समाजमीडिया वॉच सोशल मीडिया पर सेक्सिट कॉन्टेंट कैसे बन रहा है मुनाफ़ा कमाने का ज़रिया

सोशल मीडिया पर सेक्सिट कॉन्टेंट कैसे बन रहा है मुनाफ़ा कमाने का ज़रिया

अनुसार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टेट पर प्रतिबंध लगाने में कोई रूचि नहीं दिखाई जब तक उनके बयानों पर सार्वजनिक आक्रोश और आलोचना नहीं की गई। ये प्लेटफॉर्म अपने फायदे के लिए व्यूज़ बढ़ाना चाहते हैं भले ही वह समाज के लिए कितना ही बुरा हो।

सोशल मीडिया पर सेक्सिस्ट टिप्पणियों की भरमार है जिनमें महिलाओं और क्वीयर समुदाय के ख़िलाफ़ अवैध सेक्सुअल सर्विलांस, क्रीपशॉट्स (बिना उनकी सहमति के निजी तस्वीरें जारी करना), धमकी और बलात्कार की तस्वीरें, उनके ख़िलाफ़ नफरत जैसी चीज़ें शामिल हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इन्हें यहां पसंद भी किया जा रहा है। सोशल मीडिया एल्गोरिदम, ज्यादा लाइक्स और व्यूज़ की आड़ में कॉन्टेंट के नाम पर मिसोजिनी (स्त्री विरोधी) के ज़रिये मुनाफ़ा कमाया जा रहा है। यही वजह है कि महिलाओं, ट्रांस और क्वीयर समुदाय पर हमला करनेवाली पोस्ट काफी पसंद की जाती हैं।

आज के दौर को अगर सोशल मीडिया का दौर कहे तो इसमें किसी तरह का अचंभा नहीं होना चाहिए। सोशल मीडिया सामाजिक रूप से मौजूदगी दर्ज कराने का एक नया पैमाना बन गया है। लोग जीवन के छोटे-छोटे पल, उपलब्धि सोशल मीडिया पर दर्ज करने को आवश्यक मानते जा रहे हैं। इसी सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में रूढ़िवाद की भी जगह बन गई है। महिलाओं और क्वीयर समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा इन प्लैटफॉर्म्स पर समय के साथ लगातार बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर स्त्रीद्वेषी विचारों को कॉन्टेंट बनाकर परोस रहे हैं।

बड़ी संख्या में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर टॉक्सिक मर्दानगी का जश्न मनाते नज़र आते हैं। वे महिलाओं पर पुरुषों का गुस्सा होना सही बताते हैं। महिलाओं के आंदोलनों की आलोचना करते हैं। इनका ये कॉन्टेंट उन लोगों, युवा पुरुषों, लड़कों के लिए आकर्षक हो जाता है जो यह महसूस करते हैं कि मर्दानगी को गलत दिखाया जाता है, मर्दों को ‘कलंकित’ किया जाता है। हार्वर्ड की रिसर्च के अनुसार सेक्सिस्ट टॉपिक और मान्यताओं के आधार पर बने हैशटैग के माध्यम से ऐसे कॉन्टेंट को बरकरार रखा जा रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ ऑनलाइन सेक्सिस्ट विचार ज्यादा मौलिक हैं। सोशल मीडिया का मनौवैज्ञानिक प्रभाव दूरगामी है। यहां सब कुछ दांव पर है।

‘मिसोजिन ऑन ट्विटर’ के नाम से जारी रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर 2013 से नौ फरवरी 2014 के दौरान ट्विटर पर अंग्रेजी में स्लट (फूहड) इस्तेमाल छह मिलियन से अधिक किया गया था। इसमें ‘बिच’ और ‘कंट’ जैसे शब्दों को नहीं नापा गया था।

सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर

इन्फ्लुएंसर अपने-अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर महिला-विरोधी और होमोफोबिक विचारों को फैलाने का काम कर रहे हैं। ये वो लोग होते हैं जिनको बड़ी संख्या में लोग पसंद करते है। अगर आप एंड्रयू टेट का नाम नहीं जानते हैं तो आप सोशल मीडिया पर महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे नफ़रत भरी घटना में से एक से अपरिचित हैं। एंड्रयू टेट एक अमेरिकी सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर है जो स्त्री विरोधी कॉन्टेंट बनाने के लिए मशहूर है। टेट अपने सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ बलात्कार होने का जिम्मेदार उन्हें ही बताते, महिलाओं पर हमला कैसे करना चाहिए इसका विवरण देते और मानसिक स्वास्थ्य का इलाज कराने वाले लोगों का मजाक उड़ाते। बड़ी संख्या में टेट के हिंसक, महिला विरोधी बर्ताव को लोगों द्वारा पसंद किया जाता था। हालांकि, बाद में काफी विरोध के बाद टेट को बैन किया गया।

भारत में सोशल मीडिया पर महिलाओं के ख़िलाफ़ विचारों से भरा कॉन्टेंट बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। किसी भी मुद्दे पर अगर महिलाएं अपनी राय रखती है तो उनको चुप कराने के लिए लोगों की भीड़ आ जाती है। फ्री प्रेस जर्नल में छपी जानकारी के अनुसार साल 2020 में अभिनेता मुकेश खन्ना ने मीटू अभियान के दौरान कहा था कि महिलाओं का कार्यबल में शामिल होना और पुरुषों के समान पद मांगना ही समस्या है। यह इकलौता मामला नहीं है जब किसी प्रसिद्ध अभिनेता ने ऐसा कहा है। अलग-अलग क्षेत्रों में काम करनेवाले लोग महिलाओं और क्वीयर समुदाय को लेकर इस तरह की टिप्पणी करते हैं।  

महिलाओं और क्वीयर समुदाय के ख़िलाफ़ अभद्र शब्दों का इस्तेमाल

मिसोजिन ऑन ट्विटर’ के नाम से जारी रिपोर्ट के अनुसार 26 दिसंबर 2013 से नौ फरवरी 2014 के दौरान ट्विटर पर अंग्रेजी में स्लट शब्द का इस्तेमाल छह मिलियन से अधिक बार किया गया था। इसमें ‘बिच’ और ‘कंट’ जैसे शब्दों को नहीं नापा गया था। स्टडी में लगभग 20 प्रतिशत ट्ववीट धमकी देने वाले लगे। इसमें तुम मूर्ख, बदसूरत, मैं तुम्हारा सिर काट दूंगा और अन्य अभद्र और असहज करने वाली बातें भी शामिल हैं। 

हार्वर्ड की रिसर्च के अनुसार सेक्सिस्ट टॉपिक और मान्यताओं के आधार पर बने हैशटैग के माध्यम से इसे बरकरार रखा जा रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक़ ऑनलाइन सेक्सिस्ट विचार ज्यादा मौलिक है। सोशल मीडिया का मनौवैज्ञानिक प्रभाव दूरगामी है।

द एटलांटिक में प्रकाशित एक लेख में यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड की प्रोफेसर डेनियल कीट्स सिट्रान और ‘हेट क्राइम इन साइबरस्पेस’ की लेखिका कहती है कि महिलाएं जान ही नहीं पाती है कि उन पर कौन हमला कर रहा है। साइबरमॉब बोर्ड पर आती है वे केवल एक चीज जानते हैं कि हमला महिला पर कर रहे है। रिवेंज पॉर्न (महिला की बिना जानकारी के उसकी अंतरंग तस्वीरे जारी करना) के 1606 केसों को देखते हुए उन्होंने पाया 90 प्रतिशत में निशाना महिलाओं पर था। एक अन्य अध्ययन में सामने आया कि 70 प्रतिशत महिलाएं ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान यौन उत्पीड़न से बचने के लिए पुरुष किरदारों के साथ खेल में आगे बढ़ना चुनती है। 

स्त्रीद्वेषी कॉन्टेंट और सोशल मीडिया का मुनाफ़ा

सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर कल्चर दुनिया में बड़ा बाजार है। द टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार सोशल मीडिया कंपनियां को महिला विरोधी फैलाए गए विचारों से फायदा होता है। काउंटर हेट वेबसाइट पर छपी जानकारी के मुताबिक यूट्यूब ने उन चैनलों से 3.4 मिलियन यूरो तक कमाया जो एंड्रयू टेट के महिला विरोधी वीडियो पोस्ट कर रहे थे। इन वीडियो में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को बढ़ावा दिया गया है।

आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सोशल मीडिया और मिसोजिनी कल्चर साफ तौर पर मुनाफ दे रहा है। अगर इन सब के पर प्रतिबंध की बात करे तो इन प्लेटफॉर्म की अपने तरफ़ से कोई पहल नहीं है। द कॉन्वर्सेशन में छपे लेख के अनुसार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म टेट पर प्रतिबंध लगाने में कोई रूचि नहीं दिखाई जब तक उनके बयानों पर सार्वजनिक आक्रोश और आलोचना नहीं की गई। ये प्लेटफॉर्म अपने फायदे के लिए व्यूज़ बढ़ाना चाहते हैं भले ही वह समाज के लिए कितना ही बुरा हो। हालांकि, डीप्लैटफॉर्मिंग किसी एक व्यक्ति के काम को कम से कम स्पॉटलाइट से बाहर कर सकता है। अगर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ऐसे कॉन्टेंट के लिए रेवन्यू में कटौती करेंगे और खुद से पहल करेंगे तो इस व्यवहार को रोका जा सकता है। विकल्प होने के बावजूद समय रहते कोई कदम नहीं उठाया जाता है, न ही उठाया जा रहा है।


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