विकास-मार्ग पर तेज़ी से दौड़ता ‘हमारा भारत’ आज अपने समृद्ध इतिहास से लेकर अपने तकनीकी विकास तक की दूरी तय करता हुआ दुनिया में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभर रहा है, लेकिन जब भारतीय इतिहास के उन गायब पन्नों पर नजर पड़ती है जिन पर भारत की कई अविस्मरणीय हस्तियों के नाम दर्ज़ थे, तो विकास की यह दौड़ अंधी-सी नज़र आने लगती है। ऐसा लगता है मानो वर्तमान अपने इतिहास को छोड़ते हुए भविष्य की एक ऐसी दौड़ में भाग रहा है, जिसका कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं। इस दौड़ के हर कदम पर वह अपने इतिहास को रौंदता नजर आता है, जिससे दब कर यह सुनहरा इतिहास अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है।
भारत ने दुनिया भर में अपनी समृद्ध कला, साहित्य और संस्कृति के दम पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इस देश ने हर नई सभ्यता और संस्कृति को अपने दिल में जगह दी और इन सभी का समन्वय इन्हें अद्भुत बनाता है।
बात की जाए, भारतीय संगीत की, तो दुनिया में संगीत के सात सुरों को पहचान कर उनकी ताल पर भारतीय संस्कृति ने संगीत की एक नई परिभाषा गढ़ी है। मुगल काल के तानसेन से लेकर वर्तमान समय की स्वर-कोकिला ‘लता मंगेश्कर’ तक इन सभी हस्तियों ने दुनिया भर में अपना यश फैलाया। लेकिन दुर्भाग्यवश हमारा इतिहास संगीत से जुड़ी कई ऐसी हस्तियों को सहेजने में असफल रहा, जिन्होंने भारतीय संगीत को एक बुलंदी तक पहुंचाया।
भारतीय संगीत के इतिहास की रिकॉर्डिंग से गुम 19 वीं सदी की गौहर जान वो हस्ती हैं, जिन्होंने भारतीय संगीत के इतिहास में पहली बार रिकॉर्डिंग की। या यूं कहें कि गौहर पहली गायिका थी, जिन्होंने भारतीय संगीत के इतिहास में अपने गाए गानों की रिकॉर्डिंग करवाई। इसलिए गौहर जान को ‘भारत की पहली रिकॉर्डिंग सुपरस्टार’ भी कहा जाता है।
और एंजलिना कहलाई ‘गौहर जान’
साल 1873 में पटना में जन्मी एंजलिना योवर्ड, आगे चल कर ‘गौहर जान’ कहलाई। गौहर के पिता विलियम रोबर्ट योवर्ड एक अमेरिकी थे। उनका व्यापार आजमगढ़ में था। उनकी माता का नाम विक्टोरिया था। दुर्भाग्यवश विलियम और विक्टोरिया की शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी। साल 1879 में इन दोनों ने एक-दूसरे से तलाक ले लिया। इसके बाद, विक्टोरिया ने कलकत्ता में रहने वाले मलक जान नाम के शख्स से निकाह कर लिया और अपनी बेटी एंजलिना का नाम बदल कर उन्होंने ‘गौहर जान’ रखा।
गौहर की माता एक अच्छी नृत्यांगना थीं। वे जल्द ही पूरे कलकत्ता में अपने इस हुनर से विख्यात हो गर्इं। गौहर ने भी रामपुर के उस्ताद वज़ीर खान, लखनऊ के बिंदादिन और कलकत्ता के प्यारे साहिब से गायन की तालीम हासिल की। इतना ही नहीं, उन्होंने चरण दास के निर्देशन में द्रुपद, खयाल, ठुमरी और बंगाली कृतन में भी महारत हासिल की। गौहर ने बहुत जल्द अपनी कलाओं से पूरे देश का ध्यान अपनी ओर कर लिया।
ग्रामोफ़ोन कंपनी में रिकॉर्ड गौहर जान की पहली भारतीय आवाज़
भारत में पहली बार साल 1902 में ‘ग्रामोफोन कंपनी’ ने गौहर से उनके गाए गीतों की रिकॉर्डिंग करवाई। हर गीत के लिए उन्हें 3000 रुपए दिए गए। साल 1902 से लेकर 1920 तक उनके हिंदुस्तानी, बंगला, गुजराती, मराठी, तमिल, अरबी, फारसी, पश्तो, अंग्रेजी और फ्रेंच गीतों के छह सौ डिस्क निकले। उनकी कुछ चुनी हुई रिकॉर्डिंग एचएमवी के चेयरमैन चॉइस और सांग्स ऑफ़ मिलेनियम सीरीज आज भी उपलब्ध है।
शाही कला और जीवन-शैली वाली गौहर जान
गौहर जान अपने समय की सबसे विख्यात और अमीर गायिका थीं। उन्हें पूरे देश में उनकी कला और शाही जीवन-शैली के लिए जाना जाता था। साल 1911 में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के राज्याभिषेक में गौहर की फनकारी ने अंग्रेजों और दूसरे विदेशी मेहमानों को भी अपना प्रशंसक बनाया। गौहर ने जमींदार निमाई सेन से विवाह रचाया, लेकिन आपसी तालमेल न बनने से दोनों अलग हो गए। उन्हें वैवाहिक जीवन का सुख नहीं मिला।
एक अगस्त 1928 को मैसूर के राजा कृष्ण राजा वडियार – चतुर्थ ने गौहर को अपने दरबारी संगीतकार के तौर पर नियुक्त कर सम्मानित किया। देश के कई राज दरबारों से होती हुई वे ज़िंदगी के आखिरी दिनों तक वे गाती रहीं। 17 जनवरी 1930 को गौहर जान ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।
‘गौहर जान की जीवनी तवायफों के शोषण की दुःख भरी दास्तान है’ – मृणाल पांडे
हिंदी लेखिका एवं वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने बीबीसी (हिंदी) में अपने एक लेख (गौहर जान की ठसक रानियों जैसी थी) में लिखा कि ‘गौहर जान की जीवनी उस समय के राज समाज के माहौल और आत्मनिर्भर डेरेदार तवायफों के शोषण की दुख भरी दास्तान है| तब का रसिक समाज इन गायिकाओं पर रुपया तो भरपूर लुटाता था किंतु बड़ी से बड़ी पेशेवर गायिका को राज समाज में न तो ब्याहता का दर्जा मिलता था और न सम्मानित पुरुष कलाकारों जैसा आदर भरा व्यवहार दिखाता था, ख़ास तौर पर तब जब उनकी गायकी और यौवन ढलाव पर आ जाएं| प्रतिभा के साथ ही गौहर में एक दुर्लभ व्यावहारिकता भी थी| उसके कारण गायन तथा रिकॉर्डिंग उद्योग के शुरुआती दिनों वह एक प्रसिद्ध करोड़पति बनी जो अंग्रेज़ अफसरों से भी ठसक से मिलती जुलती थी और जिसके पहनावे और ज़ेवरात तत्कालीन रानियों को मात देते थे|
उसने अपनी पूँजी का निवेश ज़ायदाद खरीदने में किया जिसके पीछे कहीं न कहीं बचपन के बेसहारा दिनों में भोगी उनकी तथा उनकी मां की गरीबी की यादें रही होंगी| गौहर की अनेक कोठियाँ कलकत्ता में थीं|’
‘रस के भरे तोरे नैन’
इस तरह भारतीय संगीत के रिकॉर्ड में पहली रिकॉर्ड आवाज की मल्लिका ने भारतीय संगीत को एक नए मुकाम तक पहुंचाया| पर दुर्भाग्यवश हमारा इतिहास इस हस्ती के पन्ने को सहेज न सका। कहते हैं न कि इंसान मरते हैं, उनके विचार नहीं। ठीक उसी तर्ज़ पर शायद ‘सत्याग्रह’ के गाने ‘रस के भरे तोरे नैन’ में गौहर जान के बोल मानो दोबारा जी उठे।
संदर्भ
- कंट्रोल Z, स्वाती सिंह, पृ. 64, संस्करण 2016
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