभियान चलाए। दलितों के पानी की व्यवस्था भी की।
एक बार सावित्रीबाई के भाई ने उन्हें पत्र में लिखा, “तुम जो काम कर रहे हो वो समाज को भ्रष्ट करने वाला है।’” सावित्रीबाई का जवाब था, “तुम तो बकरी-गाय को सहलाते हो। नागपंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो। लेकिन दलितों को तुम इंसान नहीं अछूत मानते हो।“
और पढ़ें : फूलन देवी : बीहड़ की एक सशक्त मिसाल
ये अन्याय केवल दलितों और उनमें खासकर दलित औरतों के साथ ही नहीं होता था। ऊंची जाति की औरतों के लिए भी कड़े नियम थे। बाल-विवाह, सती प्रथा और बालिका हत्या भी समाज का हिस्सा थे। इन सब में विधवाओं की स्थिति सबसे भयानक थी। बाल-विवाह होने के कारण कई बचपन में ही विधवा हो जातीं। बेबसी की हालत में परिवार के लोग उनका फायादा उठाते। कई गर्भवती विधवाएं आत्महत्या करने पर मजबूर होजातीं।
ज्योतिबा और सावित्रीबाई ने इस समस्या का भी हल निकालने की कोशिश की। ज्योतिबा ने विधवाओं के लिए एक ऐसा स्थान बनाया जहां वे रह सकती थीं। यहां बच्चों को जन्म देने के लिए प्रसूति घर भी था। उन्हें शिक्षा पाने का मौका भी मिलता था।
सावित्रीबाई और ज्योतिबा ने दूसरों को ही उपदेश नहीं दिए। अपने विचारों को खुद के जीवन में भी उतारा। ज्योतिबा और सावित्रीबाई के कोई संतान नहीं थी। ज्योतिबा पर लोगों ने दबाव डाला कि वे दूसरी शादी करलें। आदमियों का ऐसा करना उस समय बुरा नहीं माना जाता था। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक ब्राह्मण विधवा को, जो गर्भवती थी, अपने घर में रहने की जगह दी। उसके बच्चों को उन दोनों ने गोद लिया और अपना वारिस बनाया।
आज भी ज्योतिबा और सावित्रीबाई का गुणगान महाराष्ट्र में किया जाता है। उनके काम से बहुतों को छुआछूत और अन्याय से लड़ने की प्रेरणा मिली है।
Also read: Essay: The Life And Times Of Dnyanjyoti Krantijyoti Savitribai Phule
स्रोत:आपका पिटारा, अंक फरवरी – मार्च, 2001
Comments: