समाजख़बर ‘एंटी-रोमियो दस्ता’: आज़ाद महिलाओं पर हमला और दोराहे पर खड़े समाज की दुविधा

‘एंटी-रोमियो दस्ता’: आज़ाद महिलाओं पर हमला और दोराहे पर खड़े समाज की दुविधा

एंटी-रोमियो दस्तों का गठन ही एक तरह से महिलाओं की आज़ादी पर हमला है, क्योंकि इसकी वजह से उन्हें अपने साथ घूम रहे पुरुष मित्र के साथ अपने रिश्ते का खुलासा करना होगा|

शाम के करीब पांच बजे होंगे| बनारस के रविदास पार्क में लोगों की भीड़ जमा थी| पुलिसवालों का एक दस्ता भी मौजूद था| मामला कुछ संगीन लग रहा था| तभी एक नौजवान की आवाज़ सुनाई पड़ी जो रो-रोकर सिसकियां लेता हुआ पुलिसवालों से कह रहा था – ‘मेरी पत्नी रोड के उस पार एक श्रृंगार की दुकान में गयी है|’ पुलिसवाले अपने फ़ोन से लगातार उसकी तस्वीर खींचे जा रहे थे और नौजवान खुद का चेहरा ढकने की नाकाम कोशिश कर रहा था| तभी उसकी पत्नी दौड़ते हुए आयी और बोली – ‘ये मेरे पति है| काहे, मार रहे है आपलोग इन्हें? अब क्या औरतों की दुकान में भी आप लोगों के डर से हम इन्हें अपने साथ लेकर जायेंगे|’ पुलिसवाला नौजवान पर गुर्राता है, ‘जानते हो न यहां सब रोमियो-आशिक बैठते है| बिना सोचे समझे बैठोगे तो ऐसे ही मार खाओगे|’ यह कहते हुए पुलिसवालों का दस्ता चलता बना|

‘मनुस्मृति’ का नाम तो आप सभी ने सुना होगा| हिंदू महिलाओं के लिए बनाई गयी इस संहिता में लिखा गया है कि ‘औरतों को अपने जीवन में स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए| उन्हें बचपन में पिता, जवानी में पति और जीवन की सांध्य वेला में बेटे की रखवाली में रहना चाहिए|’

इस संहिता को रचे हुए करीब 1,800 साल बीत चुके है, जिसमें इतने सालों के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से मानो एक और नया अध्याय जोड़ दिया गया है कि – बचपन से लेकर जवानी तक हर लड़की की रखवाली राज्य को करनी है|

पितृसत्ता की अवधारणा ‘महिला सुरक्षा’ के नामपर तमाम बंदिशों में उन्हें जकड़ने वाले इस प्राचीन नुस्खे को एकबार फिर से व्यवहार में लाने का काम कोई और नहीं, उत्तर प्रदेश के नये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार कर रही हैं|

उत्तर प्रदेश के अभी 1,500 थानों में गठित इस नए दस्ते ने सनसनी फैला दी है| ऐसा लगता है कि कबूतरों के बीच बिल्ली को छोड़ दिया गया हो| एंटी-रोमियो दस्ते हवा की तरह आते हैं, जैसे यह कोई हवाई दस्ता हो| इन्होंने शुरूआती तीन दिनों में 2,000 से ज्यादा नौजवानों को धर दबोचा है| इन नौजवानों की गलती बस इतनी हैं कि कुछ के बाल लंबे हैं, कुछ लड़कियों के स्कूल और कॉलेज के करीब खड़े पाए गए तो कुछ ऐसे ही भटक रहे थे| नौजवान दंपतियों को नैतिकता पर भाषण दिए जा रहे हैं, बगैर पता किए कि वे भाई-बहन हैं या शादीशुदा जोड़े| बाज़ार, मॉल, स्कूल, कॉलेज, कोचिंग-सेंटर, भीड़ भरी जगहों पर यूपी पुलिस आजकल बेहद व्यस्त है|

इतना फोकस ‘रोमियो’ पर ही क्यूँ?

अब सवाल यह है कि सड़क पर लड़कियों को परेशान करने वालों पर ही इतना फोकस क्यूँ किया जा रहा है? जबकि उत्तर प्रदेश में महिला-विरोधी हिंसा के अन्य मामलों का फीसद इसकी अपेक्षा कहीं ज्यादा है| इसमें 34.6 फीसद मामले यूपी में पति/उसके परिजनों द्वारा क्रूरता के हैं जो भारत में सर्वाधिक हैं| 30.6 फीसद दहेज हत्याएं यूपी में दर्ज की गई हैं जो देश में सर्वाधिक हैं| 462 मामले सामूहिक बलात्कार के हैं (और 422 प्रयास) जो सर्वाधिक हैं| 17.1 औरतों को अगवा किए जाने और फिरौती के मामले हैं| इसके साथ ही, 5,925 मामले यौन उत्पीड़न के, यूपी इस मामले में देश में दूसरे स्थान पर है| और 7,885 मामले यौन हमलों के, यूपी इस मामले में देश में तीसरे स्थान पर है| राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों (2015) के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में, जहां देश भर की महिलाओं की कुल 16.8 फीसद आबादी रहती है, 35,527 मामले यानी महिलाओं के खिलाफ़ देश भर में हुए कुल अपराधों के तकरीबन 10.9 फीसद अपराध दर्ज हुए|

यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि महिलाओं के खिलाफ़ ज्यादा गंभीर अपराधों के मुकाबले सुरक्षा के नामपर मनचलों पर ही फोकस क्यों किया जा रहा?

आज़ाद महिला पर हमला है ‘एंटी-रोमियो दस्ता’

एंटी-रोमियो दस्तों का गठन ही एक तरह से महिलाओं की आज़ादी पर हमला है, क्योंकि इसकी वजह से उन्हें अपने साथ घूम रहे पुरुष मित्र के साथ अपने रिश्ते का खुलासा करना होगा| वह भी तब जब हमारा संविधान किसी भी शख्स की निजी आज़ादी और गरिमा में दखलअंदाजी करने की इजाजत किसी को नहीं देता| इसलिए इन दस्तों के काम करने का तरीका असंवैधानिक है और व्यक्ति की निजी आज़ादी का उल्लंघन करता है|

एंटी रोमियो की अवधारणा पूरी तरह महिलाओं के व्यवहार एवं व्यक्तित्व को पितृसत्ता के अनुरूप ढालने के उद्देश्य से तैयार की गयी है, जिसके तहत किसी भी महिला को किसी भी पुरुष के साथ सार्वजनिक स्थल पर जाने की इजाजत नहीं दी जाती है| खासकर पिता, भाई, पुत्र और पति से इतर अपने किसी पुरुष मित्र के साथ|

ऐसा लगता है कि पितृसत्ता अपनी सबसे बदतरीन शक्ल उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रही है| यहां सार्वजनिक जगहों तक औरतों की पहुंच और साथ ही उनके विकल्प बेहद सीमित है| ऐसा माहौल न केवल औरतों के दिलोदिमाग में बल्कि उनके माता-पिता में और ज्यादा बड़े स्तर पर समाज में डर पैदा करता है|

पुराना है सुरक्षा के नामपर महिला-बंदिशों का किस्सा

महिला संबंधित किसी भी तरह की हिंसा से बचने के लिए किसी भी पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को उनकी सुरक्षा के नामपर बंदिशें लगाना एक पुराना किस्सा रहा है| हालांकि इस बात का विश्लेषण कुछ वक्त बाद ही किया जा सकेगा कि ये दस्ते कितने कारगर रहे, पर इस वक्त इस बात पर गौर करना ज़रूरी है कि महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और महिलाओं का यौन उत्पीड़न ज़रूरी नहीं कि बाहर सड़कों पर ही होता है| कई बार यह घरों की चारदीवारी के भीतर भी होता है| दूसरे, अगर आप अपराध पर ज्यादा व्यापक नजरिये से निगाह डालें, तो दहेज हत्याएं, घरेलू हिंसा, यौन हमले और तेजाब से हमले ज्यादा बड़ी और बढ़ती हुई चिंता का विषय है| ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि महिला-हिंसा संबंधी इन तमाम घटनाओं को ध्यान में रखते हुए नीति-निर्माण हो|

दोराहे पर खड़े समाज की दुविधा

भारत आज दोराहे पर खड़ा है| एक तरह यथास्थितिवादी पारंपरिक ग्रामीण समाज है और दूसरी तरफ शहरी समाज आधुनिकता, निजी प्रगति और नए तरह के सामाजिक रिश्तों की ओर कदम बढ़ा रहा है| इससे महिलाओं, खासकर युवतियों के जीवन में भी भारी बदलाव आ रहा है तो युवा लड़कों को समझ नहीं आ रहा है कि उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए| वक्त के साथ हमारे जीवन में तो ढेरों बदलाव आते जा रहे हैं लेकिन बात की जाए पूर्वी उत्तर प्रदेश की तो हमारे सामाजीकरण में कोई नए बदलाव नहीं आये है| आज भी स्कूल और कॉलेज में को-एजुकेशन होने के बावजूद लड़कों के लिए लड़कियां हौआ का विषय होती है| नतीजतन लड़के लड़कियों से बात करने, उन्हें अपना दोस्त बना लेने को अपने लिए एक बड़ी उपलब्धि समझने लगते है| वहीं दूसरी ओर, ऐसा न कर पाना उन्हें अपनी एक बड़ी असफलता लगने लगती है, जिससे निज़ात पाने के लिए वे समाज के पुरातन कायदों और धमकियों की नकल यानी यौन उत्पीड़न का सहारा लेते हैं| ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि घर से लेकर स्कूल-कॉलेज तक ऐसा स्वस्थ्य माहौल बनाया जाए जिससे लड़के-लड़कियां एकदूसरे को भिन्न-भिन्न प्रजाति का न समझकर ‘इंसान’ समझे और कोई किसी के लिए हौआ का विषय न हो|


स्रोत: इंडिया टुडे, हिंदी संस्करण, 12 अप्रैल,2017

आकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, 2015

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content